• Home
  • About Us
  • Contact Us
  • FAQ
  • Testimonials

Your Story Club

Read, Write & Publish Short Stories

  • Read All
  • Editor’s Choice
  • Story Archive
  • Discussion
You are here: Home / Hindi / The Dilemma

The Dilemma

Published by Durga Prasad in category Hindi | Hindi Story | Love and Romance with tag alcohol | husband | sweet | train

eyes-woman

Hindi Love Short Story – The Dilemma
Photo credit: xenia from morguefile.com

मैं तुम्हारा चेहरा कभी भूल नहीं सकता. उस चेहरे के बीच तुम्हारी दो बड़ी-बड़ी मनमोहक आँखें – मेरी ओर अपलक घूरती हुईं. मेरी मनोदशा को झकझोरकर रख दी. कोलफील्ड एक्सप्रेस – मैं सीट पर आराम से बैठा हुआ था ओर तुम विवश, लाचार मेरे सामने ही खडी थी. तुम्हारी गोद में एक नन्हा सा – प्यारा सा बच्चा था. एक दूसरा बच्चा जो तुम्हारे दाहिने हाथ को पकड़कर मुँह लटकाए खड़ा था. उस दिन भीड़ इतनी थी कि कहीं तील रखने की भी जगह नहीं थी. मेरे मन का इंसान मुझे बार-बार कोस रहा था कि “तुम आराम फरमा रहे हो ओर एक महिला दो-दो बच्चों के साथ तुम्हारे सामने बेबस खडी है. वह एकटक आशाभरी निगाहों से तुम्हें देख रही है. इतने कठोर मत बनो. उठो और उसे बैठने दो. तुम अकेले हो. जवान हो. क्या इंसानियत के नाते इतना भी तुम नहीं कर सकते ? तो लानत है !”

गाड़ी काफी रफ़्तार में थी. गोद का बच्चा उससे नहीं सम्हल रहा था. मैंने उठकर उसकी गोद से बच्चा गिरने ही वाला था कि पकड़ लिया और उस महिला को अपनी सीट पर बैठने के लिए संकेत किया.  महिला बहुत समझदार थी. उसने अपनी एक जांघ को दूसरी जांघ पर चढ़ा ली. थोड़ी सी जगह बनाई, दूसरे बच्चे को झटसे अपने बगल में बैठा लिया. दूसरे यात्री जो घंटों से आस-पास सीट की टोह में खड़े थे – हाथ मलते ही रह गये. यह सब इतना जल्द हो गया कि किसी को सोचने – समझने का भी मौका नहीं मिला.

मेरी गोद का बच्चा महज सात- आठ महीने का होगा . मेरी गोद में आते के साथ मेरी तरफ मुखातिब हुआ – रोनी सूरत बनानी शुरू कर दी. – मुँह बिचकाया – लगा कि अब रो पड़ेगा कि तब . मैं पहले से ही अनुमान लगा लिया था कि जब बच्चा अनजान आदमी की गोद में अपने को देखता है तो अपनी माँ को खोजता है. न मिलने पर रो पड़ता है.  बच्चा साक्षात ईश्वर का रूप होता है . वह मन की बात जान जाता है. मेरे भी छोटे-छोटे बच्चे होने से मैं बच्चों के स्वभाव से भली-भांति परिचित था. मैं तुरंत भीड़ से निकल कर खुली जगह में आ गया . उसे पुचकारा – दुलारा . सर के बालों को प्यार से सहलाना शुरू कर दिया . उसकी पंखुड़ी सी कोमल-कोमल आँखों के ईर्द -गिर्द आँसूओं की बूँदें जो बिखर गयी थीं ,उन्हें आहिस्ता- आहिस्ता रूमाल से पोछा – साथ ही साथ मुखारविंद को भी साफ़ कर दिया , खिड़की से उसे बाहर का दृश्य भी दिखाते रहा , तुतली जुबान में उससे ढेर सारी बातें कीं. वह देखो, चिड़ियाँ उड़ रही हैं – गाय , बैल, वो देखो कबूतर का झूंड , धान का हरा- भरा खेत – धान से चावल बनता है . जानते हो ? माँ भात बनाती है चावल से – हम भात खाते हैं – हमारा पेट भरता है – हम तब काम करने जाते हैं.

किसी यात्री से रहा नहीं गया मेरी उल-जलूल बातों को सुन कर पेट में गैस होने लगा . प्रतिक्रिया व्यक्त कर दी, “ ओ , मास्टरजी ! इतने छोटे बच्चे को जरूरत से कुछ ज्यादा ही पढ़ा रहें हैं ? “

“ इसकी माँ के पास ले जाइये . माँ का दूध पीएगा – चुप हो जायेगा.” –

एक बंगाली महिला दो बचों के साथ विंडो सीट पर बैठी थी . वह भी चुटकी लेने से बाज नहीं आयी , “ दादा, कोई लोरी गाकर सुना दीजिये. बच्चा सो जायेगा . “

मैं भी उसके व्यंग्य को भांप लिया था . अतः माकूल जबाव देना जरूरी था.

“ दीदी ! कौन सी सुनाऊँ ? यह तो बंगाल है – गाड़ी बर्दमान पार कर रही है – ज्यादातर आपलोग बंगाली ही हैं . हिन्दी में सुनाऊँ या बंगला में ? “

“ बंगला में “ अनायास ही उसके मुख से निकल पड़ा.

फिर क्या था मुझे एक लोरी बचपन की याद थी जो मेरी दादी मुझे सुनाया करती थी. मैंने माँ काली का स्मरण किया कि मेरी लाज रखना माँ ओर बच्चे को कंधे से थपथपाकर साट लिया. लोरी गाना शुरू कर दी,

” नूनू घूमायलो, चोख जुड़ायलो , मृगी येलो देशे , बुलबुली ते धान खेयेंछे , खाजना दीबो किसे ? “

मुझमें पता नहीं कौन सी दैवी शक्ति समा गयी थी कि मैं सस्वर इसे गाया तो सभी यात्री सम्मोहन की दुनिया में चले गये . उस महिला को तो काठ मार गया . मैं गाते जाते था और बच्चे को लय-सुर के साथ थपथपाते जाता था . यह नियति की प्रकृति है कि निर्मल मन से कोई प्रार्थना की जाय तो वह पूरी होती है. ऐसा ही हुआ .

“ दादा ! खमा करून, आप से हमने मजाक किया था. आपने इतना बढ़िया गाया – मेरी अंतरात्मा को जगा दिया , ”

“ कोई बात नहीं , कभी-कभी जीवन में ऐसी भूल हो जाती है. “ मैंने अपनी बात रख दी.

