This Hindi story is about 3 college students, one of them ‘pankaj’ fall in love with a 12th class girl, they got into physical relation, one day pankaj and his girlfriend caught by her father…
यह कहानी पंकज और उसकी गर्लफ्रेंड मीत की है , तब पंकज मेरे साथ कम्प्यूटर्स से मास्टर कर रहा था और मीत बारहवीं में थी । मीत के मम्मी और और पापा दोनों ही घर से बाहर जॉब करते थे और अक्सर दिन भर घर बाहर रहते थे । उस समय पंकज बेहद शरीफ शर्मीला दिखता था पता नहीं उससे कैसे कैसे इतनी मॉडर्न और पढाकू लङकी को अपनी गर्लफ्रेंड बना लिया था । हम सब लोग उससे अक्सर इसी बात पर जलते थे । मीत को उसने मुझसे बहुत दिनों बाद अपनी दोस्त कहकर मिलवाया, उन दोनों के बर्ताव से मैं देखते ही समझ गया था कि वह सिर्फ अच्छे दोस्त तो नहीं है । धीरे धीरे पंकज कॉलेज से गायब होकर मीत से मिलने जाने लगा तब यह बात यकीन में बदल गयी कि मीत उसकी गर्लफ्रेंड है । अक्सर ऐसा होता कि लङके अपनी गर्लफ्रेंड को दोस्तों से बचाकर रखते है मगर भूल जाते है कि मुसीबत के समय दोस्त ही काम आते है, और ऐसा ही कुछ पंकज के हुआ ।
एक दिन मैं कंप्यूटर पर स्टोरी लिख रहा था तभी रघु (पंकज और मेरा दोस्त ) का फोन आया । वह मुझसे ज्यादा पंकज के करीब था इसलिए जब भी पंकज को कोई काम होता तब वह सबसे पहले रघु को ही फोन करता था ।
’क्या बात है आज मेरी याद कैसे आ गयी , कैसे हो ?’ मैंने फोन उठाते हुए ही पूछा ।
’हू इज दिस ब्लडी मीत ? और कहाँ रहती है ?’ उसने गुस्से में कहा ।
’क्या हुआ इतने गुस्से में क्यों हो ?’
’पंकज का फोन आया था बोल रहा था की मर रहा हूँ, उठा ले जा और वह किसी मीत के यहाँ पर था।’ उसकी आवाज में गुस्सा और घबराहट साफ महसूस हो रही थी, मैं मीत के बारे में जानता तो था मगर यह नहीं जानता था की वह कहाँ रहती है और फिर पंकज ने उसके बारे में किसी को बताने के लिए मना किया था ।
’ऐसा क्या हुआ ?’ मैंने कुर्सी से उठते हुए पूछा ।
’कुछ भी नहीं पता प्रेम ! फोन पर सिर्फ इतना कहा की मीत के यहाँ मर रहा हूँ उठा ले जा । और अब वह फोन भी नहीं उठा रहा है पता नहीं किस मीत के चक्कर में फस गया’ उसकी बातों में पंकज की फिक्र और गुस्सा था ।
’तुम टेंशन मत लो मैं मीट को जानता हूँ ’ मैंने उसे समझाते हुए कहा हुए कहा ।
’है कौन ये ? और कहाँ रहती है ?’ उसने गुस्से में पूछा ।
’तू पहले शांत हो, बाइक उठाओ और मेरे यहाँ आ जाओ चलते है मीत के यहां । ’
’अगर पंकज को कुछ हुआ तब उसे नहीं छोडूंगा। मैं आता हूँ ।’ कहकर उसने फोन काट दिया।
