• Home
  • About Us
  • Contact Us
  • FAQ
  • Testimonials

Your Story Club

Read, Write & Publish Short Stories

  • Read All
  • Editor’s Choice
  • Story Archive
  • Discussion
You are here: Home / Hindi / Kohre ki Chaadar

Kohre ki Chaadar

Published by kalyani in category Hindi | Hindi Story | Love and Romance with tag death | fog | ghost | job | rebirth

कोहरे की चादर: This is a Hindi story of girl who goes to hill area and there she finds about her life in previous birth and now what is in her life unfold mystery,

sad-teenager-girl

Hindi Story on Rebirth – Kohre ki Chaadar
Photo credit: anitapeppers from morguefile.com

मैं कोयल गुप्ता, अभी अभी नयी नौकरी की तलाश में अपने घर से दुर शिमला मे इंटरव्यू देने आई हूँ. पहले सोचा की इतने दुर सब को छोड़ कर क्यूँ आउन फिर दिल में यह ख़याल आया के इंटरव्यू देने मे क्या हर्ज है? सुबह उठ कर जल्दी से तैयार होने लगी तभी होटेल के कमरे से देखा की कोहरे की हल्की से चादर हर तरफ फैली है. देख कर बहुत ही अच्छा लगा और सोचा के यह ही अगर इन्दोर में होता तो कब का सूरज आसमान में चमकता होता और सभी लोग स्कूल कॉलेज और नोकारी में जा रहे होते. मगर यहाँ पे तो कोई भी नही दीख रहा था। नौ बाज रहे है. मेरा इंटरव्यू का वक्त दस बजे का है और अभी मुझे जगह का भी पता करना था। रिसेप्शन टेबल मे एक लड़का था मैने उससे पूछा की यह पता कहा पे पड़ेगा और उसने पेपर को देख के बोला की नज़दीक ही है और आप पैदल जा सकते हो।

मैने कहा, दीख है, और बाहर निकल पड़ी सड़्क सुनसान थी मगर प्रकर्ती की अदभुत छटा देखने लायक थी। मन ही मन मैं मुस्कुरा रही थी, के जगह तो अछी है, काश की काम भी मेरे मन को भा जाए। मेरा इंटरव्यू भी अछा गया और मेरी तनखव्ह भी दीख ही थी, मगर माँ को पूछना ज़रूरी था काया उनको मेरा इतनी दूर रहना डीक लगे गा या नही? क्यूंकी घर में छोटे भाई और बहेन की भी देखबल करना है, मा की नौकरी और उनको पदाई सब कुछ वहाँ पे है।

मैने कुछ समय मागा और वापिस शाम को इन्दोर के लिए ट्रेन मे चॅड गयी। दूसरे दिन दोपहर को ट्रेन स्टेशन पहुँची. घर मे माँ बेसब्री से मेरा इंतेजार कर रही थी. बोली, कोयल क्या हुआ काम ब्ना की नही और तुमको यह जगह और काम पसंद तो आया ना ? इतने सारे सवाल माँने एक ही साँस मे पूछ ली मैने कहा मा जरा दम तो लेने दो, बतती हूँ. काम बिल्कुल ही मेरी पसंद का है और तनखव्ह भी अची है. मेरी को पहाड़ वैसे ही पसंद है। लेकिन आप सबसे बहुत दूर रहेना पड़ेगा। क्या आप को धीक लगेगा। मा ने कहा की बबलू और रूचि के भविष्य के लिए करना ही पड़ेगा दोनो को कुछ ना कुछ बेहेतर देना है. पापा ने तुमको इतना पड़ाया की आज यह काम आ गया है। मैं और यह दोनो तुमसे मिलने आ जाएगे छूटी मे. क्या वो लोग तुमको घर या फिर किराया भी दे रहे है मैने कहा हा, मा दे रहे है मगर वो ऑफीस से थोड़ी दूर पे होगा। मैं मॅनेज कर लूँगी वहाँ पे गाड़ी नही पैदेल ही चलना होगा। अच्छी हवा में साँस लूँगी और सब कुछ अच्छा ही होगा माँ। माँ ने स्वीकृति दी और उन्होने कहा की, ये बहुत ही सही फ़ैसला तुमने कोयल लिया है और हम स्टेशन पे गाड़ी भेज द्देंगे जो की तुमको कंपनी के गेस्ट हाउस में ड्रॉप कर देगा।

मैने मिस्‍टेर.सहाय की कंपनी को अगले ही महीने जाय्न कर लिया और जॉब भी मुजे शुरू शुरू में कुछ कठिन लगा फिर बाद में सब कुछ अपने जगह में सही लगने लगा, और गेस्ट हाउस मे जो रूम मुझे मिला था उसमे एक बेडरूम और छोटा सा किचन भी था जो की एक अकेले के लिए काफ़ी था। लेकिन एक बात जो मुझे परेशान कर रहा था वो था घाना कोहेरे में मेरे बेडरूम के खिड़के से एक अजीब सी शकल दिखता था मैने सोचा शायद मेरा ही भरम होगा मगर जैस जैसे दिन गुज़रता गया वो साया सा कोहरा मेरे साथ हर वक्क़त होता था।

