पत्थर का पुल
उस पत्थर के पुल पे आते ही जैसे मैं ज़िन्दा हो जाती थी. मेरी ठंढी हो चुकी भावनाएँ जैसे जागकर मेरी शिराओं में दौड़ने लगती थी और फिर जैसे ही तुम आते मैं किसी और दुनिया में पहुँच जाती थी, वो एक घंटा मेरे हर दिन का सबसे क़ीमती वक़्त होता था जिसको मैं अपना सबकुछ देकर भी पाना चाहती थी. अजब सी प्यास थी जो बस तुम्हारी आँखों में ही जाकर ख़त्म होती थी. ये सिलसिला दस महीने चलता रहा और तुम किसी प्रेम कहानी सा मुझमें बसते रहे. कमल- तुम्हारा नाम भी उतना ही कोमल एहसासों से भर देता था मन को.
तुम्हारा मिलना भी एक इत्तफ़ाक़ ही था, मेरी गाड़ी क्या ख़राब हुई तुम किसी देवदूत से आकर गाड़ी को भी ठीक कर डाला और मुझे भी एक अटूट बंधन में बाँध गए और रोज़ मुझसे मिलने का वचन भी ले लिया. जब भी तुम्हें मैं कहीं और चलने की बात करती तुम कहते जल्द ही मैं तुम्हें अपनी दुनिया का हिस्सा बनाऊँगा. मुझे भी कोई जल्दी नहीं थी, विकास के यूँ असमय जाने के बाद वैसे भी मैं बहुत अकेली पड़ गयी थी और जाने तुम में कैसा आकर्षण था कि ख़ुद को तुमसे मिलने से रोक नहीं पाती थी. और आज मैं तुम्हें किसी से मिलाना चाहती थी जो हमारे प्रेम का साक्षी बनता. यही सब सोचते हुए आज आधा घंटा बीत गया और तुम अभी तक नहीं आए, मैं परेशान सी पुल पर इंतज़ार करती रही. पुराना पुल होने के कारण लोगों का आना जाना इधर बहुत कम ही होता था. मैं परेशान सा पुल पर टहलती रही और तुम्हारे बाँहों में खो जाने की इच्छा बढ़ती जा रही थी. पुल के पास जो बाग़ का बेंच था जहाँ हम बैठकर बातें किया करते थे वहाँ भी जाकर देख आई, पर तुम्हारा कोई अता पता नहीं था. और इस तरह एक घंटा बीत गया पर तुम नहीं आए.
मैं हारकर कार के पास वापस चली आई जहाँ डाक्टर सिन्हा मेरा इंतज़ार कर रही थीं. उन्होंने मुझे अकेला देखकर कहा अमिता अब तुम बिल्कुल ठीक हो, अब तुम विकास की यादों से मुक्त हो चुकी हो, अब कमल तुम्हें कभी नहीं दिखेगा. मैं आश्चर्य से बोली पर डॉक्टर आप पिछले दस दिनों से मुझे कमल के साथ बेंच पर बैठे देखती आईं हैं और आज आप ये क्या कह रही हैं. फिर उसके बाद डॉक्टर सिन्हा ने जो भी कहा मैं विश्वास नहीं कर पाई कि एेसा भी होता है कि किसी के चले जाने के बाद हम उससे इतने जुड़े होते हैं कि उनके प्यार को अपनी दुनिया में, अपने ख़यालों में इस क़दर ज़िन्दा रखते हैं कि सच को देख नहीं पाते और एक काल्पनिक दुनिया में जीने लगते हैं.
विश्वास तो अब भी नहीं होता मुझे पर आज उस बात को एक साल हो गए और बहुत बार उस पत्थर के पुल पर तुम्हें ढूँढने की कोशिश की पर तुम कभी नहीं आए और सच कहूँ तो अब वो बेचैनियाँ भी नहीं रहीं. डाक्टर सिन्हा के अनुसार अब मैं मेडिकली फ़िट हूँ, शायद सही कहती हैं वो कि जो है यहीं हैं, जो दूसरी दुनिया चले जाते वो कभी लौटकर नहीं आते और उनके प्यार को हमारी शक्ति बनाना चाहिए कमज़ोरी नहीं. उस पत्थर के पुल पर मैंने अतीत और वर्तमान को जोड़ने की कोशिश की थी पर सच तो ये है कि हमारी अान्तरिक शक्ति ही एक पुल होती है जो हमें अतीत से वर्तमान तक का सफ़र तय करने में मदद करती हैं.
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