तबतक बच्चे की माँ भी आ गयी . सोये हुए बच्चे को मेरे कंधे से फूल की तरह आहिस्ते से लेकर अपने सीने से सटा ली . शायद शिशु को माँ के स्पर्श का एहसास हो गया था. वह चुलबुलाने लगा. माँ तो माँ ही होती है . बच्चे के आगे सब मिथ्या है उसके लिए. वह वहीं खडी- खडी मासूम – अपने जिगर के टुकड़े को स्तन – पान कराने लगी. जब फारिग हुयी तो उसने सारी बातें बताईं कि किस प्रकार मैंने अपनी सीट छोड़कर इतनी भीड़ में उसे ससम्मान बिठाया और उसके दूधमुहें बच्चे को कितना प्यार – दुलार के साथ उसकी गोद से गिरते हुए पकड़ लिया , यही नहीं बच्चा गर्मी से परेसान था – चुप नहीं हो रहा था – गोद में लेकर खुली जगह में ले गया – घुमाया – पुचकारा – दुलारा और लोरी गा-गा कर सुला भी दिया . इसका प्रतिदान कोई है क्या ? “

उस महिला की तरफ मुखातिब होकर बोली,” ये मेरे न तो पति हैं न ही कोई सगे- संबंधी , लेकिन इन्होंने जो आज मेरी मदद की है , वह उससे भी बढ़कर है .”

तबतक आसनसोल आ चूका था . भीड़ छंट चुकी थी. वह बच्चे को दूध पीला चुकी थी और बच्चा भी इत्मिनान से सो चूका था. संभ्रांत महिला ने मेरा हाथ अपने हाथ से अपनों सा कसकर पकड़ा और खीचते हुए अपनी सीट के बगल में बैठाई . टिफिन – बॉक्स से पूड़ी व सब्जी निकाली . मैं उसे अपलक निहारता रहा . कुछेक क्षणों में मैं शून्य में चला गया . वह जोर से मुझे एक मुक्का मारी –

“ कहाँ खो गये थे ? चलिए पहले इसे खाइए, तब बात कीजिये. इतनी देर से भूखे – प्यासे हैं . हमने तो कुछ खाया भी और एक आप हैं कि मेरे बच्चे को ही सम्हालते रह गए – वो भी कुछ खाए न पीये  ……… !   चलिए ,”

इतना कहकर उसने मेरे मुहं में पूड़ी व सब्जी का एक कौर जबरन डाल भी दिया. मैं इस अपनापन से इतना अभिभूत हो गया कि मुझे हौश ही नहीं रहा कि कब मैंने सारी पूड़ियाँ चट कर डाली . उसने बोतल का पानी मेरी ओर बढ़ा दिया .

“ पहले पानी पी लीजिये फिर इत्मिनान से बैठकर बातें करते हैं. “

“नहीं , पहले बच्चों को जगह बनाकर लिटा देते हैं, तब पानी पीते हैं. वैसे भी खाना खाने के तुरंत बाद पानी पीना सेहत के लिए ठीक नहीं. “मैंने झट खिड़की की तरफ तौलिये बिछा दिए और दोनों बच्चों को सुला दिया. मैं पानी की बोतल लेकर उसके सामनेवाली सीट पर बैठने जा ही रहा था कि वह मेरा हाथ पकड़कर अपने बगल में खींच कर बैठा ली.

बोलने से बाज नहीं आयी, “ उधर कहाँ बैठने जा रहे थे ? “

यही नहीं, अपने दाहिने पैर के अंगूठे से मेरे बाएं पैर के अंगूठे को इतनी जोर से दबा दी कि मेरी चीख निकल गयी. वह खिलखिलाकर हंसने लगी – उन्मुक्त , निश्छल . मैं तो अवाक रह गया .

“ तुम इधर आ जाओ, मुझे खिड़की तरफ बच्चे के पैरों के पास बैठने दो , मुझे असुबिधा हो रही है बात करने में.”

वह झट मेरी दाहिने ओर बैठ गयी – बिलकुल सटकर.

“ तुमसे बात करने का तो मौका ही नहीं मिला. – मैंने बात शुरू की. बच्चे को जो टाँगे हुए थे , हवा खिला रहे थे – लोरी सुना रहे थे और पता नहीं क्या-क्या बातें कर रहे थे. अब तो फुर्सत की घड़ी है . तो  आप ही शुरू कीजिये , कुछ भी …”

“ अच्छा पहले यह बतलाओ कि आ कहाँ से रही हो और जा कहाँ रही हो? “

“ससुराल से और जा रही हूँ मैके – केंदुआ – करकेंद – धनबाद .”

“वैसा तो कोई खास सामान ….. ?”

“ भाग के जा रहीं हूँ जान बचाके . सामने जो बैठा है न गुमसुम – भाड़े का है – टट्टू . टट्टू समझते हैं ? कलकत्ता में सब — –सबकुछ मिलता है. बाघ का  आँख भी. पैसा और अक्ल होनी चाहिए.”

मैंने विषय को दूसरी ओर मोड़ते हुए सवाल किया,” ससुराल में तो सब कोई होगा जैसे पति ”

.. इतना सुनना था की भड़क उठी,” पति नहीं, पतित बोलिए. रात-रात भर गायब रहता है. घर- परिवार की कोई फिक्र नहीं. यहाँ तक बच्चों का भी नहीं. कहते हैं तुमने ही जना है तो तुम्हीं पालो-पोसो. घर का खाना – पीना अच्छा नहीं लगता – बाहर होटलों का खाना अच्छा लगता है – दोस्त-यारों के साथ , पार्क , क्वालिटी, ग्रैंड आदि , न जाने कितने इनके चारागाह हैं. देर रात तक राह देखते – देखते थक-हार कर सो जाती हूँ – कभी खाए तो कभी बिन खाए. अब तो आदत सी पड़ गयी है. आये या न आये कोई अंतर नहीं पड़ता. सब कुछ नोर्मल सा लगता है. ”

“ फिर भागी क्यों ? “ – मैंने प्रश्न किया. उसे इस सवाल की उम्मीद नहीं थी .

चेहरा तमतमा उठा . गुस्से में बोली , “ जानना चाहते हैं, सुनेंगे तो ?”

“ मेरा कलेजा बहुत मजबूत है. कुछ नहीं होगा , तुम आगे बोलो. “

“ कल रात को वे ,मेरा पति करीबन ग्यारह बजे अपने चार- पांच दोस्तों के साथ घर पर आ धमका. फ्रिज से शराब की बोतल निकाली. मुझे जबरन उठाया और किचेन से गिलास , वाटर बोतल लाने को कहा. मैंने साफ़ इंकार कर दिया और चेतवानी के लहजे में बोली,” यह घर एक इज्जतदार फेमिली का है. कोई होटल का बार नहीं. अभी तुरंत अपने दोस्तों की महफ़िल उठाकर जहाँ जी चाहे ले जाओ, वरना … “ वरना क्या ? “ वरना क्या ,चीखूंगी- चिलाऊंगी , सारे मोहल्ले को जमा करूंगी और आप की हरकतों से अवगत करवाऊंगी .”

