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Aadhi Roti

Published by Ritu Asthana in category Childhood and Kids | Hindi | Hindi Story | Social and Moral with tag Mom | poor

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Hindi Friends Moral Story – Aadhi Roti
Photo credit: slowfoot from morguefile.com

स्कूल के जूते के फीते बांधते-बांधते ही रहीम ने जोर से आवाज लगाई ,” अम्मी!!!!! ओ अम्मी !!!!! एक रोटी ज्यादा रखना।  ”

अम्मी के लिए ये कोई नई बात नहीं थी। रहीम रोज ही अपने एक मित्र के लिए कुछ खाना अधिक ले जाया करता था। वो अपने उस मित्र से कितना स्नेह रखता था, ये बात अम्मी से छिपी नहीं थी।

अम्मी रसोई से ही बोलीं ,” बेटा, आज एक ही रोटी बनी है। दूसरी रोटी के लिए आटा नहीं है,  इसलिए मै एक रोटी और नमक रख रही हूँ। इसी में से मिल बाँट कर खा लेना। ”

रहीम थोड़ा दुखी हुआ। उसने माँ से पूछा ,” अम्मी, तो तुम क्या खाओगी?”

अम्मी ने अपने सात वर्शीय बालक की अपने प्रति चिंता को भलीभांति अनुभव किया और बोलीं , “मै अपनी मालकिन के यहाँ कुछ खा लूंगी। वो बड़ी ही दयालु हैं। वो प्रतिदिन मुझे चाय नाश्ता कराती हैं। तू चिंता मत कर। ”

अब रहीम की चिंता समाप्त हुई। रहीम की अम्मी लोगों के घर काम कर अपना एवं रहीम का पेट पालती थी।उसके अब्बा (पिता) का स्वर्गवास दो वर्ष पहले एक सड़क दुर्घटना  में हो गया था। तब से दोनों ही एक दूसरे का सहारा थे।

रहीम बोला “अच्छा अम्मीजान, सलाम-वाल-ए- कुम।अब मै चलता हूँ। ”

अम्मी ने अपने आटे वाले हाथ झट से अपने पल्लू से पोंछकर उसके नन्हे से बेटे के मस्तक को चूम लिया, “वाल-ए-कुम-सलाम बेटा। ”

टन -टन -टन -टन सरकारी स्कूल की खाने की घंटी बजी।रहीम दौड़ता हुआ पास के पार्क में गया, जहाँ पर उसे किसी के आने की प्रतीक्षा थी। टिफिन हाथ में लेकर वो बारबार पार्क के दरवाजे की और अधीरता से देख रहा था।उसके पेट में भूख के मारे चूहे दौड़ रहे थे।

तभी उसने देखा कि साफ़-सुथरे स्कूल के वस्त्रों में राम चला आ रहा था। राम पास के ही एक प्राइवेट स्कूल में पढता था। इसी पार्क में एक दिन दोनों की मित्रता हुई थी।

रहीम ने उसे वहीँ से पुकारा , “राम !!!!!! ओ राम!!!!!!,  इधर !!!!इधर आ जा। मै  बड़ी देर से तेरी राह देख रहा हूँ। ” राम की आँखें अपने प्रिय मित्र को देख हर्ष से चमक उठीं।

वो भी तेजी से बोला “हाँ हाँ आता हूँ। ”  राम एक धनी परिवार से था।उसके घर में किसी भी वस्तु की कोई कमी नहीं थी, कमी थी तो केवल प्यार, दुलार और दयाभाव की।

रहीम, जो कि पहले से ही भूख से व्याकुल था, ने राम से पूछा ,” राम क्या लाया है आज तू? जल्दी से अपना टिफिन खोल,  दोनों मिलकर खाते हैं।”

राम ने दुःखी मन से अपना  टिफिन  रहीम की ओर सरका दिया। रहीम ने तत्परता से टिफिन खोला, पर ये क्या , टिफिन तो खाली था।

रहीम बोला, “क्या बात है राम? आज तू रिक्त टिफिन ही ले आया ?जरा ध्यान से देख तेरी मॉम जी ने दूसरा टिफिन तो नहीं रखा।?

