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Ek anokhan pyar aisa bhi

Published by RASHMIRANI in category Hindi | Hindi Story | Love and Romance with tag college | death | friend | marriage

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Hindi Love Story – Ek anokhan pyar aisa bhi
Photo credit: gracey from morguefile.com

कॉलेज की सीढ़ियों पर कोने में बैठे अजित और स्वेता को बातें करते घंटों बीत जाते। कॉलेज के दोस्तों नजरें उन्हें प्रश्नवाचक चिन्ह के रूप में घूरते, पर प्यार करने वालों को कहाँ ज़माने की खबर होती है। उनके मन की इच्छा होती है की सनम का दीदार होता रहे.

दोनों एक छोटे से शहर के रहने वाले थे। संजोगवश दोनों ने एक ही कॉलेज में तीन साल पहले नामांकन करवाया। पहले -पहले निग़ाहें मिली, दोस्ती हुई अंत में दो दिल एक जान हो गए। दोनों पढ़ाई की बातें शेयर करते ,घर- परिवार की बातें फिर एक- दूसरे की यादों को साथ लिए अपने घर को वापस लौटते।

स्वेता आज कॉलेज नही आई है ,वह आगे भी कुछ दिन कॉलेज नही आ पायेगी। अजित को ये बातें दोस्तों से पता चली ,उसका मन दुखी हो गया,

अजित की छानबीन जारी रही की स्वेता क्यों कॉलेज नहीं आ रही है. खोजबीन के दौरान जो बातें सामने आई। स्वेता की माँ टी वी की गंभीर बीमारी से ग्रसित हैं।

अजित मन ही मन निश्च्य किया की स्वेता को और उसके परिवार की इस संकट की घड़ी में अपनी ओर से पूरी सहयोग करूँगा ,वह स्वेता के करीबी दोस्तों के साथ उनकी माता जी को देखने उनके घर गया। धीरे – धीरे स्वेता के माता -पिता को अजित का वयवहार काफी पसंद आया। अजित ने स्वेता के माता- पिता की दिलोजान से सेवा की।

इसके परिणाम स्वरूप उनकी माँ अब पूरी तरह स्वस्थ हो चुकी थी। स्वेता फिर से कॉलेज आने लगी। दोनों जोड़े अब और करीब आ चुके थे ,दोनों ने मास्टर डिग्री पूरी कर ली थी। अजित डिग्री पूरी करने के बाद अपना व्यापार शुरु कर दिया। और स्वेता अपनी माँ के साथ घर के काम सिखने लगी क्योंकि उसकी शादी के लिए वर ढूंढे जा रहे थे।

दोनों ने आगे शादी करने का निर्णय लिया। दोनों ने अपने दिल की बातें माता- पिता को बताई। स्वेता के माता -पिता इस बात के लिए राजी नहीं थे क्यूँकि लड़का दूसरे कास्ट का है। स्वेता का अजित से मिलना -जुलना बंद हो गया। स्वेता को अजित के बिना सबकुछ अच्छा नहीं लग रहा था. एक दिन स्वेता को अजित से दुरी इतनी नगवार गुजरी की उसने अपनी कलाई की नस काट ली , ये तो ईश्वर की कृपा थी की उसकी जान बच गयी।

दूसरी तरफ अजित के घर भी कोहराम मचा था। पर अजित ने फैसला सुना दिया की अगर वो शादी करेगा तो स्वेता से वरना शादी करेगा ही नहीं। दोनों के घर वाले के आगे अब शादी के लिए हाँ करने अलावा कोई और रास्ता नहीं था।