दोस्तों तक मेरी आवाज़ पहुँच रही थी. कुछ तो सहम गये थे और जाने को उद्दत हुए , कुछ जम कर बैठे हुए थे यह जानने के लिए कि आगे क्या होता है . मैंने आज किसी भी परिस्थिति का सामना करने का मन बना लिया था . चाहे जो भी हो, उनका गुस्सा सातवें आसमान पर चढ़ चूका था . वे मेरे पर टूट पड़े . धकलते हुए दोस्तों के पास ले आये . कड़ककर बोले, “ जो बोलता हूँ ध्यान से सुनो, “ सभी ग्लासों में शराब डालो – पानी डालो – पैग बनाओ वरना वो नतीजा करूँगा जिस के बारे में तुम कल्पना भी नहीं कर सकती. चिल्लाने- चीखने से भी यहाँ कोई नहीं आनेवाला , लो सीढ़ी का दरवाजा भी बंद कर देता हूँ , मोहल्लेवालों को बुला लेना . “

वे जैसे ही दरवाजा बंद करने के लिए मुड़े , मैंने पुरी ताक़त से उन्हें पीछे से धकेल दिया . चीत्कार करते हुए वे गिर पड़े और मैं सीढियों से उतरते हुए सास के कमरे में चली गयी और भीतर से दरवाजा बंद कर दी. सास घोर नींद में थी, लेकिन मजबूरन मुझे उसे उठाना पड़ा. मेरे अस्त-व्यस्त कपड़ों को तथा मेरे चेहरे की रंगत को देखकर वह भांप  गयी कि जरूर कुछ अनहोनी हुयी है बहु के साथ. मैंने सास को सब कुछ सही- सही बता दिया.”

“ ऐसे बेहूदों को सबक सिखाना जरूरी है चाहे वह मेरा बेटा ही क्यों न हो. “ वह जख्मी शेर की तरह यहाँ भी आ सकता है. मेरा तो ध्यान बच्चों पर लगा हुआ था. सासु जी मेरे मन की बात भांप गयी . उसने गार्ड को आवाज़ लगाई. गार्ड को भी आभास हो गया था. मेरा पति और उसके दोस्त सभी कहीं दूसरी जगह चल दिए थे. घर में तूफान उठा था . अब श्मशान सी शांति थी. गार्ड ने आकर सारी बातों को परत दर परत खोल कर रख दिया.”

“सब अमलवा का करतूत है. घर में रंडीखाना खोल कर रखा है. वहीं गया होगा सब . मैं तो कहती हूँ कल कोलफील्ड से मैके चली जाओ.” – मेरी सासु माँ ने सुझाव दिया .

मरता क्या न करता ! बस भागी- भागी चली आयी. अब मैं लौट के नहीं जाउंगी. मेरा पति बड़ा जल्लाद है, मारेगा तो नहीं , लेकिन ……. कोई नतीजा बाकी नहीं छोड़ा है. शराब पीकर मुझसे पशुवत व्यवहार करता है. और फिर मेरे समक्ष सिगरेट पर सिगरेट पीते जाता है . सारा कमरा सिगरेट की धुंआ से भर जाता है. दम घुटने लगता है. यही नहीं —-  नशे में इतना धुत्त रहता है कि मुझे हमेशा डर बना रहता है कि कहीं उल्टी – सीधी न कर बैठे. इसलिए मुहँ नहीं लगाती. बच्चों की खातिर सब कुच्छ सह लेती हूँ नहीं तो ….. ?  एक औरत पुरुष के आगे कितना लाचार और विवश होता है ,इसे बयाँ नहीं किया जा सकता, जिस पर बीतती है , वही समझ सकती है.”

मैंने बीच में सवाल किया , “ सुना है औरतें तो अपने बिगडेल मर्दों को सुधार कर रख देती है, फिर तुमने … ?”

“यह सब थोथी दलील है. औरत का कोई साथ नहीं देता , सभी मर्दों का पक्ष लेते हैं . सारा दोष – कसूर औरतों पर ही मढ़ दिया जाता है . मर्द छुट्टा सांड की तरह बेखौफ घूमता- फिरता है. वह चाहे दस-बीस औरतों के साथ सोये, कोई गुनाह नहीं . लेकिन औरत किसी से हंसकर दो मिनट भी बात करे तो उसे बदचलन व चरित्रहीन की संज्ञा दी जाती है. उसे हमेशा शक की नजर से देखा जाता है. उस पर बेवजह जुल्म ढाए जाते हैं.  कभी आप लोंगो ने सोचा है कि समाज पुरषों के समान औरतों को अधिकार क्यों नहीं देता ? इसलिए कि पुरुषों का वर्चस्व ख़त्म हो जायेगा. एक औरत घर का सारा काम-काज करती है , बच्चे जनती है, उन्हें पालती – पोसती है , वक़्त- बेवक्त पति का … क्या कुछ नहीं करती घर-परिवार के लिए और उसे क्या मिलता है बदले में ? कभी आपने सोचा है इस विषय पर ? “

“मैं सौ बोलता न एक चुप “. की तरह सुनता रहा. मेरे पास वकालत के लिए कोई ठोस आधार नहीं था. मेरे मन में उत्सुकता जगी कि इतनी भोली – भाली महिला एक जल्लाद के हाथ में कैसे पड़ गयी.

मैंने सवाल किया , “ क्या तुम्हारे माता-पिता ने शादी करने से पहले वर-घर की जांच – पड़ताल नहीं कर ली थी ? “

“यही तो रोना है. मामाजी बीच में थे. उन्होंने बतलाया “ एकलौता लड़का है सेठ जी का, अपना आलिशान मकान है हार्ट ऑफ़ दी सिटी , अपनी फ़ूड – ग्रेन की होलसेल की दूकान है, महीने में लाखों का कारोवार है. कोई खास डिमांड भी नहीं है. दस पेटी ( दस लाख रूपये ) से ही शादी नक्की हो जायेगी. घर बैठे ही पिता जी को मनलायक वर-घर मिल रहा था. लेखापाल के पद से सेवानिवृत हुए थे. पी. एफ. एवं ग्रेच्यूटी के रूपये मिले थे. वे मामाजी की बातों पर यकीन कर लिए और शादी के लिए “ हाँ “ कर दी . दोनों तरफ से देखा-सुनी हुयी. सुन्दर ऊपर से मुझे बड़ा ही नेक व भला लगा. मैंने कोई आपत्ति नहीं जताई. उधर से सहमति मिल जाने के बाद जैसा कि होता है ऐसे मामलों में “झट मंगनी पट विवाह” पन्दरह दिनों में ही संपन्न हो गया.’’

