This is a funny Hindi story where in three siblings fight for the delicious imli ki chutney made by their mother and finally got their mother scoldings.
हमारी माताजी बहुत ही स्वादिष्ट इमली की चटनी बनाती हैं और यह हमारा दुर्भाग्य है की हमारे हिस्से में इस चटनी की बची खुरचन भी चाटने के लिए नहीं आती है।
दरअसल हमारा काम ही कुछ ऐसा है की वक़्त बेवक्त हमें ऑफिस में बैठना पड़ता है तो जाहिर सी बात है की घर में माताजी के हाथ की बनी कई लाजवाब चीजों से हम मरहूम रह जाते हैं। यह इमली की चटनी भी उन्ही सब लाजवाब चीजों में से एक है। यूँ तो हर बार माताजी हमारे लिए एक बोतल चटनी की छुपा कर रखती हैं पर घर में जो हमारे दो शैतान छोटे भाई बहन हैं वो इस बोतल को पुलिस के स्निफ्फेर डॉग्स की तरह सूँघ कर ढूँढ ही निकालते हैं और बस एक बार जो चटनी की बोतल उनके हाथ लग गई तो वो कुछ इस तरह साफ़ की जाती है की बाद में उस को बर्तन साफ़ करने वाले पाउडर से भी साफ़ करने की ज़रूरत महसूस नहीं होती।
इस बार माताजी ने सोचा की वो इतवार वाले दिन ही इमली की चटनी बनायेंगी ताकि उनके सबसे बड़े सुपुत्र (यानी की हम) को भी जी भर कर चटनी खाने को मिल सके।माताजी के इस फैसले से हम तो जैसे निहाल ही हो गए। बड़ी ही बेसब्री से हमने पूरे हफ्ते इतवार के आने का इंतज़ार किया। हालत कुछ ऐसी हो गई थी की शनिवार की रात से लेकर इतवार की सुबह होने तक हम बस अपने सपने में यही देखते रहे की हम इमली की चटनी से नहा रहे हैं,उस के सरोवर में तैर रहे हैं,उस के बने गद्दों पर सो रहे हैं और ना जाने क्या क्या।
हमें अच्छे से पता था की इतवार वाले दिन हमारे वो चटनी पिपासु भाई और बहन देर से सोकर उठते हैं इसलिए हम सबसे पहले उठ गए और फटाफट नहा धोकर पूजा पाठ करके डाइनिंग टेबल पर जम कर बैठ गए।माताजी भी चटनी और पकोड़े बनाने की तय्यारी में लगी थी।तक़रीबन १० बजे उन्होंने पकोड़े कड़ाई में तलने के लिए डाले। और बस फिर क्या था पकोड़ों की खुशबू फैलते ही हमारे भाई और बहन भी अपने अपने कमरों से बाहर निकल आए।हमें यूँ तैयार देख दोनों के होश ही गायब हो गए और दोनों में जंग हो गई की पहले कौन नहाने जाएगा।
जब तक वो दोनों नहा कर आए तब तक हम इमली की चटनी और पकोड़ों का श्री गणेश कर चुके थे। हमें चटनी के चटखारे लेते देख दोनों जलनखोरों से रहा नहीं गया और लगे शोर मचाने की उनके हिस्से की चटनी और पकोड़े भी हमने खा लिए आज। इससे पहले की वो दोनों चटनी पिशाच हमारा रक्त पीते इतने में ही माताजी रसोई से निकल कर आयीं और हमारा बचाव किया और दोनों को यह भी बताया गया की उनके लिए ढेर सारी चटनी बची है और पकोड़े भी बन रहे हैं। यह सुनकर उन दोनों की कृपा से दोबारा से घर में शांति की स्थापना हुई।
इसके बाद उन दोनों राक्षसों ने भी जमकर चटनी और पकोड़ों का सेवन किया।जब माताजी ने भी नाश्ता कर लिया तब वे बोलीं की सिर्फ एक कटोरी चटनी बची है। और अब तो हम तीनों ही चटनी की यह जंग जीतना चाहते थे।जैसे ही माताजी चटनी की कटोरी लेकर रसोई से बाहर निकलीं तभी हमारी छुटकी ने उनके हाथ से कटोरी छीन ली और अपने कमरे की तरफ दौड़ी।लेकिन इससे पहले की वो अपने कमरे में प्रवेश कर पाती मंझले ने उसके हाथ से कटोरी कुछ ऐसे उड़ाई जैसे की पड़ोस वाले सिन्धु साहब की पतंग काटी हो।अब हमारी बारी थी अपना हुनर दिखाने की।
मंझला कटोरी लेकर बालकनी की और भागता उससे पहले हमने उसके हाथ से कटोरी अपने कब्ज़े में ले ली।हम बहुत ही गर्व महसूस कर रहे थे की आखिर चटनी की इस जंग की जीत हमारे नाम दर्ज हुई।पर यह ख़ुशी ज्यादा देर कायम नहीं रही क्यूंकि कटोरी तो हमने छीन ली लेकिन यह नहीं देखा की हमारे ठीक पीछे माताजी अपनी पीठ करके खड़ी थी और यह बात हमारे अव्वल दर्जे के बदमाश छुटकी और मंझले ने भी नहीं हमें नहीं बताई। और जैसे ही हम थोड़ा से और पीछे हुए हमारा पाँव फिसल गया।अगले ही पल हम सोफे पर गिरे पड़े थे और चटनी की कटोरी उछलकर माताजी के ऊपर गिर चुकी थी। माताजी का पारा सातवें आसमान पर था। वो हम पर गुस्सा करते हुए बोलीं की,” अरे ऊँट जितना बड़ा हो गया है पर अपनी यह छोटी सी माँ तुझे नहीं दिखती।गधा कहीं का। आया है बड़ा जंग लड़ने। सारी साड़ी ख़राब कर दी और पूरे बाल भी चटनी में जकड़ गए हैं।अब मुझे दोबारा नहाना पड़ेगा।”
गुस्से में हमें कोसते हुए वे दोबारा नहाने चली गईं। हमने देखा की वो दोनों शैतान अपना पेट पकड़ कर हम पर हँस रहे थे।हम वहीँ सोफे पर लेटे रहे और अपनी आँखें बंद करके चटनी की इस जंग में अपनी हार का शोक मनाने लगे।
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