अपने जीवन के सबसे खूबसूरत सफर के लिए वो ट्रेन में चढ़ चुका था। यद्यपि वसंत ने दहलीज दे दी थी फिर भी पसीने से वो तर था। उसने अपना सामान सीट पर रखा। कुछ सुस्ताया और अंततः ट्रेन से पीछे छूटते अपने शहर को देखने लगा।
वो फिल्में देखने का शौकीन था और कभी-कभी कोई समझ आने वाली किताब भी पढ़ लेता था। कभी कोई फिल्मी गाना उसके भीतर कौंध आता और कभी किसी किताब का पढ़ा हिस्सा। बढ़ती ट्रेन की गति में उसने अपने प्रिय लेखक निर्मल वर्मा को याद किया, चीड़ों पर चाँदनी किताब की शुरूआत निर्मल ने कुछ यूँ की थी।
एक पुरानी चीनी कहावत हैः हजार मील की यात्रा एक छोटे कदम से आरंभ होती है। किंतु कौन से अनजाने क्षण हम वह कदम आँख मूँद, ले लेते हैं, यह आज भी मेरे लिए रहस्य बना है।
और उसकी यात्रा का रहस्य क्या है?
इलाहाबाद में पत्रकारिता की पढ़ाई करने के बाद अनूपपुर लौटना उसे जेल की बड़ी बैरक से निकलकर कालकोठरी में पहुँच जाने जैसा अनुभव लगा था। वो साइबेरियन पक्षियों की तरह उड़ना चाहता था, एक लंबी उड़ान। सैकड़ों किमी दूर एक नये देश में।
उसने अपने पिता से बगावत की थी, वह उनके प्रिटिंग प्रेस के कार्य को आगे नहीं बढ़ाएगा, वो दुनिया घूमना चाहता है अपने मर्चेंट नेवी वाले अंकल की तरह। मुँबई से निकलने वाली हर वैकेंसी भर देने की वजह भी यही थी कि शायद यहाँ से मर्चेंट नेवी के लिए रास्ता खुल जाए। शायद इसीलिए तो उसने लिंटास के लिए आवेदन कर दिया था ताकि हजार मील यात्रा का पहला कदम दृढ़ता से रख पाए।
आबादी पूरी तौर पर खत्म हो गई। चारों ओर सरसों के खेत फैले थे। ये वासंती हवा में डोल रहे थे। उसे अचानक त्रिलोचन की पंक्तियाँ याद आ गई जिन्हें वो पूरे भाव से गुनगुनाने लगा।
सघन पीली ऊर्मियों में बोर हरियाली सलोनी, झूमती सरसों प्रकंपित वात से अपरूप सुंदर
धूप सुंदर, धूप में जग रूप सुंदर सहज सुंदर
लेकिन वह बहुत लंबे समय तक सौंदर्य की दुनिया में खोया नहीं रहा। उसने अपने को संभाला और झटपट किताब निकाल ली। उसे लिंटास कंपनी ने मुंबई में क्रियेटिव हेड के पद के साक्षात्कार के लिए आमंत्रित किया था। कंपनी ने टाइम्स आफ इंडिया में एक एड निकाला था जिसमें कुछ स्लोगन आमंत्रित किए थे। उसकी किस्मत थी कि उसने अपनी सहज प्रतिभा से कुछ अच्छे स्लोगन लिख दिए थे। उसे मालूम था, आगे की डगर आसान नहीं थी। उसने पत्रकारिता में डिग्री जरूर ली थी लेकिन पत्रकारिता का उसका एकेडमिक स्तर जीरो था जो भी उसने रटा-रटाया था, छह महीनों के अंतराल में कहाँ हवा हो गया, उसे पता नहीं चला। फिर भी चूँकि वो फिल्में देखने का शौकीन था और इनसे जरूरी प्रेरणा भी लेता था। उसे बार-बार गीता बाली याद आती थीं, जब वो निराश होता तो आँखों के आगे नाचने लगती।
तदबीर से बिगड़ी हुई तकदीर बना ले, अपने पे भरोसा है तो एक दाँव लगा ले, लगा ले दाँव लगा ले।
विज्ञापन डिजाइन की ऊबाऊ दुनिया से उसका बार-बार ध्यान हट जाता और वो खिड़की से झाँकने लगता। फिर वही एक जैसे दृश्य और डूबता हुआ सूरज, वो फिर किताब में डूब जाता। जिस सीट में वो बैठा था, उसके सामने एक बाबू मोशाय बैठे थे। वे गीतांजलि पढ़ रहे थे, उसने बहुत उत्सुकता से संवाद कायम करने की कोशिश की लेकिन बाबू मोशाय ने ऐसा उत्तर दिया कि वो चकित रह गया। बरखुरदार यात्रा लंबी है और टाइम पास करना जरूरी है सो टैगोर को साथ रखा है।
