किताब पढते -पढते न जाने कब मेरा मन बचपन की यादों में गोते लगाने लगा और सोचते ही संसार की सब परेशानी एकदम से छूमंतर हो गयी। गर्मियों के दिन थे मैं, मम्मी – पापा के साथ ननिहाल ( नानी का घर ) छुट्टियाँ बिताने जा रही थी।
हम सब ट्रेन में बैठे थे और कुछ ही देर में गाँव पहुँचने वाले थे। ट्रेन रुकी और सामने देखा मामाजी बैलगाड़ी के पास खड़े हम सबके आने का इंतज़ार कर रहे थे।” मुझे बैलगाड़ी पर बैठना बेहद पसंद है इसलिए शायद मामाजी बैलगाड़ी लेकर आये हैं ” मैं मन ही मन सोचकर खुश हो रही थी ।
मम्मी – पापा के पैर छूकर मामाजी ने हम सबको बैलगाड़ी में बैठने के लिए कहा और मैं झट से उसपर चढ़कर बैठ गयी। मैं बैलगाड़ी में बैठे-बैठे सोच रही थी कि गांव में कुछ नहीं बदला वही खेत,वही बगियाँ, वही कच्ची पगडण्डी ,और उडती हुई धूल। आहा गांव की मिटटी की सुगंध की बात ही कुछ और है।
बैलगाड़ी अचानक रुक जाती है सामने से आवाज आती है जीजी-जीजा जी आ गये।
“अरे रूचि तुम कितनी बड़ी हो गयी हो ” छोटी मौसी ने कहा।
” मौसीजी इतने दिनों बाद देखा है ना आपने मुझे इसलिए आपको ऐसा लग रहा है” मैंने मौसीजी से कहा।
फिर मैंने सबसे नमस्ते किया और घर के अन्दर गए।बड़ी मौसी सबके लिए शरबत और बर्फी लेकर आई और हम सबने खाया पिया और ढेर सारी बातें की , खूब हंसी मजाक किया। तभी मैं मामाजी के पास गयी और कहा ,
रूचि : ” मामाजी मुझे अभी खेत और बगिया देखने जाना है। ”
मामाजी: “अभी नहीं अभी थक गयी हो, आज आराम करो कल चलेंगे खेत घूमने।”
रूचि: “ठीक है कल पक्का चलेंगे न। ”
मामाजी: ” हाँ पक्का चलेंगे।”
मौसी: “रूचि कपडे बदल लो और हाथ मुह धोकर खाना खालो फिर आराम करना थोड़ी देर।”
रूचि: ” ठीक है मौसीजी।”
फिर हम सबने एकसाथ बैठकर खाना खाया और ढेर बातें की, फिर थोड़ी देर आराम किया। शाम के समय हम सब बच्चे और छोटी मौसी छत पर चले गए और खेल खेले। लेकिन मेरा खेलने में इतना मन नहीं लग रहा था जितना बगिया देखने और घूमने का था। इसलिए मैं छत के किनारे पर खड़े होकर सामने के खेत को निहारने लगी,काफी अच्छी फसल लगी हुई थी इस बार, नीचे मैदान में और छत पर मोर और मोरनी घूम रहे थे तभी छोटी मौसी ने आवाज दी,रूचि देखो मोर डांस कर रहा है, मैं भागकर उनके पास गयी और मोर का डांस देखने लगी।
“अरे वाह मोर कितना बढ़िया डांस कर रहा है ” मैंने छोटी मौसी से कहा।
मैंने सोचा थोडा पास जाकर डांस देखती हु और जैसे ही मैं मोर के पास गयी वो डरकर उड़ गया,लेकिन वो अपने पंख गिरा गया था मैंने झट से पूरे पंख उठा लिए और सब बच्चो में एक एक बाँट दिया। फिर हम सबने ने खाना खाया और मौसी से कहानी सुनाने के लिए कहा। मौसी ने सबको कहानी सुनायी और हम सब कहानी सुनते सुनते सो गये।
