![Read Hindi Romantic Story Beautiful Girl with flower in hair](https://yourstoryclub.com/wp-content/uploads/2012/09/beautiful-girl-flower-hair.jpg)
Hindi Story – Na Jhatko Julf Se Pani Ye Moti Foot Jayenge
Photo credit: ChasC from morguefile.com
(Note: Image does not illustrate or has any resemblance with characters depicted in the story)
उस दिन तुम्हारे किसी सगे – सम्बन्धियों के यहाँ शादी थी . तुमने बताया था कि सभी लोग दो दिनों के लिए रांची चले जाएंगे , लेकिन यह बात मेरी मेमोरी में नहीं थी. रोज की भांति मैं बाज़ार निकला . मन में तुम्हारी स्मृति कौंध गयी . फिर क्या था एबाउट टर्न हो गया. सोचा हो सकता है कोई बहाना बनाकर तुम घर पर रूक गयी हो. मेरा अंदाज सही निकला. मैं जब तुम्हारे घर में प्रवेश किया तो तुम बाल संवारते दर्पण के सामने खडी मिल गयी. मैं चितचोर की तरह आहिस्ते – आहिस्ते पग बढाता हुआ तुम्हारे करीब पहुँच गया . मैं तुम्हें पकड़ने ही वाला था कि तुमने यू टर्न ले लिया. शायद तुमने मुझे दर्पण में देख लिया था. हम एक दूसरे के बिलकुल करीब थे – आमने – सामने मैंने तुम्हारे उलझे बालों को छेड़ते हुए कहा था :
“ न कजरे की धार , न मोतियों के हार , न कोई किया श्रृंगार , फिर भी इतनी सुन्दर हो , तुम इतनी सुन्दर हो ||”
मैंने अभी गाने की प्रथम पंक्ति खत्म ही की थी कि वह आगे की पंक्ति बोल पड़ी :
“ मन में प्यार भरा , और तन में प्यार भरा , जीवन में प्यार भरा , तुम तो मेरे दिलवर हो , तुम्हीं तो मेरे दिलवर हो || ”
जिस अंदाज से उसने गाने के बोल अभिव्यक्त किये कि मैं सुनकर अभिभूत हो गया और उसके मुखारविंद को अपलक निहारता रहा |
तुम खुले – खुले बालों में निहायत खूबसूरत लगती हो आज .
आप का भ्रम है , और कुछ नहीं . मैं रोज एक ही तरह की लगती हूँ. मेरे में कोई बदलाव नहीं है , न मन में , न तन में और न ही जीवन में , मैं जैसी हूँ , वैसी ही हूँ .
तुमने तो विषय की धारा को ही मोड़ दी.
मतलब ?
मतलब मैं प्यार व मोहब्बत की बात करना चाहता था और तुमने …
आज मैं अकेली हूँ . मैं बिलकुल इस विषय में बात नहीं करना चाहती. कोई दूसरा टोपिक हो तो चलेगा .
तुम गयी क्यों नहीं ?
जाती तो आप से अकेले में मुलाक़ात कैसे होती ?
आदतन मैंने तुम्हारे हाथ पकड़ लिए थे और पास ही सोफे में बैठा लिया था . तुम झट उठ खडी हो गयी थी और बिखरे बालों को मेरे चेहरे पर झटक दिया था , मैं पानी – पानी हो गया और अनायास मेरे मुख से एक खुबसूरत गाने की पंक्ति फूट पड़ी थी :
“ न झटको जुल्फ से पानी , ये मोती फूट जायेंगे ,
तुम्हारा कुछ न बिगड़ेगा , मगर दिल टूट जायेंगे | ”
आज आप बहकते जा रहे हैं ज्यादा देर आप के साथ नहीं बैठूंगी .
चाय बनाकर लाती हूँ . साथ – साथ पीयेंगे और ढेर सारी बातें करेंगे.
तुम निर्मोहिनी की तरह चली गयी थी.
चाय बनाकर ले आयी और पास ही बैठकर हम पीने लगे .
