“अरे जल्दी करो बहुत सारी तैयारियां करनी है,बहुत कुछ है और तुम ……तुम इतने मज़े में हो !” कहती हुई रुख्सार बेगम घर में काम कर रहे लोंगों को दांट रही थी।चेहरे पर एक अजीब सी ख़ुशी और आँखों में उदासी लिए वह घर के कामों में उलझी हुई थी ।गहरे नीले रंग का सूट जिसका दुपट्टा हवा में तो था पर काफी हद ताक नीचे गिर रहा था ।उनकी चुस्ती और आवाज़ में जोश उनके बालों की सफेदी और चहरे पर आई झुर्रियो से ताल मेल नहीं बैठा पा रहा था ।” अरे बेगम आप यहाँ !हम कब से आप ही को तो ढूँढ रहे हैं।” एक रौबीले ,प्यार भरी आवाज़ ने रुखसार को पुकारा ।
“अरे हमें तो आज हर कोई पुछ रहा है ।अब हम किस की सुनें?”उलझते हुए अंदाज़ में रुखसार ने जवाब दिया।
“अरे किसी की सुनें न सुने पर अपने शौहर की तो सुनेंगी ना !”कहते हुए हामिद साहब मुस्कुराये ।
हामिद और रुखसार पच्चीस सालो से एक शौहर-बीवी के खुबसूरत रिश्ते में बंधे हुए हैं ।हर बात और हर मुश्किल में बहुत नजाकत के साथ उन्होंने अपने इस रिश्ते को सवारा है ; और इसी उम्मीद के साथ कि उनकी बेटी अपने नए रिश्ते बखूबी निभाएगी , अपनी इकलौती बेटी फातिमा का निकाह करने जा रहे हैं ।
“वैसे हमारी बेटी है कहाँ ?”हामिद साहब ने पुछा।
“बहुत उदास है , हम दोनों से बात करने के लिए कह रही थी ! ” रुखसार ने जवाब दिया ।
” अरे तो पहले बताना चाहिए था ….आज पहले हम उसकी बात सुनेंगें बाद में काम देखेंगे ।” कहते हुए हामिद साहब आगे बड़े ही थे की पलट कर कहा ” वैसे बेगम, शादी आपकी बेटी की है पर आप यह अच्छा नहीं कर रही हैं !”
“अब हमने क्या किया ?” चौंकी हुई आवाज़ में रुखसार ने पुछा।
“अगर आप इस तरह से सज कर हमारे सामने खड़ी होंगी तो दोबारा निकाह पढव़ाने का ख्याल आ जायेगा ।”हामिद साहब ने मस्ती भरे अंदाज़ में कहा।
” आप भी न बातें बनाने में उस्ताद हैं ।अरे शादी के माहौल में कम से कम ऐसी बातें तो मत कीजिये।” रुखसार ने शरमाते हुए कहा ।
” तो क्या हुआ,हम बस अपने बेगम की थोड़ी तारीफ़ ही तो कर रहे है ।अब ऐसा करना गुनाह तो नहीं है ।” हामिद साहब ने जताया ।
” बस बहुत हो गया आपको तो बहाना चाहिए हमें छेड़ने का ….शायद आपने गौर नहीं फ़रमाया पर अब हम बूढ़े हो गए हैं….और आप भी ।” रुखसार ने अपना दुपट्टा सर पर लेते हुए कहा ” वैसे आपकी बेटी आपको याद कर रही है ,जाइये।”यह कहते हुए रुखसार मुस्काती हुई मेहमानों को देखने चली गयी और हामिद साहब अपनी बेटी के कमरे की ओर चल दिए।
पच्चीस साल पहले हमिद और रुखसार ने इस रिश्ते को शुरू किया था।शादी भले ही घर वालों की तरफ से हुई थी पर फिर भी दोनों में आज भी वही प्यार और वही नटखट सी मस्तियाँ हैं जो बातों में झलकती हैं।
” अब्बू ,आइये !” कहते हुए फातिमा ने अपना दुपट्टा सर से ओड़ा और थोड़ी हिचकिचाहट से पूछती है “अम्मी कहाँ हैं?”
