पता नहीं यह कहानी है कि कुछ और है … अगर कुछ और भी हो तो क्या फर्क पड़ता है ………यह कहानी कुछ और की है।
हाँ …… ठीक सोचा आपने। वह कुछ ऐसा ही था। दुनिया से अलग -थलग। बहुत प्यारा, परन्तु बेइंतहा तन्हा ……. बेतरतीब उसके बिखरे बाल भी यह प्रमाण देते थे कि उसे तो उसके सिर के बालों का भी कोई महीन सहारा नहीं था ,,,,,,,,, कारण?,,,,,,,,,वह `कुछ और`जो था। कभी- कभी आपको नहीं लगता कि जब हम कुछ और हो जाते है ………तो यह कुछ और हो जाना ही हमारे लिए अभिशाप हो जाता है- जैसे कि इसके साथ हुआ था।
होटल में बहुत भीड़ थी। यानि उसके बेशुमार दर्द से भी ज्यादा होटल में भीड़ थी। वह अनमने मन से एक तरफ खड़े होकर अपने लिए कोई महफूज जगह तलाशने लगा ………पर होटल में कोई भी जगह खाली नहीं थी। उसने चारों और दृष्टि घुमाकर गौर से देखा ……..लड़के -लड़कियाँ बैठे तो आमने -सामने थे ,परन्तु एक दूसरे की आँखों में ताक- झाँक ऐसे कर रहे थे,मानो कुछ चुराकर भाग जाना चाह्ते हो.……चाय के खाली कप नवयौवन की चूड़ियों की तरह वेटर की ट्रे में खनखनाकर न जाने किसके आने की ओर इशारा कर रहे थे। एक अजीब तरह का शोर होटल में बिखरता जा रहा था ………… उसे अपनी सुनी आँखों में कुछ गीलापन महसूस हुआ। उसने तुरंत अपनी आँखों की पलक बंद करके आंसुओं की उन मासूम बूंदों को आँखों में ही दफन कर दिया। अचानक उसकी नजर एक टेबल पर पड़ी। वहां एक उदास लड़की बैठी थी। चुपचाप। शायद अपने बॉय- फ्रेंड की प्रतीक्षा कर रही थी ………इधर होटल में ठहाके लग रहे थे। कुछ ठहाके ईमानदार तो कुछ ठहाके सचमुच बहुत बदतमीज और बेईमान थे।
उसने कुछ पल सोचा । फिर हिम्मत करके वह उस उदास लड़की की तरफ बढ़ चला ।
” क्या मै यहाँ इस खाली कुर्सी पर बैठ सकता हूँ ? ”
” क्यों ? ”
लड़की ने मानो उसके गाल पर एक चाटा जड़ दिया। पर वह हिम्मत करके बोला –
” नहीं -नहीं ऐसी कोई बात नहीं है ……….अगर आपके कोई बॉय -फ्रेंड आने वाले हैं तो मैं कहीं और चला जाता हूँ ……. और अगर यह सीट
खाली हो तो बैठ जाऊ क्या ? ”
अब लड़की ने उसकी तरफ कुछ अजीब तरह से देखा। लड़की को लगा कि उसके सामने खड़ा हुआ यह लड़का तो दुनियादारी के बारे में कुछ नहीं जानता …… ठीक ही तो सोच रही थी वह उदास लड़की। वह वास्तव में भेड़िया आँखों वाली इस दुनिया के बारे में कुछ नहीं जानता था.
