दिलरूबा (Dilruba): Romantic Hindi story of a man who becomes romantic by hearing a filmi love song and expresses his love to the girl who after teasing him accepts it.
यह निर्विवाद सत्य है कि तुम मुझसे ज्यादा खुले हृदय की हो. संकोच तो जैसे छू भी नहीं पाया है . किसी बात को कितनी बेधड़क बोल देती हो , मैं तो सुनकर अवाक रह जाता हूँ. उस दिन शाम का वक़्त था . दिनभर गर्मी का वो आलम था कि लोग घर में ही दुबके हुए थे. सूर्य सर के जस्ट ऊपर लटक रहा था. जान जैसे निकलने ही वाली थी. मैं बेचैन था इतना कि किसी काम – धाम में मन नहीं लग रहा था . सोचा क्या करूँ , क्या न करूँ ? रेडिओ पास ही पड़ा हुआ था . चलो फ़िल्मी गाना ही सुना जाय. विविध भारती लगा दिया तो मेरा फेवरिट गाना आ रहा था , ‘’ बहुत प्यार करते हैं , तुमको सनम , कसम चाहे लेलो , खुदा की कसम . गाना सुनकर तुमसे मिलने की सुसुप्त ईच्छा जीवंत हो गयी. फिर क्या था , मैं चल पड़ा तुमसे मिलने . गर्मी बर्दास्त न होने पर स्नान कर लिया था . जैसे ही तुम्हारे बैठक खाने में प्रवेश किया तुम बाल लहराती हुई , कंघी करती हुयी चली आयी.
क्या मेरी आहट तुम्हारे कानो में गूंजती रहती है ?
इसमें क्या शक है !
लग रहा , जस्ट स्नान करके आ रही हो . तीन दिनों के बाद सर में …
आप तो … लाज नहीं आती ये सब बात पूछते हुए ?
जब तुम निर्लज हो कर बात करती हो तो मुझे तो कभी आपत्ति नहीं हुयी . तो फिर … ?
मैंने तो मजाक में कहा था. आप तो सीरियस हो गये.
फॉरगेट इट .
तुम्हारे बाल खुले – खुले हवा में लहरा रहे थे .
मुझसे रहा नहीं गया था . मैंने कहा , ‘ जो बोलो ईश्वर ने औरतों को बनाया तो लम्बे – लम्बे खुबसूरत , घने काले बाल भी दे दिए . ऐसे बाल तो तुम्हारी खूबसूरती में चार चाँद लगा दिया है. दिल चाहता है इन बालों में खो जाऊं !
तुमने बालों को समेट कर मेरे मासूम चेहरे को पर दे मारा था.
मुझे इसकी उम्मीद नहीं थी . न ही मैं सतर्क था . मैं तुम्हें बाँहों में भींचने ही वाला था कि तुम हँसते हुए चली गयी थी . थोड़ी देर बाद सज – धज कर चाय लेकर आ टपकी थी.
चाय पीजिये .
गर्मी में ?
हाँ , गर्मी में . गर्मी में गर्मी और सर्दी में सर्दी जितनी अच्छी लगती है , क्या मुझे एक्सप्लेन करना पड़ेगा ?
अनर्गल बातें करना बंद करो . एक कप चाय और ले आओ , मेरे सामने बैठो कुर्सी पर एक भद्र महिला की तरह और … ?
और साथ बैठ कर मेरे सामने चाय पीओ
यहीं पर . आपके साथ .
तुम तो अन्तर्यामी हो , सब कुछ पहले ही जान जाती हो .
यदि मंजूर नहीं , तो लो , मैं चला . मैंने उठने का नाटक किया था . तुम अन्दर गयी और चाय लेकर मेरे सामने कुर्सी पर बैठ गयी.
चाय पी रहे हैं कि मुझे घूर रहें हैं , जैसे कभी देखा ही न हो.
कहा न पहली बार देख रहा हूँ . तुम्हारे चेहरे पर उतराते हुए भाव को पढने की चेष्टा कर रहा हूँ . तुम्हारी बड़ी – बड़ी आँखों की गहराईयों में दिल चाहता है कि डूब जाऊं .
गुस्ताखी माफ़ हो , वो गाना नहीं सुना , ‘ बार –बार देखो हज़ार बार देखो , देखने की चीज है , दिलरूबा ! ’
सबकुछ सुन के , सबकुछ पढ़ के , जीरो बट्टा जीरो हूँ.
तुम और नजदीक आ गयी थी – एक चपत लगा दी थी मेरे दाहीने गाल पर और बोल पडी थी , ‘ बदमास …
मैंने तुम्हारा दुपट्टा पकड़ लिया था . तुम सतर्क थी . छूड़ाकर चली गयी.
थोड़ी देर बाद फिर आयी . हाथ में एक कटोरा था और एक थाली थी.
बोली , ‘ आज खीर – पूड़ी और आलूदम , आपका पसंदीदा डीस , बनायीं हूँ . खाकर देखिये टेस्ट कैसा है ?
तभी तुमने …
सबकुछ तो जानते हैं , फिर पूछते क्यों हैं ?
और तुम ?
मैं थोड़ी देर बाद में …
जब खा पीकर इत्मिनान हुए तो फिर मेरे सामने बैठ गयी थी .
मेरे सर को अपनी तरफ करते हुए बोल पडी , ‘ आप मुझे प्यार करते हैं न , बोलने से हिचकिचाते हैं न , घबडाते हैं न ?
मेरे पास प्रतिकार करने के शब्द नहीं थे .
मैं खुलकर बता देती हूँ , आप की तरह म्याऊँ – म्याऊँ नहीं करती .
मैं खुलकर बता देती हूँ कि मैं आपको बेहद प्यार करती हूँ . यकीं न हो तो कभी आजमा कर देख लीजियेगा .आप की जुबान लडखडाती है जबकि …
सरेंडर करता हूँ .
मेरी बातों के आगे या मेरे आगे ?
दोनों .
तुम जाने के लिए उद्दत हुयी ही थी कि मैंने तुम्हें अपनी बाँहों में भींच लिया और कह पड़ा था , ‘ बहुत प्यार करते हैं , तुमको सनम , कसम चाहे लेलो , खुदा की कसम | ’
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लेखक : दुर्गा प्रसाद |