“जो बोलो, ढ़िलाई हुयी है. जरूरत से ज्यादा ही भरोसा किया गया मामाजी व मामाजी की बातों पर. एक लडकी को माँ बाप जन्म देते हैं , पालते-पोसते हैं व समुचित शिक्षा – दीक्षा देते हैं , उनका दावित्य बन जाता है कि शादी करने से पहले खुद पूरी तरह जांच-पड़ताल कर ले. तुम मानो या न मानो यहाँ पर बहुत बड़ी चूक हुयी है. धन- दौलत तो बाद की बात है , कम से कम लड़के के बारे में पूरी तरह छान-बीन कर लेनी चाहिए थी. दो-चार महीने बाद ही शादी होती तो कौन सा आसमान टूटकर गिर पड़ता सर पर ?”

“ बहुत बड़ी चूक हो गयी. इसी सदमे में माता –पिता भी असमय ही चल बसे. बेटी का कष्ट सह न सके.’’

‘’मेरी सलाह है कि अब इन बातों को भूला दिया जाय. याद करने से व्यर्थ की पीड़ा होगी.”

स्वेता निष्प्राण सी मेरे कन्धों पर निढ़ाल हो गयी . मैं भी मौन हो गया. आसनसोल से गाड़ी धीमी गति से चल रही थी . धनबाद आने में देर थी. बीच में चार- पांच ठहराव थे. डब्बा धीरे-धीरे खाली हो रहा था. मैं थोडा हाथ-पैर सीधा करने के ख्याल से उठा ही था कि उसने हाथ खींच कर बिठा लिया .

बोली, “ पूरी बात सुनकर ही कहीं जायेंगे.”

मैं थोड़ा हटकर बैठा था कि भड़क उठी , “ मैं खा नहीं जाउंगी, सटकर बैठिये. तब मेरी बातें साफ़-साफ़ सुनियेगा. तो मैं क्या बोल रही थी ? “

“ कभी आपने सोचा है इस विषय पर ? “ – मैंने याद दिलाया .

“सोहाग रात किसको कहते हैं मैं नहीं जानती. बाबू साहब,  मेरा पति कब जो आधी रात को चुपके से निकल भागा , मैं नहीं जानती. मैं थकी – हारी थी. इन्तजार करते-करते सो गई. सवेरा जब हुआ तो देखा मरियल टट्टू सा सोया हुआ है – बेखबर. शांति ( दाई ) से पता चला कि इनकी कोई रखैल है – वहीं चले गए थे. इनको घर का खाना पसंद नहीं. रोज वहीं रात बिताते हैं . कभी –कभार जब दूकान बंद मिलती है तो —– समझे ?”

मैंने हाँ में सर हिलाया और बोला , “ इतना बुद्धू नहीं हूँ , जितना तुम… “

“ रहने दीजिये , ज्यादा शेखी मत बघारिये. तो मैंने निश्चय कर लिया है कि अब मैं लौट के कलकत्ता नहीं जाउंगी – किसी भी अवस्था में नहीं – चाहे मुझे … चाहे मुझे इसके लिए फिर से जिन्दगी क्यों न शुरू करनी पड़े . “

” अभी तो तुम पच्चीस की ही हो, इतनी बड़ी जिंदगी पड़ी है , उसे काटना ,वो भी अकेले, इतना सहज प्रतीत नहीं होता जितना तुम समझती हो . मैं तो कहूँगा..”

बीच में ही उबल पड़ी , “ ये सब बेकार की बातें मुझे मत बोलिए. औरत जब एक बार जो ठान लेती है , वह पूरा कर के ही दम लेती है. मैंने भी ठान लिया है कि बिना पति का जीवन बिताऊंगी और कुछ बन के दिखाऊँगी – अपने बच्चों को भी आदमी बनाऊँगी. क्या उम्मीद करते हैं कि वैसे माहौल में मेरे बच्चे आदमी बन पाएंगे ? कभी नहीं , कदापि नहीं. दावे के साथ कहती हूँ  फिर से पढूंगी-लिखूंगी. क्या आप नहीं चाहते हैं कि मैं कुछ बन के दिखाऊँ ?”

“ जरूर, मैं चाहूँगा कि तुम एक मिसाल कायम करो. इसमें मेरा तुम्हें फूल सपोर्ट होगा.” – मैंने आश्वस्त किया तो उसका चेहरा खिल उठा.

तबतक धनबाद स्टेसन भी आ गया. ट्रेन लेट थी. हम ग्यारह बजे रात को पहुंचे. बड़े बच्चे को बहादूर ने गोद में उठा लिया. छोटे को मैंने उठाना चाहा  तो उसने लपक कर अपनी गोद में उठा कर कंधे से साट लिया. मेरी गाड़ी आ गई थी. ड्राईवर मुख्य द्वार पर ही मिल गया.

“ चलो पीछे- पीछे. अपनी गाड़ी है , तुम्हें पहले केंदुआ ड्रॉप कर देता हूँ. रात भी काफी हो गयी है. बच्चों को लेकर ….. “

बहादूर आगे की सीट में बैठ गया. मैं उसके साथ पिछली सीट पर. उसने अपनी सधी उंगुलियों से मेरे चेहरे को अपनी ओर मोड़ते हुए प्रश्न किया,

“ क्या मेरा नाम नहीं पूछेंगे ? “

“ तुमने जितनी बातें बतलायीं, अब भी कुछ जानने को बाकी रह गया क्या ? “

” आप अच्छा मजाक कर लेते हैं. खैर जाने दीजिये. मेरा नाम है श्वेता सेठिया , उम्र पच्चीस वर्ष, लम्बाई पांच फीट दो इंच, रंग फेयर, चेहरा गोल , आकर्षक … “

“अब बस भी करोगी कि मुझे …”

“ अशोक मिस्टान भण्डार के पास रोक दीजिये, घर पास ही गली में है , आराम से चली जाऊंगी. चिंता की कोई बात नहीं है. जरूर आना है आप को दसमी के दिन ठीक दस बजे शुबह यहीं पर. मैं इन्तजार करूंगी. आप से मैं … मेनी-मेनी थैंक्स . फिर हम मिलेंगे महज पांच दिन बाद. “

मैं बोझिल मन से चल दिया. घर जब पहुंचा तो रात के बारह से ऊपर ही बज रहा था.

