किसी ने सच ही कहा है – जब तक कोई चीज़ हमारे पास होती है तब तक हमे उसकी कीमत का एहसास नहीं होता है और जब हमारे वो हमारे पास नहीं होती तब हम उसकी कीमत को समझते है । ये बात हमारे रिश्तो पर भी लागू होती है। ऐसा ही कुछ हुआ पाखी और अर्जुन के साथ भी।
अर्जुन देखने में बहुत ही आकर्षक व्यक्तित्व का था। उसको थिएटर और एक्टिंग का एक जूनून सा था। एक्टिंग में ही वो अपना करियर बनाना चाहता था। वो कॉलेज का पहला दिन था जब अर्जुन ने पाखी को देखा। पाखी कॉलेज में न्यू एडमिशन थी। अर्जुन को उसकी सादगी बहुत ही पसंद आयी, खूबसूरत तो वो थी ही बहुत। वह बहुत ही महत्वाकांक्षी थी और अपनी स्टडी को लेकर सजग भी। अर्जुन का स्व्भाव थोड़ा चुलबुला था तो पाखी एक दम शांत रहने वालो में से थी।
वो शायद पहली नज़र का प्यार था जो उन दोनों को एक दूसरे की तरफ खींच रहा था। वो दिन भी आ गया था जिसका पाखी को बेसब्री से इंतज़ार था अर्जुन ने उसको परपोज़ किया। उस दिन पाखी की ख़ुशी का कोई ठिकाना नहीं था वो पल पल झूम रही थी। कॉलेज में पाखी और अर्जुन का रोमांस मशहूर हो गया था।
पाखी जब तक अर्जुन को न देखे और अर्जुन पाखी को न देख ले तब तक दोनों शुरू नहीं होता था। उन दोनों को देख कर बस ये ही लगता था की वो बने ही है एक दूजे के लिए।
दोनों की शादी भी बहुत धूमधाम से हुई थी दोनों के परिवारों की सहमति से,,,, बस पाखी के पापा को एक ही बात का ऐतराज़ था की – अर्जुन ने न ही कोई जॉब स्टार्ट की थी न ही कोई बिज़नेस। पाखी ने अपने पापा को ये कहकर मना लिया था की —पापा शादी के बाद अर्जुन अपना बिज़नेस स्टार्ट करेगा। लेकिन पाखी जानती थी की अर्जुन का सपना तो कुछ और ही है। क्योकि अर्जुन ने पाखी से पहले ही बता दिया थी की —- पाखी जैसे में तुम्हारे बिना नहीं जी सकता ऐसे ही मैं अपने पैशन,,, एक्टिंग को नहीं छोड़ सकता हूँ।
शादी से पाखी और अर्जुन बहुत ही खुश थे, दोनों हनीमून के लिए मनाली भी गए। दोनों अपने प्यार को नए रंगो से सजाते थे। वक्त बीतता गया —सबकुछ ठीक ही चल रहा था। जैसे जैसे दोनों के प्यार की गाड़ी जिंदगी की हकीकत की पटरी पर आती गयी त्यों ही रोज़मर्रा की जरूरते भी बढ़ने लगी। अर्जुन की कोई जॉब तो थी नहीं न ही बिज़नेस ,,, हां कभी कभी कुछ थिएटर शोज से कुछ इनकम होती थी पर वो इतनी नहीं थी की पाखी के सपनो के पूरा कर पाए क्योकि पाखी थी ही पहले से महत्वाकांक्षी तो उसे अब सबकुछ अखरने लगा था। जो की अर्जुन के प्रति उसके व्यवहार में भी झलकने लगा था।
दिन पर दिन दोनों के बीच किसी न किसी बात को लेकर बहस शुरू हो जाती थी।
पाखी अर्जुन को दोषी बताती अपने हालात का और हमेशा कहती —– अर्जुन अब ये एक्टिंग का राग छोड़ दो कोई जॉब या कोई बिज़नेस शुरू करो ऐसे कब तक चलेगा। अर्जुन भी कहता —पाखी मैंने तुमसे पहले ही बोला था की मैं अपने एक्टिंग, अपने पैशन को नहीं छोड़ सकता — हां मैं कोशिश कर रहा हूँ कोई न कोई चांस मुझे मिलेगा फिल्म इंडस्टरी में थोड़ा तो सब्र करो।
लेकिन कहते है न। ……. “जितना किस्मत में जो लिखा होता है उससे कम या ज्यादा नहीं मिलता”…..
ऐसा ही कुछ अर्जुन और पाखी के साथ हो रहा था — अर्जुन बहुत कोशिश के बावजूद भी एक स्ट्रगलर ही बनके रह गया था । अर्जुन एक्टिंग को अपना करियर बनाने के लिए जी जान से जुट रहा था पर उसको कोई बड़ा चांस नहीं मिल पा रहा था। कामयाबी न मिलना और पाखी को भी न खुश रख पाना उसको अंदर ही अंदर खाये जा रहा था। रोज़ रोज़ पाखी से भी झगड़ा और पाखी की बेरुखी उसे अंदर से कचोटती थी।
पाखी भी अर्जुन के सपने को अपना नहीं पा रही थी। दोनों का प्यार भी जिंदगी की जरूरतों के बीच अपना दम तोड़ता सा दिख रहा था। धीरे धीरे दोनों के बीच बातचीत भी बंद हो गयी, अजनबियों की तरह दोनों एक ही छत के नीचे रहने लगे थे । अर्जुन भी इन सबके बीच बहुत टेंशन में आ गया था। किसी ने सच ही कहा है – “Pyre and worry—–One burns the dead while another burns the alive.”
