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Main aur Meri Nisha

Published by RahulAgyat in category Hindi | Hindi Story | Love and Romance with tag business | girl | Love | software

This Hindi story revolves around the Author ,who loves a girl named Nisha. Nisha rejects his love due to her higher  status. Would she ever accept him ??

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Hindi Love Story – Main aur Meri Nisha
© Anand Vishnu Prakash, YourStoryClub.com

नमस्कार दोस्तो!! मैं आप सभी का राहुल एक बार फिर स्वागत करता हु आप लोगो का मेरी इस सतरंगीकहनिओ की दुनिया मे. मेरी आज की कहानी रोमॅन्स की मिठास से भरी एक ऐसी कहानी है जिसकी मिठास बनारसी पान की मिठास को भी फीकी कर दे. शीर्षक है “मैं और मेरी निशा ”
मेरी आज की कहानी का हीरो राहुल यानी की मैं खुद हु . इतने हैरान क्यूं हो गए आप लोग.भाई लेखक हु तो क्या हुआ ,मेरी ज़िंदगी के भी कुच्छ पन्ने आप सभी लोगो की तरह ही प्यार की कुछ मीठी यादों को खुद मे संजोये बैठे हैं.बस आज अनायास ही मेरी अतीत के वो पन्ने खुद बा खुद खुल गये.

आइ आइ टी कानपुर से इंजिनियरिंग कंप्लीट करने के बाद बड़ी बड़ी कंपनीज़ की ऑफर आई. पर मैने कही भी जॉइन नहीं किया.खद की ही एक छोटी सी सॉफ्टवेर की कंपनी खोल ली अपने कुछ दोस्तो के साथ मिल कर. हमारी मेहनत रंग लायी,और हमारी कंपनी ने 5-6 सालो मे ही सफलता के उन पायदनो को छु लिया ,जिसकी मैने कभी कल्पना भी नहीं की थी. हमारी कंपनी America से लेकर युरोप तक अपने कदम काफी मजबूती से जमा रही थी.
वन ऑफ दा यंगेस्ट राइज़िंग बिज़नस टाइकून के रूप मे मेरा नाम उभर चुका था. वैसे काम काज की वयस्तता के बावजूद मेरी बचपन की हॉबी यानी की राइटिंग। आज भी मेरे हाथों को कुछ ना कुछ लिखते रहने को मजबूर किये हुए थी.इंजिनियर और बिज़नस मैन तो मैं बन चुका था पर दिल के अंदर का राहुल आज भी एक लेखक ही था.
आज 1 साल के बाद मुझे अपने घर यानी की पटना जाने का अवसर मिला था. मम्मी के हाथों का खाना और पापा की बांसुरी की आवाज को मानो मैं तरस सा गया था . पर बढ़ते हुए बिज़नस को संभलना भी तो जरूरी था. आज मैं बहुत ही खुश था. यूं लग रहा था मानो मुझे पंख लग जाए और उड़ जाऊं अपने घर की ओर.बॅंगलुर इंटरनॅशनल एरपोर्ट पे सारी फॉरमॅलिटीस कंप्लीट करने के बाद एक सीट पकड़ के बैठ ग्या.
वेदर खराब होने के कारण मेरी फ्लाइट 2 घंटे डीले हो चुकी थी. सामने से आती जाती एयर होस्टेसेस को देखता तो सोचता की बचपन मे जो परियों की कहानियाँ सुना करता था, वो सच ही होती होंगी. परिआं ऐसी ही तो दिखती होंगी. पर फिर सोचता की उन परिओ की एक रानी भी हुआ करती थी, फिर वो कैसी दिखती होगी. ना जाने क्यूं मेरे इस सवाल का जवाब मुहे अपने अतीत की यादों मे ले ग्या.

तब मैं 11 स्टैण्डर्ड मे था. पटना के ही एक छोटे से +2 स्कूल मे पढ़ता था.उस समय हमारे घर की माली हालत कुछ ठीक नहीं थी. पापा का एक छोटा सा बिज़नस था जो घाटे मे ही चल रहा था. मम्मी प्राइवेट स्कूल मे पढ़ाया करती थी. बस किसी तरह से हमारा गुजरा हो जाता था. हमारे घर के पास मे ही एक आलीशान कोठी थी. कोठी के मालिक राम रतन सिन्हा बिहार के बहुत बड़े इंडस्ट्रियलिस्ट थे. करोड़ो रुपये की आमदनी थी उनकी . उनकी 3 बेटियाँ थी. एक बेटा भी था. बाकी सब तो उमर मे मुझ से काफी छोटे थे.. पर उन की सब से बड़ी बेटी मेरी ही हम उमर थी . नाम था निशा.

