अज़नबी(Ajnabi): This Hindi story says that the circumstances are not always met by coincidence and not many situations were made by God is also a sign.
आज कल डेली चलने वाली ट्रेनों में भी रिजर्वेशन कहा जल्दी मिलता हैं। अगर कोई त्यौहार पड़ जाये तो और भी ज्यादा मुश्किल हो जाता हैं रिसर्वेशन मिलना। होली का टाइम चल रहा हैं और चुनाव का भी बहुत मुश्किल से थर्ड ac में रिसर्वेशन मिला था। आज शहर में किसी नेता की रैली थी। जल्दी जल्दी सामान पैक कर स्टेशन भागी कही ट्रेन ना मिस हो जाये। उफ़्फ़! इतनी सारी भीड़!!! मै घबरा गई कि कैसे इतनी भीड़ पार करते हुए अपनी ट्रेन में में बैठ पाऊँगी। स्टेशन में ज्यादातर भीड़ रैली वालो की थी। कैसे भी करके मुझे अपनी सीट तक पहुचना ही था सो थोड़ी हिम्मत कर बैग पीठ पे लादा और दोनों हाथों से पर्स को सीने से दबा के तेज़ी से धक्का मुक्की करते हुए ट्रेन के पास पहुंची। अपनी सीट पे बैठते ही राहत की सांस ली।
मेरे कम्पार्टमेंट में सारे आदमी ही भरे पड़े थे। खुद को अकेली लड़की पाकर घबरा सी गई…इतने सारे पुरुषों के बीच आठ-दस घंटे का सफ़र कैसे पार कर पाऊँगी मै। अचानक मुझे एक लड़की आती हुई दिखी। वो भी शायद मेरी तरह अकेली थी। उसको देखते ही मेरी आँखों में हल्की सी चमक आ गई। मन ही मन मैंने भगवान् को धन्यवाद बोला। वो ठीक मेरे सामने वाली सीट पे जा बैठी। मेरे मन को थोड़ी तसल्ली हुई कि चलो मै अकेली नही हूँ, मेरा सफ़र अब आराम से कट जायेगा। ट्रेन भी स्टेशन से छूट चुकी थी। मै बहुत खुश थी… इतने दिनों बाद अपने घर जो जा रही थी। घरवालों से जल्दी मिलने की चाह में एक दिन पहले ही छुट्टी ले ली थी ऑफिस से। अगर एक बार जॉब करने लग जाओ तो घरवालों से मिलना एक सुखद सपने देखने जैसा हो जाता हैं और वैसे भी जल्दी छुट्टी कहा मिलती हैं।
ख़यालों में डूबी ही थी कि मोबाइल की घंटी बजी। मैंने अपना पर्स खोला और मोबाइल निकाल के देखा तो पापा का कॉल आ रहा था।
“हेलो! पापा! मै ठीक से बैठ गई हूँ अपनी सीट पे। कल सुबह 6-7 बजे तक सतना स्टेशन पहुँच जाऊँगी। भैया को स्टेशन भेज दीजियेगा लेने के लिए।”
“ओके बेटा! बीच बीच में कॉल करके बताती रहना ट्रेन कहा तक पहुंची। आराम से बैठना और अपना ध्यान रखना और हा ट्रेन 20 मिनट तक कानपुर स्टेशन पे रुकती हैं कुछ खाने को जरुर ले लेना।
“ओह्हो…पापा!! आप परेशान मत होइये मैंने पहले से ही खाने पीने का सामान रख लिया था। अच्छा मै फ़ोन रख रही हूँ नेटवर्क जा रहा हैं। बाय…पापा..!”
“ओके! बाय…बेटा..!”