“बस अभी आ रही हैं!”जवाब देते हुए अब्बू पास में पड़ी कुर्सी पर बैठ जाते हैं।चमकीले पीले रंग का सूट,हाथों में गहरी मेहँदी और एक दुल्हन के चेहरे सा नूर लिए वहीँ बैठ गयी ।”क्या हुआ ,आज हम दोनों को इस तरह बुलाया ?कोई ख़ास बात?”हामिद साहब ने पुछा।”जी अब्बू ,बस अम्मी को आने दीजिये ।”कहते हुए थोडा मुर्झा गयी ।एक अजीब सी बेचैनी थी उसके चेहरे पर ।कहने को तो वह दुल्हन थी पर फिर भी उसके चेहरे पर बेरुखी थी ।उसकी आँखें कुछ और ही बयां करना चाह रही थी।”अरे फातिमा क्या हुआ ?हमें इतनी अचानक बुलाया ,और वो भी साथ में ?”रुखसार ने कमरे में आते हुए पूछा।
“बस यूँ ही अम्मी ,कुछ बात करनी थी ।”फातिमा ने बोझिल सी आवाज़ में जवाब दिया “पर बात क्या है?”हामिद साहब ने रुखसार की ओर देखते हुए पूछा। यही कहना था हामिद साहब का,कि फातिमा की आँख से दो मोती टूट कर उसके सितारों से कड़े पीले दुपट्टे में जा समाये जैसे एक ओस की बूँद पंखुड़ी से होकर फूल की गोद में समा जाती है।”बस शादी से पहले आप दोनों के साथ बैठ कर कुछ वक़्त बिताना चाहती थी। कांपती हुई आवाज़ में फातिमा ने कहा ।यह सुन कर रुखसार का मन शांत हुआ और मन ही मन उसने अल्लाह का शुक्र अदा किया।बहुत देर तक फातिमा और उसके अम्मी अबबू बातों में खो गए। पुरानी बातें याद करके कभी हस्ते तो कभी उदास होते,कभी अपनी गलती बताते तो कभी अफ़सोस जताते ।पुरानी बातें बहुत अजीब सी होती हैं जो बुरी होती है वो हसीं लाती है और जो अच्छी होती हैं वो आँखों में आसूं ,चेहरे को रोशन और दिल को खुशनुमा कर जाती हैं।
“कितनी जल्दी यह वक़्त बीत गया ना रुखसार ,कहाँ हमारी नन्ही सी परी हमारा हाथ पकड़ कर चलती थी ;ऐसा लगता है अभी ही की तो बात है।”हामिद साहब ने एक तस्वीर को हाथ में पकड़कर कहा जिसमें फातिमा ने पहली बार खड़ा होना सीखा था। और वही आज हमारा हाथ छोड़ कर आगे बड़ गयी।”रुखसार ने तानो भरी आवाज़ में कहा।”आप फिक्र मत कीजिये मैं आप दोनों को कभी अकेला नहीं चोड़ूगी।हमेशा आप दोनों का साथ दूंगी ।”फातिमा ने दोनों को हौसला देते हुए कहा।”सच कहें अगर बेटी को विदा करने की रस्म न होती तो हम हमेशा इसे अपने साथ रखते “हामिद साहब ने अपनी आँखों की नमी छुपाते हुए बोल़ा।तभी हामिद साहब के फ़ोन की घंटी बजी और वो फोन पर बात करते हुए निकल गए ।चारों ओर एक संनाटा छा गया ,फातिमा ने एक पल अपनी नज़रें उठाई और झिझक में झुका ली। रुखसार ने फातिमा के सर पर हाथ फेरा और दरवाज़े की तरफ बढ़ने लगी “अम्मी आपको यही लगा की मैं वही बात अब्बू को बताने जा रही हूँ।”फातिमा ने दबी हुई आवाज़ में कहा।”हाँ आते वक़्त मैं थोड़ा डर गयी थी ” रुखसार ने सूखे मुहं से जवाब दिया।”अम्मी आप फिक्र न करें मैं ऐसा कुछ नहीं करुँगी ,मुझ पर भरोसा कीजिये।”
“भरोसा किया था पर …..” कह कर रुखसार चुप हो गयी।फातिमा के पास ख़ामोशी के सिवा कुछ न था।रुखसार भी उसकी ख़ामोशी को अपने सीने में दफ़न कर चली गयी।फिर एक बार उसकी आँखें नम हो गयीं,पर उसने अपने अपने गम को चेहरे पर छलकने न दिया।अम्मी-अब्बू के चले जाने के बाद उसने कमरा बंद कर लिया और एक लम्बी साँस ली। अपनी अलमारी का दरवाज़ा खोल कर अपने कपड़ों पर हाथ फेराया।उसकी आँखों में चमक तैरने लगी,जैसे किसी गहरी सुरंग में कोई पुराना दबा राज़ बहार निकलता है ;वैसे ही फातिमा ने एक नीले रंग की चुन्नी निकाली जिस पर फूल ही फूल बिखरे थे। उसने उस चुन्नी को अपने सीने से लगा लिया और कूछ आसूं उसकी चुन्नी पर ऐसे बिखरे मानो कुछ दबे पुराने ख्वाब जो भले ही टूट जाते हैं पर फिर भी एक उम्मीद उन टूटे टुकड़ों में नज़र आती है। उस चुन्नी को लेकर वो बैठ गयी और दूर कही दिल के किसी कोने में कुछ सुखी मुर्झायीं यादों में डूब गयी जिनमें आज भी उसे खुशबू महसूस होती है।
“इतनी देर कर दी तुमने !इतनी देर कोई लगता है क्या?”फातिमा ने पुछा। सामने एजाज़ खड़ा था। काली आँखें,जिनमें चमक और फातिमा के लिए बेपनाह मोहोब्बत साफ़ नज़र आती है। कहने के लिए वोह एक सीधा-साधा लड़का था पर फिर भी कुछ इस तरह से उसने खुद को संभाला और सवांरा था कि फातिमा के चेहरे की रौनक और मुस्कराहट का कारण वही था।”ओह !फातिमा कितनी बार कहा है थोडा सब्र रखा करो पर नहीं …..” एजाज़ ने इतराते हुए कहा ।
“तुम कहीं चले जाते हो तो एक अजीब सा डर और बेचैनी सताने लगती है……और फिर गलती भी तो तुम्हारी है!”फातिमा ने शिकायत जताते हुए कहा।”मेरी ……अब मेरी इसमें क्या गलती है ज़रा बतयेंगी मोहतरमा ?”