इतनी खूबसूरत की लफ्जो से बयान कर पाना नामुमकिन सा था. पर बड़े बाप की बेटी होने का अभिमान उस मे कुट कुट कर भरा हुआ था. मेरी मुम्मा उसे भी टूशन देने जाया करती थी. राम रतन बाबू मेरे मम्मी पापा का बड़ा ही आदर करते थे.राम रतन बाबू भले ही काफी अमीर थे लेकिन जमीन से जुड़े हुए आदमी थे.गरीबी देख कर ही आज इस मुकाम तक पहुचे थे.
निशा के रंग रूप का आकर्षण मुझे भी आनायस उसकी ओर खींचता चला गया . हालाकी निशा अव्वल दर्जे की घमंडी थी पर मै उसका सब से खास दोस्त था. पढ़ने मे मैं हमेशा से होशियार रहा तो उसे पढ़ाई लिखाई मे जब भी कोई समस्या होती तो मेरी मदद ही लेती थी. शायद यही वजह थी उसकी दोस्ती की. पर मैं इसे कुछ और ही समझ बैठा था. 16-17 की ऐज वाला एक लड़का भला क्या समझ पता अमीरी गरीबी उंच नीच की बातो को.
बस मुझे निशा से प्यार हो ग्या. और दिल मे ये गलतफेहमी की शायद निशा भी मुझे पसंद करती है. सोचता था की अपने दिल की बात उस से कह दू पर कैसे ?? हिम्मत ही नहीं जुटा पता था . काफी सोच विचार करने के बाद मैने एक लेटर लिखा. “मेरा पहला लव लेटर”. किसी तरह से हिम्मत जुटा कर मैने उसे वो लेटर पकड़ा दिया. उस वक़्त वो चुइंगूम चबा रही थी.
एक दम स्टाइलिश तरीके से. उसने पुछा “ये क्या है ? “. मैने कहा “खुद ही पढ़ लो”.
उसने लेटर को बड़े इत्मिनान से पढ़ा. मेरी तरफ देखा. लेटर को मेरी आँखों के सामने लाकर फाड़ दिया. मैं स्तबध रह ग्या. मानो सातवे आसमान से गिरा उसने कहा “तुम ने ऐसा सोच भी कैसे लिया “. ये सब सोचने से पहले अपनी औकात तो देख लेते . कहाँ तुम और कहाँ मैं “निशा सिन्हा. अगर पापा को ये लेटर दिखा दु तो सोचो , क्या हाल करेंगे वो तुम्हारा और तुम्हारी फैमिली का ?? पर मैं ऐसा करुँगी नहीं. तुम्हारी माँ मेरी टीचर हैं. सिर्फ इस लिये छोर दे रही हु. पर आज से तुम्हारा मेरे घर मे आना बंद. ना मैं तुम से कभी बात करूँगी. जाओ पहले जाकर हमारी जितनी स्टेटस बनाओ फिर आना . चले है इश्क़ करने. वो भी मुझ से. भिखारी कही के “.
दिल टूट ग्या मेरा. आँखों से निरंतर आंसु आने लगे और ये देख कर निशा के चेहरे पे अजीब सी अभिमान से भरी मुस्कुराहट आ गई. मैं चला ग्या. मन मे ही थान लिया की आज के बाद उसकी शक्ल कभी नहीं देखूंगा. उसने मुझ से मेरी औकात पूछी है. दिखाऊंगा उसे एक दिन अपनी औकात.हालाकी जितनी भी मैं उस से नफरत करने की कोशिश करता उतना ही नाकाम रहता. मैं उसे कभी भूल ही नहीं पाया.
और ना ही उसके बाद मैने किसी लड़की को अपने दिल मे आने की इजाजत दी. दिल के कमरे के दरवाजे और खिड़किओ को मैने इस तरह से बंद कर दिया की प्यार का कोई हल्का सा झोका भी इसके अन्देर ना जा पाये.मेरी फ्लाइट के अराइवल की अनाउन्स्मेंट ने मेरी तंद्रा तोड़ दी. फिर से वर्तमान मे आ ग्या. फ्लाइट मे बैठा . रह रह कर निशा का ही ख्याल आ रहा था. मम्मी से बाद मे मुझे पता चला था की उसके डैड की डेथ हो गई थी. बिज़नेस काफी घाटे मे चल रहा था इसी वजह से उन्हे हार्ट अटॅक आया था. निशा का सड़क पे आ गया था . सुन के मुझे काफी दुख हुआ था. पर बिज़नेस की वयस्ततता मे मानो सब कुछ भूल सा ग्या था.
घर पहुचा. मम्मी पापा की आँखों मे मुझे देख कर जो चमक उभरी वो स्पष्ट रूप से दिख रही थी. घर पहुच कर माँ के हाथो का खाना . और शाम को हम सब ने पापा की बांसुरी का आनंद लिया. परसो ही मेरे बचपन के फ्रेंड विकास की शादी है . और हम सभी लोग सादर आमंत्रित थे. विकास ने तो साफ़ कह दिया था “देख राहुल तू नहीं आया तो घोरी नहीं चढूंगा मैं “.

