नानी तुमने कभी प्यार किया था?- In this Hindi story, the grandson asks her grandmother ” Did you ever love someone?”. The grandmother narrated her college love story and deep feelings to him. She opened her heart to him and narrated lovely days of her love. Although she could not meet him again but memory of sweet days never died.
नानी तुमने कभी प्यार किया था, यह सुनकर वह अचानक अनुभूतियों में डूब गयी। कुछ देर सोचने के बाद वह बोली-
हाँ। पहाड़ियों पर बसा कालेज था, एक राजकुमार सा लड़का था। जुलाई का महिना और खूब वर्षा होती थी। हम सब एक ढलान पर बने छज्जे पर इकट्ठा थे और उसे परिषद का उपाध्क्ष चुना गया था। वह अपने भाषण में अच्छी-अच्छी बातें कह रहा था। मैं उसके ठीक सामने खड़ी थी।मैं बड़े ध्यान से उसकी बातें सुन रही थी।ऐसा लग रहा था जैसे वह मुझे देख कर बोल रहा है। कुछ समय बाद स्तब्धता छा गयी और सब अपने–अपने समूहों में बँट गये। मैं भी छोटी सी पगडण्डी से अपने छात्रावास आ गयी लेकिन उलझी हुई। वहाँ बादल दबे पाँव आ जाते थे। धूप हमेशा नरम बनी रहती थी। उसकी वे बातें मन से निकल नहीं रहीं थी।
फिर कक्षा के लिए हम सब क्लास रूम के बाहर खड़े थे। मुझे लग रहा था वह मुझे देख रहा है। मैं अनजान बनी रही।क्लास के बाद, प्रयोगात्मक क्लास होती थी। कभी-कभी हम एक–दूसरे की ओर देख लेते थे।यह सिलसिला काफी दिनों तक चलता रहा। जब परिषद के कार्यक्रम बढ़ गये थे, तो उसे मुझ तक आने का मौका मिल जाता था। वह मुझ से मिलने छात्रावास आने को कहता और मैं हाँ कर देती।छात्रावास में नीचे बैठने का स्थान था वहाँ मैं ऊपर से उतर कर आती और सामने की कुर्सी पर बैठ जाती। बातें बहुत कम होतीं थीं, पर साथ का आभास, निकटता और स्नेह की सम्पूर्णता उस चुप्पी में छिपी रहती थी। जो चुप्पी हमारे बीच थी वह सब कुछ कह देती थी। एक लम्बा ठहराव।
फिर उसने कहा, “एक बात बताओगी ?
मैंने कहा, “बताने लायक होगी तो क्यों नहीं बताऊँगी?”
लेकिन वह बात उसने कही नहीं। वह बैठा रहा, बात मन में ही घूमती रही। समय बीता और “अच्छा चलता हूँ”कह कर वह चला गया। एक दिन उसने मुझसे पूछा, “तुम हमारी सब बातें उसे बता देती हो।”
मैंने कहा था, “इतनी अक्ल मुझे भी है कि क्या बताना चाहिए क्या नहीं।”
इन बातों के बाद हमारे बीच सन्नाटा छा जाता था। वह भी एक दिन था, जब हॉस्टल की एक लड़की उसके हॉस्टल से जाते समय बोली थी, “दिल दिया दर्दलिया”। उन दिनों यह पिक्चर शहर में लगी थी। उसने मेरे कमरे में आकर अपने कटाक्ष की विवेचना की थी। उस शहर की बर्फ मुझे हमेशा रोमांचित करती थी। अपने कमरे की खिड़कीसे सामने की पगडण्डी पर गिरती बर्फ को देख,सोचती थी कि कहीं वह उस रास्ते पर तोनहीं आ रहा है।