“गलती है की तुम मुझे बिना बताए पीछे से कहीं चले गए और तुम जानते हो ना….”फातिमा ने इतना कहा ही था की एजाज़ ने उसके होटों पर अपना हाथ रखते हुए कहा “की तुम मेरे इस तरह चले जाने पर बेचैन हो जाती हो और अकेले रहने की तुम्हें आदत नहीं ….खासकर मेरे बिना।” एजाज़ की बात सुन फातिमा का मन शांत होता है।”पर तुम गए कहाँ थे ?”
“चलो मेरे साथ !”एजाज़ ने उसका हाथ पकड़ते हुए कहा और एक फव्वारे के पास ले गया “अपनी आँखें बंद करो ”
“क्यों?….कहीं तुम फिर से तो मुझे छोड़ कर नहीं चले जाओगे ….देखो अगर तुमहरा ऐसा कोई इरादा है तो…..”
“अरे तुम आँखें तो बंद करो!तुम्हें मुझ पर यकीन नहीं है क्या?
“खुद से भी ज्यादा”फातिमा ने एजाज़ की आँखों में आँखें डालते हुए कहा और फिर उसके कहने पर अपनी आँखें बंद कर ली।एजाज़ ने उसे एक गहरे नीले रंग की चुन्नी उढ़ा दी और कहा”मैं चाहता हूँ की तुम्हें जब भी मेरी याद आये तुम हमेशा इस चुन्नी को ओढ़ लेना और मैं तुम्हें मुस्कुराता दिखाई दे जाऊंगा ”
फातिमा खिलखिलाती है ” ऐसा सिर्फ कहानियों में या फिल्मो में होता है असल में नहीं ”
“अच्छा……दिखाई न दूँ पर महसूस ज़रूर हो जाऊंगा।”
“सच!”
“अगर यकीन के साथ मुझे याद करो तो हो जाऊंगा ”
“पर मैं तुम्हें क्यों याद करूँ ?”फातिमा ने चिड़ाते हुए कहा।
“तो तुम मुझे याद नहीं करती?”उदास चेहरे से एजाज़ ने पूछा।”याद उन्हें किया जाता है जिन्हें भूल जाते है ,और मैं एक पल भी तुम्हें नहीं भूलती ।”
दोनों एक दूसरे को देख मुस्कुरातें है ।”और मैं तुम्हें कभी नहीं भूलूंगी एजाज़!”सुबकते हुए उसने उस चुन्नी को निहारा,फिर हिम्मत बाँध शीशे के सामने खड़ी हुई और वही चुन्नी ओंढ़ ली। उसे ऐसा लगा की शायद एजाज़ उसे देख रहा है।
ज़िन्दगी ने आज एक अजीब सा मोड़ लिया है ,
आज सब कुछ पा कर भी मैंने खुद को खो दिया है; काश यह रुख हवा का मैं पलट पाती
फिर से एक बार तुम्हारे साथ मुस्कुरा पाती
फातिमा ने अपने आंसूं पोंछे और उस चुन्नी को वापस रख दिया।
तभी फातिमा के फ़ोन पर कॉल आती है। वो नंबर देख कर थोड़ी हैरान हो जाती है;बहुत हिम्मत कर उसने फ़ोन उठाया और हल्की सहमी आवाज़ में सलाम किया”मुझे याद कर रही थी “फ़ोन की दूसरी तरफ एजाज़ था।लगभग छह महीनो बाद उसके कानों में फिर वही आवाज़ घुल गयी और वो अपने आंसूं रोक न पाई। उसने कांपती हुई आवाज़ में न कहा। उसकी ना सुन वो मुस्कुराया,”मैं तुम्हारी हर बात ,हर अदा,हर हरकत से वाकिफ हूँ।” उसने सफाई दी।
“आज क्यों फ़ोन किया तुमने;याद हैं न हमने एक दुसरे से कभी न मिलने या बात करने का वादा किया था फिर भी तुमने ……”फातिमा की आवाज़ शांत हो गयी,”अगर अम्मी को पता चला तो….।”
“डरो मत मेरी वजह से कभी तुम्हे या तुमरे घरवालो को तकलीफ नहीं होगी ……और अगर फ़ोन कर भी लिया तो तुम्हारी अम्मी को कभी पता नही चलेगा ….वो तो मेरा नाम तक नहीं जानती ।”एजाज़ ने इतना कहा की फातिमा यादों के भवर में लौट गयी।
“अम्मी बस एक बार मेरी बात सुन् लीजिये ” फातिमा ने जिद करते हुए कहा।”नाही मुझे तुम्हारी कोई बात सुननी है और नाहीं उसके बारे में ।”अम्मी ने फातिमा को दांटते हुए कहा।
“पर अम्मी वोह….”
