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When She Said, “No, No, No.”

Published by Durga Prasad in category Hindi | Hindi Story | Love and Romance with tag friend

The lover asked his beloved for company but she turned down last three nights saying no, but at fourth night she agreed to fulfil his sexual desire,Read Hindi story

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Hindi Story – When She Said, “No, No, No.”
Photo credit: sssh221 from morguefile.com

मैं अपने दिल की बात किससे बताऊँ कि विगत तीन दिनों में मेरी रात कैसे कटी है. श्वेता तो खराटें भरती थीं और मैं तारे गिनता था. इसकी वजह मैं आप को क्या बताऊँ , आप मेरी जगह रहकर सोचिये तो आप को एहसास होगा कि … ? ऐसी बात नहीं के आप समझते नहीं हैं कि मेरा कहने का तात्पर्य क्या है … ? आज जयपुर में मेरा चौथा दिन है .

हम स्टेशन से ट्रेन छूट जाने के बाद सीधे घर चले आये. जब हम दरवाजा खोलकर आँगन में प्रवेश किये तो पूरब तरफ लालिमा छा रही थी. अटैची बेड रूम में रख दी गयी . हम सोफे में धंस गये .

श्वेता ने ही बात प्रारंभ की : आप आज बहुत थक हुये हैं , आपको आराम की सखत जरूरत है . चलिए उठिए , पहले फ्रेश हो लीजिये , स्नान – धयान नित्य की भांति करके फारिग हो जाईये . मेरा आज नहाने – धोने में कुछ ज्यादा ही वक़्त लगेगा. मैं तो कहूंगी आप नास्ता करके सीधे सो जाईये . मैं बैंक जाऊंगी , फिर सहेली के घर – कुछ जरूरी काम है . दोपहर तक लौट आऊँगी .

श्वेता के कथनानुसार मैंने सब काम निपटा लिए और बैठकखाने में आकर पेपर पढने लगा . श्वेता नास्ता लेकर हाजिर हो गयी. पेपर को दरकिनार करते हुए बोली : पहले नास्ता कर लीजिये , फिर पढ़ते रहिएगा . मैं तो थका था ही . नास्ता किया . एक कप चाय पी और सो गया . सोते ही गहरी नींद आ गयी . एक बजे के करीब श्वेता लौट के आयी . मुझे उठाने के लिए उसकी पायल की घुंघरू ही पर्याप्त थीं . छम – छम करती हुयी प्रकोष्ठ में प्रवेश जैसे कि मेरी आँखें खुल गईं . उसके पीछे उसकी सहेली श्रेया थी.

मैं झट उठकर बैठ गया और संकोचवश कहा : आज मैं कुछ ज्यादा ही सो गया .

चलिए , अच्छा ही हुआ – श्रेया ने कहा .

वो कैसे ? वो ऐसे कि रात को जागकर मेक – अप … श्रेया जी ! आप बात से बात निकालने में … अभी तो आप दो ही बार मिले हैं मेरी सहेली से . दो – चार बार और मिलने से तो … उस वक़्त देखा जाएगा . ऐसे तुम्हारी सहेली है बड़ी ….. मैंने कुछ ज्यादा ही कामेंट कर दिया था . श्रेया आँखें फाड़ – फाड़ कर मुझे घूर रही थी जैसे निगल ही जायेगी. मैंने ही बात के रूख को मोड़ा : सब काम हो गया ?

हाँ . श्रेया कहाँ मिल गयी . मैंने ही उसे घर से उठाकर ले आयी . अकेली थी . क्या करती , बोर होती . जब सुनी की आप नहीं गये , तो मिलने चली आयी. अब आप दोनों गप्पें लड़ाईए , मैं कुछ बनाकर लाती हूँ .

मैंने ही श्रेया से बात प्रारम्भ की : आप अकेली रहती हैं ? हाँ . परिवार में ? सब कुछ , लेकिन कुछ भी नहीं . माँ – बाप ने अमीर घराने में शादी कर दी यह सोचकर कि बेटी सुखी रहेगी – रानी की तरह राज करेगी , लेकिन राज क्या करेगी एक नौकरानी से भी बदतर जिन्दगी हो गयी.

वो कैसे ?

शादी के पांच साल हो गये . कोई ईसू नहीं हुआ . फिर क्या था , उलाहने शुरू हो गये . बाप – दादों तक बात चली गयी. सास – ननद कोसने लग गईं और सारा दोष मेरे माथे मढने लगी कि मैं बाँझ हूँ और बच्चा पैदा नहीं कर सकती . घर के लोग जब इस तरह लांछन लगाए , प्रताड़ित करे तो बाहर के लोग क्यों पीछे रहे . आस – पड़ोस के लोग भी ताने मारने लगे . पति को तो अपने कारोबार से फुर्सत कहाँ ! रात को नशे की हालत में आ धमकते थे और फिर एक भी नतीजा बाकी नहीं छोड़ते . पशुवत व्यवहार करते थे. मेरे मन में एक जिज्ञासा ने जन्म ले लिया. मैंने पति को राजी कर लिया कि हम दोनों को जांच करवा लेनी चाहिए कि बच्चा न होने की वजह क्या है . जांच के बाद जो रिपोर्ट आयी वह चौंकानेवाली थी . मेरा तो सबकुछ सही था , लेकिन उनका नहीं . यह बात सिर्फ पति को पता था , घरवालों को नहीं और मैं चाहती भी नहीं थी कि घरवालों को इसके बारे पता चले इसके बाद पति का अत्याचार और बढ़ गया .