सफ़र की दोस्ती क्षणिक होती है. सफ़र ख़त्म फिर कौन किसको याद रखता है , लेकिन हमारे साथ वो बात नहीं हुयी. दसमी के दिन समय एवं स्थान पर मैं पहुँच गया. श्वेता ने दूर से ही मुझको देख लिया था. बेसब्री से इन्तजार कर रही थी. दौड़ पड़ी. मेरे कन्धों को झकझोरती हुयी आदतन उबल पड़ी,

“ इतनी देर क्यों कर दी ? “

” पांच- दस मिनट ही तो बिलम्ब हुआ है. जीवन भर कैसे इन्तजार ….. “

“ उस वक़्त समझ लूंगी. चलिए कहीं एकांत में बैठते हैं. ढेर सारी बातें करनी है.” –

उसने हाथ खींचते हुए दायें ओर से बायीं ओर खींच लाई. हमलोग होस्ट ( एक होटल ) में चले आये. कोने में बैठ गये. वेटर को नन,पनीर –बटर – मसाला ओर ताड़का का ऑर्डर कर दिया. श्वेता का चेहरा गिरा हुआ था. मुझे लगा घर में कुछ कहा-सूनी हुयी होगी.

मैंने ही बात शुरू की, “ सीरियस लग रही हो , कोई प्रॉब्लम ? “

” मैं कल जोधपुर जा रही हूँ. यहाँ रहना मुनासिब नहीं, भैया- भाभी नहीं चाहते कि मैं ससुराल से भाग कर , पति छोड़कर यहाँ स्थाईरूप से रहूँ. माँ- बाप जिन्दा रहते तो बात कुछ और होती, लेकिन उनके गुजरे कई साल हो गये. ओर आप तो जानते ही हैं कि विवाहित लडकी के माँ-बाप के गुजर जाने के बाद उसके मैके में क्या बच जाता है. उसकी कितनी पूछ होती है ? मेरी बड़ी बहन और जीजा जी रहते हैं जोधपुर में . जीजा जी बैंक में मैनेजर हैं. दीदी की एक लडकी है. प्रायः पांच साल की होगी.  दीदी मुझे एवं मेरे बच्चों को बेहद प्यार करती है. वहां मेरा गुजारा एवं बच्चों का पालन- पोषण भली- भांति हो जायेगा . इसलिए वहीं रहने का मन बना लिया है. दीदी से बात हो गई है. वह जल्द बुला रही है.  “

“इससे बेहतर कुछ हो ही नहीं सकता. तुम्हारा बी.ए. ऑनर्स हिन्दी है , मेरी सलाह है किसी बी. एड. कालेज में दाखिला ले लो. एक वर्ष का कोर्स रहता है. जल्द ही पूरा हो जायेगा . टीचर बनकर अपने पैरों पर खडी हो सकती हो. अपना जीवन तो कट ही जायेगा , बच्चों को भी आदमी बना सकती हो.  ‘’ – मैंने अपना मंतव्य दिया.

हमने साथ –साथ खाना खाया. उसकी बड़ी-बड़ी आँखें मेरी बातों पर कम मेरे चेहरे पर ज्यादा टिकी हुयी थीं.  हौंठ कुछ कहने को बेचैन थे. “ कुछ कहना चाहती हो तो निसंकोंच कह डालो , मन में कोई बोझ ले कर मुझसे रुखसत मत लो. “

“आप मुझे भूल तो नहीं जायेंगे ?  मुझे हमेशा प्रोत्साहित करते रहेंगे न ?  प्रोमिज कीजिये . तब ही मैं शांति से जा पाऊँगी अन्यथा … “ हाथ धोने गया तो मुझसे लिपट कर सुबकने लगी.

“ रो पडूँगा मैं भी , क्या तुम यही चाहती हो ?”

वह समझदार तो थी ही , मेरी बात समझ गयी और अपने आप को काबू में कर ली. हम सीढियों से नीचे उतरे .  दो- दो गर्म- गर्म गुलाब जामुन खाने की बात रखी तो वह बोली,” अब मीठा किस खुशी में ? “

“ जो समझ लो खुशी में या गम में , इतने कम वक़्त में तुम इतनी करीब आकर इतनी दूर जा रही हो , मैं कैसे सहन ….”

हम केंदुआ तक आये .” चेहरा सूज गया है तुम्हारा, चलो धो लो ,अच्छी तरह . ”

अशोक मिठान्न भण्डार में चले आये. दूकानदार पहचानता था , अपने को रोक नहीं सका. बोला,” साहब ! , आप बारह तेरह वर्षों के बाद मेरी दूकान में पधारे  हैं. जब भी आते थे खुद रसमलाई खाते थे और दोस्तों को भी. जाते समय खुद एक भांड पैक करवाते थे और दोस्त के लिए भी. आप को कैसे भूल सकता हूँ. अभी आप कहाँ हैं? साहब ! “

” मैं एक्कासी में ही ट्रांसफर हो कर कोयला भवन चला गया और वहीं पर हूँ.”

तबतक श्वेता भी आ गयी थी . मेरी बातें गौर से सुन रही थी. “ साहब ! एक गुजारिश है. “

“ बोलो. “

” त्यौहार का वक़्त है और पहली बार मेमसाहेब के साथ मेरी दूकान पर पधारे हैं, आज मेरी तरफ से आपको रसमलाई खा कर जाना होगा”

इतने अपनापन से उसने आग्रह किया कि मुझे ठुकराना मुस्किल हो गया . मैं बतलाना चाहता था कि यह मेरी वाइफ नहीं है, लेकिन श्वेता ने मेरे हाथ मे चिकौटी काटकर इशारे से मना कर दिया . पूर्ब की तरह इस बार भी मैंने दस-दस रसमलाई भांड में पैक करवा ली.  श्वेता से रहा नहीं गया ,पूछ बैठी , “ दो भांड ! इतना क्या होगा ? “

मैंने उसी लहजे में जबाव दिया, “ एक मेरे बच्चों के लिए और दूसरा तुम्हारे. अच्छा बताओ तुमने सच बात बोलने से मना क्यों कर दिया ?”

“  जानना चाहते हैं ? दूकानदार सपत्निक देखकर कितना खुश था , क्या आप सच्ची बात बताकर उसकी खुशी छीनना चाहते थे ?”

मैंने श्वेता की बात को काट नहीं सका. “तुम इतनी दूर तक सोच सकती हो , यह मुझे आज मालूम हुआ. दाद देनी पड़ेगी तुमको व तुम्हारे विचार को.”

हमलोग फ्रेश हो कर बाहर निकले. “ इसे रख लो , कुछ पैसे हैं , बच्चों और अपने लिए कपडे खरीद लेना .”

वह इसके लिए तैयार नहीं थी. मेरी जिद के आगे उसे झुकना पड़ा. मैं ओटो में बैठ गया . वह मेरा हाथ पकड़ी रही तबतक जबतक ओटो ने रफ़्तार न पकड़ ली.  बोझिल क़दमों से घर में प्रवेश किया तो पत्नी ने कहा, “ वो लडकी मिली थी ? “

“ हाँ , मिली थी , न जाते तो पता नहीं क्या कर डालती. साथ –साथ होटल में खाना खाया और छोड़ के आ रहा हूँ. कल रात को जोधपुर जा रही है . अपनी बड़ी बहन के पास. वहीं रहेगी और अपनी एवं अपने बच्चों की जिन्दगी संवारेगी. “ – मैंने संछेप में सारी बातें बता दी.