मैं शाम को घर में आने के बाद कभी भी बाहर जाने से भी डरने लगी और इस बारें में क़िस्सीसे बात करूँ यह नही मालूम था मुझे। अगर मैं मा को बताती हूँ तो वो यही कहेंगी की कोयल बेटी वापिस आ जाओ। जो की मैं नही कर सकती थी क्युनको बबलू और रूचि की प्ढाई में और 3 -4 साल बाकी था जब की वो अपने आयेज की पदाई के बारें में विचार कर सकते थे. चुपचाप मैं उस कोहरे को भूल के अपने काम में ध्यान लगाने लगी।

एक रात की बात है जब मैं किताब पढ़ रही थी तभी मैने महसूस किया की कोई मुझको ही देख रहा है, पहले सोचा शायद यह मेरे मन का वहम है। लेकिन कुछ ही देर बाद फिर से मेरी निगाह उस खिड़की की तरफ गयी तो अब सॉफ एक शाकस की शकल दिखाई दे रही थी. मैने अंदर से ही पूछा इशारा करके कौन हो तुम? जब देखी तो वो गायब हो गया और मैं सोने चली गयी। दुसरे सुबह मैं जल्दी ही उठ गयी और सोचा की एक लंबी सी वॉक पे चल पड़ी और मैं प्रकिरीती के मनोहर वातावर्ण का आनंद लेने लगी और अपने मन से रात की बात को निकालने में थोड़ी सफ़ल होने की भरपूर कोशिश करने लगी।

लेकिन लगातार यह एहसास होता रहा की कोई मेरे पीछे आ रहा है। अपने कमरे में पहुच कर मैने सारे दरवाजे अच्छे से बंद कर दिया और काम पे जाने के लिए तैयारी करे लगी. जैसे ही मैं ऑफीस की तरफ जाने लगी तबी एक गाड़ी के रुकने की आवाज़ आई और मैने पाल्ट के देखा तो मिसटर सहाय की कार थी और उन्होने देखते ही कहा की, “कोयल, ज़रा इधर तो आना”,

मैने सोचा ना जाने क्या बात है की वो मुझे बीच रास्ते में रोकके बात कर रए है, मैने बोला, “जी सर कहिए, “.

वो तुरंत बोले देखो शाम को ही मैं वापिस लौट के आउन्गा, इसीलिए क्या तुम थोड़ी देर की लिए मेरे घर में जा सकती हो, अपना ऑफीस ख़तम करके”?

मैने बोला,”जी ज़रूर लेकिन पता मेरे पास नही है” ?

उन्होने कहा की,” ड्राइवर तुमको ऑफीस से लेके जाएगा दीक है”?

मैने हाँ मे सर हिला दिया और उनको कार तेज़ी से निकल गयी. मैं ऑफीस पहुच गयी और अपने काम में वय्स्त हो गयी. लंच टाइम मे मैने अपनी सहकर्मी, शिल्पा को पूछा की , “क्या तुमको कभी सर ने अपने घर में आने को कभी कहा है”?

शिल्पा बोली,”नही तो कभी नही क्या बात है?”

मैने सोचा की इसके आगे बात करना ढीक नही है। और चुपचाप खाना खा कर वापिस अपने काम में लग गयी, इतने में माँ का फोन आया और मेरे बारें में पूछ रही थी की, “काम कैसे चल रह है और दूसरे लोग कैसे है, मैं कैसे अपना समय निकल रही हूँ”? मैने बोला,”माँ सब दीक है और काम भी अछा है और लोग भी अच्छे है.” मा ने बताया की बबलू की टूटीशन फीस भरनी है और रूचि के लिए भी कुछ कितबे लेने है और मुझे कुछ और पैसे बेझने होंगे इस महीने”. मैने बोला की, “देखती हूँ और जल्दी ही कुछ ना कुछ करके भेज दूँगी.”

मुझे लगा की माँ को अपनी परेशानी नही बतानी चाहिए वैसे ही वो अकेली ज़रूरत से ज़यादा परेशान है, और फोन रख दिया। शाम के पाँच बजे मुझे ऑफीस बॉय ने आके बोला की , मेडम सर के घर से ड्राइवर आया है,” मैने बोला,”उसको इंतेज़ार करने को बोला तोड़ा सा काम बाकी है ”

मैने अपना काम निपटाया और नीचे गयी तो ड्राइवर कार के पास था और पूछा,” मैड्म कोयल है आप”?

मैने बोला, “हा” और कार में बैठ गयी और सोचने लगी क्या बात होगी क्यूँ मिसटर सहाय ने मुझे अपने घर में बुलाया है, जाने आजेब से ख़याल मान में आ रहे थे, और मैने देखा की कार एक बड़ी सी हवेली जैसे घर की तरफ जा रही है . ड्राइवर ने बोला, “मेडम घर आ गया है आप अंदर चली जाए”.