मन हर दीवार को फाँद सकता है। फिर वह दिन आया जब साल ख़त्म होनेको था, परीक्षा से पहले अवकाश पड़ा। उसने मुझसे पूछा, “तुम्हारे पास पाठ्यक्रम है?” मैंने हामी भरी। वह नियत समय पर झील के किनारे-किनारे मेरी बस तक पहुँचा। मैं बस के पास खड़ी थी, उसे पाठ्यक्रम थमाया और उसने पाठ्यक्रम लिया।और मुझे शुभ यात्रा कहकर, चला गया। और मैं खाली हाथ उसे देखती रही। बादलों का ऐसा उलटना-पलटना मैंने कहीं नहीं देखा था। मुझे लगा कि प्यार हवा के झोंकों की तरह आ, एक हल्की ठंडक दे, दूर निकल जाता है।
दूसरे साल हम अलग-अलग ग्रुप में चले जाते हैं। वह मुझसे सम्पर्क बनाये रखने के लिये परिषद् का चुनाव लड़ता है। लेकिन वह चुनाव हार जाता है। उस हार को वह खेल की तरह लेता है। हमारी क्लास में आकर, जीते उम्मीदवार से मिठाई खिलाने को कहता है। कुछ समय बाद, अध्यक्ष इस्तीफा दे देता है और वह नयी प्रक्रिया में निर्विरोध अध्यक्ष चुन लिया जाता है।उन्हीं दिनों वह एक दिन हॉस्टल आता है और अध्यक्ष बनने की बात करता है। मैं उलाहना देती हूँ कि पूर्व अध्यक्ष के इस्तीफा देने के कारण आप बने हो। वह, यह कह नहीं पाया कि मेरे लिये वह इस पद को चाहता है। जिससे उसे आसानी से मुझसे मिलने का अवसर मिल सके।मैं इतनी सुन्दर नहीं थी पर उसने सुन्दरता मुझ में उड़ेल दी थी। परिषद् के उदघाटन में, मैं काला सूट पहन कर आई थी।मुझे देखते ही,वह शायद कहना चाहता था कि अच्छी लग रही हो, पर कह नहीं सका।
दूसरी लड़की से उसनेकहा, “आप लोग इस कार्यक्रम में कुछ गायेंगे?”
तो मैंने कहा, “पहले बताना चाहिए था।”
एस्ट्रोफिजिक्स पर लम्बा भाषण हुआ। भाषण के बाद एक लड़के ने “आजा सनम मधुर चाँदनी में हम….“वाला गाना गाया। कार्यक्रम के बाद उसने धन्यवाद दिया। और कहा कि लेक्चर औत्सुक्यपूर्ण रहा तो उस शब्द को सुन,सब चर्चा करने लगे। एक दिन मैं उनके प्रैक्टिकल रूम में गयी वह अपने साथियों के साथ खड़ा था, मैंने उसके साथी को इशारा किया, उसे मेरे पास भेजने के लिए। उसने कहा मैं, मैंने कहा हाँ, वह आया औरमैंने पूछा, “मेरे क्लास वाले कहाँ हैं?” उसने बोला, “मुझे पता नहीं।” वे मेरे प्यार के कदम थे उसकी ओर। वह मुझे देखने कई बार आता था और मैं नज़रें ऊपर उठा, एक ऐसेसपने को देखती थी जिसका कोई साफ-साफ परिचय नहीं था।
एक दिन मैं प्रैक्टिकलक्लास में जल्दी आ गयी थी।मैं अकेली थी। वह अचानक मेरे पास आया और बोला, “मैंतुमसे प्यार करता हूँ।” और वह यह कहकर चला गया अपनी क्लास की ओर।मुझेउसके शब्द बसंत में खिले फूलों जैसे लगे। जिन्हें मैं तोड़ नहीं सकती थी। वह क्षणमुझे हमेशा याद आता है। दूसरे दिन मैं फिर जल्दी आयी। वह मेरे पास आया और बोला, “मैंने जो कल कहा, तुम्हें बुरा तो नहीं लगा?”
मैंने कहा, “क्या?”
