This Hindi story highlights the failure of a Girl’s Love which was bounded by the harsh words of Her Lover and after accepting the same she too sacrificed Her Life in a hope to get it again.
Life is going on…..कौन किसके लिए रुकता है ……..No one! अचानक से ये शब्द यूँही अनायास मेरे मुँह से निकल गए । मेरे क्या शायद हर दूसरा व्यक्ति ऐसे ही शब्दों को तोड़ -मरोड़कर अपनी ज़ुबानी में ज़िंदगी से निराश सा होते हुए अक्सर ऐसे ही कहता होगा । और क्यूँ ना कहे ……..ज़िंदगी हो भी तो इतनी ही व्यावहारिक गयी है कि रिश्तों की अहमियत तो मानो ज़ीरो । बस जब कभी अपने किसी ख़ास की मृत्यु हो जाती है तब ही बड़ी मुश्किल से दो आँसू नैनों से निकल पाते हैं और उस पर भी समय की कमी होने का ताना अक्सर सुना दिया जाता है तो खुद ही सोचो कि ऐसे में कौन भला किसी के लिए इस भागती हुई ज़िंदगी में रुकेगा ?
मगर मैंने ऐसा क्यूँ कहा ? आज फिर से पूरे दो साल बाद मैं अदिति से मिली थी । अदिति एक लाइब्रेरी में लाइब्रेरियन के पद पर नियुक्त थी और मैं उसी लाइब्रेरी में आज दो साल बाद फिर से पढ़ने आयी थी । मुझे देखकर अदिति पहले तो एकदम से चौंक सी गयी थी मगर फिर मेरा चेहरा याद करके एक जानी-पहचानी मुस्कराहट के साथ मुस्कुरा दी थी । आखिर क्यूँ ना मुस्कुराती ……हम दोनों में एक घनिष्ट सम्बन्ध जो बन गया था । अब पाँच साल से लगातार मैंने उसकी लाइब्रेरी में रोज़ के छ्ह घंटे का समय जो व्यततीत किया था । उसी समय में हम दोनों एक -दूसरे के इतने नज़दीक आ गए थे कि अदिति के बारे में मुझसे ज्यादा और कोई जानता भी नहीं था । बस मुझे उसी अदिति की पुरानी बातों का मन में ख़याल हो आया और मैं वहीँ कुर्सी पर बैठकर उसे सोचने में लग गयी ।
अदिति …..जो पिछले दस साल से किसी ऐसे लड़के के पीछे भाग रही थी जिसे वो समझती थी कि वो उससे सच्ची मोहब्बत करता था । मगर आजकल तो मोहब्बत सिर्फ जिस्मानी बनकर ही रह गयी है ….इस बात को हम औरतें चाहकर भी नहीं नकार सकती । सिर्फ दो या चार मुलाक़ातों के बाद ही आपका प्रियतम आपसे जिस्मानी मोहब्बत कि माँग करने लगता है और इसी वजह से मोहब्बत भी उन्हीं की कारगार सिद्ध होती है जिनके पास अपने जिस्म कि नुमाइश का भरपूर इंतजाम होता है । बाकी सभी तो अपनी मोहब्बत को अधूरा ही छोड़ उसके ख़याल को ही अपने मन से हमेशा के लिए हटा देती हैं । तो फिर भला अदिति की मोहब्बत को कहाँ इस बेरहम दुनिया में कोई जगह मिलने वाली थी । वो तो पहले से ही एक घाव को अपने अंदर समेटे हुए थी मगर पागल फिर भी उस ज़ख्म के साथ एरिक पर इतना भरोसा करती थी । मैंने उसे हल्का सा समझाया भी था कि क्यूँ इन सब चक्करों में पड़ती हो …..सब मर्द एक ही जैसे तो होते हैं । मगर वो कहती थी कि नहीं दीदी ,एरिक ऐसा नहीं है …उसकी सोच में एक नवीनता है । मैं चाहती तो किसी भी अपने धर्म के लड़के को चुन सकती थी मगर हमारे धर्म के लोगों की सोच आज भी बहुत ही संकीर्ण है । वो एक ईसाई है इसीलिए मुझे इस घाव के साथ भी अपनाने को तैयार है । मैं उसकी बातों को सुनकर चुपचाप हँस देती थी और भगवान से हमेशा यही प्रार्थना करती थी कि उसे उसकी खुशियाँ जरूर मिले ।
