The Hindi story is about a lover whose love left him for some unforeseen reasons & he is not able to overcome her memories till now.
ना जाने क्यूँ आज इतने सालों बाद फिर उसकी याद अचानक की मुझे आज कुछ ज़्यादा ही सता रही है। पता नहीं क्यूँ चाहकर भी मैं उसको भूल नहीं पाया। अजीब सी कशिश थी उसमे। उसकी वो बड़ी बड़ी आँखें और बचपन की सी मासूमियत लिए हुए उसका वो चेहरा आज भी मेरे दिल के किसी कोने में दस्तक देता है।
जुलाई २००२ में पहली बार मिला था उससे मुंबई में । मेरी तरह उसकी कंपनी ने भी उसको मुंबई भेजा था सेमिनार अटेंड करने के लिए। विल्मा ने हम दोनों का फॉर्मल इंट्रोडक्शन करवाया था। परिधि नाम था उसका पर सब उसको वहाँ प्यार से परी बुला रहे थे। जैसा नाम वैसा ही रूपरंग। मुझे यकीन हो चला की जिस सपनों की राजकुमारी की मैं अक्सर अपने जीवन में होने की कल्पना किया करता था परिधि उसी का जीताजागता उदहारण है। और जो मेरी नज़र उसके चेहरे पर टिकी फिर तो चाहकर भी मैं अपनी आँखें उससे हटा नहीं सका। सेमिनार दो दिन चला। और इन दो दिनों में मेरी कोशिश बस यही रही की मैं उसके पास रहूँ और उसको और ज्यादा से ज़्यादा जान पाऊँ।
उन दो दिनों में मैंने उससे मित्रता तो कर ही ली। किसी बहाने से मोबाइल नंबर्स भी एक्सचेंज हो गए। बातों बातों में उसने बतलाया की वो नागपुर की रहने वाली है और उसकी कंपनी भी वही नागपुर में ही है।छोटा सा परिवार था उसका। माँ,पापा,एक शादीशुदा बड़ी बहन और वो खुद। वे दो दिन कैसे बीत गए कुछ पता नहीं चला। सच कहूं तो सेमिनार के लेक्चर को सुनने की जगह उसको छुप छुप कर निहारने में मेरा वक़्त ज़्यादा बीता। दो दिन बाद सबको अपने अपने शहर वापस लौटना था।
मुंबई एअरपोर्ट से सबने एक दुसरे से अलविदा ली। पर जब परी मुझे बाय कहने आई तो मुझे ऐसा लगा की मेरे शरीर का कोई महतवपूर्ण अंग मुझसे कटकर अलग हो रहा हो। शायद उसने मेरे मनोभाव भाँप लिए थे।
मुस्कुराते हुए बोली की ,”अरे ! यह बच्चों जैसी रोनी सूरत क्यूँ बना रखी है। फ़ोन पर टच में रहेंगे ना ! और मैं ना शायद नवम्बर में दिल्ली आऊँगी एक फैमिली फंक्शन अटेंड करने के लिए तब मैं मिलूँगी तुमसे। अब खुश??”
