इक्कीसवी सदी की परी कथा: This story is about a girl whose marriage to love to take the journey was not short of a fairy tale. The fairy tale of my childhood was alive and who was like a pleasant dream.
बचपन नानी की परी कथा सुनते सुनते गुज़रा. हम बड़े तो हो गए पर मन के किसी कोने में उन कथाओं के कुछ अवशेष अब भी बाकी थे. उन्हें जीने की असीम लालसा मन के किसी कोने में मुरझाएं पौधों के सामान दबी पड़ी थी. मासूम बचपन वास्तविकता और कल्पनाओं में कहा भेद कर पाता हैं. वो तो बस उसे सच जान अलग ही दुनिया में विचरण करता रहता हैं. ये भेद तब खुलता हैं जब मासूम बचपन यौंवन की दहलीज पार कर लेता हैं.
उन काल्पनिक दुनिया से विदा ले मैंने वास्तविक दुनिया में कदम रखा. पढ़ाई पूरी हुई और उज्जवल भविष्य की कामना लिए लखनऊ आ गई. ऑफिस के पास ही एक हॉस्टल में रहने की जगह भी मिल गई. नई जॉब नई जगह और नए दोस्त भी बने. सबकुछ कितना सुखद था लेकिन उन कथाओं ने अब भी मेरा पीछा नही छोड़ा था. कल्पनाओं का दामन छोड़ वास्तविकता का आंचल ओढ़े मेरे जीवन के साथ साथ चलने को तैयार थी.
उसी समय मेरे रुम में नई लड़की का आगमन हुआ…इरम ! देखने में बिलकुल नानी द्वारा वर्णित सुन्दरता से परिपूर्ण एक राजकुमारी के सामान थी लेकिन वो इक्कीसवी सदी की लड़की थी इसलिए कपड़ों और रह सहन में काफी अंतर था. हम रुम मेट के साथ साथ अच्छे दोस्त भी बन गए. हमारा हर काम साथ साथ ही होता और अक्सर व्यक्तिगत बातें भी हमारें बीच साझा हो जाती.
एक दिन इरम की जिंदगी में एक राजकुमार ने दस्तक दी…राशिद ! उसने किसी राक्षस से बचाते हुए नही बल्कि रॉंग नंबर के तहत पर्दापण किया था. वो रॉंग नंबर से कब राईट नंबर में बदल गया और कब दोनों का प्यार परवान चढ़ गया हमें भी पता नही चला. उनके प्यार की तपिश मुझे तब महसूस हुई जब वो भागते हुए मेरे पास आई और बोली,
” अरुणा ! अरुणा ! राशिद मिलना चाहता हैं और मैं भी. बोलो न क्या करु ? कहाँ मिलूँ ? ”
” ह्म्म्म…तो उसे चिड़िया घर बुला लो. कल सन्डे भी हैं हम सब फ्री रहेंगे. मिल लेना आराम से. ”
इरम खुश तो हुई पर फिर उसी चिंता की मुद्रा में आ गई. दोनों ने एक दूसरे को कभी देखा नही था इसलिए समस्या पहचानने की थी. मैंने उस समस्या को फटाक से सुलझा दिया और पहचान चिन्ह बना…लाल गुलाब!
हम सब पूर्व निर्धारित समय पर पहुँच गए. हम ऑटो से जैसे उतरे तो सामने देखा राशिद मियां सड़क के उस पार अपनी कार के बाहर टेक लगाकर खड़े हुए हैं और हाथ में लाल गुलाब का फूल भी हैं. इस बार राजकुमार अपनी राजकुमारी से मिलने घोड़े पे नही बल्कि कार से आया था. मैंने इरम को कोहनी मार कर राशिद की तरफ इशारा किया. राशिद को देखते ही इरम का मुंह शर्म से सुर्ख लाल हो गया. इरम को उम्मीद न थी कि उसका राजकुमार इतना ज्यादा स्मार्ट होगा और शायद…राशिद ने भी उम्मीद नही की होगी कि इरम इतनी सुंदर निकलेगी.