मैने तुरंत दरवाजा खोला और घर की तरफ चल पड़ी। कॉल बेल को रिंग की और सोचा ना जाने कौन दरवाजा खोलेगा? इतने में एक आवाज़ आई, मैं खोलूँगा मैं खोलूँगा जो की किसी बच्चे के लग रही थी। मेरी उत्सुकता और बढ़ने लगी. दरवाजे पे लगी घंडी ब्ज़ाई और एक नौकर ने खोला और पूछा, “जी किससे मिलना है?”

मैने बोला,”मिसटर सहाय ने घर में आने को बोला था, इसीलिए मैं आई हूँ?”

तुरंत नौकर ने बोला, “जी आइए शोबित बाबा के लिए होगा.”
मैं मुस्कुराते हुये, अंदर चली गयी. एक 6 साल का लड़का वीडियो ग़मे खेल रा था.
मैने उसका धयान अपनी तरफ आकर्षित करने की लिए बोला, “कैसे हो शोबित? क्या खेल रहे हो?’
पहले तो वो थोड़ा सा सकपका गया और फिर बोला, “आपक कौन है?”
मैने बोला,”मुझे आपके पापा ने कहा था की ख़याल रखूं जब तक वो घर वापिस नही आ जाते ”
उसने तुरंत लपक के बोला,”मैं कोई छोटा बच्चा थोड़े ना हू? जो की कोई मेरी देखबाल करने को आए?

मैने कहा , “बिल्कुल डीक है. वैसे ना मुझे अकेले घर मे डर लगता है और मैने ही सर से कहा की,मैं आपके घर चली जाउ और सर ने हा कर दिया”

मेरी इस बात से शोबित भौत ज़ोर से हसने ल्गा और बोला, आप इतने बड़े हो के डरते हो. मैने सोचा की बच्चो का दिल कितना नर्म होता है।
और मैं उसके साथ वीडियो ग़मे कहलेने लग गयी जिसमें उसको बड़ा ही मज़ा आ रहा था. जैसे ही रात हुई वो बोला चलिए ना अब हम दोनो डिन्नर करते है. मैने बोला, चलो करते है।

टेबल पर तारह तारह के पकवान बने थे और नौकर ने पूछा की मैं क्या खाना पसंद करती हूँ मैने कहा की रोटी और दाल सब्जी, उसने परोसा और मैं देख रही थी की शोबित अब भी सोच ही रा था की क्या खाए. मैने बोला की इतना सोचने से ना खाना गायब हो जाएगा और इस पर उसने बोला ऐसे नही होता हिया आपक मज़ाक कर र्हे हो? मैने बोलन,” नही मैं सच कह रही हूँ”
मेरे भाई और बाहेंन भी ऐसे ही मेरे बात का विश्वास करते है और उसकी जिग्यासा बढ़ गयी और बोला अच्छा और क्या क्या करते है और क्या वो भी मेरी तरह स्कूल जाते है?”
मैने बोला, नही वो दोनो अब बड़े होगआय है लेकिन जब छोटे थे तो ऐसे ही करते थे. मैने कहा की वो सब मैं बाद में बतौँगी अभी चलो चुपचाप से खाना खा लो।
थोड़े ही समय में वो मुझेसे ऐसे घुल गया जैसे की मुझे काफ़ी समय से जनता था. और मैने उसको एक अच्छी से स्टोरी भी सुनाई और उसकी बेड मे लेके गयी और वो थोड़े ही देर में सो गया और मैं अपने लॅपटॉप में कुछ काम जो की पेंडिंग था पूरा करने लगी की कल सुबह उठ कर ऑफीस में जाना है और शाम को जल्दी निकलने से सब कुछ अधूरा रह गया था. . काम ख़तम करके मैने खिड़की की तरफ देखा चाँद ना दिखा काली काली रात थी। कुछ किताबें टेबल में पड़ी थी सोचा पड़ने से मुझे नींद जल्दी आ जायेगी , वैसे ही मैं किसी अनजान से जगह पर सो नहीं पाती हूँ
कोशिश कर के मैंने खुद को सोफे पर ही बैठ गयी, थोड़ी ही देर में मेरी आँख लग गयी और कब मैं सो गयी मालूम ही नहीं पडा

सुबह उठी और सोचा घर में जाके अपने लिए कुछ और जोड़ी कपडे लेके आ जाउ , मालूम नहीं कब मिस्टर सहाय आएंगे, ड्राईवर इतने में आगया और पूछा मैडम कुछ काम हो तो बोल दीजिये अभी बाबा को स्कूल के लिय लेके जाना

मैंने बोला , “हाँ मुझे घर जाना है और फिर ऑफिस मुझे तुम छोड़ देना”