मैंने तुरंत पंकज को फोन लगाया पर उसने कोई जवाब नही दिया। हो ना हो आज पंकज फस गया, वह हुमेशा काॅलेज बंक करके मीत के ही घर जाता होगा, क्यूंकि उसके मम्मी पापा दिन भर बाहर रहते है। पर ऐसा क्या हो सकता है की मरने की बातें कर रहा था? शायद ज्यादा ‘सेक्स कर लिया हो ?’ पर सेक्स से मरने तक की नौबत कैसे आ सकती है। ‘हो सकता है लड़ाई हो गयी हो और मीत ने पीट दिया हो’’ पर ऐसा कैसे संभव था? इतना तो समझदार वह है किसी से झगड़ा इतना नही बडाएगा, मुझे फालतू के बिचार आने लगे।
‘ओह शिट ! उसके मम्मी पापा’ मैं चिल्लाया और बात समझते देर नही लगी। वह काॅलेज बंक करके मीत से मिलने गया होगा और उसके मम्मी पापा आ गये होंगे। अब तो पंकज गया काम से मैंने उसे फिर से फोन किया पर कोई जवाब नही दिया। अब क्या किया जाए? मीत का ना तो कॉंटक्ट नंबर था और ना ही एड्रेस, कैसे पता किया जाए? काफी देर तक सोचने के बाद एक ही राह नजर आई ‘फेसबुक’। हो सकता है उसका नंबर फेसबुक पर हो? मैने झट से अपना फेसबुक लाॅगइन किया और पंकज की फ्रेंड लिस्ट मे से मीत की प्रोफाइल खोली। लेकिन उसमें कॉंटक्ट नंबर नही था। मैने उसकी प्रोफाइल को अच्छे से चैक किया कहीं कोई कॉंटक्ट डीटैल नजर नही आई। हां सिर्फ उसके एड्रेस मे ‘आदित्य नगर’ लिखा हुआ था। यह कॉलोनी सिटी से थोड़ा हट कर थी और वहां पर नये मकान बन रहे थे। आदित्य नगर में मेरा एक फ्रैंड रहता था अरविंद। मैंने उसे फोन लगाया।
अरविंद – ‘हाॅं प्रेम ! बोलो।’
मैं – ‘यार तुम आदित्य नगर मे रहते हो ना।’
अरविंद – ‘ हाॅं क्या हुआ ? क्यंू पूछ रहे हो?’
मैं – ‘कुछ नही बस एक छोटा सा कम था।’
अरविंद – ‘बोलो’
मैं – ‘वहाँ कोई मीत रहती है जानते हो क्या?’
अरविंद (हशते हुए) – ‘अरे प्रेम भाई मेरी कॉलोनी की लड़कियों को तो बख्श दो।’
मैं – ‘एसा कुछ नहीं है कुछ प्राॅब्लम है इसलिए पूछ रहा हूं।’
अरविंद – ‘एसी कौन सी लड़की है जिसने तुम्हें प्राॅब्लम दे दी, मुझे भी तो बताओ?’
मैं – ‘मुझे कोई प्राॅब्लम नही है। अब तुम्हें कैसे बताउं ? तुम्हें पता है वह कहाँ
रहती है? बस इतना बताओ।’
अरविंद – ‘नहीं यार मैं नही जानता पर बताओ तो सही हुआ क्या?’
मैं – ‘कुछ नही जाने दे बाॅय।’
अरविंद – ‘अरे बताओ भी मैं पता लगा लूँगा।’
मैं – ‘पंकज किसी मीत के यहाँ गया था वहाॅं कोई प्राॅब्लम हो गयी है, तू बस पता
लगा ये मीत कहाँ रहती है?’
अरविंद – ‘ठीक है मैं 5 मिनिट में फोन करता हूं, अच्छा वह क्या करती है उसके मम्मी पापा क्या करते हंै कुछ पता हो तो बताओ?’