मेरा मूड ऑफ़ था . तुम्हें इस बात का भान था .
तुम सोच रही थी कि अकेले पाकर मैं तुम्हें बाहों में भींच लूँगा या कोई अशोभनीय हरकत कर बैठूँगा . लेकिन मेरे मन में ऐसी कोई बात नहीं थी . तुम मेरे पास थी , लेकिन न जाने क्यूँ मैं अकेलापन महसूस कर रहा था. एक दार्शनिक की तरह गंभीर चिंतन में निमग्न था . तुमने मेरे बालों को सहलाते हुए कहा था , “ क्यों इतना ज्यादा सोचते हैं , सेहत पर इसका बूरा प्रभाव पड़ता है. ’’
मेरे दिल व दिमाग पर बोझ बढ़ता जा रहा है जैसे – जैसे दिन बीतते जा रहे हैं . तुम मुझे उस अजनवी दुनिया में मत ले चलो जहाँ से मेरा लौटना नामुमकिन हो जाय. तुम आज हो या कल , छोड़ कर दूर बहुत दूर चली जाओगी और छोड़ जाओगी आंसुओं का शैलाब जिसमें मैं ताजिंदगी डूबता – उतराता रहूँगा – न खुलकर हंस पाऊंगा न ही रो पाउँगा . जब जिन्दगी के कडुए सच से रूबरू होगी तब मेरी बातें तुझे समझ में आयेगी, अभी नहीं .
बड़ा खूबसूरत सा नगमा है | सुनाऊँ ?
बेशक !
“ हम तुझसे मोहब्बत करके सनम,
रोते भी रहे , हँसते भी रहे ,
खुश होके कहे , उल्फत के सितम …
ये दिल की लगी, क्या तुझको खबर
एक दर्द उठा , भर आई नज़र
खामोश थे हम, इस गम की कसम
रोते भी रहे , हँसते भी रहे …..
ये दिल जो जला , एक आग लगी
आँसूं जो बहे , बरसात हुई …
बादल की तरह , आवारा सनम
हम जुझसे मोहब्बत करके सनम
रोते भी रहे , हँसते भी रहे | ”
गाने को और मेरे दर्दे दिल की बयाँ सुनकर तुम फफक – फफक कर रो पडी थी और मेरे हाथों को पकड़कर बोली थी , “ ऐसी बातों को याद दिलाकर आप मुझे कबतक रुलाते रहेंगे ? मैं कोई बच्ची नहीं हूँ , बड़ी हो गयी हूँ और सबकुछ समझती हूँ , लेकिन आप के आगे मजबूर हो जाती हूँ कि …
मैंने तुम्हारे मुँह पर हाथ रख दिया था . मुझसे रहा नहीं गया . मैंने कहा : आँसुओं को बहने मत दो , संजो कर रखो , वक़्त बेवक्त काम आयेंगे.
मेरे आँसुओं को मत रोकिये , बहने दीजिए ताकि बेवक्त बहाने के लिए बेरहम , बेदर्द न बचे – एक बूँद भी. किसलिए और क्यों ?
वह मेरा कहने का तात्पर्य समझ गयी .
मुँह – हाथ धोकर आओ . हम छत पर चलते हैं . मैंने विषय की धारा मोड़ दी थी .
वह गयी और शीघ्र चली आयी .
हम छत पर जब गये तो आसमान में चाँद निकला हुआ था . कहीं – कहीं बादलों का झुण्ड बेताब था – बरसने के लिए . वेदर में शीतलता थी. हवाएं इतनी मादक थी कि हम अपने आप को नियंत्रित नहीं कर सके . एक दूसरे में इतने खो गये कि हमें अपने अस्तित्व का भी भान न रहा . मैंने ही चुप्पी तोड़ी उसकी मखमली मुखारविंद को सहलाकर और मोहम्मद रफ़ी का लोकप्रिय गीत गाकर :
खोया – खोया चाँद , खुला आसमां ,
आँखों में सारी रात जायेगी ,
तुमको भी कैसे नींद आयेगी ?