दो-तीन महीनों तक फ़ोन पर बातें होती रहीं – हम एक दूसरे के संपर्क में बने रहे – दुःख- सुख बांटते रहे. इसके बाद हमारी बात-चीत न हो सकी. अठारह साल हो गये. श्वेता का कोई अता-पता न मिल सका. एक तरह से भूल गये. अपने काम से मुझे जयपुर जाने का अवसर मिला. लंच का समय था. मैं केन्टीन में कुछ खाने के लिए एक किनारे बैठ गया. श्वेता दिखी. मुझे तो पहले यकीं नहीं हुआ. हिम्मत बटोरकर पास गया. श्वेता ही थी.

मैंने ही सवाल किया,” श्वेता तुम, यहाँ ? बिलकुल बदली नहीं हो – वही गोल आकर्षक मुखारविंद, वही बड़ी- बड़ी आँखें , चेहरे पर आत्मविश्वास के भाव …”

“पहले इत्मिनान से बैठिये , फिर बातें करते हैं.”

उसने बतलाया कि वह स्वाति, अपनी बड़ी बहन की बेटी से मिलने पूर्णिमा कालेज आयी है. थर्ड इयर इन्गिनियारिंग में है. जीजा जी का ट्रांसफर चंडीगढ़ हो गया. मेरी ही देख-रेख में है. “कहाँ ठहरे हैं ? “

” स्टेसन के पास एक होटल में ,मैं भी भतीजी के एड्मिसन के लिए आया था. काम हो गया. आज ही लौट जाऊंगा. रात डेढ़ बजे हावड़ा के लिए.  “

“मुझे भी तो आज ही लौटना है, रात बारह बजे ट्रेन है. इतने वर्षों बाद मिले . पूरे अठारह साल बाद . “

“एतराज न हो तो होटल चले “ मैंने प्रस्ताव किया तो वह तैयार हो गयी. हम टेक्सी से जल्द पहुँच गये. हमें नोर्मल होने में वक़्त लग गया.

“ऐसा कोई दिन नहीं कि मैं आप को याद नहीं करती थी. आप के कर्ज से मैं ताजिंदगी उरिन नहीं हो सकती. बी. एड. करने के बाद मेरी नौकरी जम्मू के एक वालिका उच्च विद्यालय में सहायक शिक्षिका के पद पर हो गयी. अकेले थी. वहीं दस-ग्यारह साल बीत गये. तबतक मैंने एम. ए. ( हिन्दी ) भी कर लिया. जोधपुर १०+२ वालिका विद्यालय में वरीय शिक्षिका के पद पर बहाली हो गयी. उसी स्कूल में हूँ. स्कूल केम्पस में ही अपना फ्लेट है.”

“ और लव कुश ? “ मैंने सवाल किया उत्सुक्तावस .

“ मुझे बहुतों ने नाम सुझाया बच्चों का लेकिन मैं ने आपका ही दिया हुआ नाम रखा – लव कुमार एवं कुश कुमार. लव तो आई.आई. टी. खरगपुर में है और कुश जिसे आप ने लौरी गा-गा कर सुनायी थी ट्रेन में . वह कोटा में कोचिंग कर रहा है १२ वीं के बाद. “

“आपकी घर –गृहस्थी का समाचार? “

” ९४ में जब हम मिले थे मेरा बड़ा लड़का श्रीकान्त आई. आई. टी. खड़गपुर में दाखिला लिया था. वह पुणे में एम.एन.सी. में है. रमाकांत हैदराबाद में , शिवाकांत व चंद्रकांत बेंगलोर में. पांचवा थर्ड इयर में है जम्मू में – श्री माता वैष्णव देवी यूनिवर्सिटी में. मैं २००६ में सेवानिवृत हो गया. छोटा-मोटा काम करता रहता हूँ. ९८ में हार्ट अटेक हो गया था . सीवियर अटैक था, लेकिन बच गया. मरने से पहले तुमसे जो मिलना था ! २००२ में बाईपास सर्जरी हुयी. रूबी हाल क्लिनिक में. डॉ. ग्रांट एवं डॉ. मनोज प्रधान ने मेरा बहुत ख्याल रखा. मैं जल्द ही रिकोवर होकर घर खुशी- खुशी लौट गया.  बहुत हिसाब से रहना पड़ता है . लड़के सब हमारा पूरा ख्याल रखते हैं. ८९ में बड़ी लडकी सुमन की शादी हो गयी. दूसरी का २००६ में . दोनों बेटियाँ सुखी और संपन्न हैं अपने – अपने ससुराल में . माँ – बाप के लिए इससे बढ़कर खुशी की बात क्या हो सकती है !  हम गोविंदपुर में अपने घर में रहते हैं. बच्चे सब साल में एक आध बार आ जाते हैं. जो बोलो ,  आज तुममें वो खुलापन देखता हूँ न ही सहजता. तुम्हारा वो पति? “

” उस जल्लाद का नाम भी मत लीजिये. वह तो भगवान् की असीम कृपा थी कि मैं उसके चंगुल से भाग निकली नहीं तो वह मुझे एड्स से संक्रमित करके घुट- घुट कर मरने के लिए छोड़ जाता. भैया-भाभी को पटा लिया और बहाना करके बुलवा लिया केंदुआ . मैं झांसे में आ गई. शुबह पहंची और रात ग्यारह बजे दो दिनों के लिए शक्तिपुंज से कलकत्ता चल दी. सासुजी का स्वर्गवास हो चूका था. बैंक का कर्ज इतना बढ़ गया था कि अच्छी – खासी दूकान नीलम हो चुकी थी . घर की हालत देख कर रोना आ गया. चारों तरफ गंदगी का अम्बार. वह तो विस्तर पर आते के साथ पटा गया . घर में नोकर-चाकर नदारत. मैंने किचन का मुआयना किया तो दाल – चावल के अलावे कुछ नहीं. झाड़ू. बुहारू करने के बाद सब्जी लेने पास की हाट में चली गयी.

