लेट लतीफ़ जिंदाबाद ! – (Being Late is Great: In India, it is typical to be late at meetings, function, party etc. Read this funny Hindi short story on behaviour of typical people in India.)
मेरे थोबड़े में पता नहीं कौन सा आकर्षण है कि देशी – विदेशी लोग भी आकर्षित हुये बिना नहीं रह पाते। एक दिन की बात है कि मैं सूटेड-बूटेड एक विशिष्ट क्लब की मिटिंग में मुख्य अतिथि की गद्दी की शोभा बढ़ाने जा रहा था कि एक विदेशी पर्यटक ने मेरी ओर मुखातिब होकर पूछा,
“मिस्टर पार्डन, मुझे बाबाधाम जाना है। बस किधर को मिलता ?”
मुझे मालूम था कि मुख्य अतिथि क्लब की मिटिंग में पहुँचता नहीं तबतक मिटिंग शुरु नहीं होती। फिर क्या था, मैं निश्चिंत होकर उस सज्जन को बस-पड़ाव तक ले गया। उसी वक्त एक बस आकर रुकी।
’’सो मेनी पिपुल्स इन-साईड- आउट साईड, मिस्टर पार्डन? उसने सवाल दागा।
मैंने उसी लहजे में जबाब दिया मेनी, टू मेनी, आई मिन टू से नियरली टू हन्डरेड।
उसने एक लम्बी सांस ली ओर कहा ’’ओ माई गॉड!’’ केपेसिटी फिफ्टी फोर, लोडिंग फोर टाईम्स मोर, हाउ पिपुल्स डेयर टू ट्रेवेल?‘‘
मैं बात को जल्द विराम देना चाहता था। बोला दिस इज इण्डिया, मेरा देश महान। आई मीन टू से, ’’माई कन्ट्री इज ग्रेट।‘‘ हेयर इवरीथींग इज मिराकल फोर पिपुल लाईक यू, बट फॉर अस नो मिराकल।
उसने अपनी बात रखी ’’आई वान्ट टू गो टू देवगर-बाबाधाम, आई एम ए जर्नेलिस्ट एण्ड रायटर। आई एम रायटिंग ए बुक एबाउट इण्डिया एण्ड इट्स ग्रेट पिपुल्स। मिस्टर पार्डन , यू आर लेट। यू आर द चीफ गेस्ट। यू हेव टू एटेण्ड द मिटिंग। यू मे लीव मी, आई विल गो मईसेल्फ़ . डोंट वरी फॉर मी. यू विल बि लेट इन एटेंडिंग योर मीटिंग .
‘‘इन इण्डिया नो लेट-एवरिथींग इन टाईम। मेरा देश महान आई मीन टू से इण्डिया इज ग्रेट एण्ड इफ द कन्ट्री इज ग्रेट,इट्स पिपुल्स आर आल्सो ग्रेट-रेदर ग्रेटर। ’’मैंने अपना मन्तव्य अपनी टाई सीधी करते हुये दे डाला।
’’हवॉट योर लिडर्स आर डूविंग ? ‘‘उसने पुनः सवाल दागा।
’’दे आर डूविंग ग्रेट थिंग्स। दे आर ओवर वर्डेन्ड – आई मीन तो से ओवर लोडेड विथ वर्क . लोट ऑफ रिस्पोंसविलिटीज, दे डोन्ट हेव टाईम टू सी ऑल दिज सिल्ली थिंग्स।’’
’’आई वान्ट टू गो इन एसी क्लास। केन यू हेल्प मी ? उसने आग्रह किया। ’’अतिथि देवो भवः – हमारे रग-रग में समाया हुआ है।
उधर से अध्यक्ष का मोबाईल फोन आया – रिंग टोन बजा मेरा’ज्योत से ज्योत जलाते चलो, राह में मिले जो दीन – दुखी, उनको गले लगाते चलो ’’जबाब तो देना था – यार फलाना जी, दुबई से रात के तीन बजे आया हूँ, बाथरुम में हूँ। निपट कर आता हूँ। ‘ टूरिस्ट समझ गया कि मैंने सफेद झूठ बोला अध्यक्ष से। उसने हिकारत भरी दृष्टि से घुरते हुये कहा ’’यू मैन , झूठ बोलता। यू विथ मी, बोलता बॉथरुम में। यू आर ए लायर।
मैंने उसके मन्तव्य को हँसी में उड़ाते हुए कहा’’मिस्टर वाटसन ,मैं रोज झूठ बोलता-फर्क नहीं पड़ता मुझको। मैं अपने लिये झूठ नहीं बोलता, संस्था के लिये बोलता, अपनी पार्टी के लिए बोलता – अपने देश के लिए बोलता।मैं अपना वजूद कुर्बान करता रोज-रोज – वो भी फ्री ऑफ कॉस्ट।”
’’कोई एतराज नहीं जताता- कोई एक्सन नहीं होता , झूठ बोलने का ?’’उसने आश्चर्य भरी नजरों से घूरते हुए पूछ बैठा।
मैंने फिर झूठ कहा वो भी गर्व से .” मिस्टर वाटसन, मेरा देश महान ,आई,आई मीन टू से, माई कन्ट्री इज ग्रेट, पिपुल्स आर ग्रेट -एण्ड थींगस आर ग्रेटर देन अस।’’
’’ओ आई सी। थैंक यू वेरी मच। आई इनवाईट यू टू माई कन्ट्री , प्लीज डू कम।’’
मैंने एसी क्लास के लिये एक भेड़-बकरी की तरह भरी बस की छत की ओर इशारा किया।‘
वह इतनी देर में सबकुछ समझ गया था। वह मुस्कराते हुये – मुझे धन्यवाद में हाथ हिलाते हुए बस की छत पर चढ़कर बैठ गया। खलासी का पेट अभी भी खाली था। बाबाधाम , बाबाधाम चिला रहा था।
मुझे भान हुआ कि देर हो चुकी है। फिर भी शान से कलर सीधी करते हुए मिटिंग के लिये चल पड़ा। मैं दो घंटे लेट था , कोई बात नहीं – मिटिंग स्टार्ट नहीं हुई थी , क्योंकि मैं ही उस सभा का मुख्य अतिथि था और बिना मुख्य अतिथि के पहुँचे, सभा कैसे शुरु हो सकती थी?
समझे मेरे दोस्त ? मेरे देश के महान ……. ! ! !
***
व्यंग्यकार : दुर्गा प्रसाद