• Home
  • About Us
  • Contact Us
  • FAQ
  • Testimonials

Your Story Club

Read, Write & Publish Short Stories

  • Read All
  • Editor’s Choice
  • Story Archive
  • Discussion
You are here: Home / Hindi / Aankhon Ki Bhasha

Aankhon Ki Bhasha

Published by Jyotindra Nath Choudhary in category Hindi | Hindi Story | Love and Romance with tag card | eyes | love story | marriage

“Its a story about a girl who understand the feelings of her friend with their eyes.. They were childhood friend. One day girl got the marriage invitation card of their friend after three years marriage of her. She is happy , but still she remembering the emotional incidents with holding of this invitation card & their promise to each other – “We will meet again in the next born”….”

sad-woman-eyes

Hindi Love Story – Aankhon Ki Bhasha
Photo credit: presto44 from morguefile.com

हाथ में शादी का कार्ड था और उसपे लिखा था “प्रदीप संग रागनी”.. बहुत ख़ुशी हुई थी मुझे की आज मेरे यार की शादी है.. लेकिन थोड़ी देर के लिए दिल बैठ सा गया था.. अब मैं कुछ कर भी तो नहीं सकती थी.. वैसे ही जैसे तीन साल पहले प्रदीप कुछ कर नहीं सका था.. “विरोध” और थोड़ा सा “विद्रोह”..

स्पेशल इनविटेशन था मुझे पुरे परिवार के साथ.. लेकिन मैं जा नहीं सकती थी..

याद शहर बहुत दूर था न, मैं देश के एक कोने में और याद शहर देश के दुसरे कोने में था.. फ्लाईट पकड़ती तो शाम तक पहुँच सकती थी.. लेकिन उन्हें मैं क्या कहती आज उस शादी में जाना बहुत जरुरी है.. क्या कारण बताती की वो मेरा…. नहीं ! मैं नहीं कह सकती ! की वो मेरा कौन है.. (आगे के शब्द किसी घुटन साथ समाप्त हो जाते हैं.)

और अब मैं चाहती भी नहीं उसे याद करना.. लेकिन यादों की किताब में तो वो अब भी मजूद था.. मेरा मन कर रहा था उन यादों का गला दबा दूं और कहीं दफ्न कर दूं.. लेकिन मेरे हाथों में भावनाओं को कंट्रोल करने वाली मशीन नहीं थी… आज तो रह-रह कर उसकी याद आ रही थी.. जी कर रहा था ये इनविटेशन न भेजता तो अच्छा था.. शादी कर लेता, और मुझे कहीं से पता चल जाता.. खैर ये इनविटेशन मुझे कम और मेरे पति को ज्यादा भेजा गया था..

शादी के बाद एक वो ही तो था जो याद शहर में मेरे पति का अच्छा दोस्त था.. पता नहीं उन्हें प्रदीप में क्या दिखा… शायद उसका केयरिंग स्वाभाव या हंसमुख बर्ताव या कहूँ कुछ भी कर गुजरने की उसकी आदत..

पतिदेव ऑफिस जाते-जाते कह गये, रानी ऐसा करना स्कूल जाते वक़्त एक शादी का बधाई कार्ड खरीद कर प्रदीप को पोस्ट कर देना और लिख देना “sorry! छुट्टी नहीं मिल पाने के कारण आ नहीं सके”.. (मन तो किया अपने झूट में मुझे क्यों शामिल कर रहे हो.. मैं तो जाना चाहती हूँ, बस किसी अनकहे व्यव्हार ने मुझे रोक रखा है..)

आज मैं अपने स्कूल नहीं गयी … बिस्तर पे लेटी रही, हाथ में वही इनविटेशन कार्ड था, टी.वी. ऑन था लेकिन म्यूट कर के मैं भावनाओं में उमर रहे जज्बातों को सँभालने की कोशिश कर रही थी.. लेकिन आज यादें परत-दर-परत ऐसे याद आ रहीं थीं जैसे किसी ने बंद डायरी का एक-एक पन्ना पलट दिया हो..

कुछ पाने के लिए, कुछ खोना तो पड़ता ही है.. और प्यार में तो सब से ज्यादा फजीयत प्यार करने वालों को ही झेलनी पड़ती है… प्यार एक ऐसा रोग जो हर किसी को होता है.. जबकी सभी जानते हैं ये समाज हमें खुलेआम इश्क फरमाने नहीं देगा, फिर भी.. प्रत्यक्ष और अप्रत्यक्ष रूप से हर कोई प्यार करने की कोशिश किसी न किसी से जरुर करता है.. बेशक वो उसमे सफल हो या न हो..