“बस मुझे इसके आगे कोई बात नहीं करनी ….अगर तुम्हारे अब्बू को पता चला तो कितना गुस्सा करेंगे। फातिमा हमने तुम्हें आजादी इसलिए दी ताकि तुम पढो आगे बड़ो …..पर हमारी आजादी का यह नतीजा दिया तुमने।”
“अम्मी मैं उसे पसंद करती हूँ ….और आप ही ने कहा था कि अगर कोई पसंद आये तो पहले आपको बताना।”
“पर तुमने नहीं बताया।उल्टा झूठ बोल।इतने महीने से तुम इसके साथ हो….और तुम हमसे झूठ बोलती रही।”
“अम्मी मैं आपको बताना चाहती थी पर हिम्मत नहीं हुई।और वो चाहता था की पहले वो किसी अच्छी जगह नौकरी करे फिर……..”
“बस इसके आगे मैं कुछ नहीं सुनूंगी ,और वैसे भी तुमने बताने में देर कर दी ….तुम्हारे अब्बू ने तुम्हारे लिए लड़का ढूंढ लिया है। अगर यह सब उन्हें पता चला तो तुम पर से उनका भरोसा उठ जायेगा।”
“पर अम्मी आप एक बार उसके बारे में…..”
“फातिमा तुम्हारे अब्बू रिश्ते के लिए लगभग हाँ बोल चुके है….अब अगर वो यह रिश्ता तोड़ते हैं तो क्या कह कर ….यही कि हमारी बेटी किसी और को पसंद करती है”
“पर अम्मी एक बार उससे बात”
“ना मुझे उससे बात करनी है….न उसका नाम जानना है ;और बेहतर होगा कि तुम उसे भूल जाओ।और याद रहे पसंद वक़्त के साथ बदल जाती है।” यह कहकर रुखसार वहां से चली गयी ।फातिमा वही रोती,सिसकती अपने ख़्वाबों के लिए कुछ न कर सकी।
“पसंद बदलती है अम्मी,पर अगर वही पसंद चाहत बन जाये तो उसे बदलना मुश्किल है।”फातिमा फर्श पर बैठ कर रोने लगी।
“फातिमा….फातिमा”
फातिमा उस आवाज़ से एक पल में ही हकीकत में लौट आई ।उसकी आँखें नम थी।उसने अपने आसूं पोंछ जवाब दिया”हाँ”
“जो हो गया उसे याद कर आंसूं मत बहाओ। शायद कुछ चीज़ें किस्मत में नहीं होती।”एजाज़ ने हिम्मत दी।
“क्यों फ़ोन किया?….मुझे तुमसे कोई बात नहीं करनी।”फातिमा ने नाराज़गी जताते कहा।
“अगर बात नहीं करनी तो फ़ोन क्यों उठाया?”
फातिमा की ख़ामोशी ही एजाज़ के लिए काफी थी।
“मिल सकती हो आखिरी बार।”
फातिमा ने हिम्मत कर एक कड़क आवाज़ में जवाब दिया”नहीं ”
“ठीक है …..मैं मजबूर नहीं करूँगा ,अगर फिर भी मन बदल जाए तो अगले एक घंटे में मज़ार पर आना।
“क्यों कर रहे हो?”