दोनों के परिवार जन मिलकर शादी की तारीख तय की। अजित और स्वेता को तो मानो पूरी दुनिया की खुशी उनकी झोली में आ गिरी हो। शादी के लिए कपडे -गहने खरीदे जा रहे थे ,स्वेता अजित की पसंद के लहंगे- चूड़ियाँ,गहने खरीद रही थी। उधर दूल्हे राजा भी ब्रांडेड शेरवानी ,जूतें ,बेल्ट ,टाई ,कोट खरीदने में लगे थे। अजित और स्वेता की फोन पर बातों का अंतहीन सिलसिला मानों खत्म होने का नाम ही न लेता।
सारी रस्में सुरु हो गयीं ,मेहँदी, संगीत। आज वो फेरों की घड़ी आने वाली थी। लाल रंग के सुर्ख जोड़े में सजी दुल्हन आज बस अपने प्रियतम के लिए भर कर सज रही थी की जब पिया उसे देखें तो और किसी को देखने की चाहत ही न रहे। इसी ख्यालों में खोयी कब बारात दरवाजे पर आई पता ही न चला। पता भी कैसे चले सपना हकीकत होने जा था। स्वेता वरमाला लिए अजित के सामने नजरें झुकाएं खड़ी थी। बहुत ही सुंदर लग रहे थे दोनों की निगाहें मिली मुस्कुरा कर अभिवादन किया। दोनों ने एक -दूसरे को माला पहनाई मानों दोनों ने अपनी जीवन की डोर एक -दूसरे के हवाले हो। वर -वधु पछ वाले इस लम्हें को कैमरे में कैद करने को आतुर थे।

अब चंद कदम की ही दूरियां थी स्वेता अजित को में। रस्मों -रिवाजों का दौर चलता जा रहा था. बारात वाले खा रहे थे ,नाच गा रहे थे ,बातें कर रहें थे। दोनों पछ काफी उत्साहित थे। सहनाई बज रहे थे। समय कब बिता फेरों का समय कब आ गया। दोनों ने फेरे लिए ,अजित ने स्वेता की मांग में सिंदूर भरा स्वेता की आखें ख़ुशी से भर आयी। स्वेता और अजित की इंतजार की घड़िआं खत्म होने वालीं थी। सिंदूर दान के बाद स्वेता वापस सीढयों से कमरे की ओर जा रही थी की उनका पैर फिसला और वो निचे गिर गयीं। सर से खून गिर रहा था। वो बेहोश हो चुकी थी। डॉक्टर के पास ले जाया गया जहाँ डॉक्टर ने कहा यह मर चुकीं है। सर में ज्यादा चोट के कारण ऐसा हुआ।

दोनों पछ के बीच रुदन पसर गया। अजित की तो मानों अपनी आँखों पर विश्वास नहीं हो रहा था। अजित तो वर्फ की तरह जम गया था। उह अपने आप से पागलों की तरह सवाल कर रहा था। ईश्वर इस तरह मेरे प्यार को मुझसे छीनना था तो मुझसे मिलाया क्यों?उसका साथ शुरू होने से पहले ही खतम।

ये ऐसे सवाल थे जिसका जवाब शायद किसी के पास नहीं था। वह जोर -जोर से रो रहा था। स्वेता तू कहाँ चली गयी ?थोड़ी देर बाद उसने प्यार को विदा करवाके अपने घर ले जाने की अनुमति सास-ससुर से मांगी। उन्होंने कलेजे पर पत्थर रख विदा किया। ये ऐसी अनोखी शादी की विदाई थी जहां वर पछ वाले सभी रो रहे थे।  दूल्हा अपनी दुल्हन की डोली की जगह अर्थी लिए जा रहा था।

स्वेता की अर्थी ससुराल पहुंची। ने आरती उतारी। गृह प्रवेश कराया। फिर कपडे बदल बहु को अंतिम बिदाई दी। सास -ससुर ,सारे परिवार सभी रो रहे थे। पूरा समाज रो रहा था। अजित अपनी कन्धों पे अपने प्यार को अंतिम सफऱ के किये साथ ले कर जा रहा था। उसके आगे प्यार के साथ बिताये पल याद आ रहे थे। उसने अपने आप से कहा अब तुम्हरी इन्ही यादों के सहारे पूरी जीवन काट लूंगा। तुम्हारे अधूरे सपनो पूरा करना मेरे जीवन का उदेश्य रहेगा। तुम मर कर भी मेरे यादों में हमेसा जिन्दा रहोगी। अजित ने इन्हीं वचनो के साथ अपने प्यार को अंतिम विदाई दी।

तुम होते तो जीवन और हसी होतो ,
कोई बात नहीं तुम मेरी हो।
इन्हीं यादों के सहारे जी लेंगे

इन्हीं पंक्तिओं के साथ ये कहानी का मै अंत कर रहीं हूँ दोस्तों एक प्यार ऐसा भी होता है।

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