• Home
  • About Us
  • Contact Us
  • FAQ
  • Testimonials

Your Story Club

Read, Write & Publish Short Stories

  • Read All
  • Editor’s Choice
  • Story Archive
  • Discussion
You are here: Home / Friends / LET”S RETURN NOW

LET”S RETURN NOW

Published by Durga Prasad in category Friends | Hindi | Hindi Story with tag Love | marriage | tears

आ अब लौट चलें

भोजन कर लेने की बाद मैंने अपनी बात रखी :

शुकू ! मेरा आये हुए सात दिन हो गये | मैं कल सुबह ब्लेक डायमंड से घर लौट जाना चाहता हूँ , फिर किसी दिन जब बुलाओगी नेक्स्ट डे आ जाउंगा |

इतना सुनना भर था कि उदास हो गयी , रोनी सूरत बना ली , फिर एक शब्द ही बोली :
ओके | मैं भी साथ “सी ऑफ” करने चलूंगी |

आज भी हम काफी थके हुए थे | मुझे घर लौट जाने की खुशी थी तो शुकू को बिछुड़ने का गम |

हम अपने – अपने कक्ष में सो गये | सुबह चार बजे ही उठ गये | गाडी इन्तजार कर रहा था बाहर | हम वक़्त से पहले निकल गये | हावड़ा स्टेशन एक घंटे में पहुँच गये | अपनी सीट पर बैठ गये | पास ही खाली सीट पर शुकू बैठ गयी – बिलकुल गुमसुम !

गाडी खुलने का वक़्त हो गया तो फफक – फफक कर रोने लगी और मेरी अटैची को पकड़कर उतर गयी | बोली कुछेक दिन और रह लीजिये , मेरा बुधवार को बर्थ डे है , उसके बाद … ?

मैं भी झट उतर गया | गाडी चल दी , एक के बाद दुसरे डिब्बे निकलते चले गये | प्लेटफोर्म खाली हो गया | बस हम दोनों बच गये जो न जा सके , चढ़कर उतर गये |
आगे – आगे शुकू और फोलो करता हुआ मैं फिर वहीं – “आ हम लौट चले |” के तर्ज़ पर |

देखा शुकू की आँखों से अब भी अविरल आंसू की बूंदें टपक रही हैं पर ये आंसूं दुःख के नहीं पर सुख के थे |

मैंने अटैची थाम ली और गाडी तक आ गये , बहादुर मुझे साथ – साथ देखकर चकित नहीं हुया | अटैची मेरे हाथ से लेते हुए अपनी बात रख दी,

साहब ! मैं जानता था कि मेमसाहब आप को इतनी जल्द नहीं जाने देगी |
मैं बोझिल क़दमों से शुकू के बगल में बैठ गया, बिलकुल मौन |

वह भी मेरी तरह बिलकुल मौन – वो भी मुंह फेर के |

वह मेरे बारे क्या सोच रही थी, मैं नहीं बता सकता, लेकिन मैं जो सोच रहा था उसे बता सकता हूँ |
हम इन सात दिनों में एक दुसरे के इतने करीब आ चुके थे कि फिर पीछे मुडकर देखना संभव नहीं था | वह तो प्रेम दीवानी हो चुकी थी और कभी भी विवाह का प्रस्ताव रख सकती थी |

मैं इसी उधेड़बुन में था कि तब मैं उसके प्रस्ताव को एकबारगी ठुकरा दूं या तहेदिल से स्वीकार कर लूं |

मैंने सबकुछ भुलाकर अपने आपको ईश्वर के हाथों छोड़ दिया कि वे जैसा उचित समझेंगे वैसा ही मुझसे करवायेंगे, मुझे सर खपाने की कोई आवश्यकता नहीं है |

इतना सोचना था कि मैं मानसिक बोझ से निजात पा गया |

श्रीकृष्ण ने भी श्रीमदभागवत गीता में ऐसी विकट परिस्थिति प्राणी के समक्ष उत्पन्न हो जाय तो कैसे सहजतापूर्वक उबरना चाहिए, बता चुके हैं :
“ अथ चित्तं समाधातुं न सक्नोषि मयि स्थिरम् |
अभ्यासयोगेन ततो माम् इच्छाप्तुं धनञ्जय || ”
( अध्याय : १२ , श्लोक संख्या : ९ )
अर्थात हे अर्जुन ! यदि तू मनको मुझमें अचल स्थापित करने के लिए समर्थ नहीं हो तो अभ्यासरूप योग द्वारा मुझको प्राप्त होने के लिए इच्छा कर |
मैंने उनके सुझाए मार्ग पर चलने का निश्चय कर लिया तो तनावमुक्त हो गया |
***** THE END *****

Read more like this: by Author Durga Prasad in category Friends | Hindi | Hindi Story with tag Love | marriage | tears

Story Categories

  • Book Review
  • Childhood and Kids
  • Editor's Choice
  • Editorial
  • Family
  • Featured Stories
  • Friends
  • Funny and Hilarious
  • Hindi
  • Inspirational
  • Kids' Bedtime
  • Love and Romance
  • Paranormal Experience
  • Poetry
  • School and College
  • Science Fiction
  • Social and Moral
  • Suspense and Thriller
  • Travel

Author’s Area

  • Where is dashboard?
  • Terms of Service
  • Privacy Policy
  • Contact Us

How To

  • Write short story
  • Change name
  • Change password
  • Add profile image

Story Contests

  • Love Letter Contest
  • Creative Writing
  • Story from Picture
  • Love Story Contest

Featured

  • Featured Stories
  • Editor’s Choice
  • Selected Stories
  • Kids’ Bedtime

Hindi

  • Hindi Story
  • Hindi Poetry
  • Hindi Article
  • Write in Hindi

Contact Us

admin AT yourstoryclub DOT com

Facebook | Twitter | Tumblr | Linkedin | Youtube