Ram Singh is a simple farmer. He has two daughters. Father cares both of them alike. Kamala is his second wife. She cares the elder girl more, because she is the daughter of farmer’s second wife. It is because she was afraid of the people. She thought that the people will speak about her bad if she does not care the elder girl more. She wanted that people should say only one thing- “she loved the elder girl more than her own daughter”. The elder girl got complete attention. What happened next?
राम सिंह एक मामूली किसान था। वह पढ़ा-लिखा नहीं था। जब प्रसव के समय में उसकी पहली बीवी नेहा की मौत हो गई तो उसने अपनी बेटी प्रेमा की देखभाल के लिए कमला से शादी कर ली। शादी के समय में ही उसने कमला से वचन लिया कि वह प्रेमा की अच्छी तरह देखरेख करेगी।
कमला के मन में माँ की ममता पहले ही आयी और उसके बाद ही उसकी गोद में दिव्या आयी। कमला ने प्रेमा को जो प्यार दिया था, वह उसने अपनी बेटी दिव्या को नहीं दिया था। क्यों कि प्रेमा ही उसकी पहली बेटी थी और पहले का स्थान हमेशा पहला होता है, दूसरा नहीं होता।
राम सिंह:
कमला दोनों लड़कियों को अच्छी तरह पाल रही है। प्रेमा को दिव्या से ज्यादा प्यर दे रही है। मैं चाहता हूँ कि दोनों बेटियों की अच्छी जगह शादी हो जाये और वे सुखी जीवन बितायें।
मेरे पास 30 बीघा जमीन है. एक एक लड़की को शादी में 10-10 बीघा जमीन दे दूंगा और बाकी 10 बीघा जमीन भी हमारे बाद उनकी ही होगी। कमला को मैं ने बहुत प्यार से देखा और कमला भी मुझे भरपूर प्यार देती है।
हमारा जीवन सुख-संतोष से इसी प्रकार गुजरे, भगवान से मैं यही मिन्नत करता हूँ।
कमला:
मैं ने सोचा कि दूसरी शादी करने वाला कैसा होगा और मारी जिंदगी कैसी होगी। मुझे डर भी लगा कि मेरे बाप गरीब हैं और अगर मेरा घर परिवार ढीक नहीं रहे तो अपने माँ-बाप पर मैं भार बन जाऊँगी।
हमारा इष्ट भगवान भोलानाथ ने हम पर कृपा की और मुझे अच्छा पतिदेव दिया। वो मुझे बहुत प्यार से देख रहे हैं। जीवन भर में उन्हों ने मुझ से एक ही अनुरोध किया था, पहली बेटी को अपनी ही बेटी मान कर उसे मैं भर पूर प्यार दूँ। मैं ने वचन दिया और उसे निभाया। उसे मैं ने अपनी बेटी से ज्यादा प्यार दिया।
मेरे प्यार के लोग बाग ही साक्षी हैं। सब जानते हैं कि मैं ने प्रेमा को इतना प्यार दिया कि वह प्यार मेरी खोक से पैदा हुई दिव्या को नहीं दिया।
मेरे मन में हमेशा यही डर रहता है कि अगर मैं दोनों लड़कियों को एक समान देखूँ तो लोग मुझ में कोई कमी देखने की कोशिश करेंगे। मैं ने उन्हें यह अवसर नहीं दिया।
प्रेमा:
मेरी छोटी बहन दिव्या से ज्यादा माँ मुझे प्यार करती है। मैं समझ नहीं सकी कि ऐसा क्यों हो रहा है। एक दिन बुआ ने कहा कि मेरी माँ नेहा मर गई है और बाप ने कमला के साथ शादी कर ली। इसे डर है कि अगर वह मुझे भरपूर प्यार नहीं देगी तो लोग उसका बुरा मानेंगे और उसकी बुराई कह फिरकर उसका बदनाम करेंगे। तभी मुझे मालूम हुआ कि माँ का प्रेम एक नाटक है। यह राज बताकर बुआ ने मुझ से कहा कि मैं असलियत जान लूँ।
