कश्मकश
शाम के सात बज रहे थे, लगभग २ घंटे से नंदिनी उसी घबराहट की परेशानी से जूझ रही थी जो अक्सर उसे हो जाया करती है। ऐसा नहीं की ये कुछ नया था, ऐसा अक्सर ही होता आ रहा था पिछले ८ सालो से, या यूँ कह लो की जब से उसकी शादी हुई थी उसके बाद से, लेकिन ये घबराहट की बीमारी पता नहीं कब और कैसे उसे लग गयी।
समझ नहीं आ रहा था उसे की आखिर गलती है किसकी। उसे तो विगत बहुत सालों से समझ नहीं आ रहा था।
जावेद और उसकी शादी परिवार की सहमति के बिना हुइ थी। दोनों अलग धर्म से थे इसलिए इस शादी का बहुत विद्रोह हुआ था , लेकिन अंत में उन दोनों के माता पिता को हार माननी पड़ी और इन दोनों की शादी मुस्लिम रीति रिवाज़ के हिसाब से हो गयी।
शादी के कुछ दिन पहले से ही जावेद का उस पर बहुत जोर बनने लगा था की वो अपना नाम बदल लेऔर धर्म परिवर्तन कर ले,यहाँ तक की उसने नंदिनी की माँ की बात भी नहीं सुनी जहाँ उनकी इक्छा अपनी बेटी की शादी हिन्दू रीति रिवाज़ से करवाने की थी। उस समय शायद उन दोनों को इस रिश्ते का भविष्य समझ नहीं आ रहा था।
हालाँकि नन्दिनी से शादी भले ही मुस्लिम रीति रिवाज़ से कर ली हो ,शायद ये सोच के की बस कैसे भी शादी हो जाये, लेकिन आगे जा के उसने अपना कुछ भी बदलने से साफ़ साफ़ मन कर दिया। उसके ससुराल मे सब उसे एक नया नाम देने पे तुले थे, जिस वजह से नंदिनी ने उन लोगो से बात करना बंद कर दिया था। पति से भी किसी तरह का कोई सहयोग नहीं मिल रहा था। बस तभी से शुरुआत हो गयी थी उसकी परेशानियों की ,मुश्किल होता है औरतो के लिए अपने लिए कुछ वसूल बना लेना और उसपे अड़े रहना।
शादी एक कुछ दिन बाद से ही जावेद उसे कहने लगा था की उसने शादी कर के नंदिनी पे एहसान किया है और उसे कोई फ़र्क़ नहीं पड़ता है की वो है या नहीं। नंदिनी इस तरह के व्यवहार को समझ नहीं पा रही थी। धीरे धीरे वो बहुत अकेली पड़ने लगी थी,चिड़चिड़ी होते जा रही थी। जावेद उसे समय नहीं देता था, अपना अधिकतर समय ऑफिस के लोगो ने साथ ही बिताना पसंद करता था। अगर दोनों घर पे भी हो तो आपस में उलझते ही रहते थे । धीरे धीरे जावेद रोज ही काफी रात गए घर आने लगा, छुट्टी वाले दिन भी किसी न किसी बहाने से ऑफिस के दोस्तों के साथ कहीं मिलने का प्रोग्राम बना लेता था। एक बार तो तब हद्द ही हो गयी जब जावेद ने तलाक़ की बात कही और नंदिनी को समझ नहीं आ रहा था की आखिर ऐसी किस बात से जावेद को दिक्कत है। क्या इस बात से के उसने अपना धर्म नहीं बदला और उसके माता पिता के सही गलत हर बात को नजरअंदाज कर के उनसे रिश्ता नहीं बनाये रखा।
नंदिनी अलग अलग सोच बुनते जा रही थी, कहीं कोई और तो नहीं है जावेद की ज़िन्दगी में, क्या वो किसी गलत सांगत में पड गया है। क्या सारी गलती मेरी है, क्या मुझे जावेद की किसी भी बात पे गुस्सा नहीं करना चाहिए और चुप चाप सब बर्दाश्त करते रहने चाहिए?
वो मन से टूट रही थी और कमजोर हो रही थी. रोज सुबह अपने आप को समेट के उठती और सोचती की बस अपने काम पे ध्यान देगी, अपने आप पे ध्यान देगी, अपने माता , पिता और बहिन जो उससे इतना प्यार करते हैं, उनके लिए अच्छे से रहेगी लेकिन शाम होते होते एक अजीब से नकारत्मक्त सोच से वो ग्रसित हो जाती थी। ऑफिस में भी उसका आत्मविश्वास ख़तम हो रहा था और उसे कोई उपाय समझ नहीं आ रहा था. कितनी बार सोचा की किसी अच्छे डॉक्टर से मिल के सलाह ले लेकिन वो भी नहीं हो रहा था। जितनी भी बार उसने इसे बात कर के सुलझाने की कोशिश की उतनी बार उसे और जिल्लत ही मिली। अपने माता पिता की परेशानी की वजह से वो अलग होने का कदम भी नहीं उठा पा रही थी। एक समय पे किसी बात की चिंता नहीं करने वाली, किसी से नहीं डरने वाली नंदिनी आज कैसी हो गयी थी।
यहाँ तक की उसे एक बार अपने आप को भी ख़तम करने की बात सोची लेकिन फिर ये कारण रुक गयी की आखिर उसे किस बात की सजा मिले. वो पढ़ी लिहि है, देखने में अच्छी है, अच्छी नौकरी है तो क्या बस इसी बात पे इतना बड़ा कदम उठा ले की इतनी बड़ी दुनिया में उसे एक आदमी पसंद नहीं करता है।
और आज भी फिर एक वैसा ही दिन था, वैसी ही जिल्लत, वैसा ही बदसलूकी वाला जवाब, वही अकेले रहने वाल एक और वीकेंड और इन सब से जूझती नंदिनी . आज भी कोई निर्णय नहीं कर पायी की कैसे सब ठीक करे या इन सब से अपने आप को आज़ाद कर ले।