This Hindi Story highlights the Love of a teenage Boy and his mother in which the boy not only get the legacy of writing from his mother but also get a message through which He climbed the ladder of success.
“मागे ………. तू ना कभी मरियो मत ।” ……… बड़े ही प्यार से मेरा तेरह बरस का बेटा मुझसे लिपट कर अक्सर ही ऐसा दोहराता था । “मागे” यानि माँ ……… पता नहीं उसके दिमाग ने कब इस शब्द की अचानक से ही एक दिन उत्पत्ति कर दी और तब से उसने मुझे माँ ,मम्मी ,अम्मा ,मॉम जैसे सभी शब्दों को छोड़कर “मागे” कहना शुरू कर दिया और मुझे भी उसके द्वारा कहे इस शब्द को सुनने की एक आदत सी पड़ गई थी । परन्तु बार-बार रोज़ इसी एक वाक्य का दोहराना मुझे कभी-कभी अजीब सा लगता था । उसकी बात को सुन कर कभी तो मैं मुस्कुरा देती थी और कभी उसे हल्का सा डाँट कर समझाने लगती थी ,” बेटा ऐसा नहीं कहते बार-बार ………… अरे मैं अच्छी-खासी तो तेरे सामने हूँ फिर तू मुझे ऐसा बार-बार क्यूँ कहता है ?”
वो फिर चुप हो जाता मगर थोड़ी ही देर बाद फिर से आकर मुझसे लिपट यही वाक्य दोहराने लगता ,”मागे ………. तू ना कभी मरियो मत ।”
धीरे-धीरे मुझे लगने लगा कि शायद ये उसका अपनी माँ के प्रति प्यार दिखाने का एक अलग रूप है और इसीलिए अब मैं भी उसकी बात को सुनकर हँस देती और टाल जाती । मगर कहते हैं ना कि बच्चे भगवान का रूप होते हैं , उनके मुख पर अक्सर माँ सरसवती की वाणी होती है । करीब २ महीने बाद ही एक दिन मुझे अचानक से पता चला कि मैं कैंसर जैसी घातक बीमारी से गुजर रही थी । तो इसका मतलब ये था कि मेरा बेटा मुझे अपने वाक्य से किसी आने वाले तूफ़ान का बार-बार सन्देश दे रहा था जिसे मैं सुनकर भी नज़रअंदाज़ कर रही थी । उसे क्या पता था कि उसकी “मागे” सच में उससे अब बहुत जल्द ही बहुत दूर जाने वाली है ।
अपनी घटती उम्र की चिंता के साथ-साथ मुझे अब अपने बेटे के भविष्य की चिंता और ज्यादा सताने लगी । इसलिए अक्सर मैं अपने कमरे में अकेले बैठ कई -कई घंटों तक विचारों में डूबी रहती थी । १५ अक्टूबर ,२००० को डॉक्टर ने मुझे सिर्फ २ और महीने का मेहमान घोषित कर दिया था और मैं इन २ महीनों में २ सदियों का अनुभव अपने बेटे के साथ करना चाहती थी । आधी रात को मेरे कमरे के दरवाज़े पर हल्की सी आहट हुई ,मैंने आँखें खोल कर देखा तो सामने मेरा बेटा खड़ा था । मैंने बिस्तर से उठ कर उसे अपने गले से लगा लिया । उसने कसकर मुझे अपनी बाहों में जकड़ लिया और धीरे से मेरे कान में बोला ,”मागे ………. तू ना कभी मरियो मत । ”
इस बार उसकी आँखों से लगातार आँसू बह रहे थे । मैं समझ गई थी कि शायद अब वो भी सभी लोगों की तरह मेरी उम्र की घटती गिनती को जान गया है । अब मुझे उसे और ज्यादा विश्वास के साथ जीवन की सच्चाई से अवगत कराना था इसलिए मैंने खुद के जज़्बातों को क़ाबू में रखा और अपने चेहरे पर एक मुस्कान बिखेर मैं उसे समझाने लगी ,” बेटा , मरना तो एक दिन सबको होता है ,यहाँ जो भी आया है वो एक दिन जाएगा भी जरूर मगर फर्क बस केवल इतना है कि कुछ लोग पहले चले जाते हैं और कुछ बाद में । जो पहले जाते हैं ना ,वो बहुत निकम्मे होते हैं क्योंकि वो अपनी जिम्मेदारियों को भली-भाँति पूरा नहीं कर पाते इसलिए डर कर भाग जाते हैं और जो बाद में जाते हैं ना वो बहुत ही मेहनती होते हैं । और तू तो जानता ही है कि तेरी “मागे” कितनी कामचोर है ,उसे काम करना अच्छा नहीं लगता इसलिए वो तुझे पापा के पास छोड़कर जल्दी चली जाएगी । मगर अगर तू चाहे तो अपनी मागे को अपने साथ हमेशा ज़िंदा रख सकता है ।”
इस बार उसके चेहरे पर एक मायूसी थी और आवाज़ में एक लड़खड़ाहट , उसने पूछा , ” कैसे ?”
