मैं अविजित हूँ, जिसे कोई हरा नहीं सकता, झुका नहीं सकता। वर्षों से यही भ्रम मन में पाले हुए था जो आज उसका ख़त पढ़कर शीशे की किरचों की तरह बिखर रहा है। उसके ख़त , जिन्हें मैंने ऑउटडेटेड करार दे दिया था। आज उसी आउट डेटेड ख़त ने सोचने पर मजबूर कर दिया है कि जो मैंने किया, क्या वो सही था ?
कई साल पहले यूनिवर्सिटी में पढ़ाई के दौरान मैं हॉस्टल में रहता था। एक दिन मेरे नाम एक खत आया। मैं हैरान रह गया क्योंकि अनजानी सी खूबसूरत हैंड राइटिंग में ये खत किसी लड़की का था। एक बार पढ़ा तो नज़रें शब्दों पर फिसलती रहीं ,कुछ समझ नहीं आ रहा था क्योंकि दिमाग काम नहीं कर रहा था। कुछ ख़ुशी और कुछ हैरानी का आलम था। आखिर समझ आ गया कि वो मुझसे दोस्ती करना चाहती है। तब से खतों का सिलसिला शुरू हो गया। वो बहुत खूबसूरत खत लिखती थी और मैं जवाब देता था। फिर उसके जन्मदिन पर मैंने उसे अपने हाथों से ग्रीटिंग कार्ड बना कर भेजा, तब कार्ड बनाते हुए मेरी उंगली में ब्लेड लग गया और खून कार्ड में लग कर उस तक पहुंच गया। मुझे नहीं पता उसे कितना दर्द हुआ होगा पर उसके अगले खत में कुछ तो झलक रहा था।
फिर एक दिन अचानक खतों का सिलसिला बंद हो गया। मैने उससे वजह पूछी , लेकिन जवाब नहीं मिला। मेरे अभिमान को चोट लगी। मैं ये सोचना नहीं चाहता था कि उसकी कोई मज़बूरी हो सकती है। दोस्ती उसने शुरू की थी लेकिन मैंने उस दोस्त को ढूंढ़ने की कोशिश तक नहीं की। पता तो मेरे पास था लेकिन मेरे अहम ने मुझे ये महसूस नहीं होने दिया कि शायद वो पलकें बिछाये मेरा इंतज़ार कर रही हो।
साल दर साल निकलते गए। समय के साथ मैं उसे भूल गया। मुड़कर देखना या किसी के लिए रुकना मेरी फितरत नहीं। सच है कि भूलना भी एक बहुत बड़ी नियामत है जिसके बलबूते नए साथी बनाने का हौसला मिलता है।मुझे भी मेरा जीवन साथी मिल गया । मैंने अपने से बड़ी उम्र की लड़की से शादी की, वह भी तब जब वह ज़िंदगी के बुरे दौर से गुज़र रही थी। उसको मुझमें एक संबल मिला और मेरा दर्प मुखरित होने लगा। अब तो मैं खुद को आदर्शवादी समझने लगा। इसी तरह ज़िंदगी आगे बढ़ती रही और उससे एक कदम आगे मैं बढ़ता गया।
एक दिन अचानक ………… हवा का एक झोंका आया जिसमें पुरानी पहचान की खुशबू शामिल थी। हुआ यूं कि एक दिन मैंने अपना फेसबुक खोला, मुझे एक संदेश मिला जो लगभग दो साल पहले किया गया था। सन्देश भेजने वाली वही थी जिसे मैं सालों पहले पीछे छोड़ आया था। मैंने उससे पूरी पूछताछ की, कि वह वही है या कोई और । आखिर में मुझे यकीन हो गया कि वही है। मेरे अहम को फिर एक पांव मिल गया। इतने समय जो मुझे ढूंढ लेती हैं कितनी अहमियत होगी मेरी उसके लिए ……… मैं आश्चर्यचकित रह गया एक गर्वित अहसास के साथ अब मैं सांतवें आसमान पर था।
अब बातचीत का सिलसिला फिर से शुरू हो गया।वो भी अब शादीशुदा थी। मैंने उससे अपने प्यार का इज़हार किया और कहा कि मैं पहले से ही उससे प्यार करता था। इस पर उसने शिकायत की, कहा,” तुम्हें ढूंढना चाहिए था न, पता तो था तुम्हारे पास। ” मैंने उससे कहा कि मैं अब भी उससे प्यार करता हूँ।
उसने कहा,” अब परिस्थितियां अलग हैं मेरी भी, तुम्हारी भी।“
पर मेरे लिए नया -२ शौक था सो मैंने कहा कि कुछ नहीं होता अब हमें मिल लेना चाहिए। उसने कुछ नहीं कहा। इस बीच कई बार मैंने उससे अपने प्यार का इज़हार किया क्योंकि मैं उससे भी कहलवान चाहता था।मुझे यकीन था कि उसे मेरी परवाह है क्योंकि मेरे एक ही बार कहने पर उसने अपने हाथों से फिर एक खत लिख कर मुझे भेजा। उस खत मैं उसने अपनी सारी कोमल भावनाएं उड़ेल दी थीं। अब अक्सर एस एम एस और फोन पर बातें होनी लगीं। मिलने का कोई अवसर नहीं आ रहा था।