उसका यह पसंदीदा गाना है. वह उठकर बैठ गयी और बोली :
आप सुसुप्त चेतना को भी झकझोर देते हैं .
आज जाना प्यार की , जादूगरी क्या चीज है,
इश्क कीजिये फिर समझिये ,
जिन्दगी क्या चीज है.
आप से मोहब्बत करके मैंने क्या नहीं पाया !
वो कैसे ? मैंने उसके मन की बात जाननी चाही.
वो ऐसे कि आप की दिलकश जादूगरी मेरे रोम – रोम में समाई हुयी है.
आप की एक याद – क्षणिक याद ही मेरे लिए प्रयाप्त है . मैं कहीं भी रहती हूँ – दौड़ी चली आती हूँ . सोचती हूँ कि …
तुम क्या सोचती हो क्या नहीं यह तो मैं नहीं बता सकता , लेकिन एक बात अवश्य बता सकता हूँ कि … कि …
कि … कि … क्या करते हैं , मुझे अपने दिल कि बात सच – सच क्यों नहीं बताते ? मेरी कसम ….
… कि मैं तुम्हारी यादों के सहारे जी लूँगा .
मुझसे न होगा .
तो क्या जान दे दोगी ?
वही समझिए .
मेरी कसम जो तुमने ऐसी गलती की. यदि तुम मुझसे दिल से प्यार करती हो तो तुम्हें हर हाल में जीना होगा . सोचो हम वर्षों बाद एक दूसरे से मिलेंगे चाहे जहां भी रहेंगे – जी भरके बातें करेंगे तो क्या मेरा प्यार कम होगा ?
सुधा ! हम प्रकृति के हाथों – परिस्थितियों के हाथों बिके हुए हैं . देखो , मौसम का मिजाज बदला हुआ है. वो भी नहीं चाहता कि अकेले में ,एकांत में हम एक दूसरे के इतने करीब रहें और कहीं खो बेवजह खो जाएँ .
तभी बिजली चमकी और हवाएं तेज चलने लगी .
और ?
और बेरहम वर्षा की बूंदों ने हमें आगाह कर दिया – वक़्त रहते होश में आ जाओ , सराबोर होना ठीक नहीं .
हम गीत की मधुर पंक्तियाँ गुनगुनाते हुए सीढ़ियों से नीचे उतर गये :
खोया – खोया चाँद , खुला आसमान,
आँखों में सारी रात जायेगी ,
तुमको भी कैसे नींद आयेगी ?
हम नीचे चले आये . मैं बूंदा – बूंदी में भीग चूका था . सुधा ने तौलिए से मेरा सर एवं चेहरा पोंछ डाले . सुधा इन्हीं गुणों से मुझ पर , मुझ पर नहीं , मेरे दिल पर राज करती है .
आप समाचार सुनिए तबतक मैं खाना बना लेती हूँ . एकाध घंटे में ही आलू पराठे , आलू दम और खीर बना कर ले आयी . हम साथ – साथ चटकारे ले लेकर खाए वो भी एक ही थाली में लड़ते – झगड़ते
बहुत दिनों के बाद खाने का इतना आनंद आया , क्यों ?
मुझको भी .
रात के नौ बज रहे हैं , अब ?
मेरा मन करता है कि आज यहीं …
यहीं सो जाऊँ , क्यों ? चलिए , हटिये और सीधे घर जाईये , चाची इन्तजार करती होगी |
मैंने उसके रेशमी बालों को अपने हाथो में ज्यों ही लिया कि उसने फिर जोर से झटक दिया मेरे ऊपर .
मैंने हाथ पकड़ लिये और मुखातिब होते हुए गुनगुना दिया :
“ न झटको जुल्फ से पानी , ये मोती फूट जायेंगे ,
तुम्हारा कुछ न बिगड़ेगा , मगर दिल टूट जायेंगे | ”
फिर ?
फिर क्या ? बोझिल मन से मैं घर चल दिया और सुधा खड़ी – खड़ी निहारती रही … मिहारती रही अपलक !
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लेखक : दुर्गा प्रसाद |
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