“बस अपनी अपनी जिंदगियों की नयी शुरुआत करने से पहले तुमसे आखिरी बार मिलना चाहता हूँ।……बस आखिरी बार ….वादा।”
उसकी बात का जवाब दिये बिना ही फातिमा ने फ़ोन काट दिया।एजाज़ को कहीं न कहीं यकीन था की वो ज़रूर आयेगी।फातिमा के ज़हन में साफ़ न था पर उसका मन नहीं मान रहा था। उसने अपना बुरखा उठाया और अपनी एक बहन को बुलाया”सुन फुफ्फी को बुला कर ला।”
थोड़ी देर में ज़ारा फुफ्फी को बुला कर लायी ।”हाँ बोलो फातिमा!” अम्मी ने पूछा।
“अम्मि मुझे एक बार मज़ार जाना है ।”फातिमा की आवाज़ में डर था। उसने अपने हाथ जोर से जकड लिए।
“अभी ….पर बेटा इस वक़्त ”
“अम्मी प्लीज।”फातिमा नज़रें चुराने लगी।उसकी अम्मी समझ गयी। “ज़ारा तुम बाजार जाओ”रुखसार ने कहा ।
“जी फुफ्फी!” केह कर ज़ारा कमरे से चली गई।
“फातिमा ये क्या बत्तमीजी है।कल तुम्हरी शादी है और तुम अब भी उससे मिलने जा रही हो ।हमारी इज्ज़त का कोई ख़याल है की नहीं।”रुखसार ने डाँटा।
“अम्मी बस एक बार …..बस एक बार ….पक्का मैं आपसे कोई शिकायत नहीं करुंगी ….आप जैसा बोलोगी वैसा करुँगी ।बस आखिरी बार जाने दीजिये।” फातिमा गिढ़गिढाने लगी।उसकी अम्मी गुस्से से उसे देखने लगी और एक कड़क अंदाज़ में इनकार कर वहां से चली गयी।फातिमा को कुछ समझ नहीं आया कि वो क्या करे ।उसने अपने आंसूं पोंछे और बुरखा पहन ,स्कूटर की चाबी उठाई और वहां सबकी नज़रों से बच कर चली गयी। थोड़ी देर बाद जब रुखसार को फातिमा के ना मिलने की खबर मिली तो वो हैरान हो गयी। उसे यकीन नहीं हुआ की फातिमा ने उसका कहा टाल दिया।”अरे!बेगम फातिमा कहाँ है जारा ने कहा मिल नहीं रही।” हामिद साहब ने चिंता जताई।रुखसार के दिल की धड़कने तेज़ हो गयी और माथे पर पसीना छा गया “जी …वो …वो मज़ार गयी है कुछ मन्नत मांगने।मैंने कहा था ज़ारा को या किसी भाई को ले जाए पर वो ऐसे ही चली गयी। अभी आ जायेगी।”रुखसार ने घबराते हुए कहा”अरे आप तो कुछ ज्यादा ही परेशान हो गयी।आ जाएगी। और दिन का वक़्त हैं,नन्ही बच्ची तो है नहीं।पुरे शेहर में गाड़ी लेकर घुमती थी चिंता ना करें आ जाएगी ।कहो तो मैं फ़ोन लगाऊ।”
“नहीं…..मैं….मैं अभी उसे कॉल करती हूँ।”रुखसार का दिल घबराने लगा। रास्ते में जाते वक़्त फातिमा अपने और एजाज़ के साथ में बिताये हर एक पल को याद कर रही थी ।भीड़ में गडियों के हॉर्न के बीच भी जैसे सन्नाटा छाया हुआ था।वो सारी बातें उसका एक साए की तरह पीछा कर रही थी पर फिर भी वो एक सुकून में थी। एक चमक उसकी आँखों में थी।वो सारी बातें याद करती, कि किस तरह वह दोनों सड़क पर टकराए “देख के नहीं चल सकती क्या?”
“सॉरी मेरी गलती!”फातिमा अपन स्कूटर उठाने लगी।एजाज़ उसकी मदद के लिय आगे बड़ा उसकी मदद की और फिर अपनी गाड़ी ले कर वहाँ से चला गया। कहने को एक छोटी सी मुल़ाकात थी पर एक दुसरे को रिश्ते में बाँधने के लिए काफी थी। सारी बातें याद कर वो मज़ार पहुंची जहाँ एजाज़ उसका इंतज़ार कर रहा था।
“मुसाफिर यूँ ही टकराते हैं अजनबी की तरह
हम उन्हें देख मुस्कुराते हैं अपनों की तरह
न खबर थी की वोह मुसाफिर इतने करीब आ जाएगा
की उससे जुदा होने का ग़म हमें तनहा छोड़ जायेगा।”
एक आवाज़ ने उस भीड़ में फातिमा को अपनी ओर खींच लिया। उसकी आवाज़ जैसे ही फातिमा के कानो में घुली उसके चेहरे पर रौनक छा गयी।उसने पलट कर देखा वो वहीँ खड़ा था। पिछले छः महीने के बाद उसे इस तरह से देखना फातिमा के लिए क्या मायिने रखता है यह इस दुनिया कोई अलफ़ाज़ बयां नहीं कर सकता। आज वो बस एजाज़ को अपनी आँखों में बसाना चाहती थी।
“अब यह मत कहना की मुझे पता था कि तुम आओगी।”फातिमा ने कहा।
“अच्छी लग रही हो……और ख़ासकर तुम्हारी मेहँदी।”एजाज़ ने तकलीफ जताते हुए कहा।”पर मैं तो बुरखे में हूँ।”फातिमा ने कहा।
“हाँ….पर तुम्हारी खूबसूरती के लिए तुम्हारी आँखें ही काफी हैं।”
“तुमहे शायद बता दूँ कि कल मेरी शादी है!”
