“हांजी! हमें पता है.. सच में? अच्छा ठीक है कल बात करतें है… अरे काम है मुझे … ठीक ठीक कल कल…” बाय बोलते हुए अनुभा ने फोन काट दिया…
“बड़ा गहरा रोमांस चल रहा है” ..अचानक शशि की आवाज़ सुन कर चौंक कर अनुभा ने पूछा अरे! तू कब आई?
“तभी जब आप प्यार के सागर में गोते खा रही थीं”…शशि ने मुस्कुराते हुए कहा तो अनुभा अपनी स्मृतियों मे खो सी गई… तभी शशि ने गम्भीर आवाज़ में कहा “यार तुझे डर नहीं लगता”…
किस से ? अमय से? हट पागल कितना प्यार करता है वो मुझसे तू जानती भी है”?
हाँ जैसे तू तो सब जान गई” शशि ने चिढ़ कर कहा…
“हाँ मै जानती हूँ, अच्छी तरह जानती हूँ वो मुझे बहुत चाहता है…” अनुभा ने कहा.
बात को ज्यादा बढ़ाना बेकार था… सो शशि चुप हो गई.. मगर शशि का चुप हो जाना अनुभा को अच्छा ना लगा वो उसके पास जाकर प्यार से उसका हाथ पकड़ कर बोली “मै जानती हूँ शशि तू मेरी परवाह करती है इस लिए डरती है मगर वो गलत नहीं है तू एक बार बात करके तो देख…”
मै क्या जान सकूंगी एक बार बात करके? और फिर तुझे कोई फर्क पड़ने भी वाला है ?शशि ने खीजते हुए कहा…
खुल कर हँस पड़ी अनुभा… “सच में कितनी अच्छी तरह जानती है तू मुझे.”.. उसकी बेशर्म हँसी देखकर शशि भी खुद को हँसने से रोक ना पाई और दोनों बहुत देर तक हँसती रहीं…
दोनों यूँ तो दोस्त थी… दोस्ती हुई भी ऐसे हालत में कि और कोई चारा ना था… मगर मजबूरी के साथ ने बड़ा गहरा रिश्ता बना दिया उनका … अलग अलग परिवेश से आई दोनों लड़कियों के विचारों मे कोई मेल नहीं था… मगर दो विपरीत ध्रुव एक दूसरे की ओर कैसे आकर्षित होते हैं इसका उदाहरण थी ये दोनों जैसे… जहाँ एक ओर शशि बेहद शांत संयत और समझदार..उसके विपरीत अनुभा.. शोख चंचल और अल्हड़..एक बिना सोचे बोलने के लिए मुँह ना खोले और दूसरी बोलते समय अपने दिमाग को कष्ट नहीं देती… शायद शशि ने दुनिया के अधिक रंग देखे थे अनुभा से इसी कारण वो अनुभा के लिए चिंतित थी.. और अनुभा का जीवन के प्रति सीधा सादा दृष्टिकोण… “एक लाइफ मिली है सब कुछ इसी में करना है…डर डर कर भी क्या जीना”…
शशि को नयी नयी नियुक्ति मिली थी.. कॉलेज में… मगर आवास की समस्या थी .. कॉलेज प्रशासन की ओर से रहने का कोई प्रबंध ना था… “आप को रहने की व्यवस्था स्वयं करनी होगी हमारे यहाँ फिलहाल कोई प्रबंध नहीं हो सकेगा … कुछ समय आप हमारे अतिथि कक्ष में रह सकती है मगर सिर्फ कुछ समय..” किसी तरह भाग-दौड़ कर के शशि ने एक मकान किराए पर ले ही लिया ऑफिस के चपरासी की सहायता से… इस नए घर में ही नए साथी के रूप में मिली थी अनुभा पहली बार… जो कुछ माह बाद अपनी रिसर्च पूरी होने पर कमरा छोड़ने वाली थी… मकान मालकिन ने अपनी लाचारी बता दी “मैडम आपको दूसरा कमरा इनके जाने के बाद ही दे पाएंगे तब तक आप एक से काम चलायें..” शशि ने भी हामी भर दी… मगर उन दो चार महीनों में ही अनुभा उसकी इतनी अच्छी दोस्त बन गई कि जो दो कमरे अलग अलग लिए थे वो उन दोनों का घर बन गया… साथ रहना साथ खाना साथ सोना.. रात दिन के साथ ने उनको बहनों जैसा बना दिया…सब ठीक चल रहा था मगर पता नहीं कहाँ से उनके बीच अमय आ गया…
“क्या हर समय मोबाइल में घुसी रहती है अनुभा” शशि ने पूछा था..