उसने हाँ में सर हिला दिया, मैंने देखा कि शोबित तैयार हो के डाइनिंग टेबल में बैठा था मुझे देखते ही बोला , अभी तक आप उठी ही नहीं और मैं तो स्कूल के लिये तैयार भी हो गया हूँ मैंने बोला, “हाँ नयी जगह थी और देर से सोई और देर से उठी। चलो अब मैं तुमको स्कूल छोड़ के अपने घर जाउंगी और फिर ऑफस ढ़ीक है, शाम को काम ख़तम करके तुमरे साथ।
मैंने जल्दी से कार कि तरफ गयी और मुझे ऐसे लगा कि कोई मुझे ही देख रहा है, लगा कि मेरा ही भ्रम है और ड्राईवर ने गाड़ी को सड़क पर दौड़ना शुरू कर दिया।
कुछ ही देर में शोबित के स्कूल पहुच गए और ड्राईवर ने मेरे घर कि तरफ गाड़ी मोड़ दिया और मैंने देखा कि वोह कोहरे सा साया मेरे ही पीछे था। मुछे बड़ा ही अजीब लगा मगर किस को पूछूं ये भी नहीं मालूम। अपने कमरे में जाके एक बैग में कुछ जरुरत के कपडे और रोज़ मर्रा कि चीजे बांध लिया। फिर मैं तैयार हो कर ऑफिस चली गयी। ऑफिस में इंतना काम कि कैसे लंच टाइम हो गया मालूम ही नहीं पड़ा। मेरे लिए देखा कि लंच भी आ गया था शायद ड्राईवर लेके आया होगा। जैसे ही मैंने खाने लगी मिस्टर सहाय का फ़ोन आया और बोले, “कोयल कैसे हो? ये बोलो कि शोबित ने शरारत तो नहीं किया?” मैंने बोला, “नहीं सर ऐसे कुछ भी नहीं वो तू अछा बच्चा है। वैसे आप कब तक आयेंगे ?”
मिस्टर सहाय ने कहा ,”दो या तीन दिन लग सकते है, क्यूँ तुमको कोई तकलीफ तो नहीं है?” मैंने कहा ,”जी नहीं सर बस ऐसे ही ”
मुझे लगा कि शायद जो लोग यहीं पे रहते है उनको पूछने से मुझे यह कोहरे का रहस्य मालूम हो सकता है। एक दो घर छोड़ के मेरे गेस्ट हाउस के नजदीक मैंने एक बुजुर्ग दम्पति हो देखा आते जाते रस्ते में।

फिर मैंने हिम्मत कर के एक रोज़ उनसे मिलने चली गयी, पहले तो काफी देर तक किसीने दरवाजा नहीं खोला मैंने सोचा कि दोनों कहीं बहार गए होंगे। इसीलिए कोई दरवाजा खोलने नहीं आया। जैसे ही मैं जाने लगी तब दरवाजा कि आवाज़ आयी और मैंने तुरंत पलट के देखा कि वोह अंकल खड़े थे और बोले, “कौन हो तुम? क्या कुछ बेचने आयी हो?”
मैंने बोला, “नहीं अंकल मैं नज़दीक के घर में रहती हूँ और कुछ बात आपसे पूछने थी इसिस्लिये आपको परेशान करने आ गयी। अगर आप को बुरा लगा तो मुझे माफ़ कर दीजिएगा। ”

इसपर मैंने देखा कि अंकल के पीछे आंटी भी खड़ी थी, और उन्होंने बोला कि , “नहीं बेटी तुम आ जाऊ कोई जरुरी नहीं कि दरवाजे पे तुम खड़े हो कर बातें करो हमसे। ”

उनके ऐसे बोलने पे मुझे कुछ साहस आया और सोची कि चलो यह शायद मुझे कुछ मदत कर दे और मेरी चिंता कुछ तो कम हो जगएगी।

पहले मैंने दोनों तो नमस्ते किया और बोली,”मेरा नाम कोयल है और मैं अभी कुछ महीनो से मिस्टर सहाय कि ऑफिस में काम करती हूँ और उनकी गेस्ट हाउस में रहती हूँ। ”

उन्होंने मुझे बैठने को बोला, और अंदर चले गए मुझे लगा मालूम नहीं क्या सोच रहे होंगे। मेरे बारें में , फिर देखा कि उनके हाथ में चाय कि तीन पायली थी और कुछ नमकीन।

मैंने बोला,”इसकी जरुरत नहीं थी ‘

उनदोनो के चेहरे में एक सकूँ और शांति सी थी। मैंने बोला मुझे कुछ आप दोनों से पूछना है अगर आप लोग मेरी मदत कर सके तो। और मैं थोड़ी देर कि लिए चुप हो गयी।

आंटी ने, बोला “कोई परेशानी कि बात तो नहीं “? मैंने बोला , “जी ऐसा ही कुछ है, जब से मैं यहाँ पे रहने आयी हूँ मुझे ऐसा लगता है कि , एक कोहरे से मेरी साथ हर वक़्त रहता हिअ, मैं कहीं बी रहूँ वो मेरे पीछे और कभी आगे। कभी कभी तो एक शक्ल सी दिखती है मुझे। वैसे मैं किसी और से पूछ नहीं सकती क्यूंकि मेरी तरह वो भी नए है इस जगह में।

क्या आप मेरे को बता सकते है कि मेरे साथ ही ऐसा होता है या फिर सभी के साथ ?

