In this Hindi story there was a cruel king who enjoyed brutal murder of innocent people with sword,later he and his family were killed by a young man,
बच्चों ! आपलोग मुझसे बहुत नाराज होंगे क्योंकि मैं आपसब के लिए कहानियाँ नहीं लिखता हूँ , केवल वयस्कों के लिए ही लिखता हूँ | लेकिन मैं आप सब से वादा करता हूँ कि आगे से ऐसा नहीं होगा | यदि वादाखिलाफी हुयी तो आप सब मुझसे किट्टी कर सगते हो |
बहुत – बहुत साल पहले जब हमारा देश गुलामी की जंजीरों में जकडा हुआ था तो हमें बोलने , शिकायत करने की भी आज़ादी हासिल नहीं थी | राजा या उसके किसी कर्मचारी से पंगा लेने का मतलब था कि सजाये मौत को दावत देना |
सुन्दरगढ़ का राजा विजयभान सिंह थे | वे बड़े ही निर्दयी थे | क्रूरता उसके नस – नस में भरी हुयी थी | जबतक वह किसी का सर कलम नहीं करता था , तबतक वह चैन से नहीं रहता था | उल्टा – पुल्टा तो करता ही था , बेवजह निर्दोष व्यक्ति के ऊपर भी कोड़े बरसाने का हुक्म दे देता था | प्रजा मजबूरी में इस अन्याय को सहन करता था | किसी को साहस नहीं था कि राजा के ऐसे हुक्म का विरोध कर सके |
उसी राज्य में रामदयाल नामक दरवान का एक बीस वर्ष का पुत्र राधेश्याम था जो बहुत ही सीधा साधा स्वभाव का नेक इंसान था | उसे किसी का दुःख देखा नहीं जाता था | करुना एवं दया उसके रोम – रोम में समाया हुआ था | वह अपने पिता के साथ राज भवन में यदा – कदा आया – जाया करता था | जब किसी को पीटते हुए देखता था तो वह रो पड़ता था , जब उसे पता चलता था कि जिस व्यक्ति को सजा दी गई , वह बिलकुल निर्दोष था | राजा अपने मनोरंजन के लिए निर्दोष लोगों को सजा दिया करता था | जब किसी का सर तलवार से कलम कर दिया जाता था तो रक्त की धार को देखकर वह खुशी से नाचने लगता था | जो रोता था उसे और रुलाने में उसे मजा आता था | जो खुश दीखता था तो उसे कोड़े से मरवाता था | जब वह तड़पता – चीखता , चिल्लाता था तो वह हर्ष से विभोर हो जाता था , उसके सामने ही नाचने लगता था |
राधेश्याम इतना चिंतित रहने लगा कि उसे न दिन को खाना अच्छा लगता था न रात को सोना | वह ईश्वर से प्रार्थना करता था कि कोई ऐसा रास्ता सुझाए जिससे राजा को सबक सिखाया जा सके और उसके गुनाहों के लिए उसे समूल खत्म किया जा सके | वो कहते हैं न जब कोई व्यक्ति पूरी श्रधा , भक्ति एवं विशवास के साथ भगवान को याद करता है तो भगवान उसकी मदद अवश्य करते हैं | मदद भी इस तरह से करते हैं कि भक्त को पता ही नहीं चल पाता |
राधेश्याम माता – पिता की सेवा करते रहता था | माँ के घरके कामों में सहायता करना वह अपना धर्म समझता था | पिता को भी उसके कामों में मदद करता था | माता – पिता भी उसे जान से भी ज्यादा प्यार व दुलार करता थे |
एक दिन माँ बोली , “ बेटा ! जलावन की लकड़ी शेष हो गई है , आज जंगल से लकड़ी काटकर ले आ | जंगल कोसों दूर है , इसलिए सत्तू पोटली में बाँध दिया है , भूख लगने पर तीन लोई बनाकर खा लेना | लोटा – डोरी दे रहीं हूँ , कोई कूप मिलने पर जल भर कर सतू सान , तीन लोई बना लेना , मगर खाने से पहले जरूर भगवान को याद कर लेना और एक मन्त्र अवश्य पढ़ लेना |
राधे श्याम पूछा , “ कौन सा मन्त्र , बता दीजिए | ”
एक खाऊँ , न दो खाऊँ , तीनो को खाऊँ – कहकर तीनो सत्तू की लोई एक – एक कर तब खा जाना और ईश्वर को धन्यबाद देना कि उसने तुम्हें खाने के लिए भोजन की व्यवस्था कर दी |
अबोध बालक की तरह राधेश्याम पूछ बैठा , “ माँ , भोजन तुम दे रही हो तो भगवान को धन्यबाद क्यों ?