मैंने कहा ,” बेटा ,मुझसे वादा कर कि तू अपने आप को इतना सशक्त बना लेगा कि तुझे अपनी मागे की ज़रुरत कभी पड़ेगी ही नहीं । अगर तू भविष्य में एक सफल व्यक्ति होगा तो तेरी मागे हमेशा तेरे ख्यालों में तेरे साथ ज़िंदा रहेगी । ”
उसने मेरे हाथ में थामा हुआ अपना हाथ हलके से दबाया और मुझे आश्वासित किया । उस दिन मुझे पहली बार ये एहसास हुआ कि मेरा छोटा सा दिखने वाला बेटा कितना बड़ा हो गया है और हम दोनों बिस्तर पर उन्ही २ सदियों की तलाश में एक-दूसरे का हाथ पकड़े -पकड़े ही सो गए ।
मैं तरुण , उम्र २७ साल ………. अपनी “मागे” से विरासत में मिली लिखने की धरोहर को सहेज रहा हूँ । MBA की पढ़ाई पूरी करने के बाद मैं एक अच्छी फर्म में नौकरी करता हूँ । मेरी शादी हो चुकी है और मेरे पास एक १ साल की बिटिया है । मुझे पता ही नहीं चल पाया कि मुझे कब लिखने का शौक लग गया और मैं कब एक सफल लेखक बन कर किताबों और अखबारों के पन्नों में दमकने लगा । मगर मेरी मागे भी लिखती थी ये मुझे कल ही सोनाली ने बताया । सोनाली मेरी पत्नी है ,जो कल १४ साल बाद मागे के बंद कमरे की सफाई करने गई थी । “मागे” और मेरे लिखने के फर्क को जब मैंने महसूस किया तो पाया कि मागे सिर्फ अपने लिए लिखती थी ,उसे कहीं पर दमकने का शौक नहीं था इसीलिए वो ऐसे ही गुमनाम सी दफ़्न हो गई मगर मैं उसी के कहे हुए शब्दों पर चलता हुआ उसे अपने साथ ज़िंदा रखने के लिए एक सफलता की सीढ़ी पर चढ़ता गया । मैं चाहता तो आप लोगों के सामने “मागे” की भाषा को तोड़-मरोड़ कर प्रस्तुत कर सकता था मगर मेरी मागे ने अपने अंतिम पर्चे को जिस भाषा और रूप में लिखा मैं आप सबको उनके उसी रूप से अवगत कराना चाहता था । यहाँ बात किसी प्रतिस्पर्धा की नहीं अपितु एक माँ का अपने बेटे के प्रति अटूट स्नेह है जो अपनी २ महीने की ज़िंदगी को २ सदियाँ बनाकर उसके साथ जीना चाहती थी और शायद इसी वजह से उसने इस कागज़ को अधूरा ही लिख कर छोड़ दिया था । आगे की कहानी मैं अपनी मागे से अपने अंतर्मन में अनुमति ले उसे पूरी कर रहा हूँ ताकि इस बार तरुण के साथ लोग उसकी मागे को भी जान सकें ।
अगले ही दिन से मागे बिलकुल बदल सा गई थी । वो दिन के २४ घंटे मेरे साथ बिताती थी और हर वक़्त मुझमे इस जीवन में बस कुछ करने और आगे बढ़ने की प्रेरणा का ज़ज़्बा भरती रहती थी । और सच में मुझे पता ही नहीं चल पाया कि मैंने इन दो महीनो में कब अपने लड़कपन को छोड़ दिया और कब मुझमे मागे के बिना जीने की एक शक्ति सी जग गई । जिस मागे को मैं कभी छोड़ना ही नहीं चाहता था उसी मागे के अंतिम क्षणों में मेरे मुँह से ये कैसे निकल गया कि ,”जाओ मागे ……… अगले जनम में तुम भी एक मेहनती इंसान बनकर इस पृथ्वी पर जनम लेना ।”
उस दिन मेरा पन्द्रहवां जन्मदिन था । मागे मेरे साथ ही बिस्तर पर लेटी थी । पता नहीं क्यूँ मेरा मन केक काटने को नहीं कर रहा था । मगर मागे की ज़िद पर ही तो वो केक आया था । मागे का लिवर और किडनी उस वक़्त तक दोनों ही खराब हो चुके थे । डॉक्टरों ने उन्हें सिर्फ चंद दिनों का मेहमान घोषित किया हुआ था । सभी मेहमानो और दोस्तों के आ जाने पर मैंने अपना केक काट दिया । चारों ओर से Happy B ‘day to You की आवाज़ मेरे कानों में गूँज रही थी लेकिन मैं तो अपनी मागे के मुँह से आती हुई उस धीमी सी आवाज़ को ही सुनने के लिए तड़प रहा था । Happy B ‘day to You ………….. May God Bless (थोड़ा सा खाँसते हुए ) You ………. मागे ने कहा । मैंने दौड़ कर अपने हाथ से काटा हुआ एक केक का टुकड़ा मागे के मुँह में डाल दिया और प्यार से कहा , “मागे ………. तू ना कभी मरियो मत ।” मगर इस बार मागे ने कोई जवाब नहीं दिया और एक तरफ लुढ़क गई । केक का टुकड़ा वैसे ही उनके मुँह में अटका हुआ था और मागे की आँखें एक अजीब सी शान्ति लिए मेरी तरफ ताक रही थीं । मैंने मागे को ज़ोर से हिलाया और बोला ,” मागे ………. तू ना कभी मरियो मत ।” अभी तो दो महीने के पूरे दस दिन बाकी हैं और हम दोनों के जीने के लिए एक चौथाई सदी । चल ना मागे उस चौथाई सदी को और एक-साथ मिलकर जिएँ । मागे ने धीरे से अपनी आँखें खोलीं मगर इस बार उनकी आँखों से आँसू बह रहे थे । वो मुझसे कुछ कहना चाहती थीं और मैं उनसे उनके द्वारा कहे गए उन आखिरी शब्दों को सुनना । मैंने उन्हें पानी पिलाया …… अब मैं भी ज़ोर-ज़ोर से रोने लगा था ……… शायद इसलिए क्योंकि तब मैं ज़िंदगी और मौत के बीच घटते हुए फासले को एक युवा की भाँति महसूस कर रहा था । चारों ओर एक उदासी सी छाई हुई थी ………. मेरे जन्मदिन की ख़ुशी का माहौल तब तक एक मातम में बदल चुका था । मागे अपने दिल पर हाथ रखे ज़ोर-ज़ोर से अपनी अंतिम साँसें गिन रही थी ।
मैंने फिर दोहराया ,” मागे बोल ना …… कुछ तो बोल …… मैं अपने लिए तेरे मुँह से सिर्फ एक सन्देश सुनना चाहता हूँ ।”
मागे ने इस बार अपनी पूरी ताकत से मेरे हाथ को पकड़ लिया और बोली, ” तरुण ,तेरी मागे अब और ज्यादा नहीं रुक सकती ………. उसे मरना ही होगा ……… लेकिन उसकी रूह इस पृथ्वी पर ना भटके इसलिए तुझे अपनी मागे के लिए दिल लगाकर पढ़ना होगा और अपनी मेहनत से खुद को एक मुकाम तक पहुँचाना होगा । बोल, क्या तू ऐसा कर पाएगा ?”
मैंने धीरे से मागे के ठंडे होते हुए हाथ को अपने हाथ से दबाया और सर हिलाकर उसे आश्वासन दिया । मागे जैसे उसी आश्वासन की मोहताज़ थी ………. उसने एक लम्बी गहरी साँस खींची और अपनी आँखों को सदा के लिए मूँद लिया । मैं फूट-फूट कर रो पड़ा और चिल्लाया , “जाओ मागे ……… अगले जनम में तुम भी एक मेहनती इंसान बनकर इस पृथ्वी पर जनम लेना ।”
मैं तभी से संघर्ष करता रहा ……… जब-जब मुझे अपने आप से खीज होने लगती तब-तब मुझे अपने हाथ में पकड़ा हुआ अपनी मागे का वो हाथ याद आता जिसे मैंने दबाकर उसे उसके अंतिम क्षणों में आश्वासन दिया था । मैं उसी आश्वासन के सहारे आगे बढ़ता गया और आज एक उच्च पद पर कार्यरत हूँ । आज सोनाली ने मागे की लिखी वो अधूरी कहानी मुझे जैसे ही लाकर दी तो उसे पढ़कर मैंने पाया कि मेरी मागे बहुत ही मेहनती इंसान थीं । अपने घर के कामों को निपटाने के बाद वो अक्सर अपने मन में उठते हुए कौतहूल को कागज़ों पर समेटा करती थीं । मगर उनके कागज़ों को पढ़ने और समझने वाला वहाँ कोई नहीं था और इसीलिए उनके लिखे कागज़ कहीं गर्त में दबकर रह गए । मैंने उनके ही लिखे कागज़ को यहाँ इसलिए ज्यों का त्यों रहने दिया ताकि आप लोग खुद ही ये तय कर सकें कि कभी-कभी एक पीढ़ी अपना सब कुछ इसलिए दाँव पर लगा देती है ताकि उसकी आने वाली पीढ़ी को एक नाम और पहचान मिल सके । अपनी मागे की कमी मुझे हमेशा खलती रही मगर अपनी मागे का दिया वो आखिरी सन्देश मुझे एक नेक इंसान बना गया ।
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