यह सब सुनकर पहले तो एकबार अपने कानों पर यकीन नहीं हुआ पर जब वो मेरे गले लगी और धीरे से मुझे बाय बोला तो मन हुआ की आज अभी इसी वक़्त उसका हाथ हमेशा के लिए थाम कर अपने साथ दिल्ली ले चलूँ पर ऐसा संभव नहीं था।मन गुलाटियां मारने लगा। मैंने भी बड़े प्यार से उसको बाय बोला और अपने टर्मिनल की और अग्रसर हो गया।
घर पहुँचने तक बस परी का ही ख्याल दिलोदिमाग पर छाया रहा। मन किया की घर पहुँचते ही सबसे पहले मम्मी को बता दूँ की मैंने उनके लिए बहु ढूँढ ली है और उन्हें अब मेरे लिए लड़की देखने की कोई ज़रुरत नहीं है।पर फिर अगले ही पल दिमाग ने कहा की इतनी जल्दबाज़ी ठीक नहीं है। परी के मन में मेरे लिए क्या है वो जानना बहुत ज़रूरी है।
खैर इसी उधेड़बुन और परी के ख्याल के साथ अगले दिन से फिर से ऑफिस के काम में उलझ गया। दिन कैसे बिता पता नहीं चला पर शाम को घर लौटते वक़्त बस एक ही चीज़ दिमाग में थी की ९ बजे परी को कॉल करना है। यूँ तो उसने कॉल करने के लिए कोई में निर्धारित समय नहीं दिया था पर मुझे ९ बजे का ही समय उचित लगा। घर पहुंचकर फटाफट डिनर किया और अपने कमरे का दरवाज़ा बंद करके ९ बजने का इंतज़ार करने लगा।ठीक ९ बजे मैंने उसको फ़ोन लगाया। पहली बार सुनने को मिला की यह नंबर अभी बंद है।मैं थोड़ा सा घबराया और सोचने लगा की सब ठीक तो होगा ना उसके साथ।दूसरी बार मिलाया तो फिर वही सुनने को मिला। मैंने आँखें थोड़ी देर के लिए बंद कर ली। सवा नौ बजे फिर मिलाया तो अबकी बार घंटी बजी। और फिर परी ने फ़ोन उठाया। मैं घबराया हुआ सा बोला कि ,”क्या मैं परिधि गौतम से बात कर सकता हूँ ?” वो हँसते हुए बोली की ,”अभिषेक जी ! मैं ही बोल रही हूँ।” यह सुनकर मेरी जान में जान आई और फिर शुरू हुआ बातों का लम्बा सिलसिला। दिन कैसा रहा , ऑफिस में कितना था,खाने में क्या खाया और ना जाने क्या क्या। तक़रीबन एक घंटे बाद वो बड़ी शरारत से बोली की ,”क्यूँ मिस्टर ! सारी बातें आज ही करेंगे क्या ? कल के लिए भी तो कुछ छोड़िए। अब मैं रखती हूँ। कल बात करेंगे ठीक ९ बजे। गुड नाईट।” मेरी नाईट तो सच में ही गुड हो चुकी थी।
बस फिर क्या था रोज़ रात के ९ बजने का इंतज़ार बहुत बेसब्री से किया करता था मैं और शायद वो भी। यह सिलसिला अगले तीन महीनों तक यूहीं चलता रहा। नवम्बर का महीना भी आने को ही था। मेरी बेसब्री मेरा परी को मिलने का इंतज़ार सब धीरे धीरे अपनी चरम सीमा पर पहुँच रहा था। एक रात को बात करते हुए ना जाने मुझे क्या सूझी और मैंने उससे कहा कि ,”परी ! मैं तुम्हे बहुत चाहता हूँ।इतना चाहता हूँ की अब मेरे भविष्य की कल्पना मैं तुम्हारे बिना नहीं कर सकता।मैंने तुम्हे अपनी ज़िन्दगी से जोड़ लिया है। मैं तुमसे शादी करना चाहता हूँ।”
यह सब सुनकर वो एक मिनट के लिए बिलकुल खामोश हो गयी पर अगले ही पल बोली कि ,”मैं जानती हूँ की तुम मेरे लिए क्या फील करते हो। तुम्हारी फीलिंग्स को मैंने मुंबई में ही समझ लिया था बस एक बार तुम्हारे मुहँ से सुनना चाहती थी। मैं ९ नवम्बर को दिल्ली आ रही हूँ माँ पापा के साथ फंक्शन अटेंड करने के लिए। बाकी की बात तभी मिलकर करेंगे।” यह सुनकर मैं खुश तो बहुत हुआ पर मैं भी यह भी चाहता था की वो भी आज अगर अपने दिल का हाल मुझसे कहती , मुझे बताती की वो मेरे लिए क्या महसूस करती है तो मुझे और भी अच्छा लगता पर खैर लड़कियां अक्सर शर्म की वजह से यह बातें कहने में समय लेती हैं यह सोचकर मैंने खुद को मना लिया।