वो ट्रेन जैसे पढ़ने वालों के लिए ही रिजर्व की गई हो। अगले स्टेशन पर एक और लड़की चढ़ी। वो सांवली सी आधुनिका थी। उसने चश्मा लगाया था और जींस और कुर्ता पहना हुआ था। अपने बैग व्यवस्थित रखने के बाद उसने एक पुस्तक निकाली “द ओल्ड मैन एंड द सी”। लड़की से ज्यादा इस किताब ने उसे रोमांच से भर दिया। उसने हैमिंग्वे के बारे में पढ़ा था कि वो अमेरिका का सबसे बड़ा किस्सागो था। द ओल्ड मैन एंड सी एक मछुआरे पर लिखी किताब है जिसे काफी प्रसिद्धि मिली और लेखक को नोबल पुरस्कार। कहते हैं कि इस पुस्तक को लिखने के बाद हैमिंग्वे ने खुद को गोली मार ली थी। हैमिंग्वे के आकर्षण के चलते पूरे चार सौ रुपए बर्बाद कर उसने यह पुस्तक खरीदी थी लेकिन कुल चार जमा पेज ही पढ़ पाया कि हथियार डाल दिए।
खैर वो आधुनिका हैमिंग्वे के सौंदर्य में डूब चुकी थी, आधी पुस्तक पढ़ चुकी थी। उसने सुन रखा था कि ट्रेन के पहले दर्जे में लोग बिजनेस मैग्जीन और अंग्रेजी फिक्शन, दूसरे दर्जे में मोटिवेशनल किताबें और तीसरे दर्जे में सत्यकथा पढ़ते हैं। लेकिन यह कन्याकुमारी तो परंपरा से अर्जित समस्त ज्ञान पर प्रश्नचिन्ह लगा रही थी? उसकी नफासत ऐसी थी और वो अपने में इस तरह सिमटी हुई थी कि उसके एकांत को भंग करने का साहस वो न कर सका। उसे उम्मीद थी कि हैमिंग्वे की यह यात्रा पूरे सफर भर चलेगी लेकिन अगले ही स्टेशन में हैमिंग्वे साहब उसी तरह उसे बीच में छोड़कर चले गए जैसे उसने उन्हें चार पेज बाद ही रूसवा कर दिया था।
शाम उतर चुकी थी और अगले स्टेशन में दो सवारियाँ चढ़ीं। माँ और बेटी। पिता उन्हें छोड़ने आए थे। ट्रेन के चलने के बाद उथलपुथल थमी और उसने देखा कि लड़की के हाथ में एक किताब है अहा जिंदगी इसमें आमिर खान की फोटो थी, शायद वो अहा अतिथि थे। उसे लगा कि चलो दुनिया में एक लड़की तो है जो सलमान को पसंद नहीं करती। फिर वो विज्ञापन की किताब में खो गया। शाम को साढ़े आठ बजे चुके थे। अचानक उसे लगा कि वो लड़की उससे कुछ कहना चाह रही है। उसका अंदाजा सही निकला। लड़की ने उत्सुकता प्रकट की। आप क्या पढ़ रहे हैं उसने बताया कि वो प्रसून जोशी की पुस्तक पढ़ रहा है। लड़की ने कहा कि आप खूब पढ़ाकू लगते हैं मैं दो घंटे से आपको वॉच कर रही हूँ शायद आपका कोई एक्जाम है। वो सरपट बोलती चली गई…… क्योंकि ट्रेन में मैंने केवल एक बार पढ़ाई की थी जब कैट का एक्जाम दिया था। इसमें इतना व्यवधान होता है कि एकाग्रता बन ही नहीं पाती।
पेपर के पहले दिन मैंने पढ़ने की कोशिश की थी लेकिन बुरी तौर पर असफल रही थी। फिर टेंशन में नींद नहीं आई और पेपर खराब हो गया।
वो लगभग श्रोता की स्थिति में था और वो डिटेल्स दिए जा रही थी।
लड़की ने फिर पूछा, आप एकदम नई तरह की किताब पढ़ रहे हैं प्रसून जोशी की, क्या किसी तरह का इंटरव्यू है। जवाब जानकर मुस्कुराते हुए कहा तो फिर क्या आप सलेक्ट होकर उसी तरह के स्लोगन बनाएँगे, ये दिल माँगे मोर और गूगली बुगली बुश जैसे।
लड़के ने कहा बिल्कुल।
आपकी फील्ड बहुत इंट्रेस्टिंग है कहते हुए लड़की ने पुस्तक माँग ली। उलट-पलट कर देखा और कहा कि मुझे भी यह सब अच्छा लगता है। कॉलेज के दौर में मैंने सोचा था कि एनएसडी में एडमिशन लूँगी लेकिन जब पता चला कि मुझे शेक्सपीयर के तीन नाटक जुबानी रटने होंगे और कालिदास भी, तो मेरी हिम्मत जवाब दे गई और मैंने चुपचाप कंप्यूटर साइंस में एडमिशन ले लिया।
फिर शेक्सपीयर साहब छूट गए होंगे, लड़के ने वन वे ट्रैफिक को रोकते हुए पूछा?
