Hindi story about friendship between a man and a beggar and shows what type of activities a man sees who lives beside signal…
टिक- टॉक….टिक-टॉक घडी को जैसे ही अपने कानो में लगाया…उसकी धड़कन चल रही थी. बगल में बैठे भीखू भिखारी ने मुझसे पूछा-
“काये चल रही है का ?”
मैंने हाँ में सर हिला दिया…भीखू ख़ुशी से चहक उठा…
“कांच टूटा है बस. २० रूपये का लगवा के १००-१५० तक में बेच देंगे…आधे-आधे बाँट लेंगे पैसे ”
मैंने उदासीन भाव से उसकी और देखा, घडी मुझे पड़ी मिली थी और घडी पे अपना हिस्सा वो पहले ही जता चुका था.. मैंने बहस करना ठीक ना समझा, और सिग्नल के रेड होने का इंतज़ार करने लगा…जैसे ही सिग्नल रेड हुआ, और गाड़ियां रुकी…. किताबें लेकर मैं गाड़ियों की तरफ दौड़ा.
“बाज़ार में ४०० की मिलेगी, आपके लिए 50% डिस्काउंट… २०० दे देना…”
इतनी ढेर सारी किताबों के अन्दर की दुनिया क्या थी, मुझे पता नहीं था. मेरे लिए बस ये रोजी-रोटी का साधन थी. ऐसा नहीं था कि मुझे पढना नहीं आता था, 8th क्लास तक मैं पढ़ा था…पर जगह-जगह काम करने के बाद ये ऐसा काम था, जिससे मेरे आत्म-सम्मान को ठेस नहीं पहुँचती थी. चाय की दुकान पे गालीयाँ खाना, हम्माली में सारा-सारा दिन शरीर तोड़ने के बाद मुश्किल से दो वक़्त की रोटी का जुगाड़ कर पाना…कम से कम इन किताबों को बेचते समय थोड़ी देर के लिए ही सही मैं उनका मालिक बन जाता था.
लेकिन पैसा कमाना इतना आसान भी नहीं था, सिग्नल २ मिनट का था, और १०-१५ गाड़ियों की खिडकियों पर दस्तक देना था.
“ये रिच डैड पूअर डैड, कितने की है..?” – कार के मालिक ने कांच नीचे करते हुए पूछा.
“बाज़ार में २४५ की है, आप २०० दे देना…”
“१५० दूंगा…”- मोलभाव करते हुए कार के मालिक ने कहा..
उस रिच डैड को १५० में किताब बेचकर मैं राहत महसूस कर रहा था, दोपहर हो चुकी थी और अब कहनी जाकर बौनी हुई थी…
पैसे गिनते हुए भीखू ने मुझे देख लिया…
“दस रूपये उधार दे दे , सुबह से कटोरा खाली पड़ा है…”- भीखू ने दयनीय नज़रों से मुझे देखा.
“अभी पिछले 50 रूपये की उधारी है, वापस कब करेगा..?”
“५० कहाँ से हो गए….२० रुपये उधार थे, बाकी ३० तो तूने, भीख दी थी मुझे”- पिछला हिसाब भीखू ने मेरे सामने रख दिया..
मेरा और भीखू का रिश्ता कुछ ऐसा ही था, भीखू की छोटी-छोटी चालाकियां थी….जिसे मैं नज़र अंदाज़ कर देता था… भीखू का भरा-पूरा friend सर्किल था, पर एक दिन उसको ग्रुप से निकाल दिया…क्योंकि उसने एक दिन भिखारी गैंग का नियम तोड़ दिया था…
जो प्रिंटिंग कंपनी वाला हमें ये किताबें बेचने के लिए देता था, उसने मंदिर में पूजा रखी थी, पूजा ख़तम होने के बाद….उसने 51-51 रूपये भिखारियों को देने के लिए, सीडियां उतरा.. जैसे ही भीखू के कटोरे में वो 51 रपये डालने लगा….भीखू बोला…
“साहब….आप 51 रूपये मत दो, मेरा एक दोस्त है….चाय की दूकान पे काम करता है, उसको आप कुछ काम दिला दो, ना….मेहनती लड़का है….पर उसका सेठ उसको खूब गाली देता है…”
भिखारी गैंग का नियम था, की भीख के लिए कभी मना नहीं करना है….वर्ना उसे तड़ीपार घोषित कर दिया जायेगा…और फिर वो कभी मंदिर के पास नहीं बैठ पायेगा… बस भीखू मेरे साथ इस सिग्नल पे आ गया….मुझे ये नौकरी दिलवा दी….एक बार मैंने उससे पूछा.
“तू भी मेरे साथ किताब क्यों नहीं बेच लेता….भीख क्यों मांगता है..”
भीखू मेरे बगल में आया….और उसने बोला….
“भीख माँगना मेरी hobby है….अपने शौक के लिए भीख मांगता हूँ… ” और फिर वो चुप हो गया…
मैंने दुबारा कभी नहीं पुछा, कि ये कैसा शौक है…क्योंकि इस सिग्नल पे रात के अँधेरे में, कई लोगों को अपने अजीब-अजीब शौक पूरा करते मैंने देखे थे…चलती गाडी में, तो कभी गाडी रोक कर….सड़क के किनारे….तो कभी झाड़ियों में…कभी तेज़ रफ़्तार का शौक, कभी फुटपाथ पे गाडी चडाने का शौक, कभी सिग्नल तोड़कर, सामने चलते आदमी को कुचल के भाग जाने का शौक…कभी मामूली से झगडे में एक दुसरे का सर फोड़ देने का शौक….
इन सारे शौक में मुझे भीखू वाला शौक ठीक लगा, जो बिना सामने वाले को परेशान कर अपना शौक पूरा कर लेता है…
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