बेहरहाल मैं और पापा शादी मे पहुचे. माँ नहीं जा सकी. कुछ काम था उन्हें . विकास से 7 वर्षों वर्षों के बाद मिला था. एक दम से पहचान ही नहीं पाया उसे.
पहले कितना दुबला सा हुआ करता था. अब तो एक दम से बॉडी बना ली बंदे ने. शादी की रसम चल रही थी. मैं मंडप के पास ही एक सीट पकड़ के बैठ ग्या. अचानक से मेरा दिल जोरो से धड़क उठा.
सामने थोरी ही दूर पे निशा खड़ी थी. एक दम से साधारण से लिबास मे . फिर भी उस भीड़ मे सब से अलग दिख रही थी. उसने भी मुझे देख लिया था. थोरी झिझकी . हल्की सी स्माइल दी. मैने भी मुस्कुराया . अपनी सीट से उठा और धीरे-धीरे बिना निशा की नज़र मे आए उसके पीछे जाकर खड़ा हो ग्या.
मैने कहा “कैसी हो ?”

वो पल्टी . बोली “Oh आप !! मैं तो ठीक ही हु . आप कैसे हैं ? ”
मैने कहा “अच्छा ही हु “.उसने मम्मी पापा के बारे मे पुच्छा . मैने कहा की सब ठीक हैं.
फिर मैने ही पुछा “और आज कल क्या कर रही हो ? “.

उसने कहा “बस एक छोटी मोटी सी नौकरी कर रही हु. पार्ट टाइम मे बच्चों की थोरी टूशन भी ले लेती हु “.
सुन कर मैं अवाक् था. क्या ये वही निशा है. एक ज़माने मे जिसके चेहरे पे इतना अभिमान हुआ करता था. और आज एक दम से निश्छल और मासूम . चेहरे पे अभिमान का नामो निशान नहीं.

मैने पुच्छा “शादी नहीं की अब तक ? “.

उस ने जवाब दिया “नहीं . और आप ने ? ”

मैने भी ना मे सर हिलाया .

वो बोली “कभी घर पे आइये “. मैने सहमति मे अपना सर हिलाया . फिर उसने कहा “अच्छा चलती हु. भाई को थोड़ा बुखार है इसलिए
ज्यादा  रुक नहीं सकती . वो चली गई. अगले दिन ही शाम को उसके घर पहुच ग्या. मम्मा से उसका एड्रेस मिला था. एक छोटा और पुराना सा मकान . एक कमरे मे ब्लैक बोर्ड टंगा था. कुछ बेंच और चेयर्स भी थे. समझ मे आ ग्या की शायद निशा इसी रूम मे बच्चों को टूशन देती होगी. आगे बढ़ा . दूसरे कमरे के दरवाजे पे नॉक किया.
दरवाजा खुला . निशा ही थी .
निशा ने कहा “अरे आप ?? आइये “. अंदर ग्या. उसने एक पुराने से सोफे की तरफ इशारा किया . मैं बैठ ग्या.
“क्या लेंगे चाय या कॉफी ? ” मैने कहा कुछ भी चलेगा . फिर थोरी ही देर मे वो कॉफी लेकर आ गई. “पता नहीं आप को पसंद आये ना आये “.