“अरे रुक तो सही” अनुभा ने बिना सर उठाए शशि से कहा..
“पता है बड़ा मज़ा आता अजनबी लोगों से बात करने में.. नए नए लोगों से मिल कर उन के बारे मे जानना मुझे तो बहुत अच्छा लगता.. पता है कई बार पुराने भूले बिसरे लोग भी मिल जातें हैं ”
“तू भी ना, क्या क्या करती रहती है जाने” शशि ने कहा… चल आ जा, खाना लगा दिया मैंने…
खाना खाते समय भी अनुभा का पूरा ध्यान फोन में ही था और शशि का अनुभा पर..रात सोते समय शशि से ना रहा गया तो पूछ ही लिया “मै कई दिन से देख रही हूँ अनुभा ये क्या चल रहा है ?”
पहले तो टालने की कोशिश करती रही मगर शशि का रुख देख कर अनुभा ने अमय के बारें में बता दिया..सोशल साईट पर मिला नया दोस्त है …इन्जीनियर है सिंगल है देखने में स्मार्ट है और अनुभा को पसंद करता है…
“कब से चल रहा है ये सब?” शशि ने अचम्भे से पूछा..
“दो दिन हुए है, यार मैं बताती तुझे मगर पहले सोचा कुछ पता तो कर लूँ बताने लायक…”
“तू क्या बताएगी तेरा चेहरा बता रहा है मामला गंभीर है”.. शशि ने शरारत से कहा ..
“और क्या खासियत है इन मिस्टर में ?”
“वी आर इन लव”… अनुभा ने मुस्कुराते हुए कहा..
.व्हाट? शशि ऐसे चौंकी जैसे करंट लग गया हो “दो दिन में प्यार हो गया ? तेरा दिमाग ठीक तो है” शशि ने गुस्से से पूछा…
हाँ सच में मै खुद नहीं जान पाई मगर इतना सच है …हम प्यार करतें हैं एक दूसरे से… अनुभा ने दृढ़ता से कहा … हमेशा मस्त रहने वाली अनुभा का नया ही रूप था ये…
शशि ने फिर भी कहा “हर रिश्ता कुछ समय चाहता है तुम भी अपने रिश्ते को और एक दूसरे को समय दो.. और घरवालों से भी तो बात कर इस बारे में ज़िंदगी का इतन बड़ा फैसला खुद ही कर लेगी अकेले?”..
मै अकेली कहाँ हूँ मेरी दादी माँ है ना मेरे साथ… अनुभा ने शरारत से शशि की ओर देखते हुए कहा…
चल हट हर बात मजाक में लेती कुछ तो गंभीर बन …शशि ने कहा .
.खांस कर गला साफ़ करते हुए अनुभा बोली हो गई गंभीर… “मुझे नहीं पूँछना है किसी से, ना ही बताना हैं ज़िंदगी अपनी है ये और सिर्फ मेरा हक है अपने सारे फैसले लेने का… अगर मुझसे कुछ कहने का अधिकार किसी को है तो वो सिर्फ तू है…”
अनुभा का ये पहलू देख कर शशि अचंभित थी… कल तक बच्चों की तरह हरकतें करने वाली अनुभा कैसे इतनी बदल सकती है ये प्यार का असर है या वास्तव में अनुभा अपने भीतर कई तूफान छुपाए बैठी है…
कभी घर परिवार के बारे में जानने की आवश्यकता ही नहीं लगी… शशि के पास बताने को कुछ नहीं था और अनुभा को फुर्सत नहीं थी इस बारे में बात करने की.. मगर आज का जो व्यवहार था अनुभा का, उसके बाद जरुर शशि के मन में जिज्ञासा जाग्रत हो गई थी… ऐसी भी क्या नाराजगी.. परिवार की इतने बड़े फैसले में अनुमति ना भी सही परन्तु सहमति तो अनिवार्य है … शशि ने सोच लिया था कोई अच्छा सा मौका देख कर वो इस बारे में अनुभा से पूछेगी जरुर …
“आज फिल्म देखने चलें?” बाथरूम से निकलते ही अनुभा ने शशि से पूछा…
“क्यों?” अपनी डायरी में सर घुसाये शशि ने सवाल किया… और अपने ही सवाल पर मुस्कुरा पड़ी, “मेरा मतलब था क्या हुआ! आज फुर्सत में हो?”