वह फिरबोला, “कल जो कहा।”
मैंने फिर कहा, “क्या?”
वह बोला कि “मैं तुमसे प्यार करताहूँ”।
मैंने हड़बड़ाहट में कहा, “तो आपको नहीं कहना चाहिए था?”
वह फिर बोला, “नहीं कहना चाहिए था?”
मैं बोली, “नहीं!”
तीन बार यह पुनरावृत्ति होती रही। वह चला गया।लगभग एक घंटे बाद वह मुझे फिर देखने आया और मैं उसे एकटक देखतीं रही। एक दिनमैं अपने हॉस्टल के साथियों के साथ झील के किनारे मूँगफली खाते-खाते मन्दिर की ओर जा रही थी, वह अपने साथी के साथ मन्दिर जा रहा था, उसने मेरे से मूँगफली माँगी और मैं मूँगफली देते-देते दूर तक उसके पीछे-पीछे हो ली। मुझे पता ही नहीं चला कि मैंअपने साथियों से काफी आगे आ गयी हूँ। पीछे मुड़ी तो देखा कि प्यार मुझे बहुत आगे ले जा चुका है। दोस्त मुस्कुरा रहे थे।
जब एक बार वह मेरे हॉस्टल आया तो मैं उससे मिलने दुमंजिले से नीचे उतरी। वह कुर्सी पर बैठा था, मैं सामने की कुर्सी परबैठी और उसके हाथ में मूँगफली थमा दी। उसने मूँगफली के दाने मुँह में डाले और मुझे देखने लगा। हमारे बीच शान्ति छा गई थी। सम्पूर्ण शान्ति। हम बिना कुछ बात कियेउठे और उसे मैंने हॉस्टल के किनारे तक छोड़ा। वह समय देश में आपातकालथा।आपातकाल के बाद बदलाव का की बयार थी। आन्दोलनों का आविर्भाव हो रहा था। जीवन शारीरिक भी होता है मानसिक भी। आपातकाल में जनता को लग रहा था किउसकी स्वतंत्रता को छीन लिया गया है। यह राजनीतिक परिवर्तन का दौर था।वह कालेज केप्रांगण में आयोजित सभाओं में भाषण देता था। उसके भाषणों में सहजता और दूरदर्शिताहोती थी जो मन को छू लेते थे। मेरे साथियों को भी उनमें नवीनता लगती थी। कुछ समयतक वे चर्चा में रहते थे।
उन्हीं दिनों वह अपने साथी के साथ मेरे हॉस्टल से जा रहाथा। हम हॉस्टल के आगे बनी दीवार पर बैठ, गुनगुनी धूप सेक रहे थे।उसको आता देख मैं हॉस्टल के अन्दर चली गयी। उनके दीवार से नीचे से जाते ही लड़कियाँ बोलीं, “हमारे नये प्रज़ीडेंट जा रहे हैं।” और कुछ ने तालियाँ बजायीं। वह रोमांचक और रोमांटिक दौर था।एक समय ऐसा भी था जब दोनों वर्गों में मतभेद थे। हमारा वर्ग क्लास छोड़, घूमने केलिए हनुमान गढ़ी चला गया। हमारे वर्ग के दो लड़के जो उसके दोस्त थे, वे हमारे साथ नहीं आये। हम दोनों लड़कियाँ, हनुमान गढ़ी में मन्दिर के चबूतरे पर बैठे थे और लड़के कुछ दूरी पर दीवार पर। वह अपने दोस्त के साथ सीधे मेरे पास आ गया। हम दोनोंके बगल में खड़ा हो गया। हमारे ग्रुप के सभी लड़कों की उपेक्षा कर उसका निरालाअन्दाज़ मुझे अन्दर तक छू गया। फिर बोला, “हमें भी बुला लिया होता।”
मैंने कहा, “हमने थोड़ी प्लान किया था?हमसे भी और लोगों ने कहा था।”