वापस फ़ोन पर्स में रखा।हम दोनों के बीच बात-चीत की पहल पहले उसने की। हम इतने मसगुल हो गए बात करने में कि कब कानपुर आ गया हमे पता ही नही चला। रचना कुछ खाने का सामान लाने स्टेशन चली गई और मै मोबाइल पे गेम खेंलेने लगी। गेट की तरफ क़ाफी शोर हो रहा था। मैंने देखा कि दो तीन लड़के मिल के एक लड़के को ट्रेन में चढ़ाने की कोशिश कर रहे हैं। वो लड़का इतना ज्यादा नशे मे था कि चलना तो दूर ठीक से खड़ा भी नही हो पा रहा था। संजोग से उसकी सीट रचना की सीट के ठीक ऊपर वाली सीट निकली।
” हे भगवान! अब ये क्या नई मुसीबत भेज दी आपने। ना चाहते हुए भी इसे पूरे रास्ते भर झेलना पड़ेगा।”
मन ही मन भगवान को कोसने लगी। उसकी मौजूदगी ने मेरे अंदर खलबली सी मचा कर रख दी थी। रचना भी आ गई। उसे देख रचना भी नाक भौह सिकोड़ते हुए मेरे पास आ बैठी।हम दोनों ही असहज महसूस कर रहे थे। हमारी ट्रेन कानपुर स्टेशन छोड़ चुकी थी। वो हमे ही देख रहा था। उसने खुद को सहज करते हुए रचना से ट्रेन का जबलपुर पहुँचने का समय पूंछा। रचना ने अनमने मन से जवाब दिया। “कल ट्रेन सुबह लगभग 9:30-10 बजे तक पहुंचा देगी जबलपुर।” ”
हम्म…ओके! थैंक्स मिस..??? अगर आप अपना नाम भी बता देती तो थैंक्स बोलना और भी अच्छा लगता। बाई द वे आइ ऍम राजीव मिश्रा फ्रॉम मुंबई।” राजीव ने मुश्कुराकर रचना की तरफ हाथ आगे बढ़ाया। रचना ने पहले मेरी तरफ देखा फिर थोड़ा हिचकते हुए उसने भी अपना हाथ आगे बढ़ाया।
” आइ ऍम रचना फ्रॉम बाँदा।”
“सॉरी मिस रचना…मै हर किसी को उसके पूरे नाम के साथ बुलाना पसंद करता हूँ । अगर आप अपना पूरा नाम बता सके तो अच्छा होगा।”
“हम्म..ओके! मेरा पूरा नाम रचना गर्ग हैं मै इंजीनियर हूँ और लखनऊ में जॉब करती हूँ और अभी मै होली की छुट्टी पे अपने घर जा रही हूँ। बस..और कुछ जानने में आपको अच्छा लगे तो वो भी पूँछ लीजियेगा मै जरुर बता दूंगी।”
रचना गुस्से में बस बोले जा रही थी। उसकी इस हरकत ने मुझे हैरान कर दिया। मैं सोच में पड़ गई कि ये लड़की पागल हैं क्या! कोई लड़की किसी अजनबी से अपने बारे में ऐसे कैसे बता सकती हैं। खैर, इसमें मै कर ही क्या सकती थी…ये उसका मामला था और बाकी वो खुद समझदार हैं। फ़िर भी मैंने उसे आँख दिखा कर चुप रहने का ईशारा किया। रचना तो शांत बैठ गई लेकिन मिस्टर राजीव मिश्रा कहा चुप बैठने वाले थे। अचानक हसने लग गया और रचना से बोला, ” देखिये मिस रचना गर्ग! मेरा मकशद आपको परेशान करना नही था अगर आप परेशान हुई हो तो उसके लिए मैं आपसे माफ़ी माँगता हूँ।”
“नो! नो! इट्स ओके!” रचना ने मुश्कुराकर जवाब दिया। नशे में होने के बावजूद भी राजीव ने खुद को काफी कण्ट्रोल कर के रखा था। उसकी ये बात मुझे अच्छी लगी। दोनों की बात चीत शुरु हो चुकी थी और टॉपिक था…एजुकेशन एंड जॉब! और मैं…मैं तो बस उन दोनों की बातें चुपचाप मूक दर्शक की तरह सुनती रही। उस दौरान मैंने पहली बार राजीव को गौर से देखा। डार्क ब्राउन आईज, वेल सेट हेयर, फेयर कलर, रेड लिप्स एंड ऊपर से नीचे तक वेल मेन्टेन। राजीव इतना हैण्डसम और स्मार्ट था कि उसके इस आकर्षण से खुद को बचा ना सकी। उस वक़्त मेरी नज़रों में मेरे सामने दुनिया का सबसे हैण्डसम लड़का बैठा था। मैं तो बस…उसे एकटक निहारती रह गई। अचानक हम दोनों की नजर आपस में टकराई। मैं सकपका सी गई और तुरंत इधर उधर देखने लग गई।
