चूड़ियाँ – The Bangles: A man bought bangles to express his love for his lover during trip to Jaipur & thus strengthen his love for her. Read Hindi romantic short love story.
जब मैं जयपुर से चला तो श्वेता मुझे सी ऑफ करने स्टेशन तक आ गयी. मेरे हाथ को अपने सर पर रखते हुए कसम दे डाली :
मेरी जान की कसम जो आप अपनी मोबाईल नंबर बदले . मैं आप से बात नहीं करूंगी तो मर जाऊँगी .
तुम मर जाओगी , तो क्या मैं जिन्दा रहूँगा ?
चलिए , हटिये . कभी – कभी तो फोन तक नहीं उठाते .
उस वक़्त मैं … अब तुमसे खोलकर क्या बताऊँ , क्या न बताऊँ , समझ में नहीं आता.
आप नंबर वही रखेंगे . असुबिधा होने पर पोर्टिंग करवा सकते हैं .
वही तो . मेरी मोबाईल गुम हो गयी थी . मैंने रिलायंस से एयरटेल में पोर्टिंग करा ली.
मैं चल दिया और वह उदास व उदिग्न मन से चली गयी .
जुलाई से नवम्बर का महीना आ गया . रात के करीब डेढ़ बजे उसका फोन आया . वह जानती है कि इस वक़्त मैं … के लिए उठ जाता हूँ और फिर घंटे भर के बाद ही सोता हूँ.
क्या कर रहें हैं ?
माला लेकर तुम्हारे नाम का जाप कर रहा हूँ.
मुझे नींद नहीं आ रही है आज .
दो गिलास पानी पी लो और बत्ती बुझा कर सो जाओ . जो नींद आनेवाली बात बताई थी , उसे मनन करो .नींद ही नहीं , गहरी नींद आयेगी.
आप आ रहे हैं न ? जमीन लेकर एक छोटा सा घर बनवा लिया है .
अच्छा किया . अपना घर का मजा ही कुछ और है ! तब तो जरूर आऊँगा .
श्वेता इंटरनेट से टिकट कटा कर मेल कर दी . मेरे लिए अब कोई बहाना नहीं बचा था .मैं रात को जोधपुर एक्सप्रेस से निकल गया . स्वेता स्टेशन पर ऑटो लेकर आ गयी थी. उसे बोगी नंबर और बर्थ नंबर पहले से ही मालूम था. उतरते ही लपक ली. मेरी तरफ ( जैसा कि उसकी आदत है कि बहुत दिन पर मिलने पर ) शेरनी की तरह घूरी . उसने मेरी अटेची थाम ली और गड़गड़ाते हुए आगे – आगे चल दी. मैं उसके पीछे – पीछे चल दिया . घर शुबह के तीन बजे पहुंचे. मैंने कहा :
अब मैं नहीं सोऊंगा .
आप तो साढ़े तीन तक उठ ही जाते हैं .
तुम्हें कैसे मालूम ?
दीदी बता रही थी . ( वह मेरी धम्पत्नी को दीदी कहती है )
एक गिलाश जल और थर्मस में चाय लेते आयी. बोली :
पहले पानी पी लीजिये फिर चाय ढालती हूँ.
मैं हाथ – पैर धोकर आ गया था इतनी देर में .
स्वेता दो प्याली चाय बनाई. एक मुझे थमाई , दूसरी अपने लेकर पीने लगी . मेरी ओर अपलक निहारती रही एक प्यासी … की तरह . मेरे पाँव की उँगलियों को दबाने लगी .
तुम्हारी आदत गयी नहीं . मुझे योगासन करना है .
यह भी एक योगासन है . मन पर काबू रखने का .
चार बज रहे हैं . मैं चला मोर्निंग वाक में. तुम बहुत थकी हो. सो जाओ , आठ – नौ बजे उठना.
वह आज्ञाकारी पत्नी की तरह चली गयी और मैं टहलने निकल गया . जयपुर की शीतल , मंद . सुगंध हवा . नवम्बर का महीना . मीठी – मीठी ठंडक – मादकता मिश्रित . सड़कें इतनी साफ़ – सुथरी . टहलते हुए व्योवृद्ध स्वस्थ – सुडौल जोड़ियाँ . बच्चे – बच्चियां , युवक – युवतियां भी रास्त में मिले , जो घुमने निकले थे. एक चाय की गुमटी खुली थी , जहाँ कुछ लोग बैठकर चाय की चुस्की ले रहे थे और गप्पें हांक रहे थे. मुझसे रहा नहीं गया . मैं भी वहां गया और बेंच पर बैठ गया . एक प्याली चाय ली और आहिस्ते – आहिस्ते पीने लगा.