बातें होती रहीं और ९ नवम्बर का इंतज़ार भी।८ नवम्बर को सुबह उसका फ़ोन आया की वो कल दिल्ली सुबह ११ बजे तक पहुँच जाएगी . लाजपत नगर में उसको फंक्शन अटेंड करना है और बोली की वो मुझसे १० नवम्बर को शाम को ५ बजे डिफेन्स कॉलोनी के एक रेस्टोरेंट में मिलेगी।यह सुनते ही मैं पूरे जोश में आ गया।ऑफिस पहुँचते ही सबसे पहले १० नवम्बर के लिए हाफ डे की एप्लीकेशन दी और फिर परी को गिफ्ट करने के लिए उसकी कुछ मनपसंद चीज़ों की लिस्ट बनाई। इन दो दिनों में परी से बात नहीं हुई। वो भी फंक्शन में बिजी थी और मैं यहाँ उससे मिलने की तय्यारी करने में।
और लीजिये १० नवम्बर भी आ गई। आज तो मेरे पैर ज़मीन पर नहीं थे। ऑफिस के लोग भी मुझसे तरह तरह के सवाल कर रहे थे पर मुझे सुध ही कहाँ थी। बस परी ही परी मेरे दिमाग पर छाई हुई थी। मैं सब गिफ्ट्स के साथ वक़्त से थोड़ा पहले ही रेस्टोरेंट पहुँच गया और उसके आने का इंतज़ार करने लगा। ठीक ५ बजे मैंने उसका फ़ोन मिलाया।घंटी बजी पर उसने उठाया नहीं।मुझे लगा की शायद रास्ते में होगी। मैं इंतज़ार करता रहा पर वो नहीं आई। ७.३० बजे तक मैं उसका इंतज़ार करता रहा और फ़ोन मिलाता रहा। पर शायद उसको नहीं आना था सो वो नहीं आई और ना ही उसने फ़ोन उठाया।
मैंने सोचा की हो सकता है की रिश्तेदारों के बीच में फँस गयी हो इसलिए नहीं आ पाई। यही सोचकर मैं घर लौट गया। ९ बजे फिर मिलाया तो फ़ोन बंद था। वो रात तो आँखों में ही कट गई।अगले दिन ऑफिस में हर थोड़ी देर में मौका पा कर उसका फ़ोन नंबर मिलाता रहा पर या तो घंटी बजती रहती या फिर फ़ोन बंद मिलता। यह सब अगले १० दिन तक ऐसे ही चलता रहा।फिर एक दिन मैंने विल्मा को फ़ोन लगाया और उससे परी के बारे में जानकारी लेने की कोशिश की पर कोई फ़ायदा नहीं हुआ।
दो दिन बाद हिम्मत करके उसके नागपुर ऑफिस में खुद को उसका एक पुराना मित्र बताते हुए फ़ोन लगाया तो बस इतना ही पता चला की कुछ निजी कारणों की वजह से उसने १२ नवम्बर को ही कंपनी से रिजाइन कर दिया था।वो निजी कारण क्या थे यह सवाल आज भी मेरे जीवन का सबसे बड़ा रहस्य है।
और फिर जनवरी २०० ३ से उसका नंबर आउट ऑफ़ सर्विस हो गया। उसकी इ-मेल काम कर रही थी पर उसने मेरी किसी भी मेल का जवाब नहीं दिया। सच तो यह था की परी मेरी ज़िन्दगी से जा चुकी थी। (कहाँ और क्यूँ इन सब सवालों के जवाब तो परी के ही पास थे)। सच बहुत कड़वा था पर मुझे इसके आगे झुकना पड़ा।
आज ११ साल हो चलें हैं परी को मेरी ज़िन्दगी से निकले हुआ या शायद वो मेरी ज़िन्दगी का हिस्सा कभी थी ही नहीं। अब मेरी शादी हो चुकी है और दो प्यारे प्यारे बच्चें भी हैं मेरे लेकिन मैं अर्पिता (मेरी पत्नी) में आज भी परी को ही खोजता रहता हूँ। जानता हूँ यह गलत है पर परी मेरे जीवन का वो अध्याय है जिसे ना तो मैं फाड़ कर फेंक सकता हूँ और ना ही मिटा सकता हूँ . अगर मैं कहूं की मैं उसको भूलना ही नहीं चाहता तो शायद यही ठीक होगा और यही सच भी है।
ऊपर वाले से एक ही दुआ है मेरी की आँखें हमेशा के बंद होने से पहले एक बार परी से मिलवा दे। बस एक आखिरी बार उसको देखना चाहता हूँ और उससे यही जानना चाहता हूँ की वो मुझसे मिलने क्यूँ नहीं आई। बस एक आखिरी बार !
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