Every year new year arrives How the people of different status celebrate it has been described factually but satirically on different issues,Read Hindi story
नववर्ष के स्वागत में लोगों को क्या – क्या करना है , क्या – क्या खाना – पीना है – इसे कैसे और कहाँ और किनके साथ मनाना है – इसकी योजना में दिलोजान से जूट जाते हैं पहले से ही .
एकतीस तारीख की सुबह से ही मेरे सर पर इसे शानोशौकत से मनाने का कहाँ से भूत सवार हो गया – मैं बता नहीं सकता . मैं रोज इस वक़्त घंटों नीम का दतुवन करते नहीं थकता था पर आज ? आज तो जैसे मुझ पर बीन पीए नशा छा गया .
एक – दो मिनट में दतुवन से निजात पा लिया और चौपाल की एक लकड़ी की कुर्सी पर छुटभैये नेता की तरह पालथी मार कर चुकुमुकु बैठ गया
यहाँ तक तो सात खून माफ़ था , लेकिन एक रूमानी गजल गुनगुनाने लगा , यही भूल हो गयी.
“ होठों से छू लो त्तुम , मेरा गीत अमर कर दो ,
बन जाओ मीत मेरे , मेरी प्रीत अमर कर दो .”
उसी वक़्त रामखेलावन दालभात में मुसलचन्द की तरह टपक पडा. वह तालियाँ बजाते हुए शुरू हो गया , “ इस बुढौती में ऐसा रोमांटिक गजल जैसे मन जाए मचल – मचल . ऐसी जवानी जैसे परियों की सूनी कहानी.’’ कोएले घोटालेबाज़ की तरह मेरी चोरी पकड़ी गयी थी , इसलिए बेहतर समझा कि हथियार डाल दूं. सो दोस्तों ! मैंने हथियार डाल दिया और चोर की तरह हाथ जोड़ कर नतमस्तक खड़ा हो गया. थोडा साहस बटोर कर कहा , ‘ कल न्यू इअर 2014 शुरू हो रहा है . इसलिए कोई धमाल – वोमाल करने का इरादा है किसी होटल – वोटल में …
हुजूर ! ई तो बड़ा नेक इरादा है. नेकी और पूछ – पूछ . कोई होटल का टेबुल बुक करा लिया जाए . देर करने से सीट मिले या न मिले . धनबाद कोयले की राजधानी है , यहाँ आप की तरह एक से एक शौकीन लोग हैं जिनके पास क्रय – शक्ति हिलोरे मारती है.
कथनानुसार गुप्ता जी को फोन कर दिया , सीट मिडल में मिल गया ताकि दोगुना – चौगुना लुत्फ़ उठाया जा सके. हुजूर ! कोई ऐसा होटल तो होगा ही धनबाद में जहां परियों का नाच – गान का आयोजन का रतजग्गा प्रबंध हो , इस बात का ख्याल … ?
रामखेलावन ! सत्तर – पचहत्तर में ई सब ?
हुजूर ! हम पर बेवजह ऊंगली उठा रहें हैं , सुबह – सबेरे ? देश के उन नेताओं को तो आप नजर अंदाज कर रहे हैं जिन्होंने अस्सी पर भी … ?
रंगरेलियां मनाई लेकिन जेल की हवा भी तो …
हुजूर ! गुस्ताखी मुवाफ , जेलम गत्वा , सुखं जीवेत अर्थात ऐसे लोग जेल में भी रहकर सुख से जी रहे हैं .
क्या करोगे , जब अल्लाह मेहरबान तो गधा पहलवान . गोस्वामी तुलसीदास ने भी रामचरित मानस में इस विषय पर अपना विचार देने में कोई कृपणता नहीं दिखलाई है : “ समरथ के नहीं दोष गोसाईं ” |
समझ गया हुजूर ! अब प्रश्न – काल के दौरान मंत्री की तरह इधर – उधर की फजूल की बातों में मत बर्गालिये , सीधे मुख्य विषय पर मोदी की तरह सभा स्थल पर लैंड कीजिये .
चलो हम तैयारी में लग जाए.
मतलब ?