जवाब आया, ग्रेज्यूएशन के बाद कैट दिया, एमबीए के दूसरे एन्ट्रेंस एक्जाम्स भी दिए लेकिन अच्छे कॉलेज में एडमिशन नहीं मिला। फिर लगा कि मैंने गलती की, इससे अच्छे तो शेक्सपीयर साहब ही थे, , मैंने पापा से कह दिया टू बी आर नाट टू बी, अब तो शेक्सपीयर ही पढ़ूँगी और इंग्लिश लिट्रेचर में एमए करने का फैसला कर लिया।
आप इंग्लिश लिट्रेचर कैसे झेल लेती हैं? मैंने भी पत्रकारिता से पहले इंग्लिश लिट्रेचर पढ़ने की कोशिश की थी लेकिन कुछ सॉनेट पढ़कर ही दम घुटने लगा।
उधर से जवाब आया? ओह तो आप प्रसून के अलावा भी कुछ पढ़ते हैं? मुझे अच्छा लगा कि आपने सॉनेट पढ़ने की कोशिश तो की। वैसे मैं बताऊँ कि मैं भी बेहद गंभीर साहित्य नहीं पढ़ पाती। मुझे वैसे ही नींद लग जाती है जैसे वर्ड्सवर्थ प्राकृतिक सौंदर्य देखने पर समाधि की अवस्था में पहुँच जाते थे।
फिर भोपाल स्टेशन आ गया। रात के खाने का वक्त हो गया था। माँ ने कहा कि खाना खा लेते हैं। इस तरह साहित्यिक विमर्श समाप्त हुआ। जल्दी-जल्दी खाना खाकर उसने प्रसून जोशी को पुनः पढ़ना शुरू कर दिया। खाना खा चुकने के बाद माँ ने सोने की इच्छा जताई। माँ के सोने से एक समस्या पैदा हुई। उसे भी ऊपर सोना पड़ता लेकिन एक तो अभी सोने का समय नहीं हुआ था और साहित्यिक विमर्श अभी शुरू ही हुआ था। उनकी सीट लोवर बर्थ और अपर बर्थ थी, लड़के की सीट साइड लोवर थी।
अचानक उसने लड़के से पूछा कि क्या मैं आपका थोड़ा समय ले सकती हूँ
लड़के ने कहा बिल्कुल। साहित्यिक विमर्श के लिए रंगमंच पूरी तौर पर तैयार था। अभी आप क्या कर रही हैं लड़के ने पूछा। उसने बताया कि मुंबई के कॉलेज आफ ड्रामैटिक आर्ट में सहा.प्रोफेसर के पद पर मेरा चयन हुआ है। सामान शिफ्ट हो चुका है पापा से मिलना था इसलिए आई थी।
लड़के ने कहा, मुझे बहुत खुशी हुई, आपकी जिंदगी रेल की तरह अब एक ट्रैक पर चलेगी। बहुत ही इत्मीनान की नौकरी है।
लड़की ने कहा कि आपको पढ़ते हुए देखा तो मुझे अपना पिछला इंटरव्यू याद आ गया। मैं काफी घबराई हुई थी, मुंबई आई, किसी ने बताया कि सिद्धि विनायक सारी इच्छाएँ पूरी करते हैं। उनके दरबार में मत्था टेका और आज देखिए कितनी खुश लग रही हूँ। आपकी भी सारी इच्छाएँ वे पूरी करेंगे। मैं आपके लिए भी उनसे प्रार्थना करूँगी।।
उसने यह बात इतने मासूम ढंग से कही कि लड़के की आत्मा के सारे तार झंकृत हो गये।
और जो सिद्धि विनायक ने आपकी बात न मानी तो, उसने प्रश्नचिन्ह की मुद्रा में लड़की की ओर देखा और खुद ही इसका उत्तर भी दे डाला। लिंटास में सलेक्शन नहीं होता है तो मेरे पास मर्चेन्ट नैवी का विकल्प है। बल्कि मैं तो इसे ही प्रिफर करूँगा। मैं दुनिया देखना चाहता हूँ। गांधी की आटोबायोग्राफी में जब जहाज बिस्के की खाड़ी पहुँचता है तो मेरा भी दिल मचलने लगता है। मैं चाहता हूँ कि गीजा के मीनार देखूँ। पेट्रा की गुफाएँ घूमूँ। एक