“फिर बारिश, मजाक बना रखा है इस बारिश ने|एक बार हो कर खतम हो क्यो नही जाती”| ताशी ने कुर्ला स्टेशन पर घुसते हुए सोचा| उसका छाता भी पलट के टूट गया था|इसलिए और मूड खराब हो गया था| वैसे भी बहुत मुश्किल से कुछ देती है कम्पनी और वो भी टुट गया| क्या मुसीबत है|
“8.37 को लोकल निकल गयी क्या?” एक ने पूछा । क्या साढ़े आठ बज गए? यानी की मोहित की लोकल निकल गयी । नही ऐसा नही हो सकता । सालभर हो गया था उसे ,सिर्फ मोहित को दूर से देखते हुए। सालभर पहले दोनों का तलाक हो गया था। लवमैरिज थी पर दोनों परिवार की आपसी रंजिश ने उन दोनों के रिश्ते में इतनी कड़वाहट भर दी थी की एक दुसरे की बाते जहर लगने लगी थी । उनकी शादी दो साल भी न चल सकी थी। पर बरसो का प्यार नही छुट पाया था। भले ही मोहित के लिए वो अब पराई हो गयी थी पर वो उसे अपने दिल से अलग नही कर पाई थी।
8.24 की अबरनाथ जाने वाली जगत लोकल से उनकी कहानी शुरू हुई थी।उस दिन वो पहली बार लोकल में चढ़ रही थी। जैसे ही लोकल में चढ़ने को हुई तो लोकल चल दी। वो तो गिर ही जाती अगर वो हाथ उसे थम ना लेता । उसी हाथ को थामे उसने कई साल बाद सात वेरे लिये थे । पर पता नही वो हाथ क्यों, कब छुट गया पर वो अहसास अभी तक है । मानो छाप छोड़ गया हो। जब भी रोना आता है तो उसी हाथ से अपने आँसू पोछती हूँ । लगता है मोहित ही हो ।प्यार चीज ही ऐसी है। कोई कानून नही जानता । तलाक शादी में हो सकता है पर दिल के रिश्तो में नही।
मोहित हमेशा एक ही जगह से लोकल पर चदते थे । वो उसे दूर से चुप के देखती थी जब तक की वो चला नही जाता था। फिर अपनी अँधेरी की लोकल लेती थी विरार के लिए। मोहित का ऑफिस ठाणे में था । उस दिन मोहित नही दिखा ।देर जो हो गयी थी। इतनी भी क्या दुश्मनी थी जिंदगी को उससे।कुछ देर रुक जाता तो क्या जाता। एक दिन लोकल लेट नही हो सकती थी। क्या बिगड़ जाता।
बारिश की वजह से काफी लोकल कैंसिल हो रही थी। बहुत भीड़ थी। लोकल आई तो वो जैसे ही चढने की कोशिश की लगी तो फिसलन से उनका पैर फिसल गया और वो प्लेफार्म पर गिर गयी। सर से खून का फुफ्वारा छुट गया। सब कुछ धुंधला सा गया। अचानक लगा जैसे मोहित का हाथ हो। उसे सहलाया , उसे उठाया ।बस उसे लगा की इसी वक्त मर जाए ताकि ये अहसास उसके साथ रहे, हमेशा के लिए।
पर ऐसा हुआ नही। आँख खुली तो अपने आप को सोफे पर पाया।सिर्फ पर पट्टी थी और हाथ में वही हाथ । मोहित का। एक पल को तो एस लगा मानो सपना हो । पर वो सच था। मोहित रोज़ उसी जगह इसलिए खड़ा होता था ताकि ताशी उसे देख सके और वो ताशी को।आज लेट हो गया था । उससे ढूढते हुए उसके प्लेटफार्म पर आया था जहा उसने ताशी को गिरते हुए देखा था।तलाक के समय उसका दिमाग हावी हो गया था , उसने अपने दिल की आवाज को दबा दिया था। पर अब ताशी की यादे उससे जीने नही दे रही थी। ऐसा लगता था जैसे जिन्दगी वीरान हो गयी हो। ताशी का खून बहते हुए देखा तो लगा यदि ताशी नही तो कुछ नही। उसी पल दिमाग हार गया और दिल गया ।वो उसे तुरंत अपने एक डाक्टर दोस्त के घर ले आया था।
ताशी की आँखे सब कुछ बयाँ कर रही थी।मोहित के लफ्ज भी जम गये थे। उसी पल वो दोनों फिर शादी की बंधन में बढ़ गए , बिना फेरो के, बिना पंडित के। क्योकि आज जो रिश्ता आँखों से बना वो इतना मजबूत थ जिसे अब कोई भी नही तोड़ सकता था । वो दोनों खुद भी नही।