सुबह आँख खुली तो मुझे बहुत ख़ुशी हुई क्यूंकि आज हम सब खेत घूमने जायेंगे। मैं जल्दी से तैयार हो गयी और मामाजी के साथ हम सब बच्चे खेत गये । खेत की मेड कच्ची थी और टेड़ी -मेडी थी इसलिए मामाजी ने कहा संभलकर चलना सब। कच्ची मेड पर चलने में मुझे बड़ा मजा आ रहा था आसपास खेत और बीच में ऊँची कच्ची मेड। रास्ते में मैंने अपने खेत देखे बहुत सारी फसल लगी हुई थी और छोटे छोटे खरबूज और तरबूज लगे हुए थे। हम सब बच्चो ने एक एक खरबूज और तरबूज तोड़ लिए और आगे बढने लगे कुछ देर बाद हम सब बगिया पहुँच गये वहां बहुत सारे फल लगे थे जामुन ,आम,खरबूज ,तरबूज इन फलो से बगिया बहुत प्यारी दिख रही थी।एक पेड़ के नीचे एक खटिया बिछी हुई थी हम सब बच्चे उस खटिया पर जाकर बैठ गये,मामाजी हम सबके लिए पकी पकी अमियाँ और ढेर सारे जामुन धोकर ले आये जिन्हें हम सबने मिलकर खाया। खाने के बाद हमने बगिया और खेत घूमे। कुछ बच्चे पेड़ पर चढ़कर झूला झूलने लगे लेकिन मैं मेड के ऊपर बैठकर बगिया देखने में लगी थी ,मन में ख्याल आया काश इसी बगिया में मेरा छोटा सा घर होता और में पूरा दिन बगिया में खेलती।
अचानक छोटे मामाजी की आवाज आई चलो शाम हो गयी है सब घर चलो।
“मामा जी थोड़ी देर और रुकते हैं फिर चलेंगे घर ” मैंने मामाजी से कहा,
मामाजी ने कहा “नहीं अँधेरा हो जायेगा और शाम के बाद यहाँ नीलगाय का डर रहता है इसलिए अभी चलते हैं घर ,” और हम सब बैलगाड़ी में बैठ जाते है बड़े मामाजी बैलगाड़ी चलते हैं और हम सब बच्चे और छोटे मामाजी बैलगाड़ी में पीछे बैठ जाते हैं।
कुछ दूर तक चलने के बाद अचानक बैलगाड़ी का पहिया आगे नहीं बढ रहा था। दोनों मामाजी ने नीचे उतारकर देखा तो उसमे कुछ खराबी आ गयी थी और हल्का हल्का अँधेरा भी छा रहा था। हम सब बच्चे घबराने लगे लेकिन मामाजी ने कहा फिकर मत करो हम ठीक कर रहे हैं तब तक तुम सब ऊपर ही बैठे रहो। लेकिन घबराहट का क्या करे हम सब बहुत ज्यादा घबरा रहे थे क्यूंकि नीलगाय के आने का समय होता जा रहा था और जब मैंने मामाजी की तरफ देखा तो यही घबराहट मामाजी के चेहरे पर भी साफ साफ झलक रही थी, मामाजी हम सबका हौसला बढाने के लिए बार बार कह रहे थे बस जरा सा रह गया अभी ठीक होने वाला है तब तक तुम लोगो ने जो फल तोड़े थे वो खाओ, इतना कहते ही मामाजी जल्दी जल्दी ठीक करने में लग गये।
थोड़ी देर बाद बैलगाड़ी ठीक हो गयी औरबड़े मामाजी ने तेज रफ़्तार में बैलो को भगाना शुरू कर दिया और छोटे मामाजी हमारे साथ पीछे बैठ गये ताकि हम सब नीचे न गिरे ,लेकिन कुछ ही देर में दूर से नीलगाय का झुण्ड हमारी ओर आता दिखाई दिया , हम सबके घबराहट के मारे पसीना छूटने लगा लेकिन मामाजी ने हौसला बनाये रखा और बैलगाड़ी की रफ़्तार और तेज कर दी। अचानक एक बैल के पैर में कुछ चुभ गया और उसके पैर से खून बहने लगा। हम सब और ज्यादा डर गये कि , अब क्या होगा, हम घर कैसे पहुंचेंगे,पहुँच भी पाएंगे या नीलगाये हम सबको मार देगी ?????
