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Anklets…

Published by Durga Prasad in category Hindi | Hindi Story | Love and Romance with tag Love | market

तोरी बाजे पायलिया … ! Anklets…(Anklets are important part of a Indian woman’s jewellery. In this Hindi romantic story a lover is gifting a pair of anklets to his girlfriend. )

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Hindi Love Story – Anklets…
Photo credit: bosela from morguefile.com

औरत के लिए श्रृंगारिक प्रसाधनों में तीन चीजें अति महत्वपूर्ण होती हैं – बिंदी , चूड़ियाँ और पायल . श्वेता को जब मुझे चिढाना होता है तो कुछ न कुछ उल्टा – पुल्टा कर ही देती है अब उसी दिन की बात को लीजिये . उसने जान बुझकर चूड़ियाँ नहीं पहनी . वह ओवर साईज भी पहनती है ताकि झटाझट उतार कर फेंक सके . दूसरी जो महत्वपूर्ण बात यह है कि आज के समय में फैशन का चलन हो गया है – मैचिंग का . साड़ी , साया ( पेटीकोट ) और ब्लाउज का मैचिंग कलर हो – यहाँ तक तो बात पचती है , लेकिन जब बिंदी , चूड़ियाँ
सैन्डील और वैनिटी बैग भी मैचिंग कलर में हो तो बात खटकती है.
श्वेता आज शुबह जब नहा – धोकर निकली तो आईने के सामने खडी होकर बाल सँवारने लगी . मैं पास ही में कुर्सी खींच कर बैठ गया और पेपर पढ़ने लगा . बालों को समेट कर , रबर बैंड लगाकर , मेरे पास चली आयी और बोली :
उठिय न ! जरा बिंदी चिपका दीजिये .
खुद चिपका लो . मैं इम्पोर्टेंट न्यूज …
छोडिये , बाद में पढ़ लीजियेगा .
मेरा हाथ पकड़कर आईने के सामने ले गयी और बिंदी थमा दी .
फिर क्या था , मुझे बिंदी चिपकानी पडी .
कैसी जंच रही हूँ ? खील रही हो . काजल है ?
क्यों ?
सवाल नहीं पूछते . है तो दो .
उसने डिबिया दे दी . मैंने मध्यमा से काजल निकाल कर उसके दाहिने गाल पर एक टीका लगा दिया .
ये क्या ?
किसी की नज़र न लगे.
श्वेता , बस , न कोई स्नो , न पावडर , न हिमानी , न कोई सेंट …
आपने रामधारी सिंह जी की कविता की वे पंक्तियाँ नहीं पढी ?
नहीं , तुम्हीं पढ़ा दो .
तेल – फुलेल क्रीम – कंघी से नकली रूप सजाओगे ,
या असली सौन्दर्य लहू का , आनन पर चमकाओगे |
तुम रजनी के चाँद बनोगे या दिन के मार्तण्ड प्रखर ,
एक बात है मुझे पूछनी , फूल बनोगे या पत्थर |
मुझसे रहा नहीं गया और मैंने कविता की पहली पंक्ति सुना दी तो श्वेता मेरी ओर नुकीली निगाहों से घूरने लगी.
दिनकर जी वीररस के कवि थे और उनकी रश्मिरथी पुस्तक काफी लोकप्रिय हुयी थी. तुमने तो एम. ए . में पढ़ा भी होगा .
हाँ , उनकी रश्मिरथी हिन्दी काव्य में बेजोड़ पुस्तक है.
झट से तैयार हो जाओ. शोपिंग के लिए जाना है.
शाम को चलना है .
और दिनभर ?
और दिनभर मेरे आगोश में पड़े रहिये .
आजकल खूब मजाक करती हो . एक पप्पी भी तो नहीं … और आगोश की बात करती हो .
आज हम पुड़ियाँ , पुलाव , मटर – पनीर , साग – पकोड़े , रायता बनाऊँगी और आप को खिलाऊँगी अपने हाथों से .
इतने दिनों बाद तो आयें हैं .
चार महीने पहले ही तो आया था .
चार महीने ! एक – एक पल काटना कितना मुश्किल होता है मेरे लिए आप के बिना .
तुम्हारी दीदी क्या कहती है , सुनोगी ?
आप तो मेरे साथ रहते हैं , लेकिन आप का मन श्वेता के पास .
बात भी सच है . इसलिए कन्फेस कर लेता हूँ . मेरे विचार में पत्नी से कुछ भी छुपाना नहीं चाहिए , तभी दाम्पत्य जीवन सुखी होता है.
आप के विचार से मैं सहमत हूँ . लेकिन यह सुख सब को कहाँ नशीब ?
श्वेता को खाना बनाते ही वक़्त बीत गया . हमने साथ – साथ खाना खाया . स्वादिस्ट भोजन बना था . ऐसे भी श्वेता पाकशास्त्र में प्रवीण है.
रच – रच कर खाना बनाती है.