” हेल्लो…मिस???” राजीव ने मेरी तरफ देखते हुए बोला। मैं तो घबरा गई उस पल लगा जैसे मेरी चोरी पकड़ी गई हो। मेरा दिल ज़ोरों से धक् धक् कर रहा था।
“ज..जजज..जी! हा बोलिए!” मेरी जबान तो जैसे लड़खड़ा सी गई।
” ओह्हो! सॉरी मिस मैंने आपका तो नाम पूँछा ही नही…प्लीज! अपना नाम तो बता दीजिये।”
मैंने अपनी धडकनों को काबू में करते हुए जवाब दिया,”जी! मेरा नाम अदिति मिश्रा हैं।” मैं जानती थी कि राजीव को पूरा नाम बोलने की आदत थी और नही बताया ना तो फिर से पूँछेगा इसलिए पूरा नाम बताने में ही अपनी भलाई समझी।
“हम्म! लगता हैं आपको कम बोलने की आदत हैं। अच्छी बात हैं। आइ लाइक इट!” राजीव ने मुश्कुराते हुए बोला।
“नही! नही! ऐसी कोई बात नही हैं।” मैंने हँसते हुए बोला। बातों बातों में कब बाँदा आ गया पता नही चला। रचना ने अपना सामान उठाया और जाने लगी हम दोनों भी उसी के साथ उसे गेट तक छोड़ने आये और रचना को बाय बोला। वो चली गई और हम वापस अपनी सीट पे जा बैठे। फिर से हमारी बात चीत का सिलसिला चल पड़ा। बातों ही बातों में राजीव ने अपने फ़ोन में पड़े पर्सनल फॅमिली फोटोग्राफ़्स दिखाये।जो बहुत ही प्यारे फोटोग्राफ्स थे। राजीव मुबई से था और पुणे में बिप्रो कंपनी में एच आर मैनेजर था। कानपुर इंटरव्यू लेने आया था और इसी सिलसिले में जबलपुर जा रहा था।
हम दोनों आपस में इतने घुलमिल से गए कि हम एक पल को भूल ही गए की कुछ घंटे पहले तक हम एक दूसरे के लिए अजनबी थे। वो अज़नबी मुझे अपना सा लगने लगा और सोचती रही कि ये सफर यूं ही चलता रहे और कभी खत्म ना हो लेकिन मेरी कोरी कल्पनाओं को पूर्णविराम तब लगा जब सुबह हो चुकी थी और बस लगभग मेरा भी स्टेशन आने ही वाला था।मैंने अपना सारा सामान समेटा और गेट के पास जा खड़ी हुई और राजीव भी मेरे पीछे पीछे मेरे पास आ खडा हुआ। वो सुहाना सफर अपने अंतिम चरण में था। राजीव और मेरा साथ बस यही तक का था। मैं उस पल को अपनी आँखों में भर लेना चाहती थी इसलिए मै राजीव को तब तक निहारती रही जब तक कि मेरा स्टेशन नही आ गया।
भैया स्टेशन आ चुका था। मैंने जल्दी से राजीव को बाय बोला और भैया के साथ घर की ओर निकल गई। मैं अपने साथ इस सफर की और उस अजनबी की मीठी यादें साथ ले कर जा रही ही थी। परिवार के साथ छुट्टी का वो हफ़्ता कैसे गुज़रा पता ही नही चला। और फिर से मुझे लखनऊ के लिए सफर करना था। मैंने दुखी मन से घरवालों से विदा लिया। ट्रेन तो वही थी पर बोगी बदल गई थी। इस बार मुझे कानपुर स्टेशन अपना सा और भी ख़ास लगने लगा था। फिर से वही स्टेशन और एक पल में आँखों के सामने सब कुछ घूम सा गया। मैं बाथरुम जाने के लिए उठी और जैसे ही गेट के पास पहुंची वहाँ बहुत सारे लोग खड़े हुए थे। उन सबको हटाने के उददेश्य से मैंने बोला,”एक्सक्यूज मी! आगे जाने की जगह देंगे प्लीज्!”