धीरे -2 मेरी रूचि उसकी भावनात्मक बातों से कम होने लगी और मैंने उसके जवाब देने कम कर दिए । अब तक वो भी अपने प्यार का इज़हार कर चुकी थी। कभी वो जवाब न देने पर शिकायत करती तो मैं कठोरता से उसको अपने वयस्त होने की बात कहता। उसको चोट पहुंचाकर मुझे आनंद महसूस होने लगा। सोचता कि बिना कहे छोड़कर जाने की सजा तो उसे मिलनी ही चाहिए। उसका मेरे प्रति लगाव उसके एस एम एस और बातों से साफ झलकता था। धीरे-2 उसके संदेशों के जवाब में बहुत कड़वे शब्दों में देने लगा । दुखी होकर जब वो इसकी वजह पूछती तो मैं कहता ,”एस एम एस अब आउट डेटेड हो गए हैं लैटर्स की तरह, अब तुम भी अपडेट हो जाओ।” जिन खतों और संदेशों के ज़रिये हम जुड़े थे मैंने उन्हें ऑउट डेटेड कह कर उसका वजूद ही नकारना शुरू कर दिया। उसने दुखी होकर संपर्क खत्म न करने और दोस्ती बनाये रखने को कहा तो मैंने उसकी बातों को फ़िज़ूल की बातें बता कर समय बर्बाद न करने की सलाह दे डाली।मैंने जानने की कोशिश नहीं की वो कितनी बार टूटी होगी। मुझे पता था मैं कुछ भी कर लूँ वो मुझे नहीं छोड़ सकती ।
उसे कुछ पल देने में भी मैं कतराने लगा था मेरे पास अपनी व्यस्तता की लम्बी लिस्ट थी। शायद वो चाहती थी कि उसकी बीते दुखों को सुनकर मैं उसे कहूँ कि अब और नहीं अब मैं हूँ तुम्हारे साथ। पर मैं क्या कर सकता था मेरे लिए तो उसमें और उसके जैसी दूसरी लड़कियों में कोई फर्क नहीं था। उसकी बातें सुनकर मैं अक्सर कहता ”तुम्हारे जैसी लड़कियां ” उस वक्त उसके दिल को लगने वाली ठेस से मुझे कोई सरोकार नहीं था। मैं बहुत ऊँचा हो चुका था।
फिर वो बात जिसने उसके स्वाभिमान को चूर चूर करके दोस्ती से उसका विश्वास उठा दिया दिया।एक बार मैंने था ,” क्या हम बिना एक दूसरे से कोई अपेक्षा रखेएक दूसरे को प्यार सकते हैं?, नो कमिटमेंट लव ” मेरा मतलब उसे समझ आ गया था।उसने बस इतना ही कहा ,”ऐसे किसी प्यार के बारे में मैं नहीं जानती।उस वक्त उसकी आवाज़ का सूनापन मैंने महसूस नहीं किया लेकिन आज उसके खत में लिखे शब्द शोर मचा रहे हैं।”
प्रिय अविजित,
मैंने तुम्हें बहुत चाहा, पर जितना मैं जान पायी, तुम्हारा प्यार मुझे सतही लगा, ऐसे जैसे जो मिला उसे इस्तेमाल कर लो बस । तुम्हारे लिए मेरे मानदंड बहुत ऊँचे थे। जब तुम दुबारा मिले तो मेरा आत्मविश्वास बहुत बढ़ गया था। तम्हारी बातें मुझे मानसिक रूप से सहारा देने लगीं थीं। लेकिन आगे तुम्हारा व्यवहार मशीनी होता गया, जिसका ज़िक्र करने पर तुम नाराज़ होते थे।ऐसा लगता था तुम्हारा दिल भावना शून्य हो गया है या तुमने अपने दिल की प्रोग्रामिंग ऐसी की है कि उसमे भावनाओं को समझने के लिए कोडिंग ही नहीं है।जिन खतों के ज़रिये हम मिले, जिन संदेशों से हम दुबारा जुड़े, उन्हें तुमने आउट डेटेड कह दिया ।
ऐसा लगा जैसे तुम मेरा अस्तित्व ही नकार रहे रहे हो। मैं टूट रही हूँ अविजित।जिस पर सबसे ज़्यादा भरोसा किया वही मेरी टूटन की वजह बन रहा है। तुम ” नो कमिटमेंट लव ” चाहते हो और कमिटमेंट का मतलब सिर्फ शादी करना समझते हो। पता नहीं लेकिन कमिटमेंट का भावनात्मक रिश्ता निभाना भी होता है। कोई भी रिश्ता बिना कमिटमेंट के खोखला होता है।तुमने ये प्रपोजल रख कर मुझे किस श्रेणी में खड़ा किया है मैं नहीं जानती , हो सकता है तुम नो कमिटमेंट लव के आदि हों, क्योंकि ऐसा प्यार तुम्हें एक कॉल गर्ल या वेश्या ही दे सकती है, वो भी कीमत वसूल कर ।ये उसका अपने पेशे के लिए कमिटमेंट है मज़बूरी में ही सही। उनकी श्रेणी में तो खड़ा नही कर दिया तुमने मुझे।
एक बार इत्तेफ़ाक़ हुआ मैंने तुम्हें खत लिखा। दूसरी बार गलती हुई जो तुम्हें ढूंढा, तुम्हें ढूंढ कर खुद को ही खोने लगी पर अब तीसरी बार तुम्हें मिलने की भयानक गलती नहीं करुँगी।
इंदु
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