“ अजगर करे न चाकरी , पंछी करे न काम |
दास मलूका कह गए , सब का दाता राम || “
मतलब ?
हम तो निमित्त मात्र हैं | भोजन तो प्रभु कृपा से ही सब प्राणियों को मिलता है |
उपरोक्त दोहे में कवि का कहना है कि सर्प कोई नौकरी नहीं करता , चिड़िया कोई काम नहीं करती , फिर भी उसे रोज भोजन भगवान जी भेज देते हैं |
समझ गया , माँ !
राधेश्याम पोटली उठाया और जंगल की ओर लकड़ी काटने निकल पड़ा | माँ के आदेश को अपनी गाँठ में बाँध लिया |
लकड़ी काटकर गट्ठर बना लिया ताकि ले जाने में सुविधा हो |
लकड़ी काटते – काटते पसीने से तर – बतर हो गया | भूख भी जोरों की लग गई |
एक कुँआ पास ही दिखलाई पड़ा | लोटा – डोरी था ही पास में | पानी भर लिया और माँ के कथनानुसार सत्तू सान कर तीन लोई बना ली | खाने से पहले माँ के बताए मंत्र को पांच – सात बार पढ़ा | फिर क्या था , तीन प्रेतात्मा उसके समक्ष हाथ जोड़कर हाजिर हो गया जो उस कूप में डेरा डाला हुआ था और आग्रह किया कि उन्हे न खाया जाय , इसके बदले वह जो मांगेगा वरदान स्वरुप उसे मिलेगा |
राधेश्याम का तो खुशी का ठीकाना न रहा | बुद्धिमान तो वह बचपन से ही था | उसने तत्काल सोच लिया कि उसे क्या माँगना चाहिए |
मुझे एक सुदर्शन चक्र दीजिए जो मेरे आदेश का पालन करे और किसी के सर को क्षण भर में कलमकर उसके धड से अलग कर दे , फिर अगले आदेश के लिए लौटकर उसके पास चला आये |
“ ऐसा ही होगा ” कहकर उसे एक सुदर्शन चक्र देकर अंतर्ध्यान हो गया |
राधेश्याम मन ही मन पूरी योजना बना लिया कि कब क्या करना है | उसे तो उस क्रूर राजा से प्रजा को मुक्त कराना था | उसे ऐसी सजा इस प्रकार देना था कि उसकी रूह तक कांप उठे |
उसने समय , स्थान , दिन , तिथि सब निचित कर लिया और राज्य के सभी प्रजा को राज मैदान में जमा होने के लिए सूचित कर दिया , साथ ही साथ अपनी योजना से भी अवगत करवा दिया |
फिर क्या था , सभी लोग जमा हो गए | राजा समझ नहीं पाया की इतने लोगों के एकसाथ जमा होने का मकसद क्या है ?