“हाँ मेरा मन है कहीं बाहर चलें … तू छुट्टी ले ले आज…” अनुभा ने मक्खन लगाने के अंदाज़ में कहा…
“नहीं छुट्टी तो मुश्किल है मै लंच के बाद फ्री हो सकती हूँ चलेगा?” शशि ने कहा..
चल ,कोई नहीं लंच में ही आ जाना हम बाहर ही खायेंगे…” अनुभा ने कहा…
“हम? कोई और भी है क्या ?” शशि ने धीरे से पूछा…
अनुभा के चेहरे से खुशी जैसे फूटी पड़ रही हो …हाँ किसी से मिलवाना है… झिझकते हुए अनुभा ने कहा…
“किस से ? अमय से?” शशि ने पूछा..
“उसका नाम अनुभव है” अनुभा ने कहा…
“और अमय?” शशि कुछ उलझ सी गई…
“वो ऐसे ही साईट पर रख लिया था..”. अनुभा ने सफाई दी…
“चल मुझे लेट हो जायेगा… वापस आकर बात करती हूँ…” शशि ने अपना सामान समेटते हुए कहा.
“तू आएगी ना..?” अनुभा ने उसको रोकते हुए पूछा..
“हाँ आती हूँ ना ! चल बाय मिलते हैं फिर..” बोलते हुए शशि निकल पड़ी…
“आज दो ही पीरियड होने हैं… ये भी अच्छा है थोड़ा जल्दी फ्री हो जाऊँगी” शशि मन मन ही मन बुदबुदाई …. “अनुभव” ये नाम कुछ अटक गया… मगर खुद को तुरंत समझाते हुए शशि ने सर हिलाया “क्या एक ही इंसान हो सकता है इस नाम का…”
नियत समय पर शशि पहुँच गई … मगर अनुभा का कोई अता-पता ना था.. शशि ने फोन मिलाया तो पता नहीं कब पीछे से प्रकट हो गई और जो साथ में था उसको देख कर शशि तो जैसे मूर्ति बन गई … अनुभा बोल रही थी और शशि कुछ सुन नहीं रही थी …वो तो बस एक टक देखती रह गई लगभग वैसी ही हालत सामने खड़े इंसान की थी..
“अरे शशि तुम? सोचा नहीं था तुम दुबारा मिलोगी… कैसी हो… कहाँ हो? क्या कर रही हो? बिलकुल नहीं बदली तुम तो…” एक सांस में इतने सारे सवाल कर डाले…और जवाब में शशि सिर्फ इतना ही कह पाई..
“अनु तुम !”… अनुभा ने पूछा “तुम दोनों एक दूसरे को जानते हो?”
अब तक शशि भी संभल चुकी थी..बोली “हाँ हम कॉलेज में साथ थे”…लंच में शशि चुप चुप सी ही थी… और लंच में ही इतना टाइम बीत गया कि फिल्म का न टाइम बचा था और ना ही मूड…
घर आकर भी शशि कुछ उखड़ी सी थी और अनुभा अपने ख्यालों मे खोई खोई..दोनों चुप थी…. अचानक अनुभा के बोलने से कमरे का सन्नाटा टूटा. “ये तो कमाल हो गया ना …तुम दोनों एकदूसरे को जानते हो… लोग कहते हैं दुनिया बड़ी है मगर मेरी तो छोटी ही निकली…” अनुभा की आँखें खुशी से चमक रही थी… “फिर तो तू सब जानती होगी ना अनुभव के बारे मे?” अनुभा ने उत्सुकता से शशि से पूछा..
“नहीं ज्यादा नहीं बस थोड़ा बहुत माता-पिता की बड़ी संतान है, एक छोटी बहन है जो बाहर पढ़ने गई थी.. और बहुत पैसे वाले लोग हैं.. उसके पिताजी बड़े उद्योगपति हैं.”