बहुत बुरे बुरे ख्याल मन में उठने लगे ,लेकिन हम सब बच्चो ने हिम्मत बनाये रखी।बड़े मामाजी ने बैलगाड़ी रोककर बैल के पैर में देखा तो एक कील चुभ गयी थी जिसकी वजह से उसका पैर बहुत ज्यादा जख्मी हो गया था और खून बह रहा था फिर मामाजी ने बैल के पैर पर मरहमपट्टी की और बैल के ऊपर हाथ फिराकर उससे कुछ कहने लगे और फिर बैलगाड़ी चलाना शुरू करदी ।बैलगाड़ी की रफ़्तार जैसे ही तेज की बैल के पैर से खून निकलने लगा। दोनों मामाजी आपस में बात करने लगे क्या करे एक तरफ नीलगाये है और दूसरी तरफ घायल बैल।बैलगाड़ी रोक भी नहीं सकते हैं घोर संकट आ गया है। लेकिन रफ़्तार तेज करते ही हमारे बैल ने भी हमारा बहुत साथ दिया। इतना घायल पैर होने के बावजूद भी अपनी रफ़्तार को बरकरार बनाये रखा।लेकिन हम सब बच्चे उस बैल के जख्मी पैर को देखकर बहुत घबरा गये और मैंने छोटे मामाजी से पूछा मामाजी क्या नीलगाय हमारा पीछा घर तक करेंगी तो उन्होंने कहा नहीं बस खेत पार कर ले तो ये नीलगाय कच्ची सड़क पर नहीं आएगी और फिर हम आराम से घर जा सकेंगे।
नीलगाय कुछ ही दूरी पर थी।मामाजी ने बैलो की रफ़्तार और तेज करदी और हमारे बैलो ने भी हमारा बहुत साथ दिया और काफी तेज दौड़ने लगने।तभी अचानक कच्ची सड़क दिखाई देने लगी और कुछ देर बाद ही हम कच्ची सड़क पर पहुँच गये।उसके बाद हम सबने पीछे मुड़कर देखा तो नीलगाय वापस जाने लगी तब कहीं जाकर हम सबने चैन की सांस ली और बैलगाड़ी की रफ़्तार धीमी करदी ताकि बैल को थोडा आराम मिल जाये।कुछ देर बाद हमारा घर दिखने लगा और फिर घर के पास पहुंचकर हम सब बैलगाड़ी से उतर गये और बैल के माथे पर हाथ फिराया।
मामाजी ने बैल के जख्मी पैर पर दवा लगायी और पट्टी बांध दी और उसे गौशाला में बांध दिया फिर उसे चारा खाने के लिए दिया। हम सब बैल की बहादुरी देखकर बहुत खुश हुए फिर हम सब घर के अंदर गये और अपने साथ हुए हादसे के बारे में सबको बताया। सभी ने पूरी घटना सुनकर बैल की बहुत तारीफ की और हम सबसे पूछा कहीं तुम लोगो को चोट तो नहीं लगी है।हम सब बच्चो ने बताया नहीं हमे कहीं चोट नहीं लगी है। लेकिन बैल को चोट लगने का हम सबको बहुत दुःख हुआ फिर थोड़ी देर बाद हम सबने खाना खाया और खाना खाने के बाद हम सब सो गये क्यूंकि आज जो कुछ हुआ था उसकी वजह से हम सब काफी थक चुके थे।
तभी अचानक यादो के समंदर से मैं बाहर आ गयी और मम्मी की आवाज सुनाई दी ” रूचि सो जाओ जल्दी, सुबह स्कूल नहीं जाना है क्या।”
“हाँ सो रही हूँ मम्मी, बस नींद नहीं आ रही थी तो किताब देख रही थी ” मैंने मम्मी से कहा, और लाइट स्विच ऑफ करके मैं सो गयी।
शिक्षा :- मुसीबत के समय इंसान से ज्यादा जानवर वफादार होते हैं।एक बार को इंसान मुसीबत में साथ छोड़ सकता है लेकिन जानवर कभी नहीं।