Shweta & her lover expressed dealing with each other, their feeling. So sentimental she became that kissed him while seeing off,
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Romantic Hindi Story – When She Kissed Me Time And Again…!
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प्रेम व प्यार क्या होता है ? मोहब्बत क्या होती है ? इश्क क्या होती है ? इन्हें पारिभाषित नहीं किया जा सकता . यह एक अनुभूति है . यह एक एहसास है. इसका न तो कोई रूप – रंग है , न ही आकार – प्रकार है . इसकी न तो कोई सीमा है न ही क्षेत्र है.
यह अनंत है .
यह असीमित है .
यह निर्गुण है .
यह शाश्वत है .
यह अदृश्य है .
यह सरस है . यह सलील है . यह सस्वर है . यह भावात्मक है . यह सम्बेदनशील भी है. इसका अपना अस्तित्व है. इसकी अपनी भाषा है . इसका अपना संस्कार है . इसकी अपनी संस्कृति है. इसकी अपनी परंपरा है. इसकी अपनी मर्यादा है . इसके अपने सुर , ताल व लय है .
यह ध्वनि है जो पल – पल कानों में गूंजती रहती है .
यह संगीत है जो मन को झंकृत कर देती है .
एक तरफ मेरी प्रेमिका है श्वेता और दूसरी तरफ है मेरी पत्नी बसन्ती . इन दोनों के मध्य हूँ मैं – एक तीसरा चरित्र . तीनों के मध्य प्रेम व प्यार वो भी अगाध , असीम और अतिसय. मधुर सम्बन्ध . पारस्परिक सामंजस्य . सर्वदा देने की चाहत , पाने की नहीं . यथोचित आदर व सम्मान एक दूसरे के प्रति .
मैं एकान्तवास में कई घंटों से था और मेरे मन मष्तिष्क में प्रेम पर इसके स्वरुप व क्षेत्र पर कई विचार उठ रहे थे – डूब रहे थे . तभी श्वेता छम – छम करती हुयी आ टपकी और बोली : देर हो गयी , अकेले बोर हो रहे थे , क्यों ?
ऐसी बात नहीं . चार दिनों में आज ही मुझे कुछ सोचने – समझने का अवसर मिला .
क्या सोच रहे थे ?
कभी तुम्हारे बारे में तो कभी तुम्हारी दीदी के बारे में और …
और क्या ?
अपने बारे में .
तभी श्वेता का मोब – टोन बजा .
पांच – सात मिनट तक बात हुयी . मुझे इधर की बातों के सारांश से ज्ञात हुआ कि बसन्ती का फोन था . श्वेता पास आकर बगल में बैठ गयी. मेरे पूछने से पहले ही खुल गयी :
दीदी का फोन था . आपके स्वाश्थ्य के बारे में पूछ रही थी . पूछ रही थी बैंक का काम हो गया क्या ?
क्यों नहीं कह दिया हो गया .
जब मुझे कुछ मालुम ही नहीं , तो क्या बताती ?
तुमने कभी बताई थी कि बैंक से लोन ली है .
हाँ , मेरे मुंह से निकल गयी थी आल ऑफ़ ए सडेन .
आते वक़्त अपनी एटीएम कार्ड थमा दी और बोली , ‘ लोन किलियर करके आईयेगा.’
आपने एक बार बैंक चलने की बात का जिक्र इसीलिये किया था क्या ?
हाँ . तुम्हारी आलमारी में पासबुक और क्लियरेंस सर्टिफिकेट रख दी है. अब लोन की राशि सेलरी से नहीं कटेगी .
वगैर पूछे क्यों रिपे कर दिया ?
मुझसे नहीं , अपनी दीदी से पूछना . उसे ऐसे भी कर्ज से नफरत है , चाहे अपना हो या अपने लोंगो का और तुम कितनी अपनी हो , समझाने की जरूरत है क्या ? तुम्हारी दीदी क्या कहती है , कलेजा मजबूत है तो सुनाऊँ ? कहती है जितना ख्याल आप का श्वेता रखती है उतना ख्याल मैं पत्नी होकर भी नहीं रख पाती !