उसके बाद वे दूसरी पहाड़ीपर चले गये। तब उसका स्वाभिमान मेरे प्यार को संजीवनी देता था। लौटते समय हम मन्दिर के सामने दुकान में चाय पी रहे थे, थोड़ी देर बाद वे लोग वहाँ से निकले, यह आभास देते हुए कि हम वहाँ हैं ही नहीं। मैं उसको जाते देखती रही, लेकिन वह उपेक्षा कर चला गया। तब मैंने स्वयं को उससे मीलों दूर पाया। दूसरे दिन वह सहज भाव से मुझे देख रहा था। मैं कई बार पीछे मुड़ उसे देखने मुड़ती थी। जब बाज़ार में दिखता तो मेरे कदम अचानक रुक जाते थे।हॉस्टल की चढ़ाई पर मिलने पर मैं उससे मिलने रुकती पर वह कुछ कहे बिना चल देता। हमारी बातें खुलती ही नहीं थीं।वह अपने दोस्त को बताता था,बात नहीं हो पायी। मन पूरा खुल ही नहीं पाया।
धीरे-धीरे परीक्षा का समय नज़दीक आ गया। मैं कुछ दिन के लिए घर चली गयी। जब आयी तो वह अपने दोस्त के साथ मुझे मिलने हॉस्टल आया। उसके दोस्त ने बताया कि इसने तुमसे मिलने की इच्छा जताई थी। किसी संदर्भ में, मैंने कहा हम फिल्म का पहला शो देखतेहैं। उसने कहा था हमें भी दिखा रही हो क्या फिल्म? मैं शायद चुप रही। परीक्षा के दिन हमारी भेंट हॉल पर हुई। वह कुछ नहीं बोला। मेरा पेपर खराब गया था। मैंने परीक्षा बीच में ही छोड़ दी और घर आ गयी। मेरी सभी आशाएँ-आकांक्षाएँ पीछे छूट गयीं। अखबार में परीक्षाफल देखा। वह प्रथम श्रेणी मेंउत्तीर्ण हुआ था।मुझे अपार खुशी हुई थी।
कठिनाइयाँ सबके जीवन में होती हैं। मैंभी उससे मुक्त नहीं थी।समय गुज़रता गया। मैं फिर से परीक्षा की तैयारी में लग गई।मई के महीने में,मैं प्रक्टिकल करने कालेज गयी। उसका एक पत्र मुझे मिला। जो मात्र एक पंक्ति का था। लिखा था कि मिलने आ रहा हूँ। वह निश्चित दिन हॉस्टल मुझसे मिलनेआया। हम आमने-सामने बैठे थे। मैंने पूछा, “किसी काम से आये हो?”
वह बोला, “तुम्हें देखने आया हूँ।”
यह सुनते ही मेरा सिर झुक गया। तब मेरे अन्दर प्यार ही प्यार था। फिर उसे मैंने आँखें उठा करदेखा। उसने मेरी पढ़ाई के बारे में पूछा। मैंने परीक्षा की चिन्ता जताई।उसने ढाढ़स बँधाया कि अच्छी होगी।
मैंने पूछा था, “कहाँ हो? कितने पैसे मिलते हैं?”
वह ४००रु.प्रति माह बोला। १५०० किमी दूरी तय कर वह मुझसे मिलने आया था। इतनी संक्षिप्त बातें हमारी हुई। कुछ चुप्पी के बाद बोला, “अच्छा चलूँ?” मैंने हाँ में सिर हिलाया। मैंउसे छोड़ने हॉस्टल से बाहर तक जा रही थी तो उसने झट से कहा, “फिर कभी भेंट होगी?”
मैंनेकहा, “मुझे क्या पता?”
यह हमारी अन्तिम बातचीत थी। और अन्तिम भेंट भी। इसके बाद हमारे सम्बन्धों में एक सन्नाटा छा गया।
(to be continued… )
***महेश रौतेला,