शानदार सुबह उठूँ, डेड सी में चला जाऊँ। और समन्दर में लेटे हुए अखबार पढ़ूँ। मेरे अंकल मर्चेन्ट नेवी से रिटायर हुए हैं। जब वे दुनिया घूमकर हमारे छोटे से शहर के छोटे से घर में आते तो उनका सूटकेस बहुत से उपहारों से भरा होता। हम सबके लिए इसमें तोहफे होते, मेरे लिए वो अलादीन के चिराग जैसा था। मैं दूसरी दुनिया में पहुँच जाता। इससे भी रोचक होते अंकल के किस्से। वे छोटी-छोटी कहानियाँ सुनातें, उन देशों की लोककथाएँ सुनातें। उनकी विशेषता थी कि जहाँ जाते, वहीं के होकर रह जाते। मैंने मन में उनका नाम रखा था। अंकल सिंदबाद। सिंदबाद द सैलर। माई सैलर अंकल।
लड़की ने कुछ नाराजगी से कहा लेकिन आपने यह नहीं देखा कि बिस्के की खाड़ी आते ही कैसे गांधी के साथी मचलने लगे थे और अदन में तो…. बाप रे क्या भयावह समय होगा गांधी जी के लिए। उनके पुण्यकर्मों ने ही उन्हें पाप से बचाया होगा। मुझे तो अपना छोटा संसार ही अच्छा लगता है आपने मलयाली लेखक एमटी वासुदेवन नायर को पढ़ा है। वो केरल में भारतपुषा नदी के किनारे रहते थे। वे बार-बार कहते थे कि अनजाने महासमुद्र की तुलना में मैं जानी पहचानी नीला( भारतपुषा) को अत्याधिक पसंद करता हूँ।
लड़के ने कहा- आपकी बातें सुनकर मुझे वसीम बरेलवी की याद आ गई। सुना है कि वो कहते थे कि जब तक घर से निकल कर एक पान न खा लूँ और बरेली का बाजार न घूम लूँ, मुझे चैन नहीं आता इसलिए मैंने कभी मुंबई का रूख नहीं किया।
ओह बरेलवी साहब तो बिल्कुल मेरी तरह हैं उधर से जवाब आया। जैसे उड़ि जहाज का पंछी, फिर जहाज पर आयो।
एक शरारती मुस्कुराहट लड़के के चेहरे पर बिखर गई। फिर संभलते हुए कहा- मुझे तो लगता है कि आप सोलहवीं सदी की है जैसे बिल्कुल त्रेता युग से निकली हुई सीता मालवा एक्सप्रेस में साक्षात प्रकट हो गई हो। इतना प्योरिटन नहीं होना चाहिए।
ऐसी भी नहीं हूँ तभी तो मुंबई आ गई। आपको मालूम है आज सुबह जब मैं सफर की तैयारी कर रही थी। मैंने खिड़की के बाहर देखा, एक चिड़िया मिट्टी इकट्ठा कर रही थी। एक घंटे में उसने आधा घोंसला तैयार कर लिया। सबसे सुंदर दृश्य वो था जब अंतिम रूप से घोंसला तैयार कर उसने इंटीरियर पर नजर डाली। अपनी भाषा में कहा होगा, ओके और बच्चों को शिफ्ट करने चल दी होगी। और देखिये मैं अपना आशियाना उजाड़कर मुंबई शिफ्ट हो रही हूँ।
लड़के ने फिर शरारत करने की कोशिश की। कहा वो चिड़िया मेल रही होगी। मैंने डिस्कवरी में देखा है कि चिड़ियों में मेल घर बनाते हैं और फिर फिमेल चिड़िया इंस्पेक्शन करती है जिस मेल का घर सबसे अच्छा होता है उसमें गृहप्रवेश हो जाता है। स्वयंवर जैसा सिस्टम चिड़ियों में भी होता है। लड़के हर जगह बेसहारा रहते हैं पता नहीं आपके घर की चिड़िया के घर का भविष्य क्या हुआ होगा, बसा होगा या बेबसे ही उजाड़ हो गया होगा।