आखिर सहनशक्ति की भी कोई सीमा होती है एक दिन जब मेरी सासू माँ मुझे बाँझ – बाँझ कहकर गालियाँ दे रही थी तो मुझसे रहा नहीं गया मैंने चिठ्ठा खोलकर रख दिया : सासू माँ ! आप के बेटे ही तो नपुंसक है , तो बच्चे कहाँ से पैदा लेंगे. मेरे माँ- बाप को नाहक गालियाँ दे रही हैं , पहले अपने चेहरे को आईने में झाँककर तो देखिये कि गुनाहगार कौन है – मेरी माँ या आप ? फिर तो कोहराम वो मचा कि क्या बताऊँ . मैं एक मिनट भी नहीं रूकी . डायमंड का नेकलेस , जिसे सासू माँ ने मुंह – दिखाई में दी थी , उतारकर उसके हाथों में थमा दी , वगैर एक मिनट भी देर किये गाडी निकाली (जिसे मेरे पिता जी ने मुझे दिया था ) और मैके के लिए चल दी . जान बची , लाखों पाए. फिर मैंने तलाक की अर्जी दे दी जो स्वीकार हो गयी. मैं किसी का भी बोझ नहीं बनना चाहती थी . पढी – लिखी तो थी ही . एकेडेमिक केरियर एक्सेलेंट था . शिक्षक की नोकरी लग गयी. मजे से रहती हूँ – विंदास !

शादी क्यों नहीं कर लेती ?

इसी जनवरी में . एक कालेज में लेक्चरर हैं वे. तब तो अच्छी कटेगी क्योंकि दोनों एक ही प्रोफेसन के हो गये. हमारी एवं घरवालों की सहमती से हो रही है. आप तो जानते ही हैं कि अकेले ओरत को जिन्दगी काटनी कितनी मुश्किल बात होती है. आप शादी में आयेंगे न ?

यह भी कहने की बात है , जैसे श्वेता , वैसे आप .

तबतक श्वेता आ गयी और बोली : इडली बना रही थी . इसलिए देर हो गयी . ले आऊँ ? जरूर . तीन प्लेट में सजाकर चार – चार लेती आयी. हमने मिलकर एकसाथ खाया और लुत्फ़ उठाया. सांभर और चटनी बड़ा ही टेस्टी था. फिर काफी थर्मस में लाकर रख दी .

मैंने ही बात शुरू की : अगला प्रोग्राम ? दो घंटे आराम कर लेते हैं , फिर शोपिंग के लिए चलते हैं . श्रेया को कुछ कपडे और जेवर खरीदने हैं . ठीक है. तुमलोग यहाँ आराम करो और मैं भीतरवाले कमरे में जाता हूँ . हम पांच बजे के करीब बाज़ार चले आये. कपडे खरीदने के बाद हम जेवर की दुकान पर गये . दूकानदार ने पहचान लिया. यहीं से हमने पायल खरीदी थी. सोने – चांदी के जेवरात के मूल्य सत्तर हज़ार के करीब हो गया. बिल मेरे हाथ में पकड़ा दी – सत्तर हज़ार एक सौ बत्तीस रुपये . दूकानदार जुबान से बंधा हुआ था .

फिर भी मैंने पूछ लिया : कितने दूं ? दस प्रतिशत कम कर दीजिये . तिरसठ ही दे दीजीये . हम पेमेंट करके श्रेया के यहाँ चले आये . बहुत विषयों पर हमारी बातें हुईं . श्रेया ने कहा : कुछ बना लेती हूँ . आलू भुंजिया और परोठा . चलेगा . ऐसे पेट भरा – भरा सा लगता है . मैंने आलू काट दिए और श्रेया और श्वेता ने मिलकर पराठे बना डाले. हमने साथ – साथ खाना खाए . श्वेता और मैं बिना बिलम्ब किये ओटो ली और घर चले आये. रात के दस बज रहे थे.

श्वेता ने कहा : अब क्या होगा ? मैं कहूँगा तो तुम्हें बुरा लगेगा . तुम्हीं बोलो . अब कोई काम तो है नहीं जिसे किया जाय . चले सोने . मैंने कब मना किया है ? हम चले आये साथ – साथ शयन – कक्ष में . मैं लेट गया बोझिल मन से . थका तो था ही. चेहरे से ही उदिग्नता झलक रही थी. श्वेता आकर बगल में कुछ हटकर लेट गयी . मेरी नजरें उसके चेहरे पर टिकी हुयी थी. मैं मौन था. चाहता था कि वही बात शुरू करे .

वह करीब आ गयी और आदतन मेरे बालों को सहलाते हुये बोली : आज आप बहुत सीरियस लगते हैं .

लगते नहीं , हूँ . नाराज भी हूँ .

क्यों ?

अब इस क्यों का जबाव कैसे दूं , समझ में नहीं आता मुझे. मेरी जगह होती तब समझती. आज यह चौथा दिन है . दिन नहीं रात . वही हुआ . हुआ नहीं हुयी . पहली रात को जब मैंने तुम्हें अपनी ओर खींचा तो तुम बोली – ‘नो ’ और दूर हट गयी दूसरी रात को जब मैंने तुम्हें अपनी बाहों में जकड लिया तो बोली – ‘ नो, नो ’ बीच में पिलो रखकर सो गयी . तीसरी रात को जब मैंने तुम्हें इशारे से पास आने को कहा तो तुमने कहा – ‘ नो , नो, नो ’ और उठकर दूसरे कमरे में चली गयी . श्वेता धीरज के साथ मेरी बात सुनती रही और बोली : आज नहीं कहूंगी ‘ नो ’– इतना कहकर मुझसे लिपट गयी . कब शुबह हुयी हमें पता ही न चला . लेखक : दुर्गा प्रसाद , गोबिंदपुर , धनबाद , दिनांक : १३ जुलाई २०१३ , दिन : शनिवार |

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