[पत्नी का पत्र ]
रोज रोज की खटपट और ब्यर्थ बहस से तंग आकर एक दिन मैंने अपनी पत्नी से आग्रह किया कि उसको मुझसे जो भी शिकायत है तथा मेरी और अपनी कमियां , गुण , अवगुण सबकुछ वो लिख कर दे !. क्योकि उसका मानना है कि मै उसको बोलने का मौका नहीं देता हूँ तथा उसकी बातों को सही से नहीं समझ पाता हूँ . मै यहाँ उनसे प्राप्त पत्र प्रस्तुत कर रहा हूँ………
अतीत …
जब मेरी शादी हुई तब मैंने हमेशा इस रिश्ते को बहुत ख़ास समझा , बहुत महत्व दिया लेकिन मुझे आपकी तरफ से कभी ऐसा महसूस नहीं हुआ ! मुझे कभी लगा ही नहीं कि आपको ………. ! मैंने कभी भी अपने और आपके बीच अपने माता पिता और रिश्तेदारों को आने नहीं दिया , ( इसका ये मतलब नहीं कि मैं उनसे प्यार नहीं करती हूँ ) लेकिन आप अपने रिश्तों को लेकर उलझे, लड़ते रहे ! इतना हमारे रिश्ते को महत्व नहीं दिया , हमेशा हमारे बीच कोई न कोई आता रहा !
एक लड़की जब अपना घर छोड़ कर दूसरे घर आती है तो ये उनका फ़र्ज़ होता है कि उसकी क्या इच्छाएं है, क्या भावनाएं है, पूछें समझें और बहु का भी फ़र्ज़ होता है कि वो भी ऐसा करे और सामंजस्य स्थापित करे ! आप हमेशा कहते रहे ” वो ये चाहते है, वो वो चाहते है, तुम्हे ऐसा नहीं करना चाहिए” ! कभी ये जानने की कोशिश नहीं की कि क्या मै उन इच्छाओं को पूरा करने में खुश हूँ या नहीं ? मै क्या चाहती हूँ ? आप हमेशा कहते है कि जो आपके जितना करीब होता है वो उतना ही दुखी रहता है लेकिन मैंने ऐसा देखा नहीं कि जिन लोगो को आप अपने दिल के टुकड़े मानते है वो कभी भी दुखी रहते हो, तो इस बात पर यकीन करना मुश्किल था !
खैर ये बातें पुरानी हो गयी, आपने इस विषय में ज्यादा परिवर्तन किया क्योंकि समस्या भी आपने ही ज्यादा उत्पन्न की , ऐसा मुझे लगता है! लेकिन मेरे बार बार कहने पर आपके परिवर्तन से ये समस्या ख़त्म हो गयी इसके लिए बहुत धन्यवाद व आभार! (ये पुरानी बात है इसका अब कोई औचित्य नहीं है! )
वर्तमान ….
मैंने अपने ऊपर कभी भी बहुत रूपया खर्च नहीं किया ! जब आपको देखती थी खर्च करते हुए तो बड़ा अजीब लगता था हमेशा आपको टोकती रहती थी, हूँ ! लेकिन मेरा ऐसा सोचना गलत है , मै खर्च नहीं करती तो वो भी खर्च न करे ये सोचना मेरी गलती है , इसे मै मानती हूँ ! ये अब समझ आ रहा है , सबका अपना अपना स्वभाव होता है ! मै फिजूलखर्च नहीं कर सकती (आप रोकते नहीं है) तो आपसे क्यों उम्मीद करती हूँ कि आप कंजूसी करे ! शायद इसलिए कि मै आप पर अपना सम्पूर्ण अधिकार समझती हूँ, यहाँ पे मै गलत हूँ ! … सॉरी … सॉरी… सॉरी ! ये मै दिल से मान रही हूँ , कोशिश करूंगी कि शतप्रतिशत इसमें सफल होऊं !
आपका मानना है कि अभी भी लड़ाई माता पिता को लेकर होती है, लेकिन ऐसा नहीं है! ये गलत धारणा है ! पिछले ४ – ६ महीनो में हमारे बीच जो भी लड़ाई हुई वो अक्सर रात में हुई ! कभी खाने को लेकर, कभी सोने के समय को लेकर, कभी कभी उनको (माता – पिता) लेकर, ऐसा मेरा मानना है! कई बार (हमेशा नहीं) मेरी बातों को आप तिल का ताड़ बना देते है जिससे खटपट हुई ! मै फोन पे आधा घंटे से ज्यादा बात करती हूँ शायद दिन में एक दो बार! आप दिन में ज्यादा देर तक बात करते हैं आठ दस बार ! लेकिन यहाँ पर भी मै अपनी गलती मानती हूँ और कोशिश करूंगी कि ऐसा न हो!
आपसे एक परिवर्तन अगर हो सके तो मेरी बातों को क्यों क्या कैसे इस नज़रिए से न देखे ( तिल का ताड़ ना बनाये ) ! अगर मै थक गयी हूँ तो रात का खाना आप ९ – ९.३० बजे तक खा लें !
आपने मुझे हमेशा खुश रहने के लिए कहा क्योंकि आपके अनुसार मेरी ख़ुशी में ही आपकी ख़ुशी है , घर का वातावरण मेरी तुलना में आप ज्यादा स्वस्थ व खुशनुमा रखते है ! इस सम्बन्ध में मै पचास प्रतिशत अपने आप को सफल मानती हूँ , पचास प्रतिशत बाकी है! इसका पूरा श्रेय आपको जाता है क्योंकि जैसा मैंने चाहा आपने वैसा माहौल को बनाया !
मै अपने तरफ से कोशिश करूंगी कि ज्यादा टोकाटाकी ना करूँ , स्वतंत्रता दूँ आपको ! सुबह से शाम तक मै खुश ही रहती हूँ ऐसा मुझे लगता है , देर शाम या रात को थकने कि वज़ह से थोड़ी मै भी चिडचिडी हो जाती हूँ पर अब हर समय ये कोशिश करूंगी कि खुश रहूँ ! अबतक हुई गलतियों के लिए सॉरी…..
ईश्वर से यही प्रार्थना है कि वो आपको सदा खुश रखे !
आपकी
……….
( प्रिय पाठको यदि आपको ये पत्र पसंद आया तो शीघ्र ही इसके आगे का वृतांत प्रस्तुत करूँगा )