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Pyar Mein Jabarjasti…

Published by loveusmyle अक्स in category Hindi | Hindi Story | Love and Romance with tag heart break | Love | Rain

प्यार में थोड़ी जबरजस्ती कहाँ बुरी होती है

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Hindi Love Story – Pyar Mein Jabarjasti…
Image© Anand Vishnu Prakash, YourStoryClub.com

वो दिन याद है तुम्हे, जब मैं और तुम रिमझिम बारिश में भीगते हुए मीलों निकल गए थे। सड़क पर बारिश की बूंदों और हम दोनों के सिवा कोई भी नहीं था। खूब मजे किये थे। बारिश से भीगते हुए हमने चाय भी पि थी, पकोड़े भी खाये थे। और तुमने कहा था – ये दिन मैं अंतिम सांस तक नहीं भूलूंगी।
सब कुछ कितना अच्छा था न तब, तब इतना कठिन न था सब कुछ, न तुम, न ये वक़्त, न ज़िन्दगी।

खामोश जुबान से वो सब कुछ सुन रही थी। और कुछ सोच रही थी। वर्षों बित गए, मैंने जिसे ज़िन्दगी माना था, उसकी शकल तक न देखने का इरादा किया था। लेकिन इस होली मैं खुद को रोक न सका। कुछ बेबस हालात के रंग चढ़े थे हम दोनों पर, उसकी बेबसी सब कुछ था, और मेरी बेबसी वो थी। वो सबके सामने मजबूर थी, और मैं उसके सामने। बस एक दिन छोर गयी वो मुझे, ये तक नहीं सोचा की मैं जी भी पाउँगा या नहीं। उस वक़्त मैं कुछ भी कर जाने वाला था, लेकिन आप जिससे प्यार करते हो, जिंदगी मानते हो उसका कुछ बुरा कैसे कर सकते हो। और अपना प्यार गलत साबित न हो ये सोचकर खुद का भी बुरा न होने दिया।

बस उस दिन कसम खा ली थी, एक दूसरे को अपनी शक्ल न दिखाने की, कायम था आज तक। लेकिन आज ये सब रंग उतार लिया हमने। होली बित चुकी, अब वही पहले जैसा चेहरा था। उसकी शादी हो गयी। 2 साल बाद आई है वो, उसने इस बिच कई बार मुझसे बात करने की कोशिश की थी, लेकिन मैं अडिग था।

वर्षों बाद आज मिला हूँ तो फर्क इतना है की वो अपने फेवरेट शूट की जगह साड़ी पहन कर आई थी। हम दोनों साथ जरूर बैठे थे, पर फिर भी एक अलगाव था। एक एक करके दोनों के साथ बिताये पल याद कर रहे थे, और बेवकूफियों पर हंस रहे थे।

तभी वो पलटी, मुझ और देखा, ये क्या उस दिन की बारिश की बुँदे इसकी आँखों में कैसे है, वो सिसकी और बोली –

तुमने ऐसा क्यों किया? क्यों मुझे जाने दिया? मैं तो बेवक़ूफ़ थी, नासमझ थी, पर तुम तो समझदार थे न। रोक सकते थे न। थोड़ी जबरजस्ती भी तो कर सकते थे। हमेशा तुमने हर कुछ में मेरी इज़ाज़त क्यों जरुरी समझा। जानते हो न मैं अपने फैसलों में कितनी गलत होती हूँ। फिर क्यों तुमने मुझे रोकना जरुरी नहीं समझा। प्यार में थोड़ी जबरजस्ती कहाँ बुरी होती है। पता है कितना कुछ झेलती हूँ। ज़िंदा हूँ पर ज़िन्दगी नहीं है। सभी ऐसों आराम है मेरे घर में लेकिन बात करने वाला कोई नहीं, ऑफिस, काम और दिनचर्या से ज्यादा वो कुछ भी नहीं सोचता। किसी से बात करो तो उसे बुरा लगता है। भौतिक सुख सुविधाओं से तो लोग एक दिन बोर हो ही जाते है न, मैं भी हो चुकी हूँ। मुझे देखने के लिए घर की चीज़ें और टीवी नहीं चाहिए, बाहर निकलकर मुझे थोड़ी दुनियां देखनी है। दीवारों से बाते नहीं करनी, कुछ लोग चाहिए बात करने के लिए, कुछ दोस्त चाहिए ज़िन्दगी में। दिन रात हर बात की रिपोर्ट दो उसे, क्या कर रहे हो, किससे मिल रहे हो, क्या बाते हो रहीं हैं। पक गयीं हूँ इन सब बातों से। मैं क्या करूँ, कुछ समझ नहीं आता।

अगर उसने मुझे मेरी चंचलता देखकर पसंद करी तो ये कैसे सोच लिया की वो चंचलता सिर्फ उसी के लिए सिमटकर रह जायेगी। ये तो मेरा नेचर था न। मैंने कभी नहीं बोला उसे मेरी तरह होने, पर पूरी तरह से अपने जैसा बनाकर रख लिया है मुझे उसने। एक डर सा रहता है हर वक़्त, कुछ ऐसा न करूँ जिससे डांट सुननी पड़े।

तुम्हे क्या लगता है, मैं तुम्हे छोड़कर गयी तो ये दुःख सिर्फ तुम्हे है, तुमने तो एक बार दुःख झेला। मैं हर रोज झेलती हूँ। कुछ बोलते क्यों नहीं? क्यों नहीं रोका उस दिन मुझे तुमने। क्यों अपना बड़प्पन दिखाते रहे। उसने अपने आंसूं पोछते हुए बोला।

और मैं खामोश चुपचाप उसका ईल्ज़ाम सहता रहा। वो बोलती गयी, मैं सुनता रहा। मैं बोलता तो क्या बोलता, अब तो मुझे भी लग रहा था

काश उस दिन थोड़ी जबरजस्ती कर ली होती, उसे जाने न दिया होता।

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अक्स

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