Number plate is a funny Hindi story of common man…..who is fighting with his basic necessity.
शाम ६ से ९ के बीच ऐसा लगता था, सारी आबादी घर से निकल के सड़क पर जमा हो गई है. देश विकासशील हो रहा है, इसमें कोई दो राय नहीं है, इसका जीता-जागता सबूत थी, इतनी सारी कारें और मोटर-साइकलें, जो किसी हड़ताल सी स्थिति बना रही थी… जनसँख्या काफी तेज़ी से बढ़ रही है….सो तो दिख ही रहा है. इस शहर के ये हालात हैं, तो बाकी जगह क्या होता होगा? यही सोचते-सोचते में अपनी मोटर-साइकल दो गाड़ियों के बीच में से निकाल रहा था, तभी अचानक पीछे से आ रहे ऑटो ने, मेरी मोटर-साइकिल की नंबर प्लेट का चुम्बन कर लिया….चुम्बन इतना ज़ोरदार था, की नंबर प्लेट अपने आप को संभाल नहीं पाई और बेहोश होकर नीचे गिर पड़ी….एक अभिभावक की हैसियत से मैंने गाडी साइड लगाकर माहोल का जायेज़ा किया…और ऑटो वाले की और गुस्से में देखा… ऑटो वाला रोद्र रस, शांत रस, और करुण रस के बीच उलझा हुआ था…मेरा रौद्र रूप देख उसने अपने चेहरे पर शांत रस का भाव चिपका दिया….उसके शांत रस को देखकर मेरा रौद्र रूप, करुण रस में बदल गया.. मैंने अपनी नंबर प्लेट को हाथों में उठाया, वापस उसको उसकी जगह लगाने का प्रयास किया…लेकिन नंबर प्लेट ने वापस चिपकने से इनकार कर दिया..वैसे ही नंबर प्लेट के काफी नंबर धुंधला गए थे. पुरानी नंबर प्लेट को वापस बैग में डालकर मैं वहां से रवाना हो गया…
घर के पास में एक गैराज था, उसके मालिक को नंबर प्लेट पकड़ाई…
” ओ बाउजी… ये नंबर प्लेट लगा दो यार… ऑटो वाले ने राम-नाम -सत कर दिया इसका…” – नंबर प्लेट बैग से निकालते हुए मैंने कहा…
कुलदीप ने नंबर प्लेट और मोटर साइकिल का जायज़ा लिया.. गर्दन ना में इधर-उधर मटकाई…और नंबर प्लेट मुझे वापस लौटा दी…
“नंबर प्लेट पुरानी हो गई है, नई लगवानी है तो बताओ..”
“कितने पैसे लगेंगे…” – महीने के बजट में से मन ही मन मैंने २०० रूपये कम कर दिए…
“२०० प्लेट के और १५० लिखवाई के….सब मिला के ३५० दे देना…”
धूर्त कहूँ या मौका परस्त …समझ में नहीं आया… १५० रूपये लिखाई के तो ऐसे बोल रहा है, जैसे नंबर ना लिखने हो, पूरी रामायण लिखनी है गाडी के पीछे…
“खाली नंबर प्लेट फिट कर दे दो , नंबर मैं खुद ही लिख लूँगा…”- अपने बजट के हिसाब के २०० रूपये कुलदीप के हवाले किये और वहां से मैं चलता बना..
पेंट की दुकान में पेंट महंगा मिलता, इसलिए स्टेशनरी की दुकान से ड्राइंग वाला पेंट और १० रूपये का ब्रश ले लिया…और गाडी घर के आँगन में खड़ी कर दी.. पुरानी नंबर प्लेट से डिजाईन देखा और बचपन में ड्राइंग क्लास में सीखी अपनी कला का प्रदर्शन करने लगा…
बचपन और जवानी में ३० साल का ऐसा काल था, जिसमें मैंने ब्रश हाथ में पकड़ा नहीं था…परिणाम सामने दिख रहा था…नंबर प्लेट के नंबर अपनी पहचान खोते नज़र आ रहे थे, एक पल के लिए 6 और 9 में मैं धोखा गया … खैर पुरानी नंबर प्लेट पर एक नज़र दौड़ा के last stroke चलाया…और पसीना पोंछा. हाथ में लगी कालिख अब माथे की शोभा बढा रही थी…
घर के अन्दर आते ही, बीवी ने चेहरे की ओर देखा और चेहरे पे कालिख पोतने के का कारण पूछा. सारी कथा उसके सामने मैंने पढ़ दी.. रात का खाना खा के बेडरूम में सोने चला गया.. दिन भर की गर्मी से बारिश ने थोड़ी राहत दी…खिड़की में टपकते पानी की बूंदों को हथेली पे लिया…और बारिश को गुड नाईट कह के सोने चला गया…
सुबह ने दस्तक दी… जवान को फिर से बॉर्डर पे लड़ने के लिए तैयार होना था….सो जवान ने किया… शर्ट पेंट पहनी, टिफिन लिया और मोटर-साइकिल की चाबी घुमाता मैं बाहर आँगन में आ गया… एक बार अपनी ड्राइंग कल को निहारने की इच्छा हुई…मैं नंबर प्लेट दिखने के लिए पीछे की तरफ आया…
पर ये क्या !! सब सफाचट !! रात भर हुई बारिश मेरे किये कराये पर पानी फेर चुकी थी.. मेर ड्राइंग के हलके से अवशेष शेष थे, जैसे गाये-बहाए किसी वैज्ञानिक को भूल से डायनासोर की हड्डी मिल जाती है…. उस अवशेष को मैंने कपडे से पोंछ दिया…अब नंबर प्लेट बिना नंबर के नग्न अवस्था में मेरे सामने थी…
कुलदीप के गैराज पर जाके मैंने अपनी मोटर-साइकिल खड़ी की. जेब से १५० रुपये निकाल के कुलदीप को दिए और कहा…
“बाउजी….वो नंबर प्लेट पे नंबर लिखवाना था…जल्दी कर दो थोडा”
कुलदीप ने मेरी तरफ मुस्कुराकर देखा और पेंट ब्रश लेके अपनी ड्राइंग कला का प्रदर्शन करने लगा…
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