“और मेरी भी” एजाज़ का जवाब सुन फातिमा चौंक गयी।पर उसमे अपने जज्बातों को काबू किया और धीमी सी आवाज़ में मुबारकबाद दी।
“क्या नाम हैं?”
“पता नहीं! मैंने नाहीं कभी उससे बात की और नाही उसकी फोटो दखी। घरवालो की ख़ुशी के लिए है यह सब।”कह कर एजाज़ की आँखें नम हो गयी।”और तुम्हारे होने वाला शौहर कौन है?”
“पता नहीं। बस यूँ समझो तुम्हारे जैसा ही हाल है। हम दोनों के दिलों में एक दुसरे की जगह कोई नहीं ले सकता।”
“शायद किस्मत में यही था। हमने भी तो अपनी मोहोब्बत की फ़रियाद यहीं मांगी थी।”कहते हुए एजाज़ खामोश हो गया।
“चलो आखिरी बार अन्दर चल कर साथ में एक दुसरे के लिए दुआ करते हैं।”एजाज़ ने कहा और दोनों अन्दर की ओर बड़े।
घर पर रुख्सार काफी परेशान थी ।बहुत देर से वो फातिमा को कॉल कर रही थी पर वो फ़ोन नहीं उठा रही थी। उसकी बेचैनी बढने लगी।अपनी बीवी की परेशानी देख हामिद साहब ने वजह पूछी। रुखसार से अब और न रहा गया और उसने एक कमरे में जा कर हामिद साहब को सारी बात बता दी। रुखसार की बात सुन हामिद साहब का दिल टूट गया। उन्हें यकीन न हुआ की उनकी बेटी कभी इतना बड़ा झूठ बोलेगी।”तो आपने यह बात हमें पहले क्यों न बताई?”हामिद साहब ने गुस्से से पूछा। हामिद साहब को पहली बार इतना गुस्सा करता देख रुखसार घबरा गयी।”आप शान्त हो जाईये,मैं अभी पता करवाती हूँ की वो कहाँ गयी।”
“एक बात याद रखियेगा की अगर आज भरी महफ़िल में कोई ऊंच -नीच को गयी तो इसकी ज़िम्मेदार आप भी होंगी।”कहकर हामिद साहब वहां से चले गए।रुखसार की आँखों में आंसूं थे ।उन्हें इस बात का डर था की कहीं फातिमा कुछ गलत न कर ले।”फातिमा मैंने मना किया था ….फिर क्यों….किया तुमने ऐसा?अब मैं तुम्हारे अब्बू को क्या जवाब दूँ?”कहकर रुखसार बिस्तर पर बैठ रोने लगी। उसे चिंता सता रही थी की अगर फातिमा उस लड़के के बहकावे में आ कर कोई गलत कदम न उठा ले !
मजार में फातिमा और एजाज़ ने अपनी अपनी फ़रियाद खुदा के सामने रख दी ।
“ए खुदा!एजाज़ को ज़िन्दगी की हर ख़ुशी देना और उसकी नयी ज़िन्दगी की शुरुआत के लिए हिम्मत देना ताकि अपनी आने वाली ज़िन्दगी को खुशहाल बना सके,आमीन।”
“या खुदा ,हम दोनों ने जो चाहा वोह हो न सका,बस यही दुआ हैं की फातिमा अपनी आने वाली ज़िन्दगी में खुश रहे आबाद रहे;उसका होने वाला शौहर उसे मुझसे भी ज्यादा प्यार करे और उसे वोह हर ख़ुशी दे जिसकी वोह हकदार हैं,आमीन।”
दोनों दुआ मांग कर बहार आ गए।
“वैसे तुमने बताया नहीं,तुम्हारा होने वाला शौहर दिखता कैसा है?मुझसे ज्यादा अच्छा है!”
पता नहीं केवल घर वाले आये थे। ”
“कितना अच्छा होता अगर वो मेरे घर वाले होते!”