जितन मुझे पता था मैंने उसे मीत के बारे में सब बता दिया। उसने वापस फोन करने को कहकर फोन रख दिया। मैने कपड़े बदले और रघु, अरविंद के फोन आने का इंतजार करने लगा। कुछ ही देर मंे अरविंद का फोन आ गया उसने बताया कि एक मीत उसके घर के पीछे वाली गली में रहते है और एक आखरी गली में। मंैने अरविंद को घर पर ही रुकने को कहा और रघु को फोन लगाया वह बस पहुचने ही वाला था। मैं कमरे को ताला लगाकर जैसे ही बाहर आया, रघु भी आ चुका था।
‘सीधे अरविंद के घर चलो।’ बाइक पर बैठते हुये मैने रघु से कहा।
‘अब वहाँ क्यूं ?’ उसने पिछे मुड़कर कहा।
‘मीत वहीं रहती है।’ मैने हाथ के इशारे से उसे चलाने को कहा।
उसने एक बार को मुझे ऐसे घूरकर देखा जैसे मुझे खा जाएगा। मैं समझ गया वह उस वक्त यही सोच रहा होगा की मुझे सबकुछ पता है, पर इसमें कोई सच्चाई नहीं थी । बाइक हवा से बातें करते हुए चले जा रही थी और मैं लगातार पंकज को फोन किए जा रहा था पर वह किसी तरह का कोई जबाब नही दे रहा था। हम लगभग 10 मिनिट में अरविंद के घर पहुच गये। सबसे पहले हम लोग उसके घर के पीछे वाली गली मे पहली वाली मीत के घर गये लेकिन वहाँ ताला पडा हुआ था।
‘कोई मुझे बताएगा क्या हुआ ? अरविंद यह किसका घर है?’ रघु ने बहुत गुस्से मे पूछा।
‘बाइक पर बैठो और आखरी वाली गली में चलो’ मैने अरविंद को इशारा किया।
रघु ने झुंझलाते हुए बाइक स्टार्ट की और अरविंद के बताए अनुसार आखरी वाली गली में मीत के घर के पास बाइक रोक दी। पंकज ने एक बार उसके घर के बारे मे जिक्र किया था वह उसी तरह से बना हुआ था। सोचने का ज्यादा वक्त नही था मैने जाकर सीधे डोर वेल बजा दी। अंदर से एक अंकल निकलकर आए वह बहुत ही गुस्से में लग रहे थे। मैंने उन्हे देखकर नमस्ते किया।
‘कौन हो ? क्या काम है ?’ उन्होने गुस्से मे पूछा।
‘जी मुझे मीत से मिलना है हम उसके क्लासमेट्स है।’. मैने बड़ी सादगी से उनसे कहा।
‘क्यूं क्या काम है? शक्ल से तो उसके क्लासमेट्स नही लगते हो ? किस स्कूल मे पड़ते हो?’ क्या जवाब देता? पंकज ने कभी बताया ही नही था की वह किस स्कूल मे पड़ती है ? और ना ही हमने कभी उससे जानने की कोशिश की।
‘जी हम मीत के साथ पड़ते है।’ मैने डरते हुए जवाब दिया।
‘तो तुम्हें अपने स्कूल का नाम नहीं पता।’
हम फस चुके थे, वह बाहर निकले, मेरे कंधे को कस के पकड़ा और गुस्से मे बोले।
‘कौन हो तुम लोग ? और मीत से क्यूं मिलना है? बताओ नहीे तो।’
उन्होने मुझे पीछे की तरफ धक्का देकर छोड़ दिया। हम तीनों मे सिर्फ रघु ही सबसे लंबा और हट्टा कट्टा था, मैंने उसकी तरफ देखा वह लपक कर अंकल के सामने आया और बोला।
‘देखो बहुत हो गया हमें मीत से कोई काम नहीं है उसे रखो घर मंे, पंकज कहाँ है और क्या किया उसके साथ?’
