पंखुड़ी और आशु दो जिस्म एक जान हो चुके थे। आज दोनों अपनी शादी -शुदा जिंदगी का लुत्फ़ उठा रहे है. अचानक पंखुड़ी ने आशु को गले से लगाते हुए ,अपनी पुरानी यादों को यादकर रोने लगी। आशु ने कहा हमारी मेहनत रंग लायी। है. हम आज अपनी मंजिल को पा चुके है।
आशु और पंखुड़ी के सामने सारी बीती बातें मानो परदे पर फिल्म तरह दिख रही थी. मानो कल की ही बात हो। पंखुड़ी और आशु बचपन से एक ही विधालय पढ़ते थे. दोनों की शुरुआत झगड़े से हुई थी. दोनों लड़ते- झगडते कब दोस्त बन गए पता ही न चला। पंखुड़ी जब दसवी की परीक्षा देने वाली थी ,तब पंखुड़ी को अहसास हुआ की आशु से प्यार करने लगी है।
पंखुड़ी ने आशु के जन्मदिन पर अपने प्यार का इजहार आशु के सामने कर दिया. आशु तो मानो कब से इस पल का बेसब्री से इंतजार कर रहा था. दोनों ने रेस्टुरेंट में कुछ चायनीज आर्डर किया. पंखुड़ी और आशु एक- दूसरे एक -टक देखे जा रहे थे. दोनों की आँखे ही हजारों बातें कर रही थी. दोनों के होठ खामोश थे. दोनों नास्ता करने के बाद हाथों में हाथ डाले एक पार्क में घंटो बातें करते बिताये। दोनों के कदम आज जमीं पर नहीं पड़ रहे थे। अँधेरा हो गया था। दोनों आहें भरते , गले मिलते हुए कल मिलने का वादा साथ लिए अपने -अपने घर को बिदा
हुए।
घर आने के बाद आशु को तो मानो रात काटे नहीं कट रही थी। रात उसे आज कुछ लम्बी रही थी। उसके आँखों के आगे पंखुड़ी का चेहरा ,उसकी प्यारी ना खतम होनेवाली बातें और उसके साथ बिताये वो यादगार लम्हे याद आ रहे थे।उसके दिमाग में प्यार भरी आंधी चल रही थी। आज किताबों में भी उसे पंखुड़ी दिख रही थी. उसे समझ नहीं आ रहा था ,की ये क्या हो रहा है?उसे लग रहा था कब रात खत्म हो,और जल्दी सुबह हो ताकि अपने अपने महबूब का दीदार कर सकूँ। आखिर पहले प्यार का नशा ही कुछ और होता है जो सर चढ़ कर बोलता है.
इधर दूसरी तरफ पंखुड़ी को भी आज कहाँ नींद आने वाली थी. रह -रहकर मुस्कुरा रही थी ,उह अपने बिछावन पर तकिये को अपनी बाँहों में लिए आहें भरती करवटे बदल रही थी.
खैर सुबह नियत समय दस बजे दोनों विधालय में मिले। दोनों ने लंच टाइम में मिलने वक्त तय किया। लंच के समय मिलने पर दोनों साथ खाते ,क्लास की बातें करतें ,कभी दोनों शांत बैठे रहते , कभी गाने सुनते। दोनों की बातें क्या शुरू हुई की दोनों की बातों का सिलसिला बढ़ता चला गया. दोनों अपने घर जाने के बाद भी मोबाइल से आधी रात तक बाते करते रहते। अपने भविस्य के सपने बुनते.
एक दिन पंखुड़ी को आशु से बातें करते हुए उसकी माँ ने सारी बातें सुन ली माजरा समझते उन्हें देर न लगी। उन्होंने सारी बाते पंखुड़ी के पापा को बताई और इशारों ही इशारों में पंखुड़ी को हिदायत दे डाली। पर प्यार करने वाले कहाँ रुकने वाले थे।
पंखुड़ी और आशु अभी भी चोरी – चोरी बातें किया करते थे। पंखुड़ी के माँ -पापा पंखुड़ी के एक -एक हरकत पर पैनी नजर रखे थे। पंखुड़ी और आशु की बढ़ रही नजदीकीओ से वे दोनों ज्यादा चिंतित थे। पंखुड़ी के माँ- पापा को कोई रास्ता नजर नहीं आ रहा था। उन्होंने पंखुड़ी को अपना निर्णय सुनाया की यहाँ की पढ़ाई ज्यादा अच्छी नहीं है ,आपको आगे की पढ़ाई दिल्ली जाकर पूरी करनी है. उहा आप अपनी बुआ के यहाँ रहकर पढ़ेंगी।पंखुड़ी का मन कर रहा था बोल दे मुझे यहाँ ही रहना है, पर उसकी कौन सुनने वाला था।
पंखुड़ी ने अंतिम दिन विदा लेते आशु को सारी परेशानी बतायी। पंखुड़ी आशु को बोल रही थी, अब हमलोग दुबारा कभी ना मिल पाये। आज दोनों की मनोदशा समझ से परे थी। कभी हँसते तो कभी रोते ,कभी गले मिलते। आशु को भी समझ नहीं आ रहा था की पंखुड़ी को कैसे जाने से रोके।ईश्वर की यही मर्जी सोच दोनों ने दुःखी मन से अपनी अंतिम विदाई ली. दोनों के कदम आज आगे नहीं बढ़ थे। दोनों की सांसे मानों थम सी गयी थी.
खैर जिंदगी कहाँ रूकती है. सात साल बाद पंखुड़ी फैशन डिजाईनर बन चुकी थी. उधर आशु ने भी सरकारी ऑफिसर की पदवी ग्रहण कर ली थी.
एक दिन आशु को अपने करीबी दोस्त के शादी के समारोह में हिस्सा बनने के लिए दिल्ली आना हुआ। उहा के शानदार पांच सितारा होटल में संगीत का समारोह रखा गया था। बड़े-बड़े खाने के स्टॉल्स लगे थे। पूरा हॉल रोशनियों से जग मग रहा था। मधुर संगीत बज रहे थे।
सहसा आशु की नजर अपने निजी दोस्त राहुल पर गयी। उसके बगल में दुल्हन की तरह गुलाबी लहंगे में सजी पंखुड़ी क्या लग रही थी. पंखुड़ी पहले से भी हसीं रही थी उसके बड़े लम्बे खुले बाल। एकदम परी लग रही थी। उसे लगा की पंखुड़ी से ही राहुल की शादी होनेवाली है.
आशु के तो होश उड़े हुए थे ,खुसी और गम दोनों से , लगा पंखुड़ी मिल कर भी नहीं मिली। राहुल की नजर आशु पर पड़ी ,राहुल ने पंखुड़ी की ओर इशारा करते हुए बताया की यह दुल्हन की दोस्त है. अब पंखुड़ी और आशु एक दूसरे को देख मुस्कुरा रहे थे।
दोनों प्रेमी जोड़े के कहाँ अब उहा रुकने वाले थे। दोनों एकांत जगह पर बैठे ,दोनों यही बोल रहे थे की हम दो दिलो का मिलना कुदरत का करिश्मा है. आशु पंखुड़ी ने अपनी बीते दिनों को याद किया , दोनों की आँखे नाम थी की दोनों के पास सब कुछ होते हुए भी एक -दूसरे के बिना अधूरा लगता है. आज आशु ,पंखुड़ी ने निर्णय कर लिया।अब दोनों को कोई भी अलग नहीं करेगा , दोनों जल्द ही शादी करने वाले थे। आज ईश्वर को धन्यवाद कर रहे थे की हमारा प्यार हमे वापस मिल गया।
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