चाय का दूसरा प्याला
ट्रिंग ट्रिंग…….. ओह फ़ोन बज रहा है…. जाने कहाँ खोयी थी मैं…..गैस चूल्हे की आंच कम कर मैं तुरंत फ़ोन उठाने ड्रॉइंग रूम की तरफ दौड़ी।माँ, कहाँ थी आप बहुत देर बाद फ़ोन पिक किया। अभि की आवाज़ में थोड़ा मीठा प्यारा सा गुस्सा और चिंता साफ सुनायी दे रही थी।मैं थोड़ी भी देरी कर देती फ़ोन पिक करने में तो वो अक्सर परेशान हो जाता था।कुछ नहीं बेटा – बस कुछ देर पहले ही ऑफिस से लौटी हूँ चाय ही बना रही थी।
अभि ने आज कुछ ज्यादा ही हक़ से बोला – मम्मी आज आपके दूसरे चाय के प्याले को शेयर करने वाला भी होना चाहिए।
अभि जानता था कि उसके पापा और मैं अक्सर ऑफिस से साथ लौटने के बाद साथ ही बैठकर चाय पीते थे।
राजीव के गुजर जाने के बाद भी मैं अक्सर दूसरा चाय का प्याला टेबल पर जरूर रखती थी और हमेशा महसूस करती की राजीव अब भी मुझे कंपनी दे रहे है।
अभि दस साल का था जब राजीव हमे छोड़कर चले गए। मैं उसकी परवरिस करने में ऐसे जुट गयी की एहसास ही नहीं हो पाया की वो भी मेरे अकेलेपन को महसूस करता है।
धीरे धीरे समय भी पंख लगाकर कब उड़ गया पता ही नहीं चला।
अभि के इंजीनियरिंग करने के बाद यूनिवर्सिटी से ही उसको आगे एडवांस्ड कोर्स के लिए स्कॉलर्शिप मिली थी।
उसके मुझे अकेले न छोड़कर जाने की जिद्द को मैंने उसके बेहतर भविष्य के लिए न चलने दी।
उसको कैलिफ़ोर्निया गए हुए अभी लगभग छः महीने ही हुए थे।
वहां जाने के बाद से ही वो मेरे अकेले रहने को लेकर बहुत चिंतीत रहना लगा था।
माँ- चुप क्यों हो आप। कुछ नहीं बेटा बस यूँ ही – सहसा उसकी आवाज़ से में अतीत की परतो से बहार आयी।
अभि भी न जाने आज ऐसे कैसे जिद किये जा रहा था माँ आप कब तक ऐसे अकेले अकेले अपनी जिंदगी बिताती रहोगी मैं आपको ऐसे अब और नहीं देख सकता हूँ। कोई तो हो माँ जो आपका ख्याल रख सके।
सॉरी माँ – आज मैंने आपसे बिना पूछे ही शेखर अँकल को आपका दूसरा चाय का प्याला पीने के लिए ऑफर किया है ।
मैं इससे पहले की कुछ बोल पाती – अभि अपनी बात बोलता गया – माँ शेखर अँकल बहुत अच्छे है पापा के जाने के बाद उन्होंने हमारा कितना ख्याल रखा वो भी अकेले है माँ क्यों न आप एक दूसरे के साथी बनो।
इसमें गलत भी क्या है माँ। अगर आज आपने मेरी बात न मानी तो मैं कल सुबह की फ्लाइट से वापिस आ जाऊँगा आपके साथ हमेशा के लिए रहने – मैंने उसको कुछ जवाब दिए बिना ही फ़ोन रख दिया।
मेरा मन दिल और दिमाग की जंग के समंदर में एक दिशाहीन मछली की तरह गोते लगा रहा था।
कुछ अतीत के पन्ने भी खुद ब खुद पलटने लगे थे मैं राजीव और शेखर एक ही ऑफिस में साथ काम करते थे।
शेखर एक बहुत ही नेक दिल और हसमुख इंसान था और अपने परिवार के साथ बेहद ही खुश पर कहते है न वक्त की गर्त में क्या लिखा होता है किसी को पता नहीं होता, एक कार एक्सीडेंट ने उसकी पत्नी को उससे हमेशा के लिए छीन लिया था।
मैंने और राजीव ने उसको बहुत संभाला था। वक्त के साथ साथ उसने भी खुद को ढाल लिया था।
राजीव के जाने के बाद उसने मेरा एक दोस्त के नाते बहुत साथ दिया था। पर कभी भी शेखर ने मुझसे जीवन में साथ आगे बढ़ने के लिए नहीं बोला फिर आज अचानक अभि ने शेखर के लिए मुझे क्यों बोला।
तभी दरवाज़े पर दस्तक हुई मैंने जैसे ही दरवाज़ा खोला शेखर सामने खड़ा था – कैसी हो भावना। मैं ठीक हूँ – अंदर आओ शेखर। किचन से चाय के पकने की भी महक आ रही थी।
मैं किचन मैं गयी और चाय लेकर ड्रॉइंग रूम में आ गयी। शायद शेखर मेरी मनोदशा को समझ गया था की मैं किस उधेड़बुन में हूँ।
भावना – क्या सोच रही हो – शायद मैं तुम्हारी उलझन समझ सकता हूँ – जब बच्चे बड़े हो जाते है तो वो हमारे दोस्त की तरह भी होते है और एक दोस्त दूसरे दोस्त का ख्याल रखना जानता है
बस अभि भी हम दोनों का एक प्यारा सा दोस्त है जो की हमे जीवन में साथ आगे बढ़ने का एक उपहार दे रहा है।
आज शाम भी वही थी वक़्त भी वही था फर्क बस इतना की मेरे दूसरे चाय के प्याले को पीने वाला भी आज मेरे साथ था।
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