तपाक से उधर से जवाब आया, मैं भी डिस्कवरी देखती हूँ। मैंने देखा है कि शेरनी बिचारी बड़ी मुश्किल से शिकार करती है और शेर महाशय अठारह-अठारह घंटे सोते हैं। मेल की प्रजाति हमेशा दुष्ट रहती है।
बातचीत का सिलसिला बढ़ ही रहा था कि अचानक लड़की ने देखा कि आसपास सभी सो गए हैं और अंतिम लाइट भी बुझाई जा चुकी है। उसने कहा शुभरात्रि, मैंने आज आपका बहुत समय नष्ट किया लेकिन मैंने आपसे काफी कुछ सीख लिया।
सुबह जब नींद खुली तो सब कुछ बदला हुआ था। शाम को जो रिश्ता इतना उजला और धुला नजर आ रहा था, सुबह के उजाले में वो फीका लगने लगा। संवाद की किसी तरह की संभावना समाप्त हो गई। उसने डीएनए खरीदा और भूल गया कि सामने कोई बैठा है जो देर शाम की बातचीत में कितना करीबी हो गया था।
फिर मुंबई स्टेशन के आने की हलचल तेज हो गई। लड़की ने सामान उतारने की तैयारी करनी शुरू कर दी। आखिर में अपनी मम्मी को उससे मिलाया। सर बहुत प्रतिभाशाली हैं कल हमने ढेर सारी बातें की, इनका साहित्य में काफी दखल है। फिर पर्स से एक कार्ड निकाला। कार्ड में लिखा था
गीता, चौथा माला, आशियाना, तीसरी लाइन वर्सोवा, मुंबई
गीता ने कहा आपसे किया वादा मैं निभाऊँगी, सिद्धी विनायक आप पर जरूर कृपा करेंगे। ऐसा कुछ हुआ तो जरूर सूचना देंगे, मुझे खुशी होगी। फिर अपना दाहिना हाथ लड़के की ओर बढ़ा कर विदाई की रस्म अदा कर ली। वह देर तक अपने हाथों को देखता रहा। फिर बेमन से अंदर से आवाज आई, अब चलो भई।
लिंटास का इंटरव्यू १२ बजे था लेकिन उसके मन में तो मर्चेंट नेवी का सपना घूम रहा था। उसने इंटरव्यू की औपचारिकता पूरी की। फिर शाम गुजारने मरीन ड्राइव आ गया। उस दिन मरीन ड्राइव में ज्वार आया था। समंदर अथाह उत्साह से उसे आमंत्रित कर रहा था। उसे कल सुबह का इंतजार था। उसे अपने मर्चेट नेवी वाले अंकल की ओर से सबसे प्यारा तोहफा मिला था। निर्मल ओबेराय के नाम एक सिफारिशी चिट्ठी। निर्मल की कंपनी में एक पोस्ट वेकेंट थी, सिफारिशी चिट्ठी ने उसे इस वेकेंसी का प्रबल दावेदार बना दिया था। समंदर की लहरों से अठखेलियाँ खेलते वो होटल पहुँचा।
सुबह उठकर उसने शेविंग करी। बाल अच्छे से जमाए। डिओ लगाया और अपना सबसे पसंदीदा शर्ट पहना जो निर्मल से मिलने के खास मौके के लिए उसने बनवाया था।
ज्वार ढल गया था लेकिन समंदर फिर भी पता नहीं क्यों बेचैन नजर आ रहा था और वो भी। पिछली रात के संवाद उसके मन में बार-बार कौंधने लगे। रह-रहकर गीता का कहा हुआ वो शब्द कौंधने लगा। अनजाने महासागर की तुलना में मैं जानी पहचानी नीला को अत्याधिक पसंद करता हूँ।
नीला नहीं गीता…… नीला नहीं गीता। फिर पता नहीं क्यों किसी अदृश्य शक्ति ने जैसे उसके पैर जकड़ लिए हों, उससे आगे नहीं चला गया। उसने वापसी का फैसला लिया। जैसे उड़ि जहाज का पंछी फिर जहाज पर आयो।
उधर गीता सिद्धि विनायक मंदिर पहुँच चुकी थी।
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