प्यार में भावनाओं का उमर आना वैसा ही है जैसे बिन बादल बरसात.. और प्यार को व्यक्त करना वैसे ही है जैसे मौसम में आये बदलाव के कारण आकाश में लगे गहरे-घने-काले बादल. ऐसी हालत में या तो हवाओं के वेग से सारे बादल छट जाते हैं, या वहीँ स्थिर और निडर रहकर खूब बरसते हैं…. इन भावनाओं की आंधी में कहीं बहुत ख़ुशी होती है तो कहीं घोर निराशा भी..  कुछ सफल होते हैं तो कुछ असफल भी, बस थोड़ा सा प्रारूप बदल जाता है..

शहर में मैं और प्रदीप एक ही साथ एक ही स्कूल में पढ़ते थे.. अच्छा खासा समय गुजारा था हमने.. वो कुछ कहता नहीं था, बस उसकी आँखों की भाषा मैं समझ जाती थी… हमने कोई कमिटमेंट नहीं किया था, बस हमें पता था कि किसकी क्या पसंद है….

स्कूल से कॉलेज आ गए तो दोनों की क्लासेज अलग हो गयीं थीं.. इसलिये अब बातें भी कम हुआ करती थीं… कभी-कभी अचानक मिल लिया करते थे, वो भी “बस” में.. लेकिन एक सुकून था मेरी निगाहें उसे रोज़ देख लेती थीं..

एक दिन पता चलता है प्रदीप का EEEexam clear हो गया है.. सभी लोग खुश थे, मेरे घर पे भी और उसके घर पे भी, वो मिठाई का डब्बा भी लाया था.. पापा ने “congrats young man”!कह कर उसे बधाईयाँ भी दीं थीं.. माँ ने उसके लिये चाय और बिस्किट लाकर दिये थे… लेकिन उसे इसकी कोई परवाह नहीं थी, बात करते-करते वो हमेशा मुझे देख रहा था..माँ और पापा जैसे उसके लिए एक निर्जीव वास्तु थे.. वो जैसे ही बाहर गये, उसने कहा अगले हफ्ते जा रहा हूँ.. तुमसे अकेले में बात करनी है… समय बहुत कम है, कल कॉलेज ट्रान्सफर सर्टिफिकेट लेकर साथ लौटेंगे, मेरा इंतज़ार करना…

मैं बहुत डर गयी थी इसलिये नहीं क्योंकि उसने अकेले बुलाया था, बल्कि इसलिये क्योंकि कुछ बहुत मूल्यवान चीज मुझसे छुट रहा था.. मैं बेचैन थी मेरा कहीं मन नहीं लग रहा था… बस अगला दिन किसी तरह आ जाये.. उस दिन, उस रात मैं सो भी नहीं पाई थी.. बस प्रदीप… प्रदीप.. और सिर्फ प्रदीप ही दिलो-दिमाग में घूम रहा था…

अगला दिन और आगे के छ: दिन प्रदीप घर पे ये बोल कर निकलता कि सर्टिफिकेट अभी मिला नहीं.. लेकिन वो रोज़ मेरे साथ कॉलेज आता जाता रहा… लेकिन उसने कुछ भी तो नहीं कहा था… कहता भी कैसे, मैं तो उसकी आँखों को पढ़ लेती थी.. अंतिम दिन पहली बार उसने मेरा हाथ पकड़ा था.. और मैंने शायद इजाजत भी दे दी थी.. बस स्टॉप आते-आते वो पकड़, पेड़ से लिपटी हुई लताओं सी कस गयी थी.. वो नहीं जाना चाहता था.. वो “बस”, कभी न रुके बस ऐसे ही चलती रहे…. लेकिन किसी को पाने के लिये किसी को तो छोड़ना पड़ता है न.. मेरी आँखों में अब सिर्फ छल-छलाती आंसुओं की बूंदें थीं… मैंने विदाई की आज्ञा नहीं दि थी उसे, लेकिन उसने इस तिलिस्म को खुद तोड़ दिया था.. वो उठा और “बस” के गेट पे खड़ा हो गया, उसने एक बार पलट कर भी नहीं देखा.. शायद वो नहीं चाहता था की उसके आँखों में आये सैलाब मैं देख लूँ.. लेकिन आंसुओं से भीगा उसका गिला रुमाल मेरे पास ही रह गया था..