इस पर अंकल ने कहा कि , “बेटी कोयल ऐसा है कि कुछ कुछ लोग यह देखते है और इसकी तरफ जयादा धयान नहीं देते और अपने काम में मसरूफ हो जाते है। वैसे वो तुमको इतना साफ इसलिए दीखता है, क्यूंकि तुम्हारी सूरत बिलकुल एक लड़की से मिलती है जिसका नाम रौशनी था और वो इक लड़के संजय को बहुत ही पसंद करती थी , मगर दोनों कि परिवार वाले इस बात को पसंद नहीं करते थे और दोनों अपने पयार को कोई नाम नहीं दे सके और रोशनी ने इस बात को दिल से लगा लिया और एक दिन पहाड़ी पे जा के अपने जान दे दी। और संजय उनदिनों किसी काम के सिसलसिले में शहर से दूर चला गया था। जबी वो वापिस आया करीब ३ महीने के बाद उसको इस बात का और वो भी अपनी जान दे दिया। अब दोनों परिवार वाले भी अपने घर बार सब कुछ बेच के कहीं और चले गए खा यह कोई नहीं जनता। मगर संजय को कोहरे के रूप में भटके हुए देखते है हम को यह नहीं मालूम कि क्य़ूं वो भटका रहा।
लेकिन तुमको देख के अब मालूम हुआ कि शायद उसको ये उम्मीद थी कि उसकी रोशनी वापिस आएगी और वो अकिर बार उससे पूछेगा कि उनसे उसका इंतज़ार किये बिना क्यूँ खुद हो ख़त्म कर दी।

तुम लोग नए ज़माने कि हो और इन सभी बातों में विश्वास नहीं रकते हो गए ?

मैंने कहा , “जी मैं नहीं मानती ऐसे बातों पे मगर मैं कैसे यह बता सकती हूँ कि वो रौशनी ने क्यूँ खुद कथम कर दिया? इस पे आंटी ने खा कि, “देखो बेई यह सब हम नहीं जानते मगर जी जगह पे तुम्हारा गेस्ट हाउस था, वहीँ पे रौशनी का घर था शायद इसिस्लिये तुमको वो हर जगह देखिये देता है और तुम डरो मत। ”
मैंने ,”बोला कि मैं क्या कर सकती हूँ जब कि यह तो बहुत ही पुराणी बात है। ”
लेकिन बेटी, तुम को यह मालूम करना ही पड़ेगा कि वो क्यूँ ऐसे करी शायद उस जगह में ऐसे कोई बात हो जो तुम नहीं देख रही हो अभी मगर संजय ने देखा होगा उअर वो तुमको यह मालूम करने को केह रहा होगा , इसिस्लिये अगर दोबारा वो दिखे तो , बिलकुल भी घबराना नहीं और कोशिश करो उसकी मदत करने कि। ”

मैंने सोचा, “एयह भी ढिक है , और उनदोनो को धन्यवाद देके मैं अपने घर वापिस आगयी। ”

मुझे अब संजय जो कि कोहरे कि शक्ल में दीखता था उसका इंतज़ार होने लगा। लेकिन मैं अभी अपने घर में नहीं मगर मिस्टर सहाय केई घर में रेह रही थी जब तक वो नहीं आ जाते मुझे शोबित के साथ रहना है।

मुझे भी उसके साथ समय बिताने में अचछा लग रहा था जैसे कि मैं अपने बचपन में चली गयी और फिर से वोह ही छोटे छोटे खेल , पकड़ा पकड़ी , धुप में उसके साथ खेलना, कभी पहाड़ो पे चढ़ना सभी कुछ एक सुखद एहसास दे रहा था।

तीन दिन बाद जब मिस्टर सहाय आ गए, मैंने उनको बोला कि आपका बीटा बहुत ही अछा है और मुझे यह समय उसके साथ बंटने में बड़ी ख़ुशी हई।
मिस्टर सहाय ने बोला,”मुझे तुमको यह बोलना है क तुम उसके साथ थी इसलिए मैं अपने कम को अच्छे से निपटके आ सका। ”

मैं जल्दी से गेस्ट हाउस में आके उस कोहरे रूपी संजय से बात करने को उत्सुक होने लगी। जैसे ही शाम हुयी और अँधेरा हुआ मेरी बेचैनी बढ़ने लगी , सोचा कि क्या वो आएगा कि नहीं।

