कहॉं खो गई मेरी नींदिया
कहॉं खो गई मेरी नींदिया
आराम करने को बिस्तर पर आया
तभी जागती रात ने सवाल किया
मेरे लिए क़्या लाया
मैंने झट से कहा –नींद !
चढती रात ने कहा- मुझे मेरी नींद दे दो
मै सकपकाया , घबराया, ये क़्या-
नींद मेरे पास नही थी
अभी तो यहीं थी
फिर कहॉं गई मेरी नींद!
रात भर नींद को खोजता रहा
तकिये से पुछा, बिस्तर से पुछा
प्रेम-पत्रों से, ग्रीटिंग कार्ड से भी पुछा
हारकर उसकी तस्वीर से भी पुछा
पर किसी ने कुछ नहीं बताया
फिर कहॉं गई मेरी- नींद!
करवटें बदल-2 कर खोजा
घुटनों के बीच माथे रखकर खोजा
फिर से किताबों मे खोजा
पर उसका नामो निशान नहीं मिला
फिर कहॉं गई मेरी- नींद!
सोचा रूठ गया होगा
उसे लोरी भी सुनाया-
“ आ जा रे नींदिया
तुझ बिन ये राते बेकार है
माना मुझे किटी से प्यार है
क़्या करूं वही मेरा संसार है
आ जा रे नींदिया
फिर भी तेरा इंतजारहै”!
ओ देखो- मिठी मिठी हंसी लिए हुए
मन्द-2, दबे कदमों से
मेरे पास आ रही थी
देखो- अकेले ही नहीं
उसकी यादें भी साथ लिए हुए है
मैंने पूछा- कहॉं गई थी
मध्य-रात्री ने सरमा कर देखी
दोनों मुस्कुराये, सरमाये और
फिर खो गये एक-दुसरे में
चुपके से हमने पूछा-क़्या कर रही थी
उसने हौले से जवाब दिया-
वो भी आपकी राह देख रही थी!
ढलती रात ने कहा- जनाब
क़्या गजब का तोहफा लाया
मासा अल्लाह
तुम्हारी महबूबा मुझे पसन्द आया !
तिरंगा
फहरा रहे है तिरंगा,
एक दिन की खुशी नहीं समझकर
गा रहे है राष्ट्र-गान,
एक दिन की खुशी नहीं समझकर
कैसे भुल जायें,
उन वीर सेनानी को
पाये है स्वतंत्र्ता-जिन्हें खोकर
क़्या खूब थी उनकी –
त्याग, समर्प्ण और बलिदान
सोये को जगाया था घर-2 जाकर |
हम है उनके सुपुत्र ,
कैसे बैठे हाथों पर हाथ रखकर
फहरा देंगे तिरंगा उनके सीने पर,
जो कोई मांगा मेरा देश को भुलकर!
जय हिंद , जय भारत !
वन्दे मात् रम…!
आलोक कुमार (TISPRASS)
उप प्रबंधक (BHEL HARDWAR)