यह सच है कि ज़िन्दगी खुशियां देती है परंतु यह तय नहीं होता कि वह खुशी कब तक बनी रहेगी। कभी-कभी यह खुशियां पानी के बुलबुले की तरह आती है, पल भर में ख़त्म होने को। ठिक उसी तरह जिस तरह मेरी भी खुशियां कुछ ही पल की कहानी थी।
मेरी आँखें नम थी, अयान भी गुमसुम बैठा था। यह दिसंबर की आखिरी शाम थी, हमारी आखिरी मुलाकात भी। कृष्ण मंदिर के ठीक सामने, हम उसी पेड़ की छाँव में बैठे थे जहां से मौसम के फ़रीशतो से राबता रखना आसान था। यहां प्रकृति की खुबसूरत नेमते दिखाई पड़ती हैं और खा़मोश हवायें भी मल्हार सी सुनाई देती है, शायद इसीलिए हमने अपनी तमाम मुलाकातें यहां लिखी थी।
मुझे अयान के साथ हर शाम यहां बैठ कर ढलते सूरज का कभी लाल कभी सुनहरा नज़र आना बहुत लुभाता था। यह और बात है कि आज पिघलते सूरज की लाली फीकी पड़ी थी, आसमान बेरंग प्रतीत हो रहा था, पंछियों की चहचहाहट आज कानों तक नहीं पहुंच पाई थी, मंदिर की घंटियों का शोर भी हार चुका था।
आज सब कुछ ठहर सा गया था। इस ठहरे हुए मँज़र में बाकी इन दो दिलों की टीस ही थी जिसे यह दो दिल ही महसूस कर सकते थे।
ये वही दो दिल थे जिनके एहसास समाज की रूढ़िवादी के आगे मायने नहीं रखते थे।
मैंने मन में उस वक़्त की तस्वीर बनाई जब अयान मंदिरों में झुक जाया करता था, मैं अज़ान सुन सिर पर दुपट्टा लिया करती थी। मेरा हिन्दू या उसका मुस्लिम होना मायने नहीं रखता था। हम इंसान हैं और हमने प्यार किया था। हमारे लिए खुदा एक हो चला था पर हम एक ना हो सके (सिर्फ उनकी खुशी के लिए जिन्होंने हमे जन्म दिया।)
अंधेरा होने को था, सर्द हवायें तैरने लगी थी। मैं लौटने को उठ खड़ी हुई, उसने मेरा हाथ थाम कर रोक लिया। यह आखिरी स्पर्श था।
अयान ने कहा, “कल नये साल का पहला दिन है। नये साल के साथ अपनी ज़िन्दगी की नई शुरुआत करना, मुझे भूल जाना। नया साल और नई जिंदगी मुबारक।”
मैंने कहा, “नहीं भूल सकती, हर सुबह का आगाज़ तुम्हारी याद से होगा।”
अयान(मुस्कुरा कर) – “कितना याद करोगी मुझे?”
मैंने उसकी आँखों में देखा, रूख्सार पर फिसलते मेरे अश्कों के एक बूँद ने उसके सवाल का जवाब कुछ इस तरह दिया-
“तुम बिन कैसा होगा साल,
चलो सुनो इस दिल का हाल।
बाज़हिर सर्द हवायें होंगी जो जनवरी तक,
मैं काँपते ठंडे हाथों से तुझे लिखुँगी फरवरी तक।
फिर मार्च की तपती धूप में, मेरी ज़ुल्फ की ठंडक देने को,
तुझे ढुँढुंगी तब तक जब तक अप्रैल होगा जाने को।
मैं मई की चढ़ती दोपहरी में छाँव सा तुझे तलाशुंगी,
और जून की पहली बारिश में गज़ल कोई तराशुंगी।
जूलाई की सौंधी-सौंधी खुशबू, भीगी-भीगी वो ज़मीं,
आँखे नम कर जाएगी अगस्त के मौसम की नमी।
फिर याद बहुत तुम आओगे, सेप्टेंबर के आखिरी बौछारों में,
अक्टूबर कहां मेहरबान होगा, फिज़ा मिलेगी बहारों में।
बेरहमी सर्द-ए-नवंबर से दिसंबर तक कहुँ हर्फ़ में,
मैं सुर्ख लज़रते लफ्ज़ों से तेरा नाम लिखुँगी बर्फ़ में।
यूँ ही शाम मेरी आएगी, यूँ ही दिन ढ़ल जाएगा,
तुझे ही जीते, सोचते, लिखते हर साल गुज़र मेरा जाएगा।”
अयान ने एक लंबी साँस ली। वह कुछ कहना चाहता था, मगर सारे शब्द हलक पर अटक कर रह गए थे। वह कुछ कह पाया तो सिर्फ मेरा नाम(शायद यह भी आखिरी बार), “श्रुति”
वह अगले ही पल रोने वाला था।
चाँद निकल चुका था। मैंने अपने कदम पीछे लिए और लौटने लगी। मैंने पलट कर नही देखा। मगर ऊपर आसमान में देख ये महसूस किया कि अयान मेरे साथ चल रहा था(चाँद बन कर।) खूबसूरत मुस्कुराता चाँद।
###