इतने में मैंने अपने बेडरूम कि खिड़की पे एक शक्ल को उभरे हुए देखा और मैंने हिम्मत करके खिड़की खोला और सोचा यह तो सिर्फ एक धुआ सा है न कोई इंसान है, मैं क्या बोलूं फिर मैंने बात किया, सुनो मैं यह जानना चाहती हूँ कि तुम बार बार मेरे सामने क्यूँ आते हो और क्या चाईए तुमको।

इस पर मैंने देखा कि जो धुंदली सी मुझे दिखती थी वो अब एक पुरे आकर में देखाई देने लगा और उसने बोला कि , तुम बिलकुल मेरी रोशी कि तरह दिखती हो , मैं जनता हूँ कि वो तुम नहीं हो मगर फिर भी तुम्हारी मदत से मैं जानना चाहता हूँ कि उनसे मेरा इंतज़ार किये बिना खुद को क्यूँ ख़तम कर दिया ?

मैंने बोला, यह मैं कैसे बता सकती हूँ जरुर पुलिस स्टेशन में कुछ न कुछ होगा तो मालूम कर सकती हूँ।

उस पे उस साये संजय ने खा , नहीं उनको काउच नहीं मालूम यहाँ तक कि उनको रौशनी के द्वारा लिखे हुए कोई ख़त बी नहीं मिले ऐसा कैसे होक सकता है मैं उसके लिए भटक रहा हूँ न जाने वो क्यूँ ऐसा करी और क्यूँ कुछ बी नहीं मालूम किसी को। वैसे उसको हर बात लिखने कि आदत थी उनसे जरुर अपने डाइयरी में लिखा होगा जो कि किसी के हाथ नहीं लगा। मैं चाहता हूँ कि तुम उसको इस घर के किसी न किसी कोने में तलाश करो और मेरी मदत करो। मैंने बोला कि इस बात को तो कितने साल गुज़र गए अगर ऐसे कोई डाइयरी होती तो क्या रौशनी के माँ और पिता को या फिर पुलिस वालों को नहीं मिलती?

इस पे उस संजय ने कहा कि , “रौशनी कि आदत थी वो किसी से कुछ नहीं कहती और उस डाइयरी को हमेशा छुपा के रखती थी यहाँ तक कभी मुहे भी नहीं पड़ने देती थी ”

इस बात को सुनके मुझे हसी आ गयी और बोली जब वो तुमको बी नहीं बताती थी अब तुम क्यूँ उसको देखना या पड़ना चाहते हो ?

संजय ने कहा कि इसीलिए कि मुझसे अलविदा कहे बगैर रोशनी कैसे जा सकती है। मैंने बोला ढीक है , मैं देखती हूँ कि कहीं मिलता है तो जरुर तुमको दे दूंगी।

और कुछ ही देर में वो कोहरे से निकल के चला गया। मगर सारी रात मुझे नींद नहीं आयी और सोचा अब तो मुहे भी लगा कि मालूम तो करें कि क्यूँ रौशनी ने ऐसा किया होगा जब कि संजय कि बातो से लगता है कि दोनों एक दूसरे से बेइंतहा मोहबत करते थे फिर ऐसे क्या मज़बूरी कि उसने किसी को कुछ न केह के अपने जीवन का अंत कर लिया।

दूसरे दिन इतवार था और मेरी छुट्टी काम से मैंने जड़ी से घर के हर हिस्से को पलट के देखने लगी कि कहीं तो वो डाइयरी मिल जाये और मैं इस रहस को जान सकूँ।

जैसे जैसे मैंने ढूंढ़ना शुरू किया टाइम ही बीतता गया मगर मेरे हाथ एक पन्ना भी नहीं लगा सोचा कि क्या मालूम इतने समय से किसिस ने देखा हो और उसको जला दिया हो या फिए कूड़े में फेकः दिया हो? इस तरह से मेरे मन में कही ख्याल आ रहे थे। एक उत्सुकता यह भी जाने कि लग गयी ऐसा क्या हुआ कि रौशनी ने यह कदम उठाया और उसके परिवार वाले आफान में कहाँ चले गए। आखिर में जब कुछ भी हाट नहीं लगा ताऊ मैंने सोचा क्यूँ न बेडरूम के लॉफ्ट में चढ़ कर देखा जाये , क्या पता वहाँ पे कुछ न कुछ मिल जाये।

घर में कोई सीढ़ी नही थी कैसे ऊपर जाऊं इसी उधेड़ बुन में थी कि मुझे लगा कि शायद पिछवाड़े में कुछ न कुछ होना चहई भी पहाड़ी इलाके में अक्सर लोग घर के पीछे ऐसे वस्तु को रख देते है। जैसे ही मैं पीछे कि तरफ गयी और देखा कि लकड़ी के एक सीढ़ी मिल गयी और मैंने चाट से उको उठाया और कमेरे के अन्दर पहुँची। और उसके ऊपर चढ़ने लगी।