उन सब मे से एक सक्श अचानक मेरी तरफ घूमा। उसे देखते ही मेरी आँखें फटी की फटी रह गई और अचानक आश्चर्यमिश्रित ख़ुशी के साथ मेरे मुंह से चीख सी निकल गई, ” र..र..रा राजीव! तुम फिर से यहाँ???”
वो हँसा और बोला,” जी मैडम! मैं भी जबलपुर से ही लौट रहा हूँ और कुछ काम पेंडिंग हैं इसलिए कानपुर जा रहा हूँ। और तुम सुनाओ छुट्टी कैसी रही तुम्हारी?”,
“बस बढ़िया रही और बहुत एन्जॉय भी किया। राजीव सुनो….!!!”
मेरी बात पूरी भी नही हो पाई थी कि ट्रेन अचानक चल दी और राजीव जल्दी जल्दी हड़बड़ी में नीचे उतरते हुए बोला, ” आइ ऍम सॉरी अदिति मिश्रा! मुझे जाना होगा। बाय!”
मैंने भी मायूस हो के हाथ हिलाते हुए राजीव को बाये बोला और उसे तब तक देखती रही जबतक स्टेशन पीछे छूंट नही गया। “शिट्ट! मुझे राजीव का नंबर लेना था इस बार फिर नही ले पाई। यार! मैं कितनी बड़ी पागल हूँ अब पता नही हमारी मुलाक़ात होगी भी या नही या शायद आख़िरी ही थी..!!!”
एक जोर की सर पे थप्पी मारी और भुनभुनाते हुए वापस जा बैठी अपनी सीट पे। अपने आप पे बहुत ज्यादा गुस्सा आ रहा था। खैर, कर भी क्या सकती थी अब जो होना था सो हो गया । वापस अपनी पुरानी रोजमर्रा वाली जिन्दगी में व्यस्त हो गई, फिर से वही ऑफिस और वही काम और सिर्फ काम। लेकिन इतनी व्यस्तता के बावजूद भी वो अजनबी मेरे दिल के किसी कोने में अपनी मौजूदगी का एहसास जरुर कराता और वो एहसास मेरे अन्दर ख़ुशी, उमंग और जज़बातों का शैलाब भर के जाता। पता नही क्यों मैं उसके सपने देखने लगी थी। ख़ाली वक़्त खुद से सवाल जवाब करती रहती कि उस अज़नबी का बार बार एक ही जगह मुझसे टकराने का क्या मतलब था? मैं क्या समझू इसे…भगवन का इशारा, संजोग या खाली इत्तेफ़ाक….!! मेरे पास उससे संपर्क करने कोई ज़रिया नही था। फ़िर भी एक उम्मीद ज़रुर थी कि अगर कभी हम फिर से टकराये तो उससे अपने दिल की बात ज़रुर बताऊँगी और नंबर लेना बिलकुल भी नही भूलूँगी।
एक बार फिर से किश्मत मुझपे मेहरबान हुई। ऑफिस की तरफ से मुझे जरुरी मीटिंग के सिलसिले में अलाहाबाद जाना था।मैंने जल्दी जल्दी सामान पैक किया और स्टेशन आ गई। ट्रेन लेट थी सो स्टेशन में ही खाली बेंच पे बैठ गई। कभी घड़ी की तरफ देख रही थी और कभी आते जाते लोगों को। इन्तजार करना कितना बुरा लगता हैं। अचानक किसी ने पीछे से मेरे कंधे पे हाथ रखा। मैंने चौंक के पीछे पलट के देखा…..मेरी ख़ुशी मेरी किश्मत एक बार फिर से मेरे सामने खड़ी थी। एक पल में मुझे लगा की मुझे मेरा जवाब मिल गया हो। और अचानक मुझे रोमांटिक हिंदी फिल्मों की तरह वोइलेन सुनाई देने लगा।