वही जरा सलीके से कपडा – लत्ता , सूट – बूट , सेंट – वोंट का जोगाड़ – पाती में अभी से जूट जाएँ .
ई सब की कोई जरूरत नहीं समझता हूँ हम . सीधे – सीधे अरविन्द केजरीवाल की तरह एक जोड़ी आम कुरता – पेंट , एक मफलर और एक चादर से काम चल जाएगा.
सो तो है , लेकिन ठण्ड लगेगी तो बुखार , सर्दी – खांसी और डायरिया हो , तब ?
सबकुछ ठीक हो जाएगा , ज्यादा सोचने की जरुरत नहीं है . उपरवाला है न !
पुराना साल तो झाड़ू मार कर मुस्कुराते हुए चला गया .
हुजूर ! वही नहीं कांग्रेसी और भाजपाईयों की नींद हराम कर गया .
वो कैसे , हुजूर ?
वो ऐसे कि सामने ही लोकसभा का अहम् चुनाव है. कहीं झाड़ू ने यहाँ भी … दिल्ली की तरह … ?
समझ गया हुजूर .
रामखेलावन समझते हो लेकिन … जी की तरह बहूत समझाने के बाद .
मजबूरी है हुजूर , क्या करूं , मजबूरी है ओर जानते ही हो मजबूरी का नाम … ? यदि ऐसा न होता तो , तो क्या देश का विभाजन – हिंदुस्तान – पाकिस्तान होता . आज हम विश्व में सर्वशक्तिवान नहीं होते ?
बहुत दूर तक हम भटक गये , अब नहीं , नहीं तो … नहीं तो ई आम आदमी … ?
ई नए साल में ? रामखेलावन ने जीरो आवर में प्रश्न कर दिया , अब तो जबाव देना ही था .
सभीलोग अपने ढंग से इसे मनाने की योजना बनाते है .
जैसे ?
जैसे कोई पिकनिक – स्थल पर पीने – खाने के बारे तो कोई बीबी , बाल – बच्चों के साथ कोई डैम , जलप्रपात , झील या नदी – सागर के तट पर तो कोई पांच – तीन सितारे होटल में …
जरा ठहरिये , हुजूर ! इन सभी में तो बहुत खर्च होता है . देश के उन करोड़ों लोगों जिनके के पास पैसे नहीं होते ? वे नया साल कैसे मनाते हैं ?
वे भी कुछ खट्टा – मीठा बनाकर घर पर ही मना लेते हैं . अंग्रेज रस्म छोड़ के गये हैं , उसे तो मनाना ही पड़ेगा चाहे हंसकर मनाओ या रोकर .
रामखेलावन ! देश के कुछ लोग महंगाई , गरीबी व अभाव से इतने ग्रस्त व त्रस्त हैं कि उनकी समझ में क्या नया साल – क्या पुराना साल में – कोई फर्क नहीं पड़ता . सच पूछो तो यह अंगरेजी साल का पहला दिन होता है . जो निशक्त हैं वे मिलते हैं तो परम्परागत हैप्पी – हैपी कर लेते हैं . वैसे हमारा नया साल तो चैत महीने के नवरात्र के प्रथम दिन से प्रारंभ हो जाता है . उस दिन की याद कितनों को रहती है – आकलन का विषय है.
हुजूर ! होटल में जाना है पहली बार मुझे . कुछ बताते क्या होता है ताकि सतर्क होकर चलते पूरी तैयारी के साथ .
मैं प्रवचन की मुद्रा में आ गया . मेरा दिल गार्डन – गार्डन हो गया ओर उसमे रंग – विरंगे फूल खिल गये.
एक सधे संत की तरह आँखें बंद कर ली – गुरु को याद किया और शुरू हो गया.
एक बड़ा सा हॉल – सैकड़ो टेबुल लगे हुए – सजे – सजाये – ग्लास – जग रखे हुए – मध्य में गुलदस्ते – फूलों से सजे हुए . सामने एक सुसज्जित मंच – मखमली कालीन उसके ऊपर – चारों तरफ रंग – विरंगे गुब्बारे , फूल – पत्तियाँ , धवल परिधानों में बैरों को टोलियाँ ईर्द – गिर्द चक्कर काटते हुए … ३१ दिसंबर की रात . नया साल आने में तीन घंटे विलम्ब – बेसब्री लोगों में जैसे बिलम्ब से चलनेवाली कोई ट्रेन का इन्तजार ठिठुरती ठण्ड में कर रहे हों .