समझ गयी .
अब इस पर कोई बहस नहीं . लेट अस बी कूल एंड काम इन दिस ईसु .
ओके . कल मोर्निंग फ्लाईट की टिकट ले आयी हूँ – जयपुर टू कोलकता .
मुझसे …
जरूरत नहीं समझी .
तुम तो हिटलर की तरह बिहेव कर रही हो इन दिनों .
जो समझिये . चलिए , उठिए . खाने का वक़्त हो गया है. मैं डोसा , इडली – बड़ा पैक करवा के ले आयी हूँ . मुझे जोर की भूख लगी है. हाथ – मुंह धोकर आईये .
मैं अब जान गया था कि श्वेता का मूड आज उखड़ा – उखड़ा सा है. चुप – चाप जो बोले सुनते व करते जाना है. मैं उसके स्वभाव से परिचित था . वह तुरंत चली आयी . मैंने कौर उठाया ही था कि हाथ पकड़ ली और पहला कौर अपने सधे हाथ से मेरे मुहं में डाल दी. मैंने भी उसे खिलाया. वह आज बहुत खुश दीख रही थी जबकि उसे मालूम था कि मैं बस अब चौबीस घंटे का मेहमान हूँ . मैंने ही बात छेड़ी :
अब ?
दो घंटे रेस्ट कर लेते हैं , फिर …
फिर क्या ?
फिर लक्ष्मी नारायण मंदिर चलेंगे .
फिर ?
फिर मार्केट चलेंगे .
फिर ?
फिर किसी होटल में खाना खाकर घर लौट आयेंगे .
फिर ?
फिर सो जायेंगे , आज थोडा जज्द ही , क्योंकि आप को एयर पोर्ट छोड़नी है शुबह ही .
कोई काम – धाम नहीं रहने से तन सुस्त और मन भी उदिग्न हो जाता है . आज मैं बड़ा थका – थका सा फील कर रहा था , बेड में लेटते ही नींद आ गयी वो भी गहरी . श्वेता ने ही उठाया मुझे . हम हाथ – मुंह धोकर एक – एक कप चाय पी और एक ओटो लेकर मंदिर निकल गये . दूर से ही बेली फूलों की खुशबू हमें मिलने लगी. पगडंडी के दोनों और पौधे लहलहा रहे थे . दूध से सफ़ेद फूल खीले हुए थे जो आँखों को ही नहीं अपितु हमारे मन को भी तृप्त कर रहे थे . यह लक्ष्मी नारायण का भब्य मंदिर जयपुर के दक्षिण में अवस्थित है. यह मोती डूंगरी की तलहटी में निर्मित है . सम्पूर्ण निर्माण सफ़ेद संगमरमर के पत्थरों से उच्च कोटि की कारीगरी से किया गया है . इसे बिडला मंदिर के नाम से भी जाना जाता है चूँकि इसका निर्माण बिडला परिवार समूह ने करवाया है.
हम घंटे भर श्री चरणों में बैठे रहे और श्रीनाम का जाप करते रहे मन ही मन. वहां से सीधे बाज़ार चले आये . श्वेता ने कुछ खरीदारी की . मैंने एक संगमरमर की मूर्ति खरीदी . हम एक होटल में चले आये . श्वेता ने ही तंदूरी रोटी , मटर – पनीर और ताड़का का ऑर्डर दे दिया . कुछ देर थी सर्व करने में , इसलिए हमने टोमेटो सूप मंगवा लिए . आज हम बात चीत करने के मूड में नहीं थे. हम एक – दूसरे को अपलक निहारते रहे और नयनों की भाषा में ही बात करते रहे. कभी – कभी मौन रहना भी मन को अपूर्व सुख व शांति प्रदान करता है. इसकी अनुभूति हमें कई अवसरों में हो चुकी थी. घर पहुँचते ही हम एक अलग ही दुनिया में खो गये. महज आठ घंटे बाद हम एक दूसरे से बिछड़ने वाले थे. श्वेता अकेली हो जायेगी – यह बात मुझे खाए जा रही थी . मैं अपने दर्द को सीने में ही दबाकर रखा था – बाहर होने से न जाने क्या … ?