लॉफ्ट में काफी धूल मिट्ठी पड़ी थी फिर भी मैंने हाथ को ढाल के दाटला और अचानक ऐसा लगा कि मेरे हाथों में कुछ लगा और मैंने अपनी तरफ उसको धकेलना शुरू किया और मेरी ख़ुशी का दिखना लायक था। आखिर एक डाइयरी मिली।

निचे उतर के पहेले पन्ने को देखा तो उसमें लिखा था। मेरी पायरी डाइयरी तारिक १९८१ था और पहले पन्नों में उनके द्वारा लिखा एक कविता थी जो कि बहुत ही छुटपन में लिखा होगा रौशनी ने ऐसे लगा मुझे। कुछ और आगे स्कूल के बारें में और उसकी पहली मुलाकात संजय के साथ का भी जिक्र था कैसे उनदोनो को एक दूसरे से पयार हुआ और वो दोनों कहाँ कहाँ पर मिलते थे।

चंद पन्नो के बाद लिखावट में कपन सा था और उसमे लिखा था कि उसको जरा भी अच्छा नहीं लगा कि उसके माँ और बौजी और संजय के घर वाले भी उनके पयार को नहीं पसंद करते है और संजय के जाने के बाद कितनी अकेली हो गयी है वो। बहुत से दर्द भरे शेर लिखे थे उसने जिसमें जुदाई और अकेलेपन का जीकर था।

और बहुत दिनों तक उसने कुछ नै लिखा और अचानक एक ख़त जैसे लिखा था उसने संजय के नाम,
“प्रिय संजय, मैं जानती हु कि तुमको मुझसे दूर भेज दिया गया है न जाने अब कब तुमको देख पाउंगी मेरे दिल हर वकत तुमरे याद में रहता है और एक ख़ास बात है जो कि मैं कीसे भी नहीं बोल सकती आज काल जब ही मैं घर से भर निकलती हूँ मुझे एक अजीब सा शख्स दीखता है और मेरे पीछे पीछे आता है, कई बार मैंने रस्ते भी बदले मगर वो न जाने कैसे ताड़ जाता है कि मैं किस रस्ते से जाती हु और दीक मेरे सामने आ जाता है और कई गन्दी बाते करता है, मुझे यह माँ और बाऊजी को बोलना चाहइ मगर डरती हूँ कि कहीं मेरा घर से बहार निकलना ही न बंद हो जाये वैसे मैं हर रोज़ डाकघने जाती हूँ इसी आस में कि कभी न कभी तुम मुझे अपने बारें में लिखो गए मुझे भी तुम मिस करते होगे, मगर हर बार मैं निराश ही घर पहुंची।

एक दिन बड़ी तेज़ बारिश हो रही थी और मैं डाकखाने कि तरफ निकल चुकी थी और जल्दी में छाता भी नहीं लिया था मैंने सोचा कि निचले हिस्से के घर में आसरा ले लुंगी जब तक बारिश नहीं थम जाती और मैंने उस घर को खट्खया जहाँ पर मेरे जिंदगी का रुख ही बदल दिया। जैसे कि मैंने कॉल बेल बजाय अंदर से कोई भी आवाज़ नहीं आयी और मैंने सोचा कि कोई नहीं है घर में और मैं पलटने लगी तभी दरवाजा खुला और मेरे दिल ने जोर जोर से ढकना शुरू किया कि यह ताऊ उसी आदमी का घर था जो कि पिछले कई दिनों से मेरे पीची लगा था और मैंने जल्दी से भकना शुरू किया मगर पानी कि वज़ह से तेज़ नहीं भाग सकी और वो आदमी मेरे करीं करीब पॉंच गया उअर उसने मेरे को जमीं पर पटक दिया और मेरे साथ बुरा बर्ताव किया उअर मैं वो शब्द लिख भी नहीं सकती कुछ घंटो में मेरी दुनिया ही उजाड़ गयी मेरे जीना किसी काम का न था मेरे दिल ने खा कि अब तुम जी के क्या करोगी वैसे भी अब तुम किसीको क्या बोलोगी और क्या संजय के काबिल रह गयी हो, मैंने तभी निर्णय खुद को करने का और मैं जानती थी कभी न कभी तुम मेरे इस डाइयरी को पड़ोगे और जान पाओगे कि मैं क्यूँ जीना नहीं हूँ। इस जनम तो हम न मिल सके अगले जनम फिर से तुम्हारे लिए जनम लेके आउंगी इसी शहर में। तब तक मैं तुमसे अलविदा नहीं कहूँगी जब तक दुबारा तुमको न पा लूँ। यह मेरा यकीं है कि तुम मुझे जरुर ढूंढ लोगे। तुम्हारे इंतज़ार में तुम्हारी रौशनी”

