A Hindi story based on woman’s crises,which they are facing from long time ago.Actually women are not only beautiful body but also charming soul.
जीवन एक अविवाहित सड़क है। यह रूहानी तौर पर हमेशा कुंवारी और प्रेम प्यासी रहती है। इन्हीं प्यासी सड़कों पर मैं विगत पचास वर्षों से चलता रहा हूँ … एक कहानीकार होने के नाते मैं हमेशा उस महानायिका की तलाश में रहा ,जो कि मेरी उस कहानी की नायिका बने-जिसे मैं धरती और आकाश दोनों में हमेशा के लिए अमर कर दूँ … परन्तु विगत पचास वर्षों के अंतरालों में नायिका मुझे मिल नहीं पायी … हालाँकि मेरी सुनसान खोज हमेशा जारी रही …
और यकायक एक दिन था।
वह मिल गई ……
यह कहानी उसी को समर्पित है …जिसे मैं रूहानी रूप से और दैहिक रूप से भी अब हमेशा अपने आस-पास महसूस करता हूँ। नाम है उसका रूहानी।
वे शारदीय नवरात्रों के दिन थे। दिन की गर्म सांसें अब मुझे अच्छी लगने लगी थी। सूरज अपनी किरणों में ऊनी गर्म धागे छिपाए घरों में उतरने लगा था। ऐसी ही एक उजली सुबह मैंने उसे देखा। उसका उदास चेहरा छिपाए था स्वयं में एक महान रूहानी अदब। आदतन मैंने जैसे ही उसकी आँखों में छलांग लगाई कि वह गट- गट मुझे पूरा का पूरा पी गई। और अब मैं उसके शरीर में पहुँच चुका था। उसकी रूह से यह मेरी पहली मुलाकात थी।
”आप अंदर कैसे चले आये ?”
”वैसे ही … जैसे तुम आकाश से उतर कर इस शरीर में छुपी हुई हो …” मैंने उसका हाथ पकड़ कर कहा।
”पर मैं तो तम्हें जानती तक नहीं ?तुम हो कौन ?”वह एक डर से सहमकर कुछ पीछे हट गई।
”देखो रूहानी … तुमको याद नहीं है ,पर मुझे याद है कि तुम कौन हो ?”
”कौन हूं मैं ?”उसने अपनी बड़ी-बड़ी ,पर भोर के तारों सी दमकती ठंडी आँखों को झपकाते हुए पूछा।
”तुम वही हो … जिसे पाने को मैं सदियों से इस धरती पर जन्म लेता रहा हूं … और मरता रहा हूं …”
”मतलब ?”
”मतलब यह कि तुम मेरी रूहें हमदर्द हो। ”
अचानक शरीर के बाहर कोई ऐसी हलचल हुई कि मुझे रूहानी के शरीर से बाहर आना पड़ा। परन्तु बाहर आकर तब तक सब सामान्य हो चुका था। इधर रूहानी को स्वयं यह पता नहीं था कि मैं उसके शरीर में घुसपैठ कर चूका हूँ …”
उसने ठंडे स्वर में अपने होंठों पर दस्तक रखते हुए मुझसे कहा –
”आज से तुम मेरे पक्के दोस्त हो …तुम मानो चाहे नहीं मानो …”और इतना कहकर उसने अपनी खूबसूरत आँखों के काजल में इन पवित्र प्रेम भरे शब्दों को छुपाकर आँखें बंद कर लीं … शायद यह सोचकर कि कहीं कोई इन्हें देख ना ले … रूहानी ने तब अपनी साड़ी का पल्लू पकड़ते हुए मुझसे कहा –
”क्या आप इस दोस्ती को निभाएंगे ?”
”अंतिम सांस तक। ”
मैंने धीमे स्वर में उसकी रूह को आवाज दी थी …
रूहानी एक साधारण परिवार से ताल्लुक रखती थी। मध्यप्रदेश के एक छोटे से गाँव में उसका जन्म हुआ था। माता-पिता में कुछ बनती नहीं थी। घर में बड़ी होने के कारण माँ-बाप के कड़वे रिश्तों की कड़वाहट उसके खूबसूरत होंठों और मधुर आवाज को भी कसेला करने लगी थी …
गॉव के पोखर -तालाब के किनारे वह ज्यादातर उदास बैठी रहती … और मैंने देखा है कि धरती के सभी पोखर तालाब और बावड़ियां जहाँ-कहीं भी किसी गांव में स्थित हैं … वहीँ से नारीमन की उदासी को शांति मिली है। उदास स्वरों के विरही लोकगीतों ने वहीं -नारी स्वरों का दामन थामकर अपना अकेलापन दूर किया है। इसलिए मैं जब कभी भी गांव के पोखर -तालाबों को देखता हूँ तो वहां मुझे कई उदास नारियो के सुंदर मुखड़े पानी में उदास तैरते नजर आते हैं …
रूहानी का चेहरा भी आजकल गांव के उस पोखर में चुपचाप तैरता रहता था … और मैं चुपचाप उस अँधेरी शामों में जब पोखरों के किनारे टहलने जाता था तो यदा-कदा रूहानी मुझे वहां पोखर के किनारे एक खली मटकी की तरह उदास बैठी मिल जाती थी।
और यह सच भी है कि नारी मन इस संसार में जन्म तो लेता है मटकी भर प्यार पाने को ,लेकिन रह जाता है खाली मटकी -सा बिना प्यार के नीर के रूहानी की तरह …
”तुम यहाँ क्यों बैठी हो रूहानी ?”
”ऐसे ही ,जैसे यह पोखर और इसमे भरा यह पानी यहाँ वर्षों से बैठे हैं … ”
”पर तुम्हे दुःख क्या है रूहानी ?”
मेरे इस अप्रत्याशित प्रश्न को सुनकर उसकी आँखें भर आई … मैंने हिम्मत करके उसका हाथ थाम लिया। तब वह धीरे से बोली –
”मुझे कब थामोगे ?”
”मैंने तुम्हारा हाथ थाम तो रखा है ?”
”पर तुम मुझे कब थामोगे ?”
रूहानी के स्वर में हिमयुगों का एक सर्द दर्द था। उस दिन के बाद रूहानी आज तक मुझे नहीं मिली। और तबसे आज तक वह धरती के पोखरों ,नदियों,तालाबों और जंगलों में ढूंढने पर भी मुझे नहीं मिलती।
मेरी रूह आज भी रूहानी को गले लगाने को इस धरती पर भटक रही है ….
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रविदत्त मोहता