कुछ लोग जो थे , वे बड़े गौर से मुझे देख रहे थे . मैंने ही पहल की :
सुना है यहाँ बहुत से दर्शनीय स्थान हैं .
अवश्य हैं , तभी तो लोग खींचे चले आते हैं . विदेशी टूरिस्टों का तो ताँता लगा रहता है इस मौसम में .आप ?
मैं भी घूमने के लिए आया हूँ .
दो – तीन में सारा घूमना हो जायेगा.
मेरे पास उतना ही वक़्त है.
मैं सात बजे तक घर आ गया. बाहर से मैंने ताला लगा दिया था . अन्दर दाखिल हुआ तो देखा श्वेता खराटें मार रही है. मैं सिरहाने बैठ गया . चेहरे पर वही मासूमियत . वही भोलापान . घने बालों की अस्त – व्यस्त खुबसूरत लटें और उन लटों के मध्य से झांकता हुआ चौदहवीं का चाँद का टुकड़ा. मुझसे रहा नहीं गया . औरत को अपने बालों पर नाज होती है – ऐसा मेरा मत है . बाल इतने संवेदनशील होते हैं कि छूने से ही वह सजग हो जाती है. मैंने ज्योंहि उसके बालों को सहलाना शुरू किया कि वह झट उठकर बैठ गयी . बोली :
आप ? कब आये ?
आध घंटे पहले .
तो उठाया क्यों नहीं ?
जब तुम सोयी रहती हो तो तुम्हें अपलक निहारना बहुत अच्छा लगता है. मुझे सुख मिलता है – अवर्णनीय.
ये सब बातें बाद में .पहले आप नहा धोकर तैयार हो जाईये , तबतक मैं नास्ता बना लेती हूँ .
मैं झटपट स्नान कर लिया और किचेन में चला गया .
नास्ता तैयार है . मैं स्नान करके आती हूँ , तबतक अखबार पढ़िए.
श्वेता मिलिटरी अफसर की तरह कुछेक मिनटों में ही तैयार हो जाती है – यह मुझे मालूम था . आज भी महज आध घंटे में तैयार होकर आ गयी.
देर तो नहीं हुयी ?
तुमसे और देर !
आलू पराठे , दही , नमक , मिर्च व गोलमिर्च की गुडी – सब परोस दी . सामने ही बैठ गयी .
हम दोनों ने जी भर के खाया .
श्वेता ! तुम मेरी छोटी – सी – छोटी बातों का ख्याल रखती हो.
तुम्हें मैंने बताया था कि एकबार हमने देहरादून में आलू पराठे खाए थे नास्ते में , तब से …
चुपचाप खाईये तो .
कहाँ चलते हैं , बोलो.
लक्ष्मी – नारायण मंदिर .
मैं भी यही सोच रहा था . वहा बड़ी शांति मिलती है मन को .
सो तो है.
हमने कुछ नमकीन , कुछ मीठे , जल और थर्मस में चाय ले ली. एक ओटो ली और मंदिर पहुँच गये. रंग – विरंगे फूलों ने हमारा मन मोह लिया. हमने उनके चरणों में श्रद्धा व भक्ति के साथ सर नवाए . सामने ही कुछ दूर पर बैठ गये . यात्रियों का आना शुरू हो चूका था . भीड़ बढ़ती जा रही थी.
स्वेता ! जयपुर में यह स्थान बड़े ही शांत वातावरण में अवस्थित है . बगल में डूंगरी . भग्न किला का अवशेष . शहर के कोलाहल से दूर . चारों ओर नीरवता. इतना साफ़ – सुथरा कि मन प्रसन्न हो उठे. धवल चांदनी सा फर्श . इतनी चुस्त – दुरुस्त व्यवस्था कि एक कंकड़ भी गिरे तो पता चल जाय.
हम दो घंटे रह गए ध्यानस्थ . पता ही नहीं चला कि वक़्त कैसे गुजर गया.
हम बाहर आ गये और एक साफ – सुथरा चबूतरा पर बैठकर चाय और नमकीन ली.
चूड़ियाँ ?
निकाल दी .
गजब करती हो. औरत की श्रृंगार …
आप से पहनूंगी.
तो चलो , पहनाता हू.
इसमें भी माहिर हैं क्या ?
बेशक !