अचानक तेजी से गुजरते हुए एक वेटर उससे टकरा गया। ट्रे में रखी चाय ट्रे में ऐसे गिर पड़ी मानो कभी -कभी बिना अपराध किए अपनी नजरों से गिर जाते हैं ”अरे भाई … बैठते क्यों नहीं … मैडम के सामने राष्ट्र ध्वज की तरह तनकर क्यों खड़े हो ?सीट खाली पड़ी है न ?बैठ जाओ ……. ”
”बैठिये ना ! ” पहली बार उस उदास लड़की ने कुछ तरस खाकर कहा। वह तुरंत एक आज्ञाकारी बच्चे की तरह कुर्सी पर बैठ गया। पर बैठते ही उसकी धड़कन नगाड़े की तरह धक -धक करके धड़कने लगी। पहली बार उसने उस अजनबी लड़की को ध्यान से देखा था। कच्चे कमल के फूल से उसके दमकते चेहरे में से एक कच्ची गंध के रिसाव को उसने महसूस किया। लड़की की ऑंखें तो ऐसी थी मानो आलिंगन कर रही हो ……. उसके लम्बे -लम्बे काले घुंघराले बाल उसकी पीठ पर ऐसे झूल रहे थे ,जैसे किसी हरे -भरे ताजा उभरते पेड़ पर सावन का कोई ताजा झूला टहल रहा हो। किसी की प्रतीक्षा कर रहा हो।
” मुझे `सहारा `कहतेहै ! ” अचानक लड़की बोली !
”जी मुझे …… मुझे बेसहारा कहते है.……………… ” वह पागलो की तरह उसकी सुंदरता पर मोहित होकर सच बोल पड़ा था …लड़की खिलखिलाकर हंस दी ……
”क्या आपका अभी तक कोई नाम नहीं रखा गया है ?”
” नहीं … ”
और उसके सूखे होठो पर फटा हुआ सन्नाटा पसर गया।
” अच्छा बताओ … क्या मैं सुन्दर हुँ ? ” लड़की ने उसे कुछ छेड़ते हुए पूछा।
” नहीं -नहीं …. आप सुन्दर नहीं है …….बल्कि बेहद सुन्दर है
”वेटर चाय लाओ ”` लड़की ने प्यार से मुस्कुराते हुए आर्डर दिया।
” आपके घर में कौन -कौन है ?” सहारा ने अपने हाथ -हथेली अब टेबल पर रख कर उससे दोस्ताना अंदाज में पूछा।
”जी मेरा कोई नहीं है…..इस लिए घर नहीं है।” वह कुछ दार्शनिक अंदाज में अपनी आँखो में छुपाकर बैठे आंसुओं पर पलकों का परदा गिर
होटल में भीड़ बढ़ती ही जा रही थी।पत्नियां अपने पतियों का हाथ पकड़ कर इधर -उधर खाली कुर्सियों की तलाश में भटक रही थी। इधर होटल में धीमी आवाज में मुकेश का कोई पुराना गीत बजा रहा था। ……
”कही दूर जब दिन ढल जाये ……”(फिल्म आनंद ) उसने कुर्सी पर बैठे -बैठे होटल को ध्यान से देखा। उसे लगा …. यह कोई होटल थोड़े है ,बल्कि घर से भागे हुए लोगो का शरणार्थी शिविर है।
” क्या सोच रहे है आप ? ” लड़की ने चाय का कप उसकी तरफ सरकाते हुए पूछा।
”यहाँ इतनी भीड़ क्यों है ? ”
‘शायद इसलिए कि भीड़ ही बारात में बदल केर जीवन को सुरक्षित करती है।”
लड़की की आखे चमक उठी थी।
मैडम …. क्या आपके बॉय फ्रेंड आ गए है ?
हाँ …… आ गए है।लड़की ने सर झुका कर कहा।
और इस तरह एक होटल की भीड़ फिर दो आत्माओ के मिलान की बारात बन गई।मै जनता हुँ कि आज पूरी दुनिया की होटलों में नए ज़माने की यह आधुनिक शादियाँ रोज होती है ,और घरों में जाकर टूट जाती है। मुझे मालूम नहीं कि यह होटल `घर `बन गए है कि घर` होटल `बन गए है।
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रवि दत्त मोहता
17E/461 CHB
जोधपुर