उस समय मोबाइल बहुत कम लोगों के पास हुआ करता था.. और इसलिये हम लोग एक दुसरे को पत्र भेजते थे… प्रेम-पत्र नहीं मित्र-पत्र.. हाल-चाल पूछ लेते थे… कभी-कभी प्रदीप फ़ोन भी कर लेता था.. धीरे-धीरे सब वैसा ही होने लगा था जैसा पहले था, सिवाय प्रदीप के उपस्थिति के..

खैर अब उसने ईंजिनियरिंग completख़त्म करके एक अच्छी नौकरी भी पा ली थी, और मैंने भी अपनी पढाई ख़त्म कर ली थी.. अब हमारे पास अपना मोबाइल फ़ोन था और हम ढेर सारी बातें मोबाइल  पर ही कर लिया करते थे… लेकिन ईधर मेरी शादी की बात भी होने लगी थी..

उसने घर वालों को समझाने की कोशिश की थी, लेकिन वो नहीं माने..

शायद मेरे घर वाले भी नहीं मानते.. इसलिये मैंने उन्हें कहा भी नहीं..

नुक्सान का सौदा होता… दोनों परिवारों में खटास पैदा हो जाता और मिलना तो दूर, देखने पर भी पाबन्दी लग जाती…

मैंने प्रदीप को फ़ोन पे सिर्फ इतना कहा शायद अपना सफ़र यहीं तक था.. अगले जन्म में फिर मिलेंगे..

लोटती आवाज से प्रदीप ने उदासीन स्वर में कहा “मैं शादी में आ रहा हूँ”..!

फिर उसने थोड़ा मजाकिया अंदाज़ में कहा- रोना मत ! कम-से-कम यार की शादी में नाच तो लूँ.. husband न बन सका तो क्या हुआ, कम-से-कम अपने husband से दोस्ती करा देना…इतना तो करोगी न…!

फ़ोन रखो ! मैं मजाक के मुड में नहीं हूँ.. और मैंने फ़ोन काट दिया था…

सैकरों विचारों का तूफान मेरे इर्द-गिर्द था और मैं उसमें अडिग एक ठूंठे पेड़ के समान बस गिरने का इंतज़ार कर रही थी..

शादी वाले दिन प्रदीप तय समय पर मंडप पे आ गया था, वो एक दम हीरो लग रहा था.. कितना smart हो गया था वो, जैसे शादी उसी की हो, मुझे यकीं नहीं हो रहा था.. मेरी सारी सहेलियां उसपे gossip कर रहीं थीं…  और मैं ये सोच रही थी ये यहाँ रकीब (प्रेम क्षेत्र का प्रतिद्वंदी) बनकर क्यों आया है.. वो क्या जताना चाहता है… मैं डर गयी थी..

माँ-पापा के उसने पांव छुये और सीधे मेरे पास आ गया… आज भी उसे कोई डर नहीं था बेबाक आकर कहता है…

बोला था न आ जाऊंगा, देखो आ गया.. और बताओ कैसा है तुम्हारा husband , ज़रा फोटो तो देखें जनाब का.. प्रदीप की आवाज में जलन की बू आ रही थी.. लेकिन उसकी नजरें घोर निराशा और दुःख की बलि चढ़े हुये थे… थोड़ी देर उसने बातें कीं फिर वो उस भीड़ में खो गया… शाम को वो मंडप पे मेरे सामने ही बैठा था.. मैंने घूँघट की ओट से उसे छुप कर देखा था.. फिर अचानक न जाने कहाँ खो गया..

मेरी एक सहेली ने कहा… वो आधी शादी में ही चला गया था…

अगले दिन शाम को वो मेरे husband से मिलने आया और उन्हें वो इतना अच्छा लगा की वो जब भी याद शहर आते हैं तो प्रदीप को ढूंढते.. पता नहीं प्रदीप ने क्या जादू किया है उनपे.. पूछती हूँ तो बताते भी नहीं… बस कह देते हैं, उसकी आंखें बहुत कुछ कहती हैं., बस मैं उसे समझ नहीं पाता हूँ..