अब मुझे साफ़ दिखने लगा कि वोह कोहरे के स्खल में संजय ही था जो कि मुझे हर वक्त देखता था और मैंने उसको हर कहीं महसून किया है, आज मुझे लगा कि मैं अपने घर से दूर यहाँ पे क्यूँ काम करने आयी तकदीर ने मुहे फिर से संजय से मिलना था उअर मैं उसको जान नहीं सकी और उसने मुझे पहचाना लिया था शायद पहले ही दिन से।
मैं बेसब्री से रात का इंतज़ार करने लगी और यह राज़ संजय को बताना था क्यूंकि वोह बी इसको जाने के लिए बेताब था इतने सालों में। इअसा लगा कि शायद यह चाँद घंटे सदियों में तब्लिल होगए हो, लगा कि शाम ही नहीं ढाल रही है, क्यूंकि दिल जिस रफ़्तार से भाग रहा था वक्त नहीं। रात जैसे ही हुई मई किदखी कि तरफ टकटकी लगा के बैठी रही और जैसे कि अँधेरा हुआ और मैंने उस हवा को महसूस किया और देखा कि संजय है वहाँ पर मैंने उसको खा कि मुझे मिल गया क्या हुआ था रौशनी के साथ उसकी डाइयरी भी मैंने पढ़ लिया है। उसने खा कि हाँ बोलो क्या लिका है, मैंने वो पाने को खोला उअर पड़ना शुरू किया देखा कि संजय कि आंखों में न रुकने वाली आसुंओ कि धार बह रही थी और अनायास ही मैंने महसूस किया कि मैं भी रो रही थी।

ख़तम होने पर संजय ने खा कि कैसे मैं तुम्हारा सखुरिया डा करूँ कि तुमने मेरे रौशनी कि सचाई को ढूंढा है। और क्यूँ मैं तुम्हारी तरफ हर वक्त खिचता रहा, काया तुम एयह डाइयरी को पुलिस स्टेशन में दे सकती हो ताकि रौशनी कि मौत का रहस्य सबकी नज़रों में आ जाये हालाँकि अब इस बात का कोई मायने नहीं है मगर फिर भी मेरे तस्सली के लिए। मैंने कहा जरुर संजय मैं जाउंगी और कोशिश करुँगी कि यह एक उपन्यास के तौर में लिखूं और सब लोग पढ़े।

मैंने कहा संजय, लेकिन मेरा इंतज़ार तू अब बी वहीँ है, मेरा मतलब कि रौशनी का , इस पर संजय ने खा अगले जनम जरुर हम फिर सी इन वादियों में मिलेंगे और अपनी जिंदगी वैसे ही जियाएंगे जैसे कि हमने पिछले जनम से बे पहले सोचा था। तब तक मैं और तुम ऐसे ही रहेंगे। मुझे जयादा इंतज़ार न करवाना रौशनी,,,,,मेरा मतलब कि कोयल जो भी नाम हो ग हम एक दूसरे को जरुर पहचान लेंगे हर जनम।

दूसरे दिन मैंने मिस्टर संजय को फ़ोन पे कहा कि सर मैं आज ऑफिस थोडा सा देर से आउंगी कुछ जरुरी काम है , उन्होंने कहा कि ढीक है। मैंने पहले तो एक कहानी लिखे जिसका शीर्षक दिया – कोहरे के चादर में — और डाइयरी को पुलिस स्टेशन में देते हुए खा कि सर, मैं जानती हूँ कि अभी यह सब का कोई मतलब नहीं है मगर फिर बी मैं चाहती हूँ कि यह केस को आप इस के साथ बंद करें। इस पर इंस्पेक्टर ने खा कि इतने पुरानी केस कि फ़ाइल न जाने कहाँ होगी फिर भी मैं यह जरुर करूँगा बेटी।

उस उपन्यास के पब्लिश होने पर सबसे जयादा मैं ही खुश हुयी।

कभी यह नहीं सोचा था कि मेरे जनम किसी कि जनम का हिस्सा था और जो कि सार्थक हुआ।

__END__

कल्याणी
२१-०२-२०१४

Read more like this: by Author kalyani in category Hindi | Hindi Story | Love and Romance with tag death | fog | ghost | job | rebirth

Story Categories

  • Book Review
  • Childhood and Kids
  • Editor's Choice
  • Editorial
  • Family
  • Featured Stories
  • Friends
  • Funny and Hilarious
  • Hindi
  • Inspirational
  • Kids' Bedtime
  • Love and Romance
  • Paranormal Experience
  • Poetry
  • School and College
  • Science Fiction
  • Social and Moral
  • Suspense and Thriller
  • Travel

Author’s Area

  • Where is dashboard?
  • Terms of Service
  • Privacy Policy
  • Contact Us

How To

  • Write short story
  • Change name
  • Change password
  • Add profile image

Story Contests

  • Love Letter Contest
  • Creative Writing
  • Story from Picture
  • Love Story Contest

Featured

  • Featured Stories
  • Editor’s Choice
  • Selected Stories
  • Kids’ Bedtime

Hindi

  • Hindi Story
  • Hindi Poetry
  • Hindi Article
  • Write in Hindi

Contact Us

admin AT yourstoryclub DOT com

Facebook | Twitter | Tumblr | Linkedin | Youtube