मैं और अरविंद भी रघु के पिछे जाकर खड़े हो गये, अब वह कुछ ठंडे हुए और रघु से एक कदम पिछे जाकर बोले ‘कौन पंकज मुझे नही पता।’
‘आपकी लड़की का…’ रघु कहने ही वाला था कि मैंने उसकी बात काटते हुए कहा।
’देखिए अंकल आप प्लीज मीत को बुला देंगे पकंज उसका दोस्त है, प्लीज बुला दीजिए।’ मैने उनसे हाथ जोड़कर कहा। उन्होने मुझे घूरते हुए मीत को आवाज लगाई।
मीत डरते हुए बाहर आई और हमें देखकर और ज्यादा डर गयी। उसे देखकर साफ लग रहा था कि उसकी पिटाई हुई हो उसके गाल पर उंगलियों के निशान साफ नजर आ रहे थे। पर उस वक्त हमें पंकज की फिक्र थी। वह सिर्फ मुझे जानती थी उसने उन दोनों की तरफ देखा और मेरे सामने आकर खड़ी हो गयी। उसके पापा पास ही खड़े थे।
‘मीत पंकज कहां है ? वह फोन नही उठा रहा।’ मैने उससे पूछा।
मीत ने पापा की तरफ देखा, उनका चेहरा गुस्से से लाल हुआ जा रहा था ।
‘बताओ वह अंदर है क्या ?’
‘ओह! तो उस लड़के का नाम पकंज है, मैं लाता हूं’ कहकर उसके पापा गुस्से से भनभनाते हुए अंदर चले गये। रघु भी घर के अंदर की तरफ लपका लेकिन मैने पकड़कर पीछे कर लिया।
‘पंकज यहां नही है, पापा के आते ही वह घर के पिछे से छत की तरफ गया और निकल गया। प्लीज तुम लोग यहाँ से जाओ, पंकज नही है यहाँ। पापा को सब कुछ पता चल गया है।’ मीत ने रोते हुए कहा।
इतने में उसके पापा अंदर से हाथ मे गीले कपड़े लेकर आए वह पंकज की ही काॅलेज जीन्स और शर्ट थी। उन्हे मेरी तरफ फेंकते हुए कहा ‘ये लो वॉशिंग मशीन मे पड़े थे वह तो भाग गया लेकिन आगे से मेरी लड़की से बात करने की या मिलने की कोशिश की तो उसके और तुम सब लोगों के खिलाफ पुलिस में शिकायत दर्ज करा दूँगा।’ उन्होने मीत का हाथ पकड़ा और अंदर जाकर गेट बंद कर लिया। मैंने कपड़े उठाए, सब एक दूसरे के चेहरे की तरफ देख रहे थे। कपड़े मेरे पास थे इसका मतलब पंकज अंडरवियर और बनियान मे ही भाग गया।
रघु ने एक बार फिर पंकज को फोन लगाया पर पहले की तरह पंकज ने फोन नहीं उठाया, हम सोचने लगे भाग कर कहाँ गया होगा। वहाँ पर घर बहुत दूर दूर बने हुए थे अगर वह छत से कूदकर भागा भी होता तब हमें दिखा जाता, हमने घर के दाएँ एवं वाएँ तरफ देखा फिर कहा ’चलो पीछे चलकर देखते है शायद वहाँ बैठा हो।’
मैं और अरविंद घर के पीछे की तरफ गये, रघु ने बाइक मीम के घर से दूर रखने के लिए स्टार्ट की। पीछे जाकर देखा पंकज बेहोश पड़ा हुआ था। उसके सिर मे चोट लगी हुई थी और काफी खून बह चुका था उसके पैर मुड़े हुए थे। वह पत्थरों के बीच मे पड़ा हुआ था।
‘रघु जल्दी आओ’ मैं चिल्लाया।
वह भागते हुए मेरी तरफ आया और पंकज को देख कर हैरान रह गया वह सिर्फ अंडरवियर मंे था और बेहोश पड़ा हुआ था, उसके सिर के पास काफी खून जमा था। रघु ने फौरन पंकज को गोद मे उठा लिया और मुझे बाइक स्टार्ट करने को कहा। हम लोग जल्दी से बाइक के पास आए अरविंद को सीधा हॉस्पिटल पर आने को कहकर मैं और रघु पंकज को लेकर पास ही के एक हॉस्पिटल में पहंुचे और डॉक्टर को बताया कि वह छत से गिर गया है।
‘इसके पेरेंट्स कहा है ?’ डॉक्टर ने पूछा।
‘मैंने उन्हें फोन कर दिया है वह आ रहे हंै आप प्लीज ट्रीटमेंट स्टार्ट करिए।’ मैने उनसे रिक्वेस्ट किया।
‘ओके, जल्दी बुला लीजिए।’ कहकर उन्होने पंकज को एक रूम मे लिटाने को कहा और हम लोगों को बाहर भेज दिया.