वहीं शांति ,मेरी दाई , मिल गयी. उसने जो मुझे बताई वह रौंगटे खड़े कर देनी वाली बात थी. आप सुनेंगें तो काँप उठेंगें. दीदी ! एक पल भी देर मत कीजिये. लौट जाईये . सुन्दर आप को मार देगा. हमने टेक्सी ली और हावड़ा चले आये . उसने बताया कि शीलवा , अमल दा की सीतारामपुर वाली पत्नी ,ने अपने सभी यारों को तोहफे में एड्स दे दिया. जब पता चला तो सबों ने मिलकर शीला और उसके पति, अमल को बड़ी ही बेरहमी से क़त्ल कर दिया. पकडे गये .लंबी सजा हो गई. सभी साथी जेल ही में मर-खप गए . केवल सुन्दर बाबू बचे रह गए . वे दो महीने पहले जेल से बाहर निकले  हैं .  रात में कुछ उल्टी- सीधी तो नहीं किया ? “ कोशिश तो की , लेकिन मैंने झिड़क दिया. “ ” शुक्र है भगवान का कि बच गयी आप. “ मेरा तो हाल बूरा था. हिम्मत बाँध कर जो भी ट्रेन मिली , बैठ गयी. आसनसोल आ गयी . वहां से धनबाद. रात में जोधपुर एक्सप्रेस पकड़ कर घर आ गई.

हफ़्तों लग गए नोर्मल होने में. एक दिन भैया का फोन आया कि सुन्दर इस दुनिया में नहीं रहा. जब मरा तो पास में कोई नहीं था अपना कहने वाला. हमलोग भी नहीं जा सके . मैंने चंडीगढ़ जाने का मन बना लिया . परंपरा अनुसार मांग का सिन्दूर धो डाला गया .  हाथ की चूडियाँ फोड़ डाली गईं . स्त्री के लिए ,वो भी विवाहिता के लिए, कुछ सामाजिक मर्यादाएं होती हैं जिन्हें हर हाल में पालन करना पड़ता है . पति चाहे जितना भी क्रुर क्यों न हो , ऐसी घटनाओं से मन मर्माहत हो ही जाता है. मैं कोई अपवाद नहीं थी. मेरे साथ भी यही हुआ. मैं जज नहीं कर सकी कि आखिर दोष किसका है – पति का या पत्नी का. कई दिनों तक मन बड़ा अशांत रहा . मनुष्य परिस्तिथियों का दास होता है , उसे अपने आप से समझौता करना ही पड़ता है. मैंने भी वही किया . शनैः – शनैः सब कुछ सामान्य होता गया और अब तो ऐसा प्रतीत होता है कि जैसे कुछ हुआ ही नहीं . “

“वही देखता हूँ कि मांग सुना-सुना सा है क्यों तुम्हारा? ? – मैंने सवाल किया.

“ लेकिन सोचती हूँ कुछ दिनों से कि मांग का सुना रहना —– जहाँ जाती हूँ बूरी नजरें घूरती रहती हैं .” उसने खुल कर सच्चाई बयाँ कर दी.

“ तो फिर शादी क्यों नहीं कर लेती ? “ मैंने सुझाव रखा .

“ उतना आसान नहीं है जितना आप सोचते हैं.”

“कई मिल जायेंगे , केवल मन बनाने की आवश्यकता है.”

“जो भी मुझे मिले ,  उनके चेहरे एवं सुन्दर के चेहरे में मुझे कोई फर्क नज़र नहीं आया . एक दलदल से निकली . आप क्या चाहते हैं कि फिर मैं जानबूझकर दूसरे में जा फंसू ? “

मैं निरुतर हो गया . फिर अचानक उसने अपना रूख बदलते हुए बोली , “ क्या आप मुझसे शादी करने को तैयार हैं ? , तो आज ही , अब ही तैयार हूँ .”

“यदि तुम मुझे परखने के ख्याल से कहती हो तो मैं पीछे हटनेवाला नहीं , लेकिन ऐसे मामलों में सोच-समझ कर हमें कदम उठाना चाहिए . भावावेश में आकर ऐसा करना जल्दवाजी होगी और अनुचित भी.”

मैं उलझन में था कि मैं श्वेता को कैसे समझाऊँ !  मेरे हृदय में उसके लिए अगाध स्नेह था तो समुचित सम्मान भी. और सबसे बड़ी बात यह थी कि मैंने उस नजर से उसे कभी नहीं देखा . ये बातें मेरी कल्पना से परे थीं. मैं श्वेता को बेहद प्यार करता था और अठारह साल बीत जाने के बाद भी मेरे प्यार में कोई कमी नहीं आई थी. इसमें कोई दो बात नहीं कि उसके प्रति मेरा आकर्षण परिस्थितिजन्य थीं. मेरा भरा-पूरा परिवार, समाज में समुचित  सम्मान व प्रतिष्ठा , पत्नी का मेरे ऊपर अटूट विश्वास – ये सब बातें मुझे निर्णय लेने में रूकावट डाल रही थीं. साथ ही साथ कुछ सामाजिक मान्यताएं भी होती हैं जिनका पालन करना भी जरूरी होता है.

कई बार ऐसा समय आया कि हमें एक ही कमरे में – एक ही बेड में साथ-साथ सोये .  वह मुझे पकड़कर निचिंत होकर सो जाया करती थी. मुझे अचानक पीछे से पकड़कर डराने में उसे बड़ा मजा आता था. मेरा लाख मना करने के बाबजूद उसपर कोई असर नहीं पड़ता था. श्वेता का मेरे ऊपर अटूट विश्वास था .उसमें अल्हडपन व निश्छल प्रेम ऐसा था कि मेरे मन में कभी भी उसके प्रति ऐसे दुर्बल भाव नहीं उठे. यह अलग बात थी  कि मैं भी कभी- कभी उसका मन रखने हेतु छेड़ दिया करता था. मैं सोच ही रहा था कि क्या और कैसे उसे कन्विंस करूँ कि वह झट मेरे पास आ कर बैठ गयी और बोली

“ लीजिए सिन्दूर की डिबिया”, वेनिटी बैग से निकाली और मेरी ओर आशाभरी नजरों से बढ़ा दी. बोल पडी,” सोचते क्या हैं ? एक चुटकी सिन्दूर भी मेरी मांग में नहीं भर सकते ? आप तो बड़े हिम्मतवाले हैं , आप अपना निर्णय स्वं लेते हैं , किसी की परवाह नहीं करते ? क्या ये सब …”

“ श्वेता ! अब भी बस करो , मुझे खोकला मत बना दो इस तरह कुरेद-कुरेदकर . मैं तुम्हारी सब बातों से सहमत हूँ . तुम्हारी बातों में दम है जिसे मैं नहीं काट सकता . कुछ सामाजिक मान्यताएं होती हैं जिसका ख्याल रखना पड़ता है . मैंने जीवन में कभी हार नहीं मानी, तुम अच्छी तरह से इस बात को जानती हो. आज भी हार माननेवाला नहीं हूँ , लेकिन …”

“ लेकिन – वेकिन मैं कुछ नहीं समझती , हाँ या ना में मुझे जवाब दीजिए.”