“जो हो नहीं सकता उसे सोच कर क्या फायेदा। और शायद हो भी जाता अगर तुम अपने घर वालों से बात करते।”
“मैंने की थी ,पर तब तक बहुत देर हो गयी थी,मेरे घर वालों ने मेरा रिश्ता तय कर दिया था और मैं किसी का दिल नहीं दुख सकता था खासकर….”
“तुम्हारी दादी का !”
“कितना कम वक़्त मिला न हमें,ढंग से एक दुसरे को जान भी नहीं पाए,और न घरवालों से मिला पाए।”एजाज़ ने अफ़सोस जताया।
“अच्छा ही है,वरना आज अलग होते वक़्त और भी तकलीफ होती।”फातिमा ने अपने जज्बातों को काबू करते हुए कहा।
“हम दोनों एक ऐसे इंसान के साथ ज़िन्दगी बिताने जा रहे हैं जिससे न कभी मिले न नाम पता हैं।”एजाज़ ने कहा।
“पर यही दुआ है की हम अपनी अपनी ज़िन्दगी में खुश रहे।”फातिमा ने दुआ की ।
दोनों एक दुसरे को जी भर कर देखने लगे।दिल पर पत्थर रख एक दूजे को हमेशा के लिए खुदा हाफ़िज़ कह कर अपनी नयी ज़िन्दगी की ओर चले पढ़े।
अपनी गाड़ी में बैठते हुए एजाज़ का मन किया कि जाकर फातिमा को एक बार गले लगा ले और उसे अपने साथ ले जाए। पर खुद के जज्बातों को काबू कर ,अपनी आँखों में आंसूं को समेटता हुआ कहता है”मैं हमेशा तुमसे मोहोब्बत करूँगा,मैं अपनी होने वाली बीवी से पूरी ईमानदारी से रिश्ता निभाऊंगा पर मेरे दिल में हमेशा तुम्हारे लिए जगह रहेगी जो कोई नहीं ले पायेगा।”
जब फातिमा घर पहुंची तो माहौल शांत था ।उसकी अम्मी उसे एक कमरे में ले गयीं जहाँ उसके अब्बू भी थे। अम्मी ने गुस्से में फातिमा को एक जोर का थप्पड़ लगाया। इस बार हामिद साहब कुछ न कह सके। “अम्मी” फातिमा ने सिसकते हुए कहा।”कुछ मत बोल,तुझे पता हैं यहाँ लोग कैसी कैसी बातें कर रहे हैं और तुम ने आज हमारा सर झुका दिया।”रुख्स्सर का गुस्सा आज सातवें आसमान पर था।”एक मिनट”हामिद साहब बीच में बोले।”आपने यह बात हमें पहले क्यों नहीं बताई?”हामिद साहब ने पूछा।”अब्बू मैं डर गयी थी।”फातिमा ने सहमी हुई आवाज़ में जवाब दिया।”आप जानती हैं की आप से बढ़ कर हमारे लिए कुछ नहीं है। आप एक बार हमसे बात तो करती।” हामिद साहब की बात सुन फातिमा और रुखसार हैरान थे। “अब्बू”
“आप आज भी उससे मोहोब्बत करती हैं?” हामिद के इस सवाल पर फातिमा खामोश थी ।”पर हामिद साहब कल शादी है,और आप यह सब!”रुखसार ने कहा।”हम अपनी बेटी से पूछना चाहते हैं?”
“पर अगर शादी रोक दी तो लोग क्या कहेंगे!”रुखसार ने गुस्सा जताया।”हमें लोगों की नहीं अपनी बेटी की परवाह है। हम चाहतें हैं की हमारी इकलौती बेटी खुश रहे बस!”
