दोस्तों, ये कहानी है मेरे एक दोस्त की जिसने अपने जीवन में हर मोड़ पर उतार – चढाव का स्वाद चखा और इस बात का गवाह हु में ,मैं आपको मेरे दोस्त के जीवन से रूबरू करवाते हुए उसकी शिद्दत के बारे में बताऊंगा और बीच बीच में अपना जिक्र भी में करूँगा आशा करूँगा की आपको मजा आएगा ।
राजस्थान के छोटे से जिले टोंक में अक्टूबर 1989 में पैदा हुए ये जनाब और इनके एक साल बाद पैदा हुआ मैं।पवन चौधरी ये नाम है मेरे दोस्त का इनके घर और हमारे सरकारी क्वाटर में लगभग 600 या 700 मीटर की दूरी होगी। हम दोनों एक ही स्कूल में पढ़ते थे लेकिन ये मुझसे एक क्लास आगे था, शुरू में हमारी दोस्ती इतनी खास नहीं थी। बस शक्ल से जानते थे इतना मिलना जुलना नहीं होता था क्यूंकि ये कुछ खुराफाती मिजाज का था और में थोडा पढ़ाकू टाइप।,पवन के पास उस समय वीडियो गेम हुआ करता था। जिसमे मारियो वाला गेम हम लोग खेलते थे ऐसे मेरा उसके घर आना जाना शुरू हुआ।
बस ऐसे ही यारी दोस्ती शुरू हुई चलती रही लेकिन जो जुडाव होता हे न वो आया जीवन के 8वें साल में क्यूंकि दोस्तों ये वो साल था जब मेरे पड़ोस में नए लोग रहने आये जिनके दो लड़कियां थी। चूँकि मेरे घर पर मेरे सब दोस्त आते थे पवन भी आता था,जैसा की उस ज़माने में आँखों आँखों में प्यार आम बात थी उसे भी हो गया। और संह्योग तो देखो इन लड़कियों ने भी हमारे ही स्कूल में दाखिला लिया और मेरी ही क्लास में। अब मैं ही पवन का एकमात्र जरिया था उस लड़की से बात करने का स्कूल में तो पानी पीने के बहाने से बात हो जाती थी लेकिन स्कूल के बाद दोस्तों में उसका पार्थ होता था। कोई चिट्ठी ,हो या गिफ्ट सब में ही इधर से उधर करता था। सबसे ज्यादा मजा तो तब आता था जब ग्रीटिंग कार्ड लेना होता था महीने भर पहले से पाई पाई जोड़कर कार्ड गेलेरी में घुसने लायक हम अपनी औकात बनाते फिर मूंह पे रुमाल बांध कर मेरी एटलस की फुल ऊंचाई वाली साइकिल पर हम दीवाने निकल पड़ते सब से बचते बचाते क्यूंकि क्या पता किस मोड़ पे कोई कमीना दोस्त मिल जाये। और स्कूल में चुगली कर दे की इनको मेने ग्रीटिंग कार्ड खरीदते देखा था।
दोस्तों, मेरे लिए मेरे दोस्त की मदद करना और उसके लिए प्यार का परवान चढ़ना किसी जन्नत से कम नहीं था हम लोगो का एक रूटीन था रोज़ शाम को हम कॉलोनी के जितने भी दोस्त थे मेरे घर के बाहर क्रिकेट खेला करते थे। और कयामत देखो दोस्तों ये क्रिकेट देखने के लिए मेरे दोस्त पवन का प्यार और उसके भाई बहन सब मेरे क्वाटर की डोली पर बेठ जाते मेरे दोस्त पवन की तो ये किसी अग्नि परीक्षा से कम नहीं होती थी। क्यूंकि प्यार सामने है परफोर्मेंस अच्छा करना है तो भाई पवन भैया क्या इनस्विंग आउट स्विंग बोलिंग करते गिल्लियां उडती नज़र आती थी। ,इस पर उनकी एक मुस्कुराहट पवन भैया की शाम बना देती थी ।