आप दो – तीन घंटे रेस्ट कर लीजिये . तबतक मैं वर्तन मांज लेती हूँ और घर को साफ़ – सुथरा कर देती हूँ.
ठीक है .
हम पांच बजे के करीब बाज़ार चले आये . रेडीमेड कपड़े की दूकान पर चले आये .
हमने अलग – अलग एक – एक नाईटी पसंद की . लड़ते – झगड़ते दोनों खरीद ली .
उसने जो नाईटी पसंद की , उसमें ऊपर से नीचे तक सात बटन लगे हुए थे . और मैंने जो पसंद की , उसमें बटन की जगह फीते लगे हुए थे , वो भी मात्र दो – एक सीने के पास और दूसरा कमर के ऊपर . मैंने जब नाईटी देख रहा था तो श्वेता मुझे घूर रही थी. मैंने उसके मन की बात जान ली और मजाकिया अंदाज़ में कहा : मात्र दो ही बंधन – खोलने में आसान और बाँधने में भी आसान .
सब समझती हूँ . मैं तो इसे शोकेस में रख दूंगी , पहनूँगी ही नहीं . आप जबरन थोड़े पहना सकते हैं .
तुम्हारा मन … ?
तुम्हें कुछ और लेना है ?
नहीं .
पर मुझे लेना है .
क्या ?
दूकान पर चलो तो बताता हूँ .
मैं एक आभूषण की दूकान में गया तो वह कुछ शक की निगाह से मुझे देखने लगी. आखिर क्यों यहाँ ले आये ?
बताता हूँ .
मेम साहेब के लिए कोई घुँघरूदार पायल या पाजेब दिखाएँ. – मैंने दूकानदार से कहा .
मैं नहीं पहुनूँगी भारी – भरकम .
थोडा हल्का ही … मगर घुँघरूदार .. समझ गये न ?
जैसे , जब चले तो … छम – छम !
हाँ , बिलकुल वैसा ही . आप समझ गये मेरा कहने का …
दूकानदार ने जैसा मैंने कहा कई जोड़े निकालकर हमारे सामने रख दिए एक से बढ़कर एक .
श्वेता ! बच्चे जिद नहीं करते . पसंद करो . मैं आप का मतलब समझती हूँ .
घर चल कर समझाना , यहाँ नहीं .
ये जोड़ी पसंद है .
मुझे भी .
दूकानदार को कहा : भाई साहब ! मेम साहब को पतलीवाली निकालकर इन्हें पहना दीजिये .
कारीगर तैयार था . उसने पायल पहना दी. पुरानी निकालकर मुझे थमा दी .
बहन जी ! चार कदम चल कर देखिये , कैसा लगता है , कोई असुविधा तो नहीं होती ?
श्वेता थोड़ी दूर चली और बोली :
बहुत ठीक , लेकिन …
लेकिन थोडा सा वजनदार . वो तो होगा ही , इतने सारे घुँघरू लगें हैं इनमें .
भाई साहब ! आप को कैसा लगा ?
लाजबाव ! सच पूछिए , आप दोनों की पसंद – अब क्या बताऊँ !
आप ने भाव तक नहीं पूछा , तभी हम समझ गये कि आप पारखी ही नहीं , दिलेर भी हैं .
आप ने कुछ ज्यादा ही बड़ाई कर दी .
कितने पैसे हुए ?
सात हज़ार सात सौ सत्तर रुपये मात्र .
पापा ! मेडम टीचर है , रश्मि ( उसकी छोटी बहन ) के स्कूल में .
क्या ?
बहन जी ! मैंने आपको पहचाना नहीं , भूल हो गयी . परिचय पूछते तो …
जल्दी से दो गिलास लस्सी ले आ – तुम नहीं , फजूल का देर करते हो तुम . गोपी ! तू जा तो और दौड़ कर दो, नहीं , तीन गिलास लस्सी लेते आ. एक गिलास मैं भी …
हम सोफे में बैठ गये . लस्सी जल्द ही आ गयी . दूकानदार भी दूकानदारी छोड़ कर हमारे पास आकर सोफे पर बैठ गया. अपने हाथ से हमें गिलास थमाई . रुपये देने से पहले ही बोल पड़े : सात हज़ार ही दीजिये . मैडम के लिए दस प्रतिशत छूट . ऐसे भी हमारी दूकान में शिक्षकों के लिए विशेष छूट दी जाती है . हमारे यहाँ शिक्षकों को विशेष सम्मान दिया जाता है. शिक्षक समाज में प्रकाश – स्तम्भ की तरह कार्य करते हैं .
आप दूकानदार होकर इतनी ऊँची सोच रखते हैं , आप जैसे लोंगो पर हमें गर्व है.
यह तो आप का बड़प्पन है . हम तो दिनभर ग्राहकों के साथ माथापच्ची करते हैं . हमें कहाँ वक़्त मिलता अच्छी बातें सोचने का !