हम एक चूड़ी की दूकान पर चले आये. मैंने हरे रंग की नौ – नौ चूड़ियाँ उठा ली. दूकानदार महिला थी . वह चूड़ियां पहनाने के लिए मेरे हाथ से लेना चाही तो मैंने कहा :
मैं भी चुडीहारा हूँ . मैं खुद पहनाऊँगा .
फूट जायेंगे , बाबु !
बहन जी ! आप एक मौका तो दीजिये और देखते जाईये कि …
मैंने पहले बाएं हाथ को सहला – सहला कर नरम किया . हिदायत भी कर दी कि सू – सा मत करना , थोड़ी दर्द होगी , सहन करना क्योंकि फिट पहना रहा हूँ . सवा दो की .
मन ही मन साईं बाबा को याद कर रहा था कि बाबा आज तू मेरी लाज रखना जैसे एक भी चूड़ी न टूटे न फूटे .
बाबा पर जो आस्था रखते हैं , उनपर वे कृपा करते हैं . ऐसा मेरा विश्वास है.
एक – एक कर मैंने नौओं चूड़ियाँ पहना दी . अबतक मुझे तकनीक समझ में आ गया था .
दाहिना हाथ थोडा कम्पेरेटिविली कड़ा होता है औरत का – यह बात मुझे मालूम थी.
बहन जी ! थोडा सा नारियल तेल दीजिये . मैं कोई रिस्क लेना नहीं चाहता .
वह ला कर कटोरे में रख दी .
मैंने दाहिनी कलाई को प्यार से – दुलार से खूब सहलाया . डांटा भी स्वेता को ( यह मेरी नौटंकी थी ) ताकि बिदके नहीं , धैर्य बना कर रखे .
फिर क्या था एक – एक कर सभी नौ चूड़ियाँ पहना दी . साबुन लेकर अपना और स्वेता के हाथ धो लिए.
स्वेता अपने को रोक नहीं सकी , बोली : मैं अढ़ाई पहनती हूँ , आपने सवा दो कैसे पहना दी ? आप फनकार हैं … इसमें भी … आज मालूम हुआ.
तुम्हारी दीदी को विगत उनचास वर्षों से पहनाते आ रहा हूँ , यकीन न हो पूछ लेना . उसे भी सवा दो ही पहनाता हूँ . समझी , मेरी गुडिया रानी ! ( कभी – कभी जब मैं लोजिकल हो जाता हूँ तो श्वेता को गुड़िया रानी से संबोधित करता हूँ )
चुड़िहारिन की आँखे फटी की फटी रह गईं ये सब देखकर .
पूछ बैठी : क्या करते हो , बाबु ?
बहन जी ! क्या बताऊँ , सर पर टोकरी लेकर चूड़ियाँ बेचता हूँ – गली – गली और वो भी उस वक़्त जब उनके … … … … बाहर काम करने .
भाई साहब ! भगवान आप की उम्र लम्बी करे . इतने प्यार से चूड़ी पहनाते मैंने किसी को नहीं देखा .
मैंने सौ रुपये निकाल के दिए .
पच्चीस ही तो हुए !
तेल के पच्चीस , साबुन के पच्चीस और हाथ धुलाई उसके पच्चीस .
अब कितने हुए , बहन जी ?
समझ गयी .
क्या ?
तू चूड़ियाँ नहीं बेचता है. कुछ और !
मौसी ! ये दिल बेचते हैं , दिल . श्वेता कहाँ से टपक पड़ी.
तभी इतना अमीर आदमी है. पैसे लुटाता है.
हमने दो –दो मीठे खाए , बहन जी को भी खिलाये . सुस्ताने के बाद हम वहां से चल दिए .
हम पैदल ही चल रहे थे . थोड़ी दूरी पर स्टेंड था . मेरे दाहिने तरफ श्वेता थी. मैं जब तब उसकी बाहों को छेड़ देता था तो हाथ की चूड़ियां खनक उठती थीं.
आप ने इतनी सख्त पहना दी कि अब मैं उतार नहीं सकती .
आपने मुझे अगाध प्रेम के बंधन में बाँध दिया है.
मैं नहीं .
तो ?
चूड़ियाँ .
वह मेरी ओर मुड़ी और लिपट गयी.
इस बार चूड़ियों की खनक कुछ ज्यादा ही थी.
लेखक : दुर्गा प्रसाद , गोबिंदपुर , धनबाद , दिनांक : २१ मई २०१३ , दिन : मंगलवार |
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