“अब्बू मुझे ख़ुशी है कि आपके लिए मेरी ख़ुशी ज्यादा ज़रूरी है पर ,अब्बू अब बहुत देर हो चुकी है। कल उसकी भी शादी है। और हमने एक दुसरे से वादा किया है कि अपनी अपनी जिंदगियों में खुश रहेंगे!”कह कर फातिमा हामिद साहब से गले लग कर रोने लगी।अपनी बेटी का जवाब सुन आक रुखसार को भी अपनी परवरिश पर फक्र हुआ,उसका शक ख़त्म हो चूका था। ख़ुशी से उसने अपनी बेटी को गले लगा लिया।”फातिमा मुझे माफ़ कर दे ,मेरी वजह से तुझे अपनी मोहोब्बत न मिली;अगर मैं पहले ही तेरे अब्बू से बात कर लेती तो ये सब न होता।”
“अम्मी,शायद किस्मत मैं यही था,और हम दोनों ने इसे अपना लिया है।”कह कर फातिमा ने अपनी अम्मी अब्बू को गले से लगा लिया।
शादी के दिन फातिमा दुल्हन के लिबाज़ में तैयार थी। गहरी नशीली बड़ी आँखें,गोरा चेहरा जिस पर नूर साफ़ झलकता ,जिसकी एक हसीं से घर चमक उठे;मेहँदी लगे हाथ ,भरी – भरकम लेहेंगे और जेवर में सजी फातिमा अपने कमरे में बैठी थी। निकाह का वक़्त होने ही वाला था। फातिमा ने अपने दोनों हाथ आगे किये और अपनी और एजाज़ की खुशहाल ज़िन्दगी की दुआ की।
“फातिमा बस आपका इंतज़ार ख़त्म हुआ।चलिये निकाह का वक़्त हो रहा है।” फातिमा की सहेलियों और बहनों ने उसे चिढाया।उसने एक भीनी मुस्कान दी। निकाह के बाद रुखसती की बारी आई। फातिमा ने सबको गले लगाया और अच्छे से रुखसती की। निकाह के बाद भी फातिमा गुमसुम थी। ससुराल में भी उसकी ननद और भाभियाँ उसके साथ हंसी मजाक कर रही थी,पर फातिमा उन्हें एक झूठी सी मुस्कान देने के अलावा कुछ न लर सकी।”आपको हमारे भाईजान बहुत पसंद आयेंगे।”जुबैदा ने कहा।
रात को फातिमा के फ़ोन पर एक मेसेज आया। वोह उसकी अम्मी का था”अपना ख़याल रखना।” “जी अम्मी” फातिमा ने जवाब भेज दिया। तभी उसका शौहर अन्दर आया। फातिमा के मन में एक अजीब सा डर बैठ गया। उसने अपने हाथ कस कर पकड़ लिए और मन ही मन दुआ करने लगी। वो एक झिझक के साथ उसे सलाम करती हैं।उसका शौहर उसे जवाब देता है। उसकी आवाज़ सुन् एक पल के लिए फातिमा को ऐसा लगता है जैसे एजाज़ उसके साथ है।”नहीं,अब मेरा निकाह हो गया है और अब मैं अपनी ज़िन्दगी में आगे बढूगी।पर मुझे इन्हें अपने बारे में सब सच बताना होगा।”फातिमा खुद से कहती है।एक अजीब से ख़ामोशी कमरे के चरों ओर समां जाती है। फातिमा बहुत हिम्मत कर कुछ कहने की कोशिश करती है।
“मुझे आपसे कुछ कहना है।”दोनों एक साथ बोल पड़ते हैं। दोनों एक दुसरे की ओर पीठ कर बैठे थे।फिर दोनों खामोश हो गए।तब फातिमाँ ने कहा”पहले आप बोलिए” उसी के लफ्ज़ उसके शौहर ने दोहराए। फातिमा ने एक लम्बी सांस ली और कहा”मैंने यह शादी अपने घरवालों के लिए की है।मैं किसी और से प्यार करती हूँ। पर मैं पुरे दिल से इस रिश्ते को निभाउंगी।”
फातिमा की आवाज़ सुन उसके शौहर को थोडा अजीब लगता हैं फिर वोह एक बोझिल सी आवाज़ में कहता है”मैंने भी यह शादी केवल अपने घरवालों के लिए की है,और मेरे दिल में कोई और है,शायद ही मैं कभी आपको वो जगह दे पाऊं। पर मैं वादा करता हूँ की मैं आपको खुश रखूँगा।”
दोनों की बात ख़त्म हो जाती है। उन्हें समझ नहीं आता की क्या बात करे।
“वैसे आपका नाम?”दोनों एक साथ पूछते हुए एक दुसरे की ओर मुड़ते है।
“तुम!” एक दुसरे को देख वो चौंक जातें हैं।”तुम यहाँ?तुम यहाँ क्या कर रहे हो ?”फातिमा ने पूछा।
“यह मेरा घर है।”ऐजाज ने जवाब दिया। दोनों एक पल के लिए हैरान हो जाते। अब उन्हें समझ आया की उनका निकाह किसी और से नहीं बल्कि एक दुसरे से हुआ है। तब उन्हें सारा किस्सा समझ आया। दोनों ख़ुशी से एक दुसरे को गले लगा लिया।”वैसे तुम्हारा दूल्हा बहुत हैंडसम है!”एजाज़ ने फातिमा को छेड़ा।”हाँ पर दुल्हन ज्यादा ख़ास नहीं हैं। और बेहतर मिल सकती थी।”
“हमारी बीवी के बारे में कुछ मत कहो। हम बर्दाश्त नहीं करेंगे।”
“अच्छा जी!”
दोनों एक दुसरे को देख कर बहुत देर तक अपनी किस्मत पर हसने लगे ;किस्मत ने उनके साथ एक अजीब खेल खेला। आखिरकार उनकी दुआ कुबूल हो गयी और दोनों ने खुदा का शुक्र अदा किया।
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