धन्यवाद ! अब हम …
दूकानदार बाहर तक आया हमें छोड़ने . उसने कहा :
फिर कभी आईयेगा . सेवा का मौका दीजियेगा .
आठ बज गये थे और हमें भूख भी लगी हुयी थी. मैंने ही प्रस्ताव रखा :
आज किसी मारवाड़ी वासा में खाना खाया जाय . ऐसे भी तुम बहुत थक गयी हो . घर जा कर खाना बनाना …
ठीक है . पास ही एक वासा है.
हम वासा में चले आये और दो थाली मंगवा ली. खाना शाकाहारी और सबकुछ गर्म. तेल – मशाले भी न्यूनतम . हम खाना खाकर घर चले आये .
नौ बज गये, मालुम है ?
इसका मतलब अब सोने चले . क्यों ?
कभी – कभी तुम अच्छा मजाक कर लेती हो .
आप इशारे से ही सब कुछ कह देते हैं .
और तुम उधेड़ने से बाज नहीं आती .
कल रात भी मुझे सोने नहीं दी . चूड़ियाँ खनका – खनका कर , वो भी मेरे कानों के आस – पास , …
मैंने कही थी खरीदने क्या ?
मुझसे भूल हुयी . हाथ नंगें ही रहते तो क्या अच्छे लगते ? औरत का खाली हाथ मुझे बिलकुल …
आती हूँ जरा … बाथरूम से . तबतक सॉसपेन में दूध चढ़ा दीजिये गर्म होने कि लिए . एक –एक कप कॉफ़ी पीयेंगे तब …
अच्छा .
कुछेक मिनटों में ही आ गयी .
आज मैंने कॉफ़ी बना दी है. थर्मस में है . चलो बेडरूम में ही पीते हैं .
और चलो सोते हैं . तुम पुरषों को सोने के अलावे भी कुछ काम है कि नहीं ?
दिनभर में कितने काम किये , तुमसे छुपा है क्या ?
सोने से पहले तुम लड़ोगी – तभी तुम्हारा पेट का पानी पचता है अन्यथा …
बुरा मान गये ?
पागल हो गयी हो क्या ? मैं क्या नहीं जानता तुम्हें ?
कॉफ़ी पीजिये .
श्वेता मेरे बिलकुल सामने बैठ गयी और हर घूँट के साथ – साथ मेरे चेहरे में कुछ तलाशने का प्रयाश करती रही .
हम दोनों काफी थके हुए थे .
श्वेता आदतन मेरा हाथ पकड़कर बेडरूम तक ले गयी . बोली : एक मिनट में आती हूँ .
दस मिनट में आना मगर जरा …
दिन को तो गुमसुम सजे रहते हैं . सौ बोलता एक चुप , पर जैसी ही रात … आपको नशा छाने लगता है. और फिर …
जाओ बाबा , जल्द आना .
श्वेता गयी और कुछ देर में चली आयी .
परी – सी रूप की रानी उसी दो फीतेवाली नाईटी में . मैं देखता ही रह गया अपलक . वह सकपका गयी . अपने को संयमित करती हुयी बोली : मैं हारी और आप जीते .
उसने लाईट बुझा दी और मेरे करीब आकर लेट गयी .
मैंने ही बात शुरू की :
तुम शोकेस में रखनेवाली थी मेरी पसंद की नाईटी को , फिर उसी को पहन ली कैसे ?
सच पूछिये तो मैंने कई बार अपनी पसंदवाली पहनी उतारी , मन नहीं माना तो आप की पसंदवाली …
मैं आप के आगे हार जाती हूँ .
श्वेता ! तुम हारती नहीं हो , बल्कि जीत जाती हो . मैंने उसके मखमली बालों को सहलाते हुए अपनी बात रखी तो उसने भी अपनी प्रतिक्रिया व्यक्त की :
मैं अपने को आप से अलग कभी नहीं सोचती. यही वजह है कि जिसमें आप की खुशी सन्निहित होती है , वही कार्य करने को उद्दत हो जाती हूँ . आज भी मैंने वही किया.
प्रत्यक्ष या परोक्ष यही तुम्हारा प्यार मुझे …
अच्छा छोडिये इन बातों को .
आपने भारी भरकम पायल पहना दिया . मुझे असहज प्रतीत होता है .
कुछ ही दिनों में अभ्यस्त हो जाओगी. तब ठीक लगेगा . एक बात बोलूँ ?
बोलिए
जब तुम चलती हो न हंस की चाल …
तो ?
तो …
झनक – झनक , तोरी बाजे पायलिया ,
प्रीत के गीत , सुनाये पायलिया |
चलिए , हटिये . अब मैं समझी .
और समझा देता हूँ मैं – कहकर मैंने श्वेता को और करीब खींच लिया .
लेखक : दुर्गा प्रसाद , गोबिंदपुर , धनबाद , दिनांक : ३० मई २०१३ , दिन : वृस्पतिवार |
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