राम ,” नहीं, आज माँ ने क्रोधवश मुझे खाना नहीं दिया। ”

“क्रोधवश??????? लेकिन तू तो अच्छा बच्चा है. तुझसे कोई कैसे क्रोधित ही सकता है? बता न यार। क्या हुआ ? क्यों तेरी मॉम जी ने आज खाना नहीं दिया ?” रहीम चिंतातुर स्वर में बोला।

राम अपने प्रिय मित्र का दिल नहीं दुखाना चाहता था।

राम, “अरे छोड़ न यार।मेरा टिफिन खाली है तो क्या हुआ,  तू तो अवश्य मेरे लिए कुछ लाया होगा। चल जल्दी से इसी में से मिल कर खाते हैं।और फिर पानी पी लेंगे बस। हमारा पेट भी तो छोटा सा है, जल्दी भर जाएगा।”

राम कैसे बताए रहीम को  कि आज सुबह घर में क्या महाभारत हुई है। राम ने केवल अपनी मॉम से इतना ही कहा था कि , “मॉम गाजर का हलुआ थोड़ा अधिक रखना। मै और रहीम दोनों मिलकर खाएंगे। ”

उसने भोलेपन में अपनी मॉम को अपनी और रहीम की घटिष्ट मित्रता के अनमोल रिश्ते के बारे में बता दिया। उसने बताया  कि वो प्रतिदिन राम के लिए थोड़ा अधिक खाना लाता है, जो उसकी अम्मी बड़े ही प्यार से पकाती  हैं। और वो लोग साथ में खाना खाते हैं।

बस फिर क्या था, मॉम के क्रोध का पारावार ही न रहा। उन्होंने लगभग चीखते हुए कहा, “राम, कितनी बार तुझे कहा है कि इन छोटे लोगों से मित्रता नहीं करते। इनसे दूर रहा कर। एक तो वो गरीब और ऊपर से मुसलमान। हे भगवान!! राम राम राम राम,  इस लड़के ने तो हमारा धर्म भ्रष्ट कर दिया। ”

राम, ” कौन सा धर्म मॉम? रहीम बहुत अच्छा बच्चा है मॉम। वो बिलकुल अपने श्याम सलोने कृष्णा की ही भांति थोड़ा सांवला है बस। आप कहो तो एक बार मै उसे….”

“ख़बरदार , यदि उसे कभी भी घर लाया तो। और आज के बाद उससे बात करने की भी आवश्यकता नहीं है। ठहर जा तू , आज मै हलुआ क्या, खाना भी नहीं दूँगी। एक दिन जब भूखा रहेगा तो अक्ल ठिकाने आ जाएगी। ” मॉम गुर्राते हुए बोलीं।

अब तक उन कटु शब्दों की गूँज राम के कानो में थी। नन्हा सा ह्रदय अपने प्रिय मित्र से कदापि बिछड़ना नहीं चाहता था। उसे विश्वास नहीं हो रहा था कि जो मॉम मुझे इतना लाड करती थी अचानक इतनी निष्ठुर कैसे हो गईं।

रहीम, “राम ओ राम ! अरे कहाँ खो गया? चल न खाना खाते  हैं। अम्मी ने एक रोटी रखी है, हम उसे आधी-आधी खा लेंगे। चल फिर खेलना भी तो है। ”

राम कुछ सामान्य हुआ और बोला,”ठीक है। तू ही कर, आधी रोटी। ”

रहीम ने रोटी के दो हिस्से किए। कहने को वो रोटी को आधी कर रहा था किन्तु उसने एक टुकड़ा बड़ा और एक छोटा किया था। जल्दी से उसने बड़ा टुकड़ा,  नमक लगा के राम को पकड़ा दिया। राम ने भी जल्दी-जल्दी उसे खाना प्रारम्भ  कर दिया। रहीम की आधी रोटी छोटी थी इसलिए उसने जल्दी खा ली। रहीम हर्ष से चीखा, “मै फर्स्ट आ गया, मै फर्स्ट आ गया। ”

“ठीक है भाई तू ही फर्स्ट आया है। अच्छा चल ये ले मेरी पुस्तकें अगले दो दिन तू इनसे पढ़ फिर वापस कर देना। ” राम मुस्कुराकर बोला।

रहीम की आँखों में अपने मित्र के लिए अपार स्नेह उमड़ आया, “राम यदि तू न होता तो मै कैसे पढ़ पाता ? तू मेरे लिए खुदा  समान है। तू प्रति सप्ताह के अंत में मुझे अपनी पुस्तके देता है जिससे मै भली प्रकार पढ़ सकूँ। ”

राम ने प्यार से उसे गले लगाकर कहा,” हाँ जैसे तू आधी रोटी से अधिक मुझे खिलाता है, बिल्कुल वैसे ही। ”

रहीम , “तू मेरा खुदा है। ”

राम , “और तू मेरा कृष्णा है।”

और दोनों मित्र खिलखिलाते हुए खेलने चले गए।

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