छूकर मेरे मन को …..:- You Touched My Heart: Romance and love story of two lovers who become romantic in rain by hearing Hindi filmi love song and express their lifelong love for each other.
मैं उस दिन अत्यंत उदिग्न था . मुझे कुछ भी अच्छा नहीं लग रहा था . एक दार्शनिक की तरह सोचने लगा , ‘ प्यार में बात बढ़ती जाय और एक दिन वजूद ही समाप्त हो जाय तो जीवन में बाकी क्या बचता है जिसे निश्चिन्त होकर भोगा जाय .
मैं एक अज्ञात भय से ग्रसित था और गाल पर हाथ रखकर चिंतन में निमग्न था कि ठीक उसी वक़्त तुम आकर मेरे पीछे खडी हो गयी और मेरे हाथ को जोर से झटकते हुए बोली , ‘ किस सोच में पड़े हो , किस बात का है गम ? ’
मैं तो सम्हल गया नहीं तो कुर्सी से गिरकर हाथ – पैर तुडवा लेता .
तुम्हारी यह आदत बहुत ख़राब है. अचानक टपक पड़ती हो और मुझे … तुम सीरियस मैटर को भी सहजता से लेती हो . आज भी तुमने वही गलती कर डाली. लगता है किसी दिन मार ही डालोगी मुझे तो फिर …
तो फिर जिन्दगी भर बैठकर रोना , यही न ? मैं बैठ के रोनेवाली में से नहीं हूँ . ऐसा यदि हुआ तो संखिया खाकर जान दे दूंगी. गावं में एकसाथ दो – दो अर्थियां निकलेगीं और खुदिया नदी के तट पर जस्ट अगल – बगल में दो – दो चिताएं मुखरित होगीं .
मरने – जीने वाली बातें करके मुझे तुम नाहक कमजोर कर रही हो. तुम्हें मजाक सुझा है. मैं सोच – सोच कर मरे जा रहा हूँ . पहले बैठो इत्मिनान से .
तुम मेरी गोद में बैठ गयी थी . पूछने पर बोली , ‘ एक ही तो कुर्सी है , जिसपर आप विराजमान हैं , तो मैं कहाँ बैठूँ ? आपकी गोद खाली मिली तो बैठ गयी .
आँखें मटका मटकाकर मुझे चिढ़ा रही हो और मेरा खून पानी हो रहा है , इसकी तुम्हें परवाह नहीं ?
लीजिये , उठ जाती हूँ .
मोढ़ा खींच कर बैठो , सामने नहीं तो …
ध्यान से सुनो मेरी बात . कोई बबुनी ( छोटी बच्ची ) नहीं हो . पंद्रह सोलह साल की जवान लडकी हो . मोहल्ले के छोकरे किस प्रकार घूर – घूर के …
मालूम है तुम्हें ? किसी भी दिन उठाकर ले जा सकते हैं . मैंने चेता दिया , बाकी तुम जानो .
छोडिये उन लफंगों की बात . अपनी बात बोलिए .
मेरे लिए समस्या गंभीर से गंभीरतर होते जा रही है दिनानुदिन . आज हमारा प्यार हमारी ही चहारदीवारी में कैद है . कल या परसों एक न एक दिन दीवारें फांदकर बाहर निकलेगी – हम रोक नहीं सकते . हमारा नियंत्रण ख़त्म होते जा रहा है. इसलिए मैं चाहता हूँ कि तुम्हें और साथ ही साथ तुम्हारे प्यार को कूड़े की तरह झाड़ू मार कर अपने दिलोदिमाग से निकाल दूँ – I mean to say for ever and ever . मेरा कहने का अर्थ है सदा – सर्वदा के लिए .
तुमने तालियाँ बजाई थी मेरे विचार पर . मेरी ठुड्डी को अपनी ओर घुमाते हुए बोली थी कितनी धृष्ठता के साथ ,” मेरी आँखों में अपनी आँखें डालकर बोलिए सच – सच , मेरी जान की कसम , क्या आप ऐसा कर पायेंगे ? आप पुरुष हैं , मैं स्त्री हूँ . मैं शपथ लेकर कहती हूँ मैं नहीं कर पाऊँगी . मर जाऊंगी , वो मंजूर है. मेरे लिए लौटना कठीन ही नहीं , अपितु असंभव है , असंभव . कभी भूलकर भी जेहन में यह बात मत सोचिये .
उस दिन मैं एक हारा हुआ सैनिक की तरह हथियार डाल चूका था तुम्हारे सामने .
बाहर अँधेरा छा रहा था . तेज हवा चल रही थी . कुत्ते रह – रह कर भूंक रहे थे . पंछियाँ अपने घरों को लौट रही थीं . दो – चार गायें मेरे बारामदे में आकर खडी हो गयी थीं – बारिश से बचने के लिए .
बिजली चमक रही थी और बादल गरज रहे थे . तुम डरी – डरी सी दिख रही थी . ऐसा भाव तुम्हारे मुखारविंद से प्रतीत हो रहा था .
मुझसे रहा नहीं गया तुम्हारी व्याकुलता देखकर . कहा : आज तुम्हारा दाना – पानी यहीं लिखा हुआ है.
तभी माँ निकली और तुमसे बोली , “ बेटी ! इस बारिश में कहाँ जाओगी , यहीं रूक जाओ . मैं तुम्हारी माँ को खबर कर देती हूँ .
घर कौन सा दूर है , पानी रुकते चली जाऊंगी .
न तो पानी छुटनेवाला है न ही तुम जानेवाली हो . कान इधर लाओ , आज मैं रक़म ब्याज के साथ वसुलनेवाला हूँ .फिर कोई बहाना बना कर … तुम ….. बहाना बनाने में माहिर होती हो . मगर आज तो फंस गयी तो फंस गयी. बार – बार बाहर निकलकर ताकने – झाँकने से बारिश थमनेवाली नहीं .
