मेरी दोस्ती – मेरा प्यार ! … !! … !!! – My Friend..( This Hindi story is about two friends and their friendship. One friend is an ordinary person while the other is now a minister but their feeling remains same)
रामखेलावन के पास धैर्य नाम की कोई चीज नहीं है. बडबड़ाता रहा, ‘ मंत्री जी का दर्शन करवा दीजिये ’. मैंने उसके लिए जमीन – आसमान एक कर दिया और आखिरकार उपाय निकाल ही लिया. उसे लेकर मंत्री – आवास समय पर पहुँच गया. उसके चेहरे की ओर दृष्टी डाली तो उसकी खुशी का ठिकाना नहीं था . प्रतीत हो रहा था कि जैसे उसे कारू का खजाना मिलनेवाला है इस दर्शन से . शुबह से दोपहर होते ही रामखेलावन अपने मन की बेचैनी छुपा न सका , बोला ,’ हुजूर बैठे – बैठे पाँव भारी हो गया . और कबतक इन्तजार करना पड़ेगा , हुजूर !
तबतक जबतक वे बाहर निकल कर नहीं आते.
तभी एक सेकुरेटी गार्ड बाहर निकला . रामखेलावन लपक लिया उसको और पूछ बैठा , ‘ बड़े साहब कब दर्शन देंगे ’?
नहीं जानते , आज छुट्टी का दिन है ऐसा सवाल तुमको पूछने का अधिकार किसने दिया ? मंत्री जी हैं . उनको असीमित शक्ति प्रदान की गयी है. वे अपने मन के मुताबिक काम कर सकते हैं.
रामखेलावन का धैर्य का बाँध टूटा जा रहा था . मैंने समझाया , ’ देखो , राम खेलावन ! इतना हडबड़ाने से काम नहीं चलेगा. आखिर मंत्री है न ! कोई नथ्थू – खैरु तो है नहीं . उनका वक़्त कीमती है, जब वक़्त मिलेगा तब न हमसे मिल पाएंगे. हजारों तरह के काम रहते हैं उनके पास. ऊपर से विपक्ष की मार अलग से. अच्छा काम करो तो भी नाखुश और बूरे काम ( यद्यपि कोई काम बूरा नहीं होता , बूरे तो हम होते हैं ) , उसका तो वो नतीजा होता है कि विपक्ष महीनों तक सदन / विधान सभा की कारवाही चलने ही नहीं देते हफ़्तों , महीनों भर. तोड़- फोड़ , गाली – ग्लोज , उठा – पटक – होता है सो अलग . उस वक़्त शर्म से सर झुक जाता है हमारा जब इस दृश्य को देखकर लड़के – बच्चे पूछ बैठते हैं, ‘ ई सब कोन आदमी हैं , बाबू जी , जो इस प्रकार लड़ता – झगड़ता है आपस में ? हम निरुत्तर हो जाते हैं तब . शर्म से सर झुक जाता है हमारा .
देखा रामखेलावन आव देखा न ताव गेट के अन्दर घूस गया. बैठक खाने में भी चला गया. गार्ड ने देख लिया था . देखा- देखी पाप और देखा – देखी पुण्य यह हमारे रग – रग में समाया हुआ है , अब भी इससे हम बंधे हुए है. सेकड़ों लोगो की भीड़ जमा हो गयी गेट पर . गार्ड दनदनाता हुआ आ धमका और गरज कर पुलिसिया जुबान में बोला, ‘ ए ! पहलवान भाई ! कुरता – धोतीवाले ! बाहर निकलिए , कहाँ घुसे जा रहें हैं ? इधर तशरीफ़ लाईये. गठरिया मा का बा ? बड़ा फुलल –फुलल लागत बा ? कहीं बम वोम तो नहीं है ? जमाना बड़ा ख़राब बा, गठरी चेक कराओ पहले तब अन्दर जाने को .
रामखेलावन ने सगर्व कहा , ‘ देखिये सिपाही जी हमलोग कोई चोर – उचक्के नहीं हैं . देहाती जरूर हैं लेकिन अच्छे खानदान से ताल्लुक रखते हैं . ‘ ई लोटा बा, पानी पिए के खातिर, ई थाली बा , खाए खातिर, ई पोटेलिया मा सत्तू बा ! मंत्री जी के खातिर , मलकिनी बाँध देल्थिन , कहलथिन कि मंत्री बबुआ के सत्तू बहूत पसंद बा. उनका दे दिहु.
तुम्हारा दिमाग ख़राब है क्या ? मंत्री जी सत्तू खायेंगे क्या ? पता नहीं मंत्री जी चीकेन बिरयानी खाते हैं . चीकेन दो प्याजा , चीकेन बटर मसाला खाते हैं . कहाँ – कहाँ से चले आते हैं लोग ! हम मालिक जी लिए सरैसा की खैनी भी ….