‘सर यह ठीक तो हो जाएगा ना।’ रघु ने रोते हुए पूछा।
‘डॉट वरी सिर मंे ज्यादा घहरी चोट नहीं है। आप बाहर वैट कीजिए।’ डॉक्टर ने उसके सिर को इधर उधर करते हुए कहा।
हम लोग बाहर निकल आए।
‘थैंक गाॅड। तूने एक्सिडेंट नहीं कहा, वरना पुलिस केस हो जाता।’ रघु ने बाहर निकलते हुए कहा।
मैंने सिर्फ गर्दन हिलाकर हां कहा।
‘पर अब उसके पापा को तो बताना पड़ेगा।’ रघु ने चिंतित होकर कहा।
हम बाहर आकर बेंच पर बैठ गये, मैंने उसके पापा को फोन लगाकर बताया कि पंकज मेरे रूम की छत से गिर गया है, वह एकदम से टेन्शन मे आ गये पर मैंने उन्हे बता दिया कि उसकी हालत सही है, वह कुछ ही देर मंे आ गये।
लगभग 1 घंटे बाद हमें पता चला कि वह ठीक है लेकिन उसके दोनों पैर मंे फ्रैक्चर है और डॉक्टर ने उससे मिलने से माना कर दिया। चूँकि उसके पापा और मम्मी आ गये थे इसलिए हम लोग रूम पर आ गये। मैने सारी बात रघु को बताई।
रात 10 बजे के करीब पंकज का फोन आया और हम लोगों को हॉस्पिटल बुलाया। म,ैं रघु और अरविंद हॉस्पिटल पहुंच गये। कुछ देर बाद उसके पापा और मम्मी को हम सब ने जिद करक घर भेज दिया।
अंदर रूम मे जाकर देखा। पंकज मुस्करा रहा था उसके सर पर पट्टी बँधी हुई थी, दोनांे पैरांे में घुटने से नीचे की तरफ प्लास्टर चड़ा हुआ था। वह किसी बेशर्म की तरफ हस रहा था जैसे कुछ हुआ ही ना हो। हम लोगांे ने जाकर उससे हाथ मिलाया और पास पड़े हुए स्टूल्स पर बैठ गये। हालांकि डॉक्टर ने एक को ही अंदर जाने के लिए कहा पर हमने उनसे रिक्वेस्ट की, तब वह थोडी देर के लिये राजी हो गये। हम तीनों पंकज को घूर रहे थे और वह हसे जा रहा था।
‘कमीनो बचा ही लिया ना।’ पंकज ने मुस्कराते हुए कहा।
‘अगली बार ऐसा किया तो छोड़ूँगा नही।’ रघु ने उसे उंगली दिखाते हुए कहा।
‘अगर करो भी तो हमें भी साथ ले लेनो, बाहर खड़े रहेंगे।’ मैने पंकज को आँख मरते हुए कहा।
‘ओये तू उसे मरवाएगा।’ कहकर रघु ने मेरी गर्दन दबा ली, सब हस पड़े।
‘थैंक्स यार!’ पंकज ने अरविंद को बोला।
‘थैंक्स तो ठीक है, लेकिन ये बता तेरे कपड़े वॉशिंग मशीन मे कैसे पहुंचे?’ अरविंद ने अपने अंदर की बात पूछ ली जो वह बहुत देर से सोच रहा था और हम तीनों पंकज के करीब आ गये।
‘कमीनो आराम करने दो फिर कभी बताउंगा।’
‘बता नही तो कल यह बात पूरे काॅलेज में फैल जाएगी।’ मैंने उसे ब्लैकमेल करते हुए कहा। पंकज ने बताना शुरू किया।