श्वेता गुमसुम थी अन्दर से , लेकिन ऊपर से चहक रही थी. वह मुझे अब कष्ट देना नहीं चाहती थी – इस बात को मैं समझ गया था.
मैं थका तो था ही तन से और मन से भी . श्वेता मेरे बिलकुल करीब आ गयी , मेरे उलझे बालों को आदतन सहलाने लगी और बोली :
आप बहुत सोचते हैं कभी – कभी . आज आप की हंसी – खुशी नहीं देखी मैंने . पूरे वक़्त ग़मगीन रहे . मेरे बारे आप बहुत ज्यादा सोचते हैं . बाबा ! मैं अकेले ठीक से रह लूंगी .
मेरी कसम खाओ , नहीं रोओगी .
कसम खाती हूँ .
वैसे नहीं .
जैसी खाई , ठीक है . मुझे समझने में देर नहीं लगी कि वह मेरी कसम खाना नहीं चाहती . वह मुझे प्राणों से भी ज्यादा चाहती है फिर वह …
मुझे सब कुछ भूलकर नार्मल होना पड़ा . उसके घने बालों को अपनी उंगुलियों से सुलझाने लगा . ऐसे भी श्वेता के बाल बहुत ही लम्बे हैं – कमर तक . मुलायम भी उतने ही . बड़ी ही सहेज कर , सवार कर रखती है. मुझे तो , जब सहलाता हूँ , शाश्वत सुख की अनुभूति होती है. थोड़ा दार्शनिक हो जाता हूँ – सोचता हूँ कि किसी जन्म में कोई पुण्य किया था कि मुझे … ?
उसकी बड़ी – बड़ी आँखों में झाँका तो आज वह कुछ ज्यादा ही … लगी . आज वह मुझमें समां जाना चाहती थी . ऐसे में मेरा उदास रहना … क्या उचित था.
मैंने उसे बाहों में समेट लिया और रसभरी होठों को … लिया . प्रतिदान में उसने भी एक नहीं कई बार … रही. इतनी खुश मैंने श्वेता को कभी नहीं देखा न पाया.
हम निश्चिन्त एक – दूसरे की बाहों में ही सो गये . एलार्म की घंटी बजी . हम झटपट उठ गये और चलने को तैयार हो गये .
हम दो घंटे पहले ही एयरपोर्ट पहुँच गये . टिकट ली . विंडो सीट थी मेरी . सेकुरिटी चेक आदि होने के बाद हमने साथ – साथ ब्रेकफास्ट ले लिए केंटिन में . घोषणा हो रही थी फ्लाईट की . हम जाने को उद्दत हुए तो श्वेता भावुक एक तरह से उत्तेजित हो उठी . अपने को रोक नहीं सकी और मुझे बाँहों में जकड़ ली – न जहां का ख्याल रहा , न ही दुनिया का – मुझे चूमने लगी एक बार नहीं – बार – बार . उसकी आखों से आँसू की झड़ी लग गयी. मेरी भी आँखें डबडबा गईं . मैं अपने मन को चाहकर भी नियंत्रित नहीं कर सका. इसका एहसास जब श्वेता को हुआ तो उसे मेरी बात याद आ गयी कि … ? वह मेरे आँसूओं को पोछने लगी. मैंने भी उसके आंसूं पोछ डाले और दोनों गालों को बारी – बारी से चूम लिए . वह मुस्करा कर मुझे सी ऑफ़ की. मैं बस से प्लेन तक आया . अपनी सीट पर जाकर बैठ गया.बेल्ट बाँध लिए. खिड़की से झाँका – दुनिया हरी – भरी थी , लेकिन मेरी दुनिया, मन की दुनिया कैसी थी ? काश , मैं आप को बता पाता !
लेखक : दुर्गा प्रसाद , गोबिंदपुर , धनबाद , दिनांक : 27 जुलाई 2013, दिन : शनिवार |
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