अदिति जैसी ना जाने कितनी ही लड़कियाँ रोज़ इस वहम में जीती जाती हैं कि वो अपने लिए एक जीवन-साथी जरूर चुन लेंगी और शायद इसी कोशिश में जी-जान से मेहनत भी करती हैं मगर जब उन्हें गिरगिट की तरह रंग बदलने वाले पुरुष की सच्चाई का आभास होता है तब वो अंदर तक कहीं टूट जाती हैं । अदिति का पच्चीस साल की उम्र में ही गर्भाश्य का निकल जाना उसके लिए एक सबक था कि शायद अब उसे अविवाहित होकर ही अपनी ज़िंदगी को चलाना होगा और उसने इसीलिए एक प्राइवेट नौकरी को अपने जीवनयापन का साधन बना लिया था । परन्तु ये इच्छाएँ भी ना जाने क्यूँ मनुष्य को जीने नहीं देती । एरिक बस अचानक से उसके जीवन को सहेजने के लिए कहीं से आ पहुँचा । उसको ये झूठा विश्वास दिलाकर कि वो उससे शादी करेगा वो रोज़ ही उसके जिस्म से अपनी तृष्णा को शाँत सा करने लगा । अदिति बहुत भोली थी ……नहीं जानती थी कि उसको ही एरिक ने इस तरह से क्यूँ चुना ? अगर सच्ची मोहब्बत ही होती तो वो अदिति पर जिस्मानी रिश्ते को बनाने का दबाव शादी से पहले कभी नहीं डालता । अब ये तो तय था कि अदिति को बच्चा तो होने से रहा इसीलिए एरिक को मुफ्त में अपने लिए मन बहलाने का सामान आसानी से मिल गया था जिसे वो अब भावनात्मक रूप देकर और भी कुरूप करने की कोशिश में लगा हुआ था ।
लड़कियाँ सच में ही बेफकूफ होती हैं या शायद उनकी भावनाएँ उन्हें बना देती हैं । एरिक के साथ रोज़ मिलना, घूमना ,मज़े करना अधेड़ उम्र की अदिति को अब भाने लगा था । भला पैंतीस की उम्र में कोई और उसको इस तरह से प्यार का इज़हार करता भी कैसे ? वो तो बस उसे ही अपना भगवान मानने लगी थी । सबको बस यही कहती फिरती कि शादी के बाद वो दोनों एक बच्चा गोद ले लेंगे …….एरिक बहुत अच्छा है …….वो जिस्म से ज्यादा उसकी कद्र करता है । “जिस्म से ज्यादा आत्मा की कद्र ” ,सुनकर ही हँसी आती है इस वाक्य से आजकल के इस व्यापार नुमा संसार में । धीरे-धीरे इस तरह से शादी के ख़्वाबों को संजोते-संजोते अदिति उसको अपना सब कुछ दे बैठी और अब वक़्त बीतने पर उसे अपनी गलती का कहीं न कहीं एक एहसास सा होने लगा । एरिक अब वो पहले जैसा एरिक जो नहीं रहा था अब । उसके साथ मिलने पर सीधा ही वो जिस्मानी रिश्ते की माँग करता और जीवन का भरपूर आनंद लेने के बाद अपने घर वापस लौट जाता । बेचारी अदिति ……जो पहले ही अकेली रहती थी …उसके जाने के बाद अब और अकेली हो जाती । अब अदिति उसके इस तरह के व्यवहार से खीजने लगी थी और उसपर शादी के लिए दबाव बनाने की भरपूर कोशिश में जुटी हुई थी । एरिक रोज़ कोई न कोई नया बहाना बनाकर उसकी बात को टाल देता था ।
मुझे आज भी वो New Year Eve की शाम याद है जब दोपहर के तीन बजे ही अदिति ने लाइब्रेरी बंद करने के लिए शोर मचा रखा था । कह रही थी कि कल सुबह नए साल पर अपनी शादी की मिठाई वो सबको खिलाने वाली है । आज उसे एरिक उससे शादी करने की तारीख जो बताने वाला था । अदिति को उसने मिलने के लिए शाम चार बजे किसी रेस्टोरेंट में बुलाया था । बस मैं भी उसके साथ बस स्टॉप पर गयी थी जहाँ से हम दोनों ने अपनी-अपनी मंज़िल तक जाने की बसें ली थी । अगले दिन सुबह जब मैं लाइब्रेरी पहुँची तो पाया कि अदिति टेबल पर मुँह औंधा किये पड़ी थी । मेरे पूछने पर वह फफक-फफक कर रो पड़ी ।उसकी लाल आँखें साफ़ बता रही थी कि वह सारी रात सोयी नहीं थी ।