चलो दूर हटो , ट्रेफिक जाम मत करो . मंत्री जी आ रहें हैं .
मैं ढीट की तरह वहीं डटा रहा , टस से मस नहीं हुआ. मंत्री जी की नजर मुझ पर पड़ गयी . फिर क्या था , गले से लिपट गये और हाथ पकड़कर अन्दर ले गये . भौजी से बोले , देखो ! रामखेलावन आया है , जरा सा भी नहीं बदला है . वही कद-काठी , वही बांकपन , सहज – सरल बात – चीत के लहजे ….. लक्ष्मी ! आज मेरा दिन इसी के साथ गुजरेगा . महादेव को बोल दो . आज का सारा कार्यक्रम स्थगित . सर ! गुरूजी बाहर हैं . उन्हें बुला लिया जाय .
गार्ड ने आवाज लगाई , ‘ कोई कैलाश बाबु हैं क्या ? मंत्री जी अन्दर बुला रहे हैं .
मुझे तो यकीं ही नहीं हो रहा था . रामखेलावन भी मुझसे कुछ नहीं बताया था कि मंत्री जी उसका लंगोटिया यार है. भीतर से बैठक खाने तक मंत्री जी मुझे रिसीव करने आ गये. मैं तो हका- बक्का रह गया . सादर बैठाये , हाल चाल अपनों जैसा पूछे . मैं गदगद हो गया आवोभगत से .
मंत्री जी पूछ बैठे , ‘ रामखेलावन ! भौजी , सत्तू भेजी होगी, दो , आज लिट्टी चोखा खायेंगे . घर का चना – चक्की में पीसा हुआ – क्या सौंधी – सौंधी खुशबू ! पुराने दिन ख्याल आ जाते हैं जब हम दोनों भौजी के हाथ से लिट्टी – चोखा जिद करके बनवाते थे और चटकारे मार – मार कर खाते थे.
झट मेरी तरफ मुखातिब हुए और बोले , “ आप के बारे मुझे रमुआ बराबर बोला करता है. ’ आज का दिन मेरे साथ बीतेगा आपका . इसे अपना घर ही समझिये .
यह तो मेरा अहोभाग्य है कि … आप के बारे बहुत सुना था , लेकिन आज देखा जैसा बताया मुझे उससे बढ़कर पाया गुण आपमें .
गुजरे वक़्त की खूब बातें हुयी हम सब में . तबतक भौजी लिट्टी – चोखा भी ले आयी. हम जी भर के खाए – पीये.
जब जाने को तैयार हुए तो मंत्री जी पूछ बैठे, “ सरैसा का खैनी कहाँ ? ’
वो भी लाया हूँ , लीजिये , पावभर है आपके लिए.
मंत्री जी पोटली को ऐसे झटपट छीन लिए जैसे कृष्ण जी ने सुदामा की चावल की पोटली झपटकर छीन ली थी.
हम इस प्रेम व स्नेह को देखकर इतने भावविहव्ल हो गये कि मेरी सुध –बुध जाती रही.
हमें स्टेसन तक अपनी गाडी से भेज दिए . देखा गला मिलते वक़्त दोनों लंगोटिए यार की आखें डबडबा गईं.
और ? और एक मैं था जो अपनी आंसुओं को तो पी गया , लेकिन चेहरे के प्रतिविम्वित भाव को नहीं छुपा सका .
रामखेलावन पूछ बैठा , ‘ हुजूर ! आप क्यों रो रहें हैं ?
काश ! मेरे पास इस सवाल का जवाब होता !
हम ट्रेन में सवार हो गये तो माधव , उनका निजी सचिव हमारे समीप दो बड़े – बड़े पैकेट लेकर आया और हमें थमाते हुए बोला ,’ दुर्गा पूजा का समय है न ! साहेब ने कैलाश जी के लिए सफारी सूट के कपडे , अपने बूजम फ्रेंड के लिए एक जोड़ी धोती – कुरता और इस पाकेट में क्या है, मैं नहीं जानता , आप ही खोलकर देख लीजयेगा. ये कुछ पैसे हैं , बाल – बच्चों के लिए .
इसकी क्या जरूरत थी ? रामखेलावन ने कहा .
ले लीजिये , नहीं तो मुझे डांट पड़ेगी .
हमें वो सम्मान व ईज्जत मिली जिसे हम भुला नहीं सकते .
हमारे नेत्रों में जो अश्रू – बूँद सुखकर अटके पड़े थे , वे भी द्रवित होने के लिए बेचैन थे .
जब हम चौपाल में पहुंचे तो उस पैकट को खोला तो देखा एक आसमानी रंग की बनारसी साड़ी है और मंत्री जी ने खुद अपने हाथों से पैकेट के ऊपर लिखा है , ” सादर व सप्रेम भौजी के लिए ” _– बैजू .
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लेखक : दुर्गा प्रसाद |