मेरी समझ में नहीं आता कि यह प्यार सच्चा है या नाटक। मुझे हमेशा ऐसा ही लगता है कि कमला ही मेरी माँ है। अपनी असली माँ को मैं ने देखा नहीं। मुछे बुआ की बातों पर विश्वास नहीं होता। मैं ने एक बार पापा से पूछा कि बुआ का कहना सच है या झूठ। पापा ने कहा कि बुआ की बातें झूठ हैं और कमला ही मेरा माँ है। इसके बाद बुआ का हमारे घर पर आना बंद हो गया।
माँ जहाँ भी जाती, मुझे ही अपने साथ ले जाती है। दिव्या को आने नहीं देती। उसे हमेशा पढ़ने के लिए कहकर, उसे खेलने नहीं देती। मैं जब भरपूर सोती हूँ तो दिव्या पढ़ती रहती है। मैं माँ से कहती हूँ कि दिव्या को सोने दो माँ। माँ मेरी बात पर ध्यान नहीं देती। उसका यूँ दिव्या पर प्यार नहीं दिखता। मेरी समझ में नहीं आता कि माँ को छोटी बहन पर प्यार क्यों नहीं होता।
आखिर मैं इस लाड़-प्यार से दसवीं भी पास नहीं हुई। मै रोने लगी तो माँ ने कहा कि पढ़कर हमें नौकरी थोड़ी ही करनी है। चलो, पढ़ाई यहीं खतम हो गई। मुझे भी तब ये बातें अच्छी लगीं।
जब मेरी शादी की बात चल रही थी, उनके पिता ने दहेज में 20 बीघा जमीन माँगी। पताजी संदेह करने लगे तो माँ ने स्वीकारने को कहा। 20 बीघा देकर एक किसान के बेटे के साथ मेरी शादी करवा दी। वे चाहते थे कि मैं संतोष से रहूँ।
लेकिन मेरा पति मेहनत नहीं करता। जुआ खेलता और शराब पीता है। कुछ जमीन भी बेच दी। मुझे इस शादी से सुख नहीं मिला। मैं क्या करूँ? ये बातें माँ को बताना नहीं चाहती, इन बातों से माँ बहुत दुखी होगी। पिता भी बीमार हैं। मेरा पति खुद मेहनत नहीं करता, कहने लगता कि मेरी पढ़ाई भी अच्छी नहीं कि मैं कहीं नौकरी कर सकूँ। पति को नौकरी करनी है या पत्नी को, मैं समझ नहीं पाती। दहेज देकर लड़की की शा दी करने वाले बदलने चाहिए, उन्हें लड़कियों को पढ़ानी चहिए।
दिव्या:
मेरी माँ से ज्यादा पिता जी ने मुझे प्यार दिया। माँ को प्रेमा ही बेटी लगी, मैं नहीं। मैं बहुत मेहनत करके पढ़कर एमबीए हुई। माँ से दूर रहने के लिए मैं हास्टल में रहकर पढ़ने लगी। तभी मुझे मालूम हुआ कि लड़की को आजादी होनी चाहिए, पढ़ने, सोचने, समझने और निर्णय लेने की आजादी।
कुछ गहरा सोचने पर लगता है कि माँ से मुझे अच्छाई ही हुई। अगर माँ ऐसा नहीं करती तो मैं भी अपनी दीदी की तरह दसवीं से रुक जाती। मेरी पढ़ाई स्थगित नहीं हुई तो इसका कारण माँ का प्यार कम मिलना ही है।
मैं ने अपने पति को चुननने का स्वयं निर्णय लिया। माँ या बाप इसे इनकार नहीं किया. अब हम दोनों दिल्ली में अच्छी अच्छी कंपनियों में काम कर रहे हैं।
हम ने एर नया फ्लैट भी खरीद लिया। एक कमरा मेरे माँ-बाप के लिए है। मैं ने उन से वचन लिया और वे मेरी बात को कभी नहीं ढुकराते।
हम इस दिवाली को गाँव जाएंगे और माँ-बाप को मनवाकर, उन्हें यहाँ ले आएंगे।
सुना कि प्रेमा का पति बेकार बन रहा है। वे मान जाएँ तो प्रेमा दीदी को भी दिल्ली लाएंगे और किसी जगह उसके पति को नौकरी दिलाएगे। यह नहीं पाया तो हम दीदी को ही किसी जगह अच्छी नौकरी में लगा देंगे।
तकलीफों में साथ नहीं रहें तो रिश्तों का कोई मतलब नहीं होता।
_THE END_