पंकज घर पर जाकर कुछ स्टूडेंट्स कंप्यूटर्स की ट्रैनिंग भी देता था । वह मीत से अपने एक स्टूडेंट की बर्थडे पार्टी में मिला था, वह पंकज से आईटी के सब्जेक्ट्स पढना चाहती थी, दोनों ने एक दूसरे के नंबर लिए और फिर चैट स्टार्ट हो गई, धीरे धीरे दोनों में रोमांटिक बातें शुरू हुई। एक दिन मीत ने पंकज को अपने घर पर पढाने के लिए बुलाया, लेकिन उसने बताया कि उसके सब्जेक्ट्स में आईटी का कोई पेपर नहीं है वह उससे प्यार करती है। चूँकि घर पर कोई नही था तो दोनो रोमांटिक हो गये, पंकज का उस दिन पहला किस हुआ। फिर पंकज और वह लगभग हर रोज मिलने लगे, धीरे धीरे वह करीब आते गये और दोनो के बीच शारीरिक संबंध भी बन गये। पंकज और वह दोनों एक दूसरे को प्यार करने लगे थे पंकज ने पढ़ाई को लगभग छोड़ ही दिया था और हर रोज काॅलेज से सीधे उसके घर पर पहुंच जाता। जब उसके मम्मी पापा आते उससे पहले वह वापस आ जाता। यह सिलसिला चलता रहा और आज उसके पापा ऑफिस से जल्दी आ गये। पापा गेट पर थे इसलिए वह घर के पीछे की तरफ से झीने से होता हुआ छत पर गया और नीचे कूद गया, लेकिन जल्दबाजी में नीचे पड़े हुए पत्थर दिखाई नही दिए।
‘क्या बात है? तू तो हम सबमें तेज निकला लेकिन ये बता तेरे कपड़े वॉशिंग मशीन मे क्या कर रहे थे?’ मैने उससे पूछा।
पंकज – ‘आज वह कहने लगी की मेरे कपड़े ज्यादा गंदे लग रहे है धो देती हंू तुरंत सूख जाएँगे, मैने बहुत माना किया फिर भी वह नहीं मानी। उसने कपड़े उतारे और वॉशिंग मशीन मे टाइमर सेट करके छोड़ दिए। फिर हम दोनों लेटकर बातें करने लगे और एक दूसरे मे इतने खो गये कि ध्यान भूल गया कपड़े मशीन में है। जब उसके पापा आए तब कपड़े देखे। मीत ने कहा भाग जाओ नहीं तो गड़बड़ हो जाएगी इसलियेे मजबूरन वहां से बिना कपडों के भागना पड़ा। सोचा तुझे बुलाकर कपड़े मंगा लूँगा लेकिन चोट लग गयी।’
‘तू तो प्यार मे नंगा हो गया, हवस के पुजारी आगे से एसा किया तो हममें से कोई उठाने नहीं आएगा। पड़े रहना अपनी चड्डी पहने किसी के घर के पिछावाड़े।’ कहकर रघु ने उसे चेतावनी दे डाली।
यह सब बताकर पंकज ऐसे मुस्कराने लगा जैसे बहुत शाबाशी का काम कर लिया हो। जो भी हुआ बुरा हुआ। लेकिन एक बात सच थी कि हमारा दोस्त अब हमारे साथ था, लेकिन सही सलामत नहीं। उसके पैर ठीक होने 6 महीने लग गये। उसके सेमेस्टर के सभी पेपर छूट गये लेकिन उसने अगले सेमेस्टर मे खूब मेहनत करके पहले सेमेस्टर के भी सभी पेपर्स को पास कर लिया। लेकिन इस घटना के बाद वह एकदम से बदल गया उसने मीत का फोन उठाना बंद कर दिया, उसने मिलना छोड़ दिया। धीरे धीर मीत भी उससे दूर होती चली गयी। मीत का तो पता नहीं लेकिन पंकज आज एक अच्छी जगह नौकरी कर रहा है। आज भी हम सब जब भी मिलते है तब उस दिन को याद करके बहुत हसते है और पंकज को परेशान करते है ।