मैंने तीन टिकट खरीदे और हम सब चिड़िया घर के अंदर आ गए. उन दोनों को अकेला छोड़ कर मैं जानवरों की फोटो खींचने में व्यस्त हो गई. इस पहली मुलाकात ने दोनों के रिश्ते को और अधिक मज़बूती प्रदान की. दो प्यार करने वाले पंछी अब बेफ़िक्र से खुले गगन में मदमस्त उड़ने लगे थे. इरम का मन अब डेंटल की पढाई में कम और अपने प्यार के भविष्य की योजनाओं को गढ़ने में ज्यादा लगता. इन उड़ानों को लगाम तब लगी जब इरम के वालिद को उनके प्यार की भनक लग गई और उसके लिए एक नए रिश्ते की तलाश ज़ोरों से शुरु कर दी. अब इरम पर कटे पंछी के समान फड़फड़ाती हुई निढाल सी बिस्तर के एक कोने में पड़ी रहती और घंटों सुबकती. अब उसके हाथ अपने प्यार की सलामती के लिए उठने लगे थे और होंठो पे हर वक़्त दुआए होती.
एक दिन इरम की अम्मी उसे घर वापिस ले जाने के लिए आई. घंटों माँ बेटी के बीच वाक्ययुद्ध चलता रहा. जब प्रेम अपनी चरम सीमा पर होता हैं तब लिहाज़ तहज़ीब रिश्ते-नाते सब मिट्टी की दीवार की तरह एक झटके में ढेर हो जाता हैं. जब बगावत की बू ज़ोरों से महसूस होने लगी तब मुझे मजबूरन बीच में ही कूदना पड़ा.
” आंटी ! आप का सोचना एकदम जायज़ हैं लेकिन औलाद हमेशा गलत हो ऐसा जरुरी तो नही. जितना मैं अब तक इसे जान पाई हूँ वो आप लोगों के खिलाफ़ कभी नही जाएगी. मेरी आपसे गुज़ारिश हैं कि बस एक बार अपनी बेटी की बात सुन लीजिये. प्लीज ! राशिद आप की ही जाति धर्म का हैं. अच्छा खासा बिज़नेस हैं और अच्छे खानदान से ताल्लुक रखता हैं. आप और अंकल देख सुन लीजिये. अगर तब भी आपको इरम का फ़ैसला ग़लत लगे तो बेशक इसकी शादी कहि और कर दीजिये. ”
आंटी ने उस वक़्त तो कुछ नही बोला पर शायद मेरी बात उनको जँच गई थी इसलिए सवेरे होते ही वो वापिस अपने घर गोंडा चली गई और अंकल से बात कर दोनों राशिद से मिलने उसके घर सहारनपुर गए. उन्हें राशिद इतना पसंद आया कि बिना किसी देरी के राशिद के माता पिता की सहमति से उन दोनों की शादी और सगाई की तारीख मुक़र्र कर दी गई. सगाई राशिद के घर से होनी थी इसलिए हम सहारनपुर पहुँचे. महलनुमा कोठी, नौकर चाकर और सगाई में दर्जनों ज़ेवर और हजारों कपड़ें, मैचिंग चप्पल और न जाने कितने कीमती सामान इरम के कदमों में जा बिछे थे. इतनी शान-ओ-शौकत देख कर लगा कि वो वाकई किसी महल की रानी बनने जा रही थी. इस शादी से सब बेहद ख़ुश थे.
एक साधारण से रॉंग नंबर का किसी के भाग्य को असाधारण तरीके से बदलते हुए देख रही थी. आखिर वो दिन भी जल्द आ गया जब इरम सदा के लिए राशिद की होने जा रही थी. राशिद बरात ले कर इरम के दरवाजे पे आ चुके थे. कुछ घंटो में ही निकाह की रस्म शुरु हो गई और ” क़ुबूल हैं” के साथ पूरा माहौल हर्षोल्लास से भर उठा. सबने एक दूसरे को गले लग कर बधाइयां दी. पूरी रात जश्न चलता रहा और सवेरे इरम रुक्सत हो गई.
इरम के लिए मैं बेहद खुश थी लेकिन उससे बिछड़ने का गम भी था. उसकी रुक्सती के साथ ही मैं भी वहां से रुक्सत हुई और वापिस अपने काम में व्यस्त हो गई.
*समाप्त*