“और?” अनुभा ने फिर से पूछा
“और मुझे नहीं पता” शशि ने जान छुड़ाते हुए कहा.. “मुझे सोने दे और तू भी सो जा”….
करवट बदल कर शशि ने मुँह दूसरी तरफ घुमा लिया.. नींद का दूर दूर पता न था कभी सोचा न था अतीत ऐसे अचानक सामने आकर खड़ा हो जायेगा जिस अतीत को भूल कर वो नयी जिंदगी शुरू करने चली थी.. सोचते सोचते आधी रात बीत गई मगर नींद का दूर दूर पता ना था .. उठ कर पानी पिया तो पास मे सोई अनुभा पर नज़र पड़ गई किसी अबोध बालक की तरह सोते हुई मुस्कुरा रही थी…अचानक शशि को जैसे समझ आ गया कि उसको क्या करना है …अब मन शांत था कल ही अनु से मिल कर फैसला करती हूँ…
सुबह अनुभा के जागने से पहले ही शशि तैयार हो गई जाने के लिए …बाहर आ कर अनु को फोन किया “मै तुमसे मिलना चाहती हूँ.”..
“ठीक है.. कब और कहाँ?” उधर से आवाज़ आई…
“एक बजे मेरे कॉलेज आ सकते हो ?” शशि ने पूछा..
“हाँ श्योर” … अनु ने कहा …
ओके बोल कर शशि अपने गंतव्य की ओर बढ़ गई… नियत समय पर अनुभव कॉलेज पहुँच गया…
“मैडम जी, कोई साहब आपसे मिलने आये हैं …” शशि स्टाफरूम मे बैठी थी कि चपरासी ने आकर बताया…ठीक है उनको बोलो आती हूँ… कहते हुए सामान समेट कर शशि भी चपरासी के पीछे पीछे चली आई… “आ गए तुम, चलो कैंटीन में बैठ कर बात करते हैं…” कह कर शशि कैंटीन की ओर बढ़ गई,
अनुभव भी उसके साथ हो लिया… “हाँ कहो मुझे यहाँ ऐसे क्यों बुलाया” कुर्सी पर बैठते हुए अनुभव ने सवाल उछाला.
“बात करनी थी तुमसे” शशि ने गंभीरता के साथ कहा.. “तुमको अंदाज़ा भी है अनुभा तुमको किस क़दर पसंद करती है ? उस के साथ कुछ भी ऐसा वैसा हुआ तो वो सह नहीं पायेगी” “वो” शब्द पर कुछ ज्यादा ही जोर डाला था शशि ने या अनुभव को सिर्फ महसूस हुआ … “बहुत गहराई से जुड गई है तुमसे.” शशि ने बात में आगे जोड़ा…
“जुड तो मै भी गया था क्या मेरी परवाह की किसी ने..” अनुभव के अचानक बोलने से शशि सकपका सी गई..
.फिर खुद को संयत करते हुए बोली “हम पिछली बातों को न छेड़े तो ज्यादा बेहतर होगा अनु..”
अनुभव ने उसकी आँखों में देखते हुए कहा “कितनी आसानी से बोल दिया पिछली बातें..”मै तुमको पल भर नहीं भूला… क्या एक पल के लिए भी भुला सकी हो तुम?.. एक बार भी जानने की कोशिश की.. मै कहाँ हूँ कैसा हूँ…तुम ऐसी कैसे हो सकती हो शशि?अनुभव भावुक हो उठा..
“खुद को सम्हालो अनु जो बीत चुका है उसका हम कुछ नहीं कर सकते..फिर मैंने तो तुम्हारा साथ नहीं छोड़ा था .. तुम्हारे पिताजी खुद आये थे मेरे पास … कि मै तुमको मुक्त कर दूँ और बदले मे जो चाहूँ कीमत वो मुझे देंगें..” शशि का चेहरा क्रोध से भभक रहा था.. “अपने इकलौते बेटे के लिए बहुत बड़े घर की सजातीय लड़की का रिश्ता मिल गया था न उनको…फिर तुमने उस से शादी की क्यों नहीं?” शशि के स्वर में तंज था…
“ये सब कहा था पिताजी ने तुमसे ?” अनुभव ने विस्मित होते हुए पूछा…
“मैंने कहा ना पिछली बातें रहने दो… मै सिर्फ अनुभा के बारे में बात करने आई हूँ… वो हमारे बारें में कुछ नहीं जानती है… शशि ने शांत होते हुए कहा …
“अब जब छिड़ ही गई है तो पूरी बात सामने आ ही जाने दो” अनुभा ने मेज पर से बिस्किट उठा कर मुँह मे रखते हुए कहा….वो मुस्कुरा रही थी… शशि तो जैसे हतप्रभ थी “तू यहाँ क्या कर रही है?”