” ओं हाय मैडम! व्हाट ए को इंसिडेंट…चक्कर क्या है बॉस! हर बार मिल जाती हो।” राजीव ने छेड़ते हुए बोला।
“नही…नही! ऐसी कोई बात नही हैं। राजीव! मुझे तुम्हारा नंबर चाहिए था और कुछ बोलना भी हैं।” मैंने शर्माते हुए बोला।
“हा..हा बोलो क्या बोलना हैं लेकिन मुझे भी तुम्हे कुछ बताना हैं और दिखाना भी हैं लेकिन सबसे पहले मैं बताऊंगा फिर तुम बताना ओके!” राजीव ने चहकते हुए बोला और अपने बैग से पेन पेपर निकाले और फटाफट अपना नम्बर नोट करके मुझे थमाया। उस वक़्त मेरे पाँव ज़मीन पे पड़ ही कहा रहे थे, मैं तो जैसे हवा में ही उड़ रही थी। प्यार का नशा इतना भी खूबसूरत होता हैं ये कहा मालुम था। मैं बहुत खुश हुई ये सोच के कि राजीव भी वही महसूस कर रहा हैं जो मैं उसके लिए करती हूँ इसलिए वो अपने दिल की बात बोलना चाहता हैं शायद। मेरे कान वो लफ्ज़ सुनने के लिए तरस रहे थे।
” ओके..राजीव! जल्दी बोलो न क्या बोलना हैं मेरी ट्रेन आ चुकी हैं वरना छूट जायेगी।” मैंने बेशब्रों की तरह बोला।
राजीव अपने फ़ोन में एक लड़की की फोटो दिखाते हुए बोला, ” ये देखो ! ये साँची दुबे हैं मेरी मंगेतर। अगले महीने मेरी शादी हैं और तुम्हे आना हैं बस।”
उस पल लगा जैसे किसी ने ऊपर से जमीन पे ला पटका हो। मेरे सपनों का महल उस एक ही पल में ताश के पत्तों की तरह ढेर हो गया। मैंने ख़ुद को संभालते हुए उसे बधाई देते हुए बोला,”बहुत बहुत बधाई तुम दोनों को एंड बेस्ट ऑफ़ लक! राजीव मुझे अभी जाना होगा वरना मेरी ट्रेन मिस हो जाएगी। बाय!”
मैंने फटाफट बैग उठाया और बिना उसकी बात सुने ही जाने के लिए मुड़ी। मेरी आँखों में जज़बातों का शैलाब उमड़ रहा था। मेरी आँखें आंसुओं से डबडबा गई थी। शायद मुझे उन सभी सवालों का जवाब मिल चुका था जिसे मैं कब से ढूँढ रही थी। अच्छे से समझ चुकी थी कि ये कोई संजोग नही था, खाली इत्तेफ़ाक था बस।
“क्या हुआ? बोलो न क्या बोलना चाहती थी?” राजीव ने मुझे पीछे से टोकते हुए बोला।
“अभी नही राजीव फिर कभी..बाय!” बिना उसकी तरफ मुड़े ही मैंने जवाब दिया और बिना देर किये फ़टाफ़ट तेज कदमों से आगे बढ़ गई और राजीव…वो आश्चर्य में मुझे जाते हुए देखता रहा…!!
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