मैंने पूछा ,”क्या हुआ था कल ?साफ़-साफ़ बताओ । ”
अदिति बोली ,”कल भी दीदी शाम को डिनर करते वक़्त हम दोनों का शादी की बात को लेकर खूब झगड़ा हुआ । सच पूछो तो वो और मैं अब कभी शादी नहीं करेंगे । ” इतना कहने के बाद अदिति ने सारी बात अपनी ज़ुबानी में कुछ इस तरह बताई ।
इस रोज़-रोज़ के झगड़े से अब एरिक भी तंग होने लगा है दीदी और इसीलिए कल उसने सबके सामने मुझे अपना फैसला सुना दिया । रेस्टोरेंट में बैठे सभी लोग हमारी तरफ घूर-घूर कर देख रहे थे और मैं और एरिक बस अपनी-अपनी बात को स्पष्ट शब्दों में एक-दूसरे को समझा रहे थे ।
अदिति, “आखिर कब तक तुम ऐसे ही शादी ना करने के लिए बहाने बनाते रहोगे ? साफ़-साफ़ क्यूँ नहीं कहते कि तुम मुझसे शादी करना ही नहीं चाहते । ”
एरिक (एक कुटिल मुस्कान हँसते हुए ) ,” तुम भी तो साफ़-साफ़ सुनना नहीं चाहती । भला बिना गर्भाशय की औरत का मैं करूँगा भी क्या ? इस अधेड़ उम्र में तुमने प्यार-व्यार जैसी बकवास बातों पर विश्वास कर भी कैसे लिया ?”
“बिना गर्भाश्य की औरत “…….ये शब्द मानो अदिति को अंदर तक कहीं एक गहरा ज़ख्म दे गए ।
अदिति ,”मगर मैंने तुमसे कभी भी कुछ नहीं छिपाया है एरिक । तुम ये सब पहले से ही जानते हो कि मैं बच्चा पैदा करने में असमर्थ हूँ । ”
एरिक ,”हाँ जानता हूँ ……मगर तब मुझे अपने वंश का ख़याल नहीं आया था । अब आया है तो कह रहा हूँ कि मेरे भी वंश को बढ़ाने वाला कोई वारिस तो होना ही चाहिए न ?”
अदिति (बीच में बात काटते हुए ),”हाँ पर तभी तो हम लोग बच्चा गोद लेने की बात करते थे ,जो हम लेंगे भी ।वही तो बनेगा न तुम्हारा वारिस ?”
एरिक (हँसते हुए ),”मूर्ख औरत …..किसी और के पाप को मैं अपना क्यूँ कहूँगा भला ?मेरा वारिस मेरा अपना खून होगा ना कि कोई गोद लिया हुआ । याद रखो कि तुम मुझे वो कभी नहीं दे सकती इसलिए मैं आज से तुम्हे हमेशा के लिए छोड़ रहा हूँ क्योंकि तुम सिर्फ एक अधूरी औरत हो ……..अधूरी औरत ।”
यह कहकर एरिक तेज़ी से दरवाज़ा खोल रेस्टोरेंट के बाहर चला गया । और मैं वहीँ पर खड़ी अपनी आँखों में आँसू लिए लोगो की नज़रों से बचती हुई बाहर से ऑटो लेकर अपने घर लौट आयी ।
मुझे उसकी हालत पर तरस भी आया और गुस्सा भी । तरस इसलिए कि उसने जानबूझकर अपने जिस्म को एरिक के हवाले इसलिए किया कि शायद वो उससे शादी करेगा और गुस्सा इसलिए कि अब वो बिना विकल्प के अपनी ज़िंदगी को आगे कैसे चला पायेगी । खैर उस समय तो मैंने उसका ढाँढस बंधा ही दिया क्योंकि मैं जानती थी कि समय के साथ हर घाव भर जाता है और शायद थोड़े समय बाद एरिक उसे अपना ही ले ।
अगले दिन ही मुझे अपना घर दूसरी जगह शिफ्ट करना पड़ गया और इसलिए उस दिन के बाद से आज पूरे दो साल बाद मैं फिर से यहाँ पर पढ़ने के लिए आयी हूँ ।अचानक से मुझे ख्यालों में डूबा देख अदिति ने मेरा ध्यान बँटाया । मैं भी वापस से उसे देख कर एकदम ही पूछ बैठी ,”कैसी हो?”