थोड़ी सी बारिश रुकी , तुम भागी , फिर लौट के आ गयी . देखा ऊपर से नीचे तक पूरी भींग चुकी थी . भीगे कपडे बदन से चीपक गये थे . तुम्हारा यौवन …
आज तो तुम निहायत ख़ूबसूरत लग रही हो . बदन पूरा ….
मैं ठण्ड से कांप रही हूँ और आप को मजाक सूझ रहा है.
सुधा , किधर गयी ? माँ ने पूछा .
बगैर बोले भाग रही थी . भींग गयी . ठण्ड से कांप रही है. कोने में दुबकी हुई है .
माँ तुम्हें पकड़ कर अन्दर कमरे में ले गयी थी . बदन पोछने के लिए गमछा दिया था . कपड़े बदलने के लिए साड़ी दी थी .
मैं भी कमरे में चला आया था .
साथ – साथ बेसन का छिलका हम दोनों ने खाए थे – गरमा गरम . तवे से उतरने की देर थी कि हम झपट पड़ते थे. मैंने तुम्हारी जांघ पर दो – चार बार …. भी काटी थी कि जरा धीरे – धीरे खाया करो , लेकिन तुम तो खाए जा रही थी – खाए जा रही थी .
हमलोग बैठे हुए थे . तुम साड़ी में कितनी अच्छी लग रही हो – मैं कह नहीं सकता . मेरे मन में लड्डू फूट रहे थे कि आज तुम रुकोगी.जमकर खूब बातें होगीं – रातभर . तुम तो सोने में मास्टर हो , लेकिन मैं ऐसे अवसरों में कभी नहीं सोता – यह तुम अच्छी तरह जानती हो . वजह क्या हो सकती है इस पर मेरा ध्यान कभी नहीं गया . सच बात तो यह है कि मैं ये सब पचड़े में पड़ना नहीं चाहता .
तुमने मन की बात रखी : चाय बनाकर ले आऊँ ?
इसमें पूछने की क्या बात है ? बना लाओ . माँ रसोई घर में है. तुम्हें मेरे घर का रख – रखाव सबकुछ मालूम है.
अन्दर रसोई में गयी . माँ से क्या ‘ गिटपिट ’ ‘ गिटपिट ’ बात की और मिनटों में चाय बनाकर ले आयी . मुझे भी ठण्ड लग रही थी . मैं चाय शीघ्र पी गया . तुम थोडा ठंडा होने की प्रतीक्षा कर रही थी .
जब तुमने भी चाय पीनी शुरू की तो पहली घूंट लेने के बाद मुझपर विफर पडी , ‘ चाय में चीनी डालना भूल गयी थी . आपने पूरी चाय पी डाली , लेकिन मुझे बतलाया तक नहीं ?
अरे , मेरी जान ! पानी भी होता न तो मैं चाय समझ कर पी जाता .
जरा इधर तो आओ , छलिये , छुप – छुप छलने में क्या … ? मुझसे रहा नहीं गया और मैंने तुम्हारा हाथ पकड़ कर अपने पास बैठा लिया. यह तुम्हारा बड़प्पन है कि तुमने विरोध नहीं किया . तुम्हारी पाँचों उँगलियाँ मेरे गिरफ्त में थीं .
आप से मैं नाराज हूँ . आप ने क्यों नहीं बतलाया कि चाय में चीनी नहीं है . माँ जब पी होगी तो क्या समझी होगी ?
माँ से तुम निश्चिन्त रहो . मैं माँ को तुम्हारी सब बातें बता देता हूँ . माँ से मैं कोई बात छुपाता नहीं . सब के जीवन में माँ ही प्रथम गुरू होती है . ऐसा करने से कदम कभी बुरे रास्ते में नहीं पड़ते – ऐसा मेरा मत है . जानना चाहोगी ?
हाँ . सारा वक़्त तो मेरा तुम्हारे बारे में सोचने में गुजर जाता है , वक़्त कहाँ मिलता है – ये सब छोटी – मोटी बातों के लिए ?
मैंने अंगुलियाँ कस कर दबाई .
एक चीख निकली .
तुम्हारा ध्यान कहीं ओर था . इसलिए मैंने …
समझाने की जरुरत नहीं है , सब समझती हूँ . कोई दूध पीती बच्ची नहीं हूँ . घर खबर भेज दिया है . छोटा भाई आता ही होगा .
पानी भी थम सा गया था .
साप्ताहिक गाने का प्रोग्राम का दिन था . समय भी हो गया था. मैंने सिलोन स्टेसन लगा दिया . ऑन करते ही – गाना आ रहा था , ‘ छूकर मेरे मन को , किया तूने इशारा , बदला ये मौसम , लगे प्यारा जग सारा . – छूकर मेरे मन को …..|
सुन रही हो ? गाने के बोल कितने प्रासंगिक है !सच में , मन को अभिभूत कर देता है इसके शब्द व भाव .
तुम्हारा छोटा भाई नंदू छाता लेकर पास ही खड़ा मुस्कुरा रहा था
दीदी ,चलो . बारिश रूक गयी है .
तबतक मैंने उंगुलियां , जो जकड कर रखी थीं , मजबूरन ढीली कर दी .
तुम मेरे बंधन से तो मुक्त हो गयी , लेकिन मेरे मन से निकल नहीं पाई – आजतक !
काश , ऐसा हो पाता !
लेखक : दुर्गा प्रसाद , बीच बाज़ार , गोबिंदपुर , धनबाद , दिनांक : ०३ मई २०१३ , दिन : शुक्रवार |
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