तभी स्टेज पर मानो स्वर्ग से अप्सराएं उर्वशी , मेनका जैसी उतरती हैं – प्रकाश की मधिम रोशनी में – थिरकती हैं – नाचती – गाती हैं – मन को लुभाती हैं – वाह ! वाह ! की आवाज गूंजती है. टेबुल पर शराब और कबाब और स्टेज पर शबाब . मौज – मस्ती का ऐसा आलम की मत पूछो ! बूढ़े भी अपने को जवान समझने लगे अपने आपको . जैसे इंद्र का दरवार लगा हो – धरती पर नहीं जैसे स्वर्ग में जश्न का दौर हो .
यहाँ पर शिरकत करनेवाले साल – साल भर बेसब्री से इन्तजार करते हैं और यहाँ का लुत्फ़ उठाने के लिए महीनों पहले से एडवांस बुकिंग करानी पड़ती है. हजारों रुपये ढीले करने पड़ते हैं सो अलग.
देशी – विदेशी व्यंजन एवं पेय पदार्थ की व्यवस्था रहती है. नामी – गरामी आर्केस्ट्रा पार्टियां – पार्टी को संगीतमय कर देती है. संगीत की मादक धुनें बजनी बारह बजते ही शुरू हो जाती है . फिर नर्तकियों का जलवा प्रारंभ हो जाता है, दम मारो दम … मिट जाए गम से लेकर ओ डार्लिंग तेरे लिए जैसों गानों से पूरा माहौल रंगीन हो जाता है.
स्टेज पर नर्तकियो का जलवा अपनी जवानी पर आ जाता है. एक के बाद एक ड्रेस खुलते जाते हैं – लोगो का ध्यान केन्द्रित हो जाती है कि अब क्या होगा – आख़री परिधान के खुलने का लोग उचक – उचक कर बेसब्री से इन्तजार करते हैं लेकिन … ऐसा नहीं होता – विक्नी तक आकर रूक जाती है .
फिर …
फिर क्या ? हुजूर !
फिर नर्तकी अपनी लाल दुपट्टा हवा में उछाल कर दर्शकों के बीच जोर से एक ही झटके में फेंक देती है.
फिर ? रामखेलावन पूछ बैठा .
फिर दर्शकों में होड़ लग जाती है इसे लूटने में .
ऐसा क्यों ? हुजूर !
जिसके हाथ आयी दुपट्टा , वो नर्तकी उसकी हो गयी उस रात की .
वह भाग्यशाली जैकपॉट ( एक लाख रुपये के ईनाम ) के साथ हनीमून मनाने शुएट में चल देता है .
और बाकी दर्शक ?
उनकी तो बात ही मत पूछिये – अपने भाग्य को कोसता हुआ खरामा – खरामा पिछले दरवाजे से निकल जाते हैं – उनके कानों में महज गूंजती रहती है :
“ होठों को छू लो तुम , मेरा गीत अमर कर दो ,
बन जायो मीत मेरे , मेरी प्रीत अमर कर दो ”
हुजूर ! आपने तो कल्पनालोक का सैर मुझे मिनटों में करवा दिया , साकार कब होगा ?
धीरज रखो , शाम ढलते ही ‘ चल शुरू हो जा ’ की तर्ज पर वो दिली ख्वाहिस भी पूरी हो जायेगी , लेकिन खुदा के रहमो करम से वो लाल दुपट्टा तुम्हारे हाथ लग गयी तो ?
जैकपॉट तो मैं ले लूँगा और लाल दुपट्टा आपके हवाले कर दूंगा – मजे से हनीमून आप …
रामखेलावन बड़ी चालाकी से मुझे टोपी पहना गया – गुरु गुड़ और चेला चीनी हो गया |
नववर्ष की शुभ कामनाओं के साथ !
लेखक : दुर्गा प्रसाद , धनबाद – ८२८१०९
तिथि : ३१ दिसंबर २०१३ , दिन : मंगलवार |
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