अदिति ,’ठीक हूँ । आप कहाँ थी इतने साल ?”
मैंने कहा ,” बस घर अब यहाँ से थोड़ा दूर ले लिया है तो वहीँ की लाइब्रेरी में पढ़ने चली जाती थी । अब वो लाइब्रेरी भी बंद हो गयी है और तुम तो जानती ही हो कि मेरा किताबों के साथ गहरा नाता है इसलिए अब फिर से यहीं पर आया करूँगी ।”
वो हँस दी और बोली ,” हाँ फिर तो अच्छा ही है …….आपके बिना मेरा भी दिल नहीं लगा था बहुत दिनों तक तो परन्तु ये ज़िंदगी तो ना रुकने वाली एक गाड़ी है । मुसाफिर आते हैं चले जाते हैं और हम वक़्त को ऐसे ही काटते रहते हैं । ”
उसकी बातों को सुनकर मैं थोड़ा सा हैरान हुई । क्या ये वही अदिति है जो पहले कभी ज़िंदादिली कि मिसाल बना करती थी और आज इतनी गहरी सोच से उसने अपने को बाँध रखा है । मैं उसकी पिछली ज़िंदगी को वहीँ से जानना चाहती थी जहाँ से मैं छोड़ कर गयी थी । इसलिए बिना कुछ सोचे ही मैंने उससे अब सीधा और स्पष्ट सवाल किया ,” एरिक से अब तो सब ठीक ही चल रहा होगा ना ?मैंने कहा था ना कि वो सब कुछ पलों का गुस्सा होता है जो बाद में सही हो जाता है । ”
अदिति ने अब बड़े ही ग़मगीन भावों से मेरी और देखा फिर वह थोड़ा रूककर बोली ,” नहीं दीदी …….मेरा और उसका गुस्सा कुछ पलों का नहीं था ….वो शब्द मेरे कानों में आज भी गूँज रहे हैं …….”अधूरी औरत” । उस रात के बाद से मैंने उसका चेहरा कभी नहीं देखा और ना ही उसने मुझसे कोई भी सम्बन्ध जोड़ने की कोशिश ही की । उसके कहे वो शब्द उसके प्यार का विश्वास दिलाने के लिए मेरे लिए काफी ही थे । ज़िंदगी कभी नहीं रूकती दीदी …….कभी नहीं । मैंने अब अपने साथ जीना सीख लिया है । एरिक शायद ठीक ही कहता था कि सच्चाई से हम कभी नहीं भाग सकते । मैंने भागने की कोशिश की थी ,सोचा था कि एक घर मेरा भी होगा , किसी एक गरीब बच्चे को अपना नाम देकर मैं भी पालूँगी ।अपनी कमाई का एक भाग किसी गरीब के नाम पर मैं भी लगाकर उसके जीवन को खुशहाल बनाऊँगी मगर मैं एक “अधूरी औरत ” ही बनकर रह गयी जो किसी को कुछ भी दे ना सकी ।”
उसकी बातें सुनकर अब मेरा भी मन एकदम भर सा आया था फिर भी मैं खुद को सम्भालते हुए बोली ,”अरे ऐसा क्यूँ सोचती हो ….बच्चा तो तुम अकेले भी गोद ले सकती थी और चाहो तो अब भी ले सकती हो कम से कम तुम्हारा अकेलापन तो दूर होगा और वैसे भी अपने बुढ़ापे के लिए भी तो किसी न किसी का हाथ थामोगी ही ना …….बच्चा साथ होगा तो तुम्हारी देखभाल कर लेगा बाद में …….और फिर क्या पता उसकी किस्मत से तुम और भी खुशियाँ पा सको । ”
अदिति (थोड़ा रूककर ),” मगर दीदी वो बच्चा भी तो बड़ा होकर अपने बाप का नाम मुझसे पूछता ना और जब बाप ही नहीं तो मैं माँ बनकर क्या करती इसलिए मैंने कोई भी बच्चा गोद नहीं लिया ।”
मैंने कहा ,” हाँ वो तो बात है लेकिन पहले ही तुम्हारे घर में कोई और है नहीं …….दुर्भाग्य था जो तुम्हारे परिवारवाले एक एक्सीडेंट में मारे गए । अब इतने साल अकेले ही तो गुज़ारे तुमने तो अब एक बच्चा साथ रखने में हर्ज़ ही क्या था …….थोडा खालीपन दूर हो जाता ,मन बहल जाता तुम्हारा ……..अकेला घर काटने को नहीं आता क्या ?”