दोस्तों ये तो था मेरे दोस्त पवन के प्रेम जीवन का स्वर्णकाल इसके बाद शुरू होता है महाभारत काल। अब चूँकि भाभीजी आइटम थी तो और भी कई हमारे दोस्त थे जो हमसे जलने लगे क्यूंकि वो भी तो लाइन में थे लेकिन क्या करे भाभीजी और पवन भैया के दिल तो मिल ही गए थे। न अब क्या था मैं और पवन रोज़ शाम को कॉलोनी में घूमने जाया करते थे और सभी दोस्त मेरे घर के बाहर एक छोटा सा पुल था वंहा पर इकठ्ठा होते थे। और भाभीजी भी अपने घर की बाउंड्री में घुमा करती थी अब मैं और पवन मन मारकर दोस्तों के साथ गप्पे मारते फिर थोड़ी देर बाद बहाना बनाकर निकल जाते। और कॉलोनी के कम से कम 10 चक्कर काटते थे तो सेहत का तो ये हाल था की कॉलोनी में सबसे फिट हम दोनों ही थे।
पवन के जीवन में ये हसीन पल कुछ दिनों तक चले फिर नज़र लग गई वो भी दोस्तों की, साले एक तरफ हो गए और हम दोनों एक तरफ लेकिन दोस्तों ये खतरनाक वाली दुश्मनी नहीं थी ये दुश्मनी थी कुछ दोस्तों की जो सिर्फ इस बात से नाराज़ थे की लड़की आई तो दोस्त हाथ से निकल गया। इसी के चलते एक दिन इन सब ने मिलकर हम दोनों को घेर लिया और मेरे लिए सबसे अनोखी बात ये थी की इनमे से एक मेरा बड़ा भाई भी था बस सबने मिलकर अल्टीमेटम दे दिया अब से तुम दोनों कॉलोनी में नहीं घूमोगे। ,अब आप बताओ हमने क्या किया होगा क्या हमारी फट गई होगी …… नहीं बिलकुल नहीं पवन तो आशिक था बोल दिया भाई तो रोज़ घूमेगा जिसको जो करना है कर लेना और उसको देख कर अपन भी जोश में आ गए और मैं अपने भाई से ही जा भीड़ा जो हमारी विरोधी टीम के एक मेंबर थे।
अब क्या करता जोर तो अपनों पर ही चलता है न बोला भाई बीच में मत आओ ये मेरा दोस्त है कॉलोनी सब की है हम तो घूमेंगे बस तब से ये सारे हम दोनों के एंटी हो गए ये लोग भी हमारे पीछे पीछे घूमने लगे हम दोनों पर कमेंट करने लगे। साला! उस दिन के बाद ऐसा लगने लग गया की रजिया गुंडों में फंस गई कोई आये और बचा ले। ऐसा कई दिनों तक चला फिर हम दोनों ने बैठकर इसके बारें में गहराई से सोचा और सब दोस्तों से मिलकर सुलह की और सब ठीक कर लिया। इसके बाद ये प्यार का सिलसिला 2 साल तक अच्छे से चला,होली ,दिवाली ,वेलेंटाइन डे सब मस्त निकले
फिर जब हम लोग 10वी क्लास में आये मेरी शादी हो गई इतना चोकने! वाली बात नहीं है उस समय बाल विवाह हो जाना आम था ,और भाभीजी के बापू ने भी जयपुर मकान बना लिया वो भी जयपुर आ गए।दो दिल दूर हो गए चूँकि उस समय मोबाइल बच्चों के पास नहीं हुआ करते थे।तो अपने प्यार से बात करने का कोई जरिया पवन के पास नहीं था तो इस तरह इस प्रेम कहानी ने यंहा दम तोडा। लेकिन पवन टुटा नहीं क्यूंकि उसने ग्यारहवीं कक्षा में गणित विषय का चयन किया था तो अपनी प्रेमिका से बिछड़ने के सारे गम को उसने ग्यारहवीं,बारहवीं की मैथ्स को पास करने में लगा दिया ।और खूब मेहनत करने के बाद भाई साहब सेकंड डिविजन पास हो गए और पवन ने इंजिनियरिंग में एडमिशन ले लिया और जयपुर आ गया। और इसी साल मेरे भी पिताजी रिटायर हो गए अब मै मासूम ग्यारहवीं क्लास में मेने भी मैथ्स विषय को चुना।