“मुझे सोचने- समझने का थोडा वक्त दो , मैं वादा करता हूँ कि इस मेटर को जल्द ही निपटा दूँगा , – इसकी गारंटी देता हूँ . बाई दैट टाइम तुम भी घरवालों से इस सम्बन्ध में सलाह- मशविरा कर सकती हो. यह ज्यादा अच्छा होगा और हमें किसी को कुछ बोलने का मौका भी नहीं मिल पायेगा.”

श्वेता दुनिया देखी हुयी थी . उसे शीघ्र मेरी बात समझ में आ गई – नोर्मल हो गई . रात के दस बज गए हैं, ग्यारह बजे चेक आउट टाइम है. बारह बजे तुम्हारी ट्रेन है – एक चालीस में मेरी . जल्दी से एक-एक कप काफी मंगाया जाय और खाने का ऑर्डर दे दिया जाय . हमने वैसा ही किया. हम कोफी पीने लगे और एक –दूसरे को निहारते रहे . उसकी बड़ी-बड़ी आँखों में सन्निहित आत्मविश्वास , मुखारविंद पर दमकता हुआ सशक्त व्यक्तित्व मुझे उसकी ओर आकर्षित किये जा रहा था. पालक-पनीर , तंदूरी रोटी , दाल एवं सलाद आ गया था. हमने जल्द खाना खा लिया . होटल का बिल चुकाया और ऑटो पकड़ कर जयपुर स्टेसन पहुँच गए . आध घंटे से भी कम वक्त लगा. श्वेता ने ही तीस रुपये पर्स से निकालकर ऑटोवाले को दिया.  उसकी गाड़ी आने की सूचना हो चुकी थी . हमारे पास बातचीत करने का वक्त बहुत कम था. उसे उसकी सीट पर बिठा दिया .

हाथ पकड़कर पास बैठा ली मुझे – वही आदतन रोना शुरू कर दी. “अब फिर वही रोना –धोना ?”

“ मैं अपने आप को रोक नहीं पाती , तो क्या करूँ ?”

मैंने समझाया,”  ठीक है , रो लो , जी भर के , शायद रोने से मन का बोझ … !”

“ आप तो सब कुच्छ समझते हैं फिर भी …. !”- श्वेता ने अपनी बात रखी .

” मेरी गाड़ी एक चालीस में है – जोधपुर – हावड़ा . चोबीस घंटे की जर्नी है – धनबाद कल शुबह तीन के आस-पास पहुंचूंगा . क्या तुम इसी तरह मुझे रो-रो कर विदा करोगी ?”

श्वेता को अपनी गलती का एहसास हो गया . झट वाश – बेसिन से मुह –हाथ धोकर आ गई . मेरी बाईं ओर बिलकुल पास ही बैठ गई . मेरा मन आज न जाने क्यों इतना उदिग्न था कि मैं कुछ भी बोलने की स्थिति में अपने को असहज अनुभव  कर रहा था . अपनी पीड़ा को दबाए हुए था – मैं चाहता था कि जितनी जल्द गाड़ी खुल जाय, अच्छा होगा ,वर्ना मन के अंदर के आंसूं आँखों में फूट पड़ेंगें ओर श्वेता देख लेगी तो वह अपनी यात्रा स्थगित कर देगी . ऐसे उसने जोधपुर चलने की जिद बहुत की. चूँकि मेरी तबियत कई महीनों से ठीक नहीं थी , इसलिए वह मान गई.

सिग्नल हो चूका था. वह झट उठ गई ओर मेरे साथ – साथ प्लेटफोर्म पर उतर कर बोली, “ आज मैंने आप को बहुत खरी-खोटी सुना दी , प्लीज एक्सक्यूज मी “ अब भी उसके आंसू उसके वश में नहीं थे – निकले जा रहे थे अविरल. गार्ड ने सिटी दे दी . गाड़ी मंथर गति से आगे बढ़ी जा रही थी . एक श्वेता थी कि मेरे हाथ को पकड़ी हुयी थी . मैं थोड़ी दूर तक उसका साथ दिया . देखा सिन्दूर की डिबिया मेरी पॉकेट में ही रह गई. . मैं दौड़ कर उसके करीब पहुंचा और ऊँचीं आवाज दी , “ तुम्हारी सिन्दूर की डिबिया मेरे पास ही रह गई.”

मद्धिम सी आवाज सुनायी पड़ी उसकी मेरे कानों में “ ईश्वर को यही मंजूर था , जल्द निर्णय लेकर जैसा होगा , मुझे सूचित करना मत भूलिएगा , “

मैं वहीं बूत बना श्वेता को तबतक अपलक देखता रहा जबतक वह मेरी नजरों से ओझल नहीं हो गई. गाड़ी ने अपनी सामान्य रफ़्तार पकड़ ली . प्लेटफार्म आधा से ज्यादा खाली हो चूका था. मेरी गाड़ी आने में डेढ़ घंटा बाकी था . मैं वेटिंग रूम में आकर एक कोने में इस तरह पसर गया कि मानों मेरे साथ कोई अप्रिय घटना घट गई हो . ओर मैं इस स्थिति से विमुक्त होने में अपने को असमर्थ पा रहा था.  मेरी भी गाड़ी वक्त पर आ गई . अपनी बर्थ में बैठ गया . अब भी वह सिन्दूर की डिबिया मेरी पॉकेट में यथावत सुरक्षित थी .

नोट : पाठकों के मन में उत्सुकता होगी कि इसके बाद क्या हुआ तो कहानी पूरी की जा सकती है अन्यथा यहीं ख़त्म ! प्रतिक्रिया मेल पर आमंत्रित है. – दुर्गा प्रसाद

 

Read more like this: by Author Durga Prasad in category Hindi | Hindi Story | Love and Romance with tag alcohol | husband | sweet | train

Story Categories

  • Book Review
  • Childhood and Kids
  • Editor's Choice
  • Editorial
  • Family
  • Featured Stories
  • Friends
  • Funny and Hilarious
  • Hindi
  • Inspirational
  • Kids' Bedtime
  • Love and Romance
  • Paranormal Experience
  • Poetry
  • School and College
  • Science Fiction
  • Social and Moral
  • Suspense and Thriller
  • Travel

Author’s Area

  • Where is dashboard?
  • Terms of Service
  • Privacy Policy
  • Contact Us

How To

  • Write short story
  • Change name
  • Change password
  • Add profile image

Story Contests

  • Love Letter Contest
  • Creative Writing
  • Story from Picture
  • Love Story Contest

Featured

  • Featured Stories
  • Editor’s Choice
  • Selected Stories
  • Kids’ Bedtime

Hindi

  • Hindi Story
  • Hindi Poetry
  • Hindi Article
  • Write in Hindi

Contact Us

admin AT yourstoryclub DOT com

Facebook | Twitter | Tumblr | Linkedin | Youtube