अदिति बोली ,”अकेली अब कहाँ दीदी ?एरिक के शब्दों ने मुझे अकेला रहने ही नहीं दिया ।”
मैंने पूछा,” फिर कौन रहता है तुम्हारे साथ अब?”
अदिति ने जवाब दिया ,”मेरे साथ अब बेशुमार पैसा रहता है दीदी ,इतना अधिक पैसा कि उसे मुझे हर रोज़ बैंक में जमा करवाना पड़ता है और जो मेरे मरने के बाद किसी अनाथालय में रह रहे गरीब बच्चों की देख-रेख में खर्च हो जाएगा । ”
मैं हैरान थी उसकी बातें सुनकर इसलिए स्पष्ट सी स्तिथि को समझने का प्रयास कर रही थी । मैंने पूछा ,”परन्तु फिर ये नौकरी ?”
वो बोली,” ये नौकरी तो मेरे अधूरेपन की निशानी है दीदी और वो पैसा मेरे पूरे होने का सबब ।”
मैं अब पूरी तरह से अदिति की बातों के अर्थ को समझना चाहती थी इसलिए मैंने कहा,” मैं कुछ समझी नहीं रे …….तुम अब भी बातों को इतना घुमाती हो ,साफ़-साफ़ कहो न यार कि कहाँ से आता है इतना पैसा ?”
अदिति ने अब अपना सर झुका लिया और बोली ,”दीदी मैं एक अधूरी औरत बनकर जीना नहीं चाहती थी ,मैं भी एक इंसान हूँ ….एक पूरा इंसान । सिर्फ शरीर का एक अंग खो देने से कोई अधूरा नहीं होता …….अधूरे हम अपनी सोच से होते हैं । एरिक ने मेरे स्वाभिमान को ठेस पहुँचाया था दीदी और उसी स्वाभिमान से लड़ने के लिए अब मैं एरिक जैसे ना जाने कितने ही मर्दों को रात में पूरा करती हूँ । अधूरी मैं नहीं ……..अधूरे इस समाज के वो मर्द हैं जो अपनी शादी-शुदा ज़िंदगी के बाद भी अधूरे होकर मेरे पास पूरे होने आते हैं और आप देखना दीदी एक दिन ऐसा ज़रूर आएगा जब एरिक को पूरा होने के लिए फिर से मेरी ज़रुरत ज़रूर पड़ेगी और तब एक अधूरी औरत ही एक अधूरे मर्द को पूरा करेगी । ये मेरा दृढ़ आत्मविश्वास है जिसे मैंने आजतक अपने मन में बनाये रखा है ।”
मैंने कहा ,”क्या हुआ एरिक का …….क्या तुम जानती हो कुछ?”
वो बोली ,”सुना है …….उसकी ब्याहता शादी के छह महीने बाद ही उसे छोड़कर चल बसी । वारिस तो क्या उसका साथ देने के लिए एक हमसफ़र भी उसके साथ नहीं रह पाया । तब से रोज़ ही वैशालय की गलियों की ख़ाक छाना करता है । मैंने उसके लिए ही अपने आप को औरों को समर्पित किया है दीदी …….और आप देखना कि वो एक दिन मेरे पास भी लौट कर जरूर आएगा । ”
मेरी आँखों से अनायास ही अश्रुओं की धारा बह निकली और मेरे मुँह से निकल पड़ा ,” अदिति तुमने एरिक के लिए इतना सोचा और उसने इतना सा भी नहीं । क्या तुम नहीं जानती …..Life is going on…..कौन किसके लिए रुकता है ……..No one! ”
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