राधेश्याम जब पहुंचा राजा के सामने , उस समय किसी निर्दोष व्यक्ति को बली – वेदी पर सर कलम करने के लिए बाँध दिया गया था |
राजा के साथ उसके परिवार के सभी सदस्य उपस्थित थे |
राधेश्याम ने सबसे पहले दोनों राजकुमार का सर कलम करने का आदेश सुदर्शन चक्र को दे दिया | राजा कुछ नहीं समझ सका | वह बचाने के लिए दौड़ पड़ा | फिर रानी का सर कलम करने का आदेश दे दिया | रानी एवं राजकुमारों का शरीर से रक्त की धारा बहने लगी | सभी सैनिक दौड़ पड़े | उनका भी सर कलम कर दिया गया | अबतक राजा की समझ में सबकुछ आ गया था | वह राधेश्याम के पैरों में गिरकर अपने गुनाहों के लिए क्षमा मांगने लगा , लेकिन ऐसे क्रूर शासक को सजा देना आवश्यक था , उसने माफ करना नहीं किया | उसने पूरी सेनाओं का सफाया कर दिया और अंत में राजा का भी सर कलम कर दिया | चारों तरफ उसकी जय -जयकार से वातावरण गूँज उठा |
लोगों ने राधेश्याम को अपने कंधे पर उठा लिया और पूरे राज्य में घुमाया |
राधेश्याम को राजा बनाया गया | लोग खुशी में पागल होकर नाचने – गाने लगे | पूरा राज्य जश्न में डूब गया | जनता जनार्दन पहली बार चैन की सांस ली | पहली बार आज़ादी का एहसास हुआ | राजा भी बना तो अपने ही में से एक सामान्य व्यक्ति जो उसके साथ न्याय कर सके , उसके कष्टों का निवारण कर सके | प्रजा के दुःख को अपना दुःख समझ सके |
राज्य में अमन – चैन बहाल हो गया |
बच्चों ! लेकिन कहानी यहीं खत्म नहीं हुयी |
राधेश्याम उन प्रेतात्माओं के प्रति आभार प्रगट करने के लिए चल पड़ा | इसबार भी उसने माँ से आशिबाद लिया | माँ ने उसे सत्तू की पोटली दी ओर कैसे खायेगा – पीएगा सब नियम बता दिया | आज की तरह उस काल में बच्चे ऐसे नहीं होते थे जो माँ की बातों को अनदेखी कर दे | मात्री भक्त होते थे बच्चे , पित्रीभक्त होते थे बच्चे |
ऐसे भी बाल – बच्चो का परम कर्तव्य है कि वे माता – पिता के आदेशो का तन – मन से पालन करे , उसकी सेवा करे जब भी आवश्यकता हो |
बच्चों अभी नवरात्री का समय चल रहा है | नौ दिनों तक माँ दुर्गा की पूजा अर्चना पूरे देश में पूरी श्रधा , भक्ति और निष्ठा से मनाई जा रही है | माँ से सम्बंधित मंत्र है :
“ या देवी सर्व भूतेषु मात्रीरूपें संस्थिता , नमस्तुते , नमस्तुते , नमस्तुते नमो नमः ”
तो बच्चों राधे श्याम माँ से आशीर्वाद लेकर उसी कुएं की जगत पर पहुंचा , लोया – डोरी से पानी खींचा , सत्तू की तीन लोई बनायी , मंत्र का उचारन किया तो तीनों प्रेतात्मा पहले की तरह हाजिर हो गया |
राधेश्याम उनके सामने नतमस्तक हो गया , सारी कथा सुनाई | उसने सधन्यबाद सुदर्शन चक्र लौटा दिया – त्वं दिवं वस्तु , गोविन्दम समर्पयाम कहकर | जब उसने पुनः वरदान मांगने की बात राखी तो राधेश्याम ने राज में बच्चों के लिए बाग – बगीचे , खेल – कूद के मैदान , ढेर सारे खेल कूद के सामान मांग लिया |
एम् अस्तु , ऐसा ही हो कह्कर वे अन्ताध्यान हो गया और जाते – जाते बोल गया कि जब भी जरूरत हो वे राज्य की बेहतरी के लिए , खुशहाली के लिए मांग लिया करे |
बच्चो ! जैसी करनी होती है वैसे ही भरना पड़ता है |
प्यारे बच्चों ! भगववान कृष्ण ने भी गीता में इस विचार पर अपना मत दिये हैं :
” जैसा करम करोगे , वैसा फल देगा भगवान |
यह है गीता का ज्ञान ,यह है गीता का ज्ञान||
इसलिए सदा सर्वदा – “ BE GOOD , DO GOOD “ अर्थात सदा सर्वदा अच्छा बनो , अच्छा करो और देश का एक आदर्श नागरिक बनकर अपने माता – पिता , अपने राज्य एवं देश का नाम दुनिया में रौशन करो |
जय हिंद !
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लेखक : दुर्गा प्रसाद, गोबिन्दपुर , धनबाद – ८२८१०९ , झारखण्ड ( इंडिया )
सोमवार , २९ सेप्टेम्बर २०१४ , समय – ६.५३ ए. एम.
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