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Wah Kaun Thee

Published by Mahesh Rautela in category Hindi | Hindi Story | Love and Romance with tag Love | picture | poetry

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Hindi Romantic Story – Wah Kaun Thee
© Anand Vishnu Prakash, YourStoryClub.com

बहुत समय बाद वह एक समारोह में मुझे दिखी । लोगों से खूब बातचीत कर रही थी।मैं बहुत देर तक उसे देखता रहा। वह इधर-उधर जा रही थी। थोड़ी देर में,मैंने देखा वह मेरे बगल में खड़ी खाना लिये आत्मीय ढंग से खड़ी है।

हमने एक ही प्लेट में खाना खाया।उसके बाद वह बोली ,अच्छा, चलती हूँ। मैंने “ठीक है”कहा। वह आगे बढ़ी,फिर अपने पुराने अंदाज में पीछे मुडी। ठिठक कर पूछा”कुछ कहा क्या?” मैंने कहा नहीं। वह फिर चली गयी।

मैंने जिज्ञासावश बगल में खड़े आदमी से पूछा ” जो महिला मेरे साथ खड़ी थी उन्हें आप जानते हैं क्या?”

उसने कहा “हमारे बैंक की महाप्रबन्धक हैं”।

मैंने फिर पता पूछा। मैं रातभर सो नहीं पाया।सारी पुरानी घटनाएं जीवित हो गयी थी। सुबह हुई। मैं सीधे उनके निवास पर पहुँच गया। शायद इतवार का दिन था। मैंने घंटी बजाई , उसने दरवाजा खोला। और बोली “अरे आप” । वह मुझे अन्दर ले गयी। और बैठक में बैठा दिया।अभी आती हूँ कहकर चली गयी।

थोड़ी देर में वह चाय लेकर आयी । फिर बोली “चाय की एक घूँट ,मुझे तरोताजा कर गयी”

मैंने कहा ” कहीं सुना लग रहा है ”

“आपका ही लिखा हुआ है।” वह बोली। वह सामने बैठ गयी और मैं उसे अपलक देख रहा था।वह बोली क्या देख रहे हो।मैं बोला”तुम्हारी जवानी”।

वह सिर झुकाकर , चाय कप में डालने लगी।उसने चाय का कप मुझे थमाया। मैंने जैसे ही कप थामा थोड़ी चाय मेरे दूसरे हाथ में गिर गयी। उसने अनायास मेरा हाथ पकड़ा और हाथ में गिरी चाय को जीभ से ठंडा कर दिया।

फिर बोली मैंने जिन अंगुलियों से पहली बार आपके हाथ को छुआ था , उन्हें मैं आज भी चूमती हूँ। लेकिन सामाजिक दबावों के कारण कुछ कह न पायी। आजकल क्या लिख रहे हो? उसने बातचीत को मोड़ा। मैंने एक पन्ना जेब से निकाला और उसे थमा दिया।जिसमें लिखा था –

थोडी देर खो जाऊँ
तुम्हारी हँसी में
ऐतिहासिक दृष्टि में
तुम्हारी सुलझी सोच में
उन बातों में जो नहीं हुई
बस ,सपनों सी बनी रही,
थोडी देर खो जाऊँ
विद्यालय के ज्ञान में
टन टन करती घंटी में
देवदारनुमा इतिहास में
उस गिरती बर्फ में
झील की मछलियों में
तुम्हारी अगली कहानी में ।
मैं याद कर ले आऊँ
पहाड़ियों की धड़कनें
वृक्षों की शक्तियां
घुले-मिले त्योहार
शाम की मुलाकातें
उत्सुकता भरी प्रतीक्षाएं,
जन आन्दोलनों की गूँजें
जो अधर में लटकी हैं ,
छोटा सा एक सत्य
जो हमें पहिचानता है ।
मैं ले आऊँ
प्यार के अहसास
जिजीविषा का संघर्ष
मन का खुलापन
अपना भुलावा
तुम्हारा परियों सा पहनावा।

उसने ध्यान से इसे पढ़ा और उसकी आँखें डबडबा आयी। इतने में उसकी कामवाली आ गयी। उसने उससे चाय बनाने को कहा।
मैंने गम्भीर होकर कहा “तुम्हारी गोद में सिर रखने को मन करता है”

वह बोली “अगले जनम में।”

अब वह पुरानी झिझक नहीं रह गयी थी। विचारों में कुछ दार्शनिकता आ गयी थी।हमने फिर चाय पी। चाय पीने के बाद मैं एक पत्रिका लेने खड़ा हुआ। ज्यों ही मैंने कदम आगे बढ़ाये,मुझे हल्का सा चक्कर आने का आभास हुआ। मैं नीचे आँख मूँद कर बैठ गया। उसने जल्दी से मेरा सिर अपनी गोद में रख दिया। और पूछा”क्या हुआ?”

मैं मुस्करा दिया और बोला “ मन कर रहा है ,ऐसे ही सो जाऊँ “.

उसने मेरे मुँह में हाथ रख दिया । मैं उठा और जाने के लिए अनुमति माँगी। वह बोली आप अभी कहीं नहीं जा सकते हैं । तब नहीं बोल पाती थी लेकिन आज बोल सकती हूँ। कहाँ ठहरे हैं?,

मै बोला “ताज में” .

हाँ, बड़े आदमी वहीं ठहरते हैं वह बोली । फिर मुझे देख मुस्कराने लगी। तभी कामवाली वहाँ आयी और बोली “ साहब, मेम साब को इतना खुश कभी नहीं देखा।“

जिसे आप प्यार करते हैं और बिछुड़ गया हो, मिलने की कोई आशा न हो, फिर अचानक मिल जाय तो आप खुशी में उछ्ल पड़ेंगे। मानसिक संतोष की यह परम अवस्था होती है।

जब कामवाली चली गयी तो वह बोली “ हमारी हालत कुछ कुछ कृष्ण- राधा जैसी है।“ यह सुनते ही मैंने लम्बी साँस ली और मेरी आँखें भर आयीं। फिर उसने अपना घर मुझे दिखया। मनमोहक, अनेक तस्वीरों से सजे कमरों को देख बहुत अच्छा लगा। पुरांनी तस्वीरों में सब थे पर मैं नहीं था।

मैंने कहा “ मैं कहीं नहीं हूँ । ”

तो वह झट से बोली “ आप दिल में रहते हो।“ उसने पूछा” मेरी तस्वीर आप के पास है क्या?”

मैंने कहा “ नहीं”, “आप दिल में रहती हो।“

और हम दोनों मुस्करा दिये।

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