“तुम दोनों पर नज़र रख रही थी..”. अनुभा ने शरारत से कहा…
“मैंने मना किया था… मगर तू कहाँ मान सकती है…” अनुभव ने अपनी कुर्सी अनुभा के बैठने लिए छोड़कर जगह देते हुए कहा ..
. “तुमने ही तो बताया था तुम दोनों यहाँ मिलोगे.” अनुभा ने उसके पेट मे कोहनी मारते हुए कहा…
“तो ? ये तो नहीं कहा था कि तू भी आ धमकना.. कबाब में हड्डी कहीं की… अनुभव ने भी अनुभा को मुक्का दिखाते हुए कहा…
शशि भौचक्की सी उन दोनों को देखे जा रही थी … ये सब क्या चल रहा था उसको कुछ समझ नहीं आ रहा था …वो कभी अनुभव को कभी अनुभा को देख रही थी … उसकी ऐसी हालत देख कर अनुभा ने पूछा “सच बता शशि हम साथ में कैसे लगते हैं ..?”
शशि कुछ बोल ना पाई बस अपलक उसको देखती रह गई… अनुभा उठ कर शशि के पास वाली कुर्सी पर आकर बैठ गई.. “दिमाग पर ज्यादा जोर मत डाल यार ! ये मेरा भाई है..” कह कर खुल कर हँस पड़ी अनुभा …अनुभव भी मुस्कुरा रहा था… “मैंने भाई के पास तेरे फोटो देखे थे और तुझसे अलग होने के बाद जो मेरे भाई की हालत थी वो भी …बस मैंने तुझे ढूंढने का निश्चय कर लिया था मगर तेरा कोई अता पता ही नहीं मिला मगर उस दिन मकान देखने के लिए जब तुम आई तो मेरी तलाश पूरी हो गई…एक पल में मैंने पहचान लिया… और इतना समय साथ बिता कर जान भी लिया कि भाई की बेचैनी गलत न थी तुम्हारे लिए.. तुम हो ही इतनी अच्छी कि जो तुम्हारे सम्पर्क में आएगा बस तुम्हारा ही हो जायेगा…”
शशि की आँखों से निकल कर गालों पर बहते आंसुओ को पोछते हुए अनुभा ने कहा… “पिताजी ने तुमको जाना ना था नहीं तो वो ऐसा ना करते… अब वो इस दुनिया में नहीं हैं.. फिर भी उनकी ओर से मैं माफ़ी मांगती हूँ…मेरे भाई ने बहुत दर्द सहा है शशि, पूरे परिवार का, समाज का विरोध किया और शादी नहीं की… सिर्फ तुम्हारे लिए… उनको पूरा भरोसा था कि वो तुमको ढूंढ लेंगे और मना भी लेंगे.. अब तुम हम दोनों को निराश मत करना.. और मेरे झूठ के लिए माफ कर देना. मुझे डर था कि मै अगर कुछ भी और कहूँगी तो तुम भाई से कभी नहीं मिलोगी… सच में मेरी दुनिया बहुत छोटी है बस दो ही हो तुम…जिनको अपना कहती हूँ..” इतना बोल कर अनुभा चुप हो गई..
बड़ी देर तक तीनों उसी हालत में बैठे रहे …आखिर में शशि ने चुप्पी को तोडा… “क्या अब यहीं बैठे रहना है ? चलना नहीं हैं?”
“फिर क्या फैसला किया शशि?” अनुभव ने पूछा..
शशि सर झुका कर मुस्कुरा कर अनुभा से बोली “चल उठ ड्रामाकंपनी”…
अनुभा भी शरारत से बोली “पहले ये बताओ मेरी भाभी बनोगी ना?”
शशि ने मुँह से बिना बोले हामी मे सर हिलाया और तीनों कैंटीन से निकल कर घर की ओर चल पड़े… कल तक जो दोस्त थे आज वो एक परिवार थे…
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