“काफी अच्छी बनी है” मैने जवाब दिया. फिर उस से पता चला की डैड की डेथ के बाद कैसे सारी जिम्मेवारी उस पे आ गई. सभी बहन भाई तो काफी छोटे थे. भाई इंजिनियरिंग कॉलेज मे ग्या था इसी साल. और छोटी बहने अभी स्कूल मे ही है.
मैने पुछा “अब तक शादी क्यूं नहीं की ? ” उसने सपाट सा जवाब दिया “भाई बहनो की इतनी जिम्मेवारियन है. मैं नहीं चाहती की  ये ज़िम्मेवारी किसी और पे डालु . ये मेरे भाई बहन हैं. तो जिम्मेवारियन भी मेरी ही हुई ना. ”
उसने भी पुछा “आप ने शादी क्यूं नहीं की ? ”

मैं मुस्कुराया और बोला ” बस काम काज की वयस्तता मे सोच ही नहीं पाया, और फिर जो पसंद आई थी उसने तो … ”
मैने वाक्य बीच मे ही अधूरा छोर दिया. वो समझ गई की इशारा उसकी ही ओर था. वो खामोश ही रही.
फिर मैने ही कहा “आप से एक बात पुछु ?? बुरा तो नहीं मानिएगा ? “.
उसने कहा “कहिये “. मैने जवाब दिया ” क्या आप अपने ज़िंदगी के इस सफ़र मे मुझे अपना जीवनसाथी नहीं बना सकती ? ”
वो हत्प्रभ रह गई. उसे मुझ से ऐसे सवाल की आशा कतई नहीं थी. फिर भी खुद को सँभालते हुए वो बोली ” मैं आप के लायक नहीं हु . ”
मैने पुछा क्यूं ?? उसने कहा ” आप कहाँ और मैं कहाँ . मैं किसी लिहाज से आप के योग्य नहीं. ”
सुन कर मुझे गुस्सा आ ग्या. मैने जवाब दिया “ठीक है चलता हु मैं. जाने मैं भी किस लड़की से प्यार कर बैठा. अजीब हो तुम. एक बार ये कह कर ठुकराया की मैं तुम्हारे योग्य नहीं. आज ये कह कर ठुकरा रही हो की तुम मेरे योग्य नहीं. निशा प्यार मे हमेशा तुम स्टेटस को क्यूं ले आती हो?? प्यार क्या अमीरी गरीबी, ऊंच नीच देख कर किया जाता है ?? अरे प्यार तो बस हो जाता है. किसी को किसी से भी. पर तुम्हें इस से क्या ?? कोई जिए या मरे . तुम्हे तो बस सिर्फ स्टेटस दिखता है. ये नहीं दिखता की एक लड़के ने कैसे तुम्हे दीवानो की तरह बेइम्तिहान प्यार किया. पिछले 14 सालो से ये लड़का बस तुम्हे ही चाहता आया है. अरे किसी और का खयाल तो मैने अपने दिल मे कभी आने ही नहीं दिया. पर शायद मेरी किस्मत मे तुम हो ही नहीं. सच तो ये है की तुम ने कभी मुझे अपने लायक समझा ही नहीं. ना कल और ना ही आज.

वो रोने लगी . मुझे अहसास हुआ की मैने शायद कुछ ज्यादा ही बोल दिया. मैने तुरंत ही कहा ” माफ़ करना कुछ ज्यादा ही बोल दिया मैने “. वो अब भी फुट फुट कर रोये जा रही थी.
उसने कहा ” मुझे माफ़ कर दीजिये .. सच मे मैं बहुत गंदी हु.. और फिर भी आप एक गंदी लड़की से इतनी मुह्हबत करते हैं. मुझे इसका अंदाजा भी नहीं था. हो सके तो आप की इस गुनेहगार को maaf कर दीजिये . अपना लीजिये मुझे .
मैने उसे हलके से बाँहों मे लिया. वो रोए ही जा रही थी. मैने उसके बालों पे हाथ फेरा और कहा ” पागल!! इसमें इतना रोने की क्या बात है . तुम गन्दी नहीं हो. तुम तो बहुत ही अच्छी हो. कितनी प्यारी सी, तुम्हारी वजह से ही तो मुझे आज मेरी निशा मिल पायी .
मैने उसके गालों पे बहते हुए आंसुओ को हलके से पोछा और कहा ” तुम रोटी हुई बिलकुल अच्छी नहीं लगती “.
वो हँस परी ..

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