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Photograph is not so soothing in love

Published by Durga Prasad in category Hindi | Hindi Story | Love and Romance with tag letter | love letter | photo | tears

जो बात तुझमें है , वो तेरी तस्वीर में नहीं !  … !! … !!! (Photograph is not so soothing in love): This Hindi love short story is a love letter in which a lover is remembering love and showing concern for his girlfriend who is now married to someone else.

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Hindi Love Letter – Photograph is not so soothing in love
Photo credit: taliesin from morguefile.com

जबतक तुम मेरे पास रहती हो , वक़्त का कोई ख्याल ही नहीं रहता . ऐसे सेकड़ों क्षण हैं , जो भाप की तरह उड़कर अंतरिक्ष में विलीन हो गये. मैंने बहुत चाहा कि ऐसे मधुर घड़ियों की यादों को अपनी मुट्ठियों में कैद करके रख लूं , लेकन ऐसा न कर सका . जैसे – जैसे वक़्त गुजरता गया , स्मृति धुंधली होती गयी . आज जब यादों का चमन उजड़ने को हुआ तो सोचा तुझे ख़त लिखकर इसे पुनर्जीवित कर दूं .

वर्षों बाद कुछ लिखना मुझे कैसा – कैसा लगता है , व्यक्त नहीं कर सकता . मन पर एक अज्ञात बोझ है . सोचता हूँ मन की बात तुझे बता दूं तो यह बोझ कुछ हद तक हल्का हो जायेगा. तूझे तब भी मेरे ऊपर अटूट विश्वास था और अब भी है. यही विश्वास मुझे विवश कर देता है कि तुझे जिन नजरों से मैं देखा करता था , अब भी उन्हीं नज़रों से देखा करता हूँ . कोई बदलाव है – ऐसी बात नहीं . कोई परिवर्तन है – वो भी बात नहीं . जो है वह है विविधता , विचित्रता . पहले पागलपन था , अब समझदारी है. पहले जुनून था , अब निश्चिंतता है. इंसान कितना परिस्थितों का दास होता है – यह आकलन का विषय नहीं, यह तो अनुभूति का विषय है जिसे कोई भुक्तभोगी ही व्यक्त कर सकता है. पहले मैं अपलक तुझे निहारा करता था और अब ? अब तुझसे नजरें चुराया करता हूँ. समय के पर होते हैं . समय के साथ-साथ सबकुछ बदल जाता है.

सच्चाई यह है कि तुम भी अपनी दृष्टि मुझ पर गडाए रहती थी और कुछेक क्षण के लिए स्वप्नलोक में खो जाती थी. कईबार तो मैंने तुझे स्वप्नलोक से खींचकर भूलोक में लाया था . उस वक़्त तुम्हारा कपोल लज्या से लाल हो गया था, इसमें तुम्हारा क्या दोष ? ऐसी अवस्था इस उम्र में हो जाया करती है. कोई भी निष्प्राण सा कोमा में चला जाता है. तुम तो अपवाद नहीं हो सकती.

वो दिन , घड़ी मुझे अच्छी तरह याद है – कोई त्यौहार था, उस समय तुमसे मिलना आवश्यक था , अतः वक़्त निकालकर चला आया. तुम गुलाबी सलवार कमीज में थी और मैचिंग बुट्टीदार दुपट्टा डाली हुयी थी.

फोटोग्राफी का कार्यक्रम था .उन दिनों वीडियो या डिजिटल कैमरे का चलन हमारे शहर तक नहीं पहुँच पाया था. यासिका कैमरा था जो उन दिनों अच्छे कैमरों में जाना जाता था. तुम मेरे बिलकुल करीब आ गयी थी और कैमरा देती हुयी बोली , ‘ एक दो फोटो मेरा खींच लीजिये. ’