पाखी से दूरियां और अपनी न कामयाबी से धीरे धीरे डिप्रेशन की चपेट में आ गया। जिससे उसकी हेल्थ भी गिरने लगी, जिसको पाखी पूरी तरह से अनदेखा कर रही थी।
एक दिन अचनाक ही रात को अर्जुन की तबियत ज्यादा बिगड़ी तो उसको बेहोशी की हालत में होस्पिटलिज़्ड कराना पड़ा। डॉक्टर ने पाखी को बताया कि – अर्जुन की हालत ठीक नहीं है,,,, उसको क्रोनिक हार्ट डिजीज है और वो अभी काफी सीरियस है,,, पर हम अपनी तरफ से पूरी कोशिश कर रहे है।
पाखी को ये सब सुनकर ऐसा लगा जैसे किसी ने एक झटके से उसकी साँसे बंद कर दी हो और वो एक बेजान शरीर की तरह वही कमरे के बाहर बेंच पर धम्म से गिर पड़ी। आँशु जो की रुकने का नाम ही नहीं ले रहे थे,,,,तभी नर्स ने आकर पाखी से बोला – आपके पेशेंट को थोड़ा होश आया है अब आप उनसे मिल सकती है ,,,,अपने आप को थोड़ा सँभालते हुए पाखी अर्जुन के पास कमरे में उसके बेड के पास गयी. अर्जुन ने जो की अभी बहुत तरह से सजग नहीं था पाखी को अपने पास बैठने का इशारा किया। पाखी ने अर्जुन के हाथ को अपने हाथो में लिया और अर्जुन के बालो को सहलाया। दोनों एक दूसरे का हाथ पकडे हुए बस एक दूसरे की आँखों में देख रहे थे। दोनों चुप थे शायद आज कुछ कहने सुनने को था ही नहीं उनके पास बस दोनों की आँखों से बहते आँशु ही आपस के गीले शिकवे दूर कर रहे थे।
पाखी के मन में बीता हुआ कल फ्लैशबैक की तरह रोलबैक हो रहा, एक बात जो उसके मन में चल रही थी की “….. अर्जुन तुम्हे कुछ नहीं हो सकता। “
तभी पाखी को महसूस हुआ की अर्जुन की पकड़ उसके हाथ से ढीली पड गयी थी पर अभी भी अर्जुन की नज़रे बिना पलके झपके उसी को निहार रही थी।
“,,,,अर्जुन,,,, अर्जुन – तुम ठीक हो। ”
अर्जुन तो पर एक दम निढाल सा था कोई हरकत नहीं थी उसमे। पाखी – “”कोई डॉक्टर को बुलाओ””……… देखो मेरे अर्जुन को क्या हो गया है, और वो बदहवास सी ,,,डॉक्टर,,, डॉक्टर चिल्ला रही थी।
बस शायद वो आखरी शब्द जो वो सुन पायी थी और वो थे – “”अर्जुन इज नो मोर||||””……..हम उसको नहीं बचा पाए।
अर्जुन को अचानक ही कार्डियक अटैक आया था जिसको वो झेल नहीं सका। पाखी बस बदहवास हो चुकी थी एक पत्थर के बूत की तरह। अर्जुन को अंतिम रस्मेँ पूरी करने के लिए घर लाया गया। पर पाखी अर्जुन का हाथ अब भी अपने हाथो में लेकर बैठी रही और बड़बड़ा रही थी। ……. “””अर्जुन – ए बिग सॉरी फॉर एवरीथिंग”””….” प्लीज फॉरगिव मी “…. मैं जानती हूँ तुम मुझसे कितना प्यार करते हो तुम ऐसे कैसे चुपचाप लेटे हुए हो बोलते क्यों नहीं हो कुछ। सबको बोलती,,,,,, कोई तो मेरे अर्जुन को जगा दो प्लीज।,,,,,पर सब जानते थे अर्जुन अब कभी जागने वाला नहीं था। पर पाखी मानने के लिए तैयार ही नहीं थी की अर्जुन उसको हमेशा के लिए छोड़ कर चला गया था।
अगर वक्त रहते पाखी, अर्जुन के सपनो का अपना लेती और अर्जुन पाखी के सपनो में रंग भर देता तो शायद जो हुआ वो न होता।
“”जिंदगी की तलाश में हम मौत के कितने पास आ गए
जब ये सोचा तो घबरा गए,,,,,आ गए हम कहाँ आ गए…..””
हम सबको भी वक़्त रहते अपने रिश्तो को और अपनों को संभल लेना चाहिये। क्योकि वक़्त कभी भी किसी का इंतज़ार नहीं करता और न ही लौट कर आता है।
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