अब मेरे सामने समस्या थी रहने की तो फिर मेने पवन के घर में ही एक रूम किराये पर ले लिया और दिल लगा के पढाई करने लगा। तो दोस्तों ये वो साल था जब पवन दूर हुआ अपने प्यार से मैं दूर हुआ अपने माता पिता से समय गुजरता गया मेरा भी 12वीं का रिजल्ट आ गया। में भी पास हो गया और इंजीनियरिंग में एडमिशन लिया सहयोग से मुझे भी पवन वाला ही कॉलेज मिला में उसका जूनियर था बस हम दोनों का कैंपस अलग था। हम दोनों भाई फिर से एक हो गए थे एक ही जगह रेंट से रहने लगे ३ साल तक तो मौज मारी खूब मस्ती,मूवी ,जीम , लोंडियों को टापना खूब ऐश मारी घरवालों के पैसों पे।
अब जीवन में कुछ करना था आगे बढ़ना था उन दिनों मर्चेंट नेवी के बारें में पता चला की इसमें कैरियर अच्छा हे बस तब से ही पवन ने ठान लिया मर्चेंट नेवी में जाने का। उसने खूब मेहनत की सलेक्ट भी हुआ लेकिन शायद सही समय नहीं आया था किस्मत ने पलटी मारी या यू कहे जैसे समंदर देवता परीक्षा ले रहे थे। मर्चेंट नेवी बोर्ड ने सलेक्शन के नियम बदल दिए अब तक तो ये ही उसके लिए एक रास्ता था अपनी चाहत को पाने का लेकिन वो भी बंद होता नज़र आ रहा था। लेकिन दोस्तों उसने हार नहीं मानी वो लगा रहा और खोजबीन करके मर्चेंट नेवी के कोर्स के बारे में पता लगाया। इस बीच उसने प्राइवेट कंपनियों में भी काम किया एक टाइम तो ऐसा था की उसने अपने मर्चेंट नेवी में जाने के सपने को भुला देने का फैसला कर लिया।
लेकिन एक सुपरहिट फिल्म के किसी लेखक ने डायलोग लिखा था की “किसी चीज़ को अगर शिद्दत से चाहो तो पूरी कायनात उसे आप से मिलाने में लग जाती है।” ऐसा ही कुछ मेरे दोस्त पवन के साथ भी हुआ साल 2017 में उसने फिर से एग्जाम दिया पास हुआ और ट्रेंनिंग करके भी वो वापस घर आ गया। कई महीने निकल गए कही से कुछ जवाब नहीं आया वो हैरान परेशान होने लगा और एक दिन मुझसे बोला भाई अब इंतजार नहीं होता जॉब करनी हे नहीं कट रही।
तो भाई ने फिर से अपनी पुरानी कम्पनी में ज्वाइन कर लिया लेकिन लेकिन कायनात को देखो ज्वाइन करने के कुछ दिनों बाद ही उसे समंदर देवता ने बुला लिया। ऑफर आया भी तो समुंदरी व्यापार की दूसरी बड़ी कम्पनी से तो दोस्तों अभी मेरा दोस्त पवन समंदर की लहरों पर सवार है और अपने सपने को जी रहा है तो ये थी मेरे दोस्त पवन की शिद्दत :कहानी एक चाहत की !
–END–