मैंने चार- पांच खींच डाले थे. कहा, इस गुलाबी परिधान में तुम अप्सरा – सी खिल रही हो . एक तस्वीर तुम्हारी अकेला लेना चाहता हूँ. तुम झट तयार होकर गमले के पास खडी हो गयी थी – पोज देने के लिए. मैंने कहा, ‘जरा दूपट्टे को नीची करो .तुमने पूरा दुपट्टा ही निकालकर अलग रख दिया था और बोली थी, जी भर देख लीजिये . अब तो मन भर जायेगा . मैं यह सुनकर वो भी तुम्हारे मुख से अवाक रह गया . मेरी नियत में कोई खोट नहीं थी. ऐसे बहुत से अवसर मिले जब हम दोनों अकेले थे और आमने सामने घंटों बातें की. तब तो मेरा मन डोला ही नहीं तो आज कैसे ? सुनना आवश्यक था , इसलिए सुना दिया. उसने क्षमाभाव में नजरे झूका ली थी. मैं सहजता से तुम्हारे समीप गया और दुपट्टे को कायदे से ओढा दिया – जितना नीचा करना था कर दिया . तुम मुझे मारने पर उतारू थी. मैं रेडी कहने ही वाला था कि तुमने दुपट्टा अपनी नाभी तक कर दी थी . मेरा मन ये सब देखकर विचलित हो गया था . इसे काबू करने में मेरी रूह कांप गयी थी. तुमने मेरे हाथ से कैमरा छीन ली थी. तुम घर के अन्दर चली गयी थी. मैं लौट कर जल्द ही घर चला आया. एक –एक पल मेरे लिए काटना मुस्किल था. मैं सेकड़ों मिल दूर रोजी – रोटी के लिए चला आया था.

मैं अपनी घर गृहस्थी में उलझ गया . इन दो वर्षों में न जाने कितने बार तुझे याद किये और कितने बार भुला दिए उसका लेखा- जोखा तो मेरे पास नहीं है. मैंने कोई जरूरत ही नहीं समझी. लेकिन मेरे जेहन में सबकुछ जीवंत है . हिसाब मांगने पर दे सकता हूँ.

तुम्हारी विदाई की घड़ी आ गयी थी . गोधुली बेला थी. गाना बज रहा था ,’ छोड़ बाबूल के घर मेरी प्यारी दुल्हनिया चली , रोये माता- पिता सारी दुनिया चली.’ मैं सेकड़ों मिल रातभर सफ़र करके वक़्त पर आ गया था और तुम्हारे सामने ही खड़ा था. ‘किसी से तुमने कहा , ‘ एक मिनट , जरा आती हूँ . तुम घर के अन्दर गयी और एक पैकेट ला कर मेरे हाथों में थमाते हुए बोली,’ घर जाकर, खोलकर देख लीजियेगा . वक़्त बहुत ही कम था तुम्हारे पास. मैं सीधे घर आया और झटपट पाकिट खोल दिया तो देखा वही तस्वीर थी जिसे मैंने वर्षों पहले खींच डाला था . तुम्हारा वो भरा- पूरा यौवन – घायल कर देनेवाली अदाएं और वो ….. . वास्तव में मैं भीतर से इतना टूट गया था शीशे की तरह और विख्रना नहीं चाहता था – फर्श पर …कि फिर से …. .

मेरे पास भी बहुत कम वक़्त था. मैं दौड़ा –दौड़ा तुम्हारे करीब गया . रुंधे हुए कंठ से बोली, ‘ जा रहीं हूँ, कभी समय मिले तो इस नाचीज को याद कर लीजियेगा . मैंने तस्वीर लौटाने के लिए हाथ बढ़ाये ही थे कि तुमने रोक लिया. मैं तस्वीर तुम्हारी लौटने आया हूँ . मैं तुम्हारी कोई चीज अपने पास रखना नहीं चाहता. तुमने मुझे रोक लिया था . अश्रुपूरित नेत्रों से फूट पडी, ‘ और आप मुझे कितना रुलाना चाहते हैं ?

ऐसी बात नहीं .

तो कैसी बात है , जरा जानूं ?

जो बात तुझमें है , वो तेरी तस्वीर में नहीं . इसलिए रख कर क्या करूंगा ? जब – जब देखूंगा इसे , तुम्हारे साथ गुजरे हुए एक- एक पल याद आयेंगे और व्यर्थ के सतायेंगे .

देखा , आज तुम्हारे आंसू थमने के नाम ही नहीं ले रहे थे . मेरी भी दशा अच्छी नहीं थी . मैं तुम्हारे बातें सुनकर इतना रोमांचित हो गया कि मेरी सूनी आँखें भी भर आयी थीं – आंसुओं की अविरल धार से .

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लेखक : दुर्गा प्रसाद |

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