टी.वी. अभी भी म्यूट चल रहा है और हाथ में मेरे अभी भी वही इनविटेशन कार्ड था जिसपे लिखा था “प्रदीप संग रागनी”.. उसकी जगह हो सकता था “प्रदीप संग रानी”… एक अक्षर “ग” ने कितना कुछ बदल दिया था, “रानी” की जगह “रागनी” पूरा व्यक्तित्वा ही बदल गया था.. लेकिन समाज के इन अनेक बंधनों में शायद किसी को इसकी परवाह नहीं थी..

यहाँ बदला तो समय का वो चक्र भी था जो सुबह से शाम का निर्देश दे रहा था… इस बीच न जाने कितनी यादों के गोते लगाये थे मैंने, कितनी बार डूबी थी मैं.. कितना रोई थी मैं… तब भी मुझे उसकी आंखें, मुझे डूबने से बचा रहीं थीं.. और कह रही थीं, नहीं रानी अब तुम-तुम नहीं हो, अब तुम एक नये परिवार की एक ऐसी सदस्य हो जहाँ तुम्हें सिर्फ रिश्तों का निर्वाह ही नहीं करना है बल्कि तुम्हें सभी को एक साथ लेकर चलना है…. इस जन्म बेशक न मिल सके, अगले जन्म में मैं तुम्हारा ही बनूँगा..

शाम के छ: बज चुके थे, बारात निकलने वाली होगी.. तभी एक अंजान नंबर मोबाइल पर बजता है…

हेल्लो ! कौन..?  (रानी ने कहा)

जी मैं रागनी..

नाम सुनते ही लगा कि किसी ने कान में पिघला हुआ लोहा डाल दिया हो… थोड़ी देर के लिये डर सी गयी थी मैं… ठीक वैसे ही, जब मैंने अपनी शादी पे प्रदीप को देखा था…

जी रागनी कौन (मैंने अंजान बनते हुए पूछा)

जी आज मेरी शादी है प्रदीप से..

दूसरी तरफ से कोई आवाज़ नहीं आई… अब वो पिघला हुआ लोहा कान में जमने लगा था..

Sorry, मैंने आपको disturb किया..

It’s OK.. बोलो..  (रानी ने कहा..)

मुझे आपके बारे में प्रदीप ने सब कुछ बताया है.. बोले अगर हमारे बिच भरोसा होगा तो जीवन भर साथ रहेंगे… लेकिन एक प्रॉब्लम है…

क्या….? (रानी ने कहा..)

“उनकी आखें बहुत कुछ कहती हैं… और “मैं उन्हें पढ़ नहीं पाती हूँ”….

इतना सुनते ही रानी की आँखों से एक बार फिर रस-धार बह निकलते हैं, बिना किसी दिशा के.. फ़ोन की दूसरी तरफ “बस” को छोड़ता हुआ प्रदीप एक बार फिर सामने आ जाता है.. “आँखों में ढेर सारे आंसू लिये वो उतर तो जाता है, लेकिन अपना भीगा हुआ रुमाल मेरे पास ही छोर देता है– यादों के रूप में..

 

Written  By : ज्योतिन्द्र नाथ चौधरी

Read more like this: by Author Jyotindra Nath Choudhary in category Hindi | Hindi Story | Love and Romance with tag card | eyes | love story | marriage

Story Categories

  • Book Review
  • Childhood and Kids
  • Editor's Choice
  • Editorial
  • Family
  • Featured Stories
  • Friends
  • Funny and Hilarious
  • Hindi
  • Inspirational
  • Kids' Bedtime
  • Love and Romance
  • Paranormal Experience
  • Poetry
  • School and College
  • Science Fiction
  • Social and Moral
  • Suspense and Thriller
  • Travel

Author’s Area

  • Where is dashboard?
  • Terms of Service
  • Privacy Policy
  • Contact Us

How To

  • Write short story
  • Change name
  • Change password
  • Add profile image

Story Contests

  • Love Letter Contest
  • Creative Writing
  • Story from Picture
  • Love Story Contest

Featured

  • Featured Stories
  • Editor’s Choice
  • Selected Stories
  • Kids’ Bedtime

Hindi

  • Hindi Story
  • Hindi Poetry
  • Hindi Article
  • Write in Hindi

Contact Us

admin AT yourstoryclub DOT com

Facebook | Twitter | Tumblr | Linkedin | Youtube