इश्क कीजिये, फिर समझिये , जिन्दगी क्या चीज है ! (Love is essence of life): It is very difficult to find your heart once lost to someone because when it goes away it remains there, far away, with your only love. A romantic love story in Hindi.
तुम्हारा यह अंदाज बिलकुल जुदा है औरों से . अब उस दिन की ही बात लो . मेरी पुकार क्या सूनी , झटपट लट बिखराए गालों पर , लाल परिधान में , मेरे सामने आकर खड़ी हो गयी. शायद कुछ भूल गयी थी . अन्दर गयी और फिर सामने आकर खड़ी हो गयी . तुम्हारे घने बालों से पानी नहीं मोतियों की बूँदें टपक रही थीं . बेताब नजरें मुझ पर शिकारी की तरह टिकी हुयी थीं . मुझे स्टेच्यू बना कर रख दी थी. मैं हिलडुल नहीं सकता था . रास्ता छेककर खडी थी . अपने दाहिने पाँव की उंगुलियों से मेरे पाँव दबा कर रखी थी . पता नहीं आज मुझसे किस जन्म का बदला लेना था. बड़े इत्मिनान से बातें भी करती जा रही थी.
पाँव दबाकर रखी हो , छोडो भी .
अच्छा लग रहा है , रहने दीजिये . जब छुरी चलाकर कलेजे में मुस्कराते हुए चल देते हैं , तो मैं तो कभी शिकायत नहीं करती ? आज आपको दर्द हो रहा है . कल रात भर मैं दर्द से छटपटाती रही , उसका हिसाब चुकती करनी है . चलिए बैठिये दिखाती हूँ . उसने अपनी जांघ के घाव को दिखा दी . कल आपने इतनी जोर से चिकोटी काटी कि जख्म हो गया .
ऐसा तो कई बार …..
वो मेरे हाथ थे , पाँव थे , जांघ नहीं . शरीर की सभी मांसपेशियां एक ही तरह की होती है क्या ?
सॉरी , समझ गया , अब से ऐसा नहीं होगा . जोश में मैंने हौश खो दिया था .
लीजिये मलहम लगाइए – सोफ्रामाईसीन .
मुझसे तो होगा ही नहीं .
क्यों ?
सब बातें खोलकर नहीं बताई जा सकती , कुछ समझा भी करो. मेरा मन ख़राब हो रहा है , मैं चलता हूँ . आज मैं किसी भी कीमत में रूक नहीं सकता .
रुकेंगे कैसे नहीं ?
जबरदस्ती ?
हाँ , जबरदस्ती .
उसने दोनों कन्धों को पकड़ कर कुर्सी में बैठा दिया मुझे .
हिलिएगा मत , जबतक लौट के नहीं आती .
भीतर गयी और दो प्लेट में खीर – पूड़ी और आलू दम की सब्जी लेते आयी.
आप के लिए रच –रच कर बनायी हूँ .
तुम्हें कैसे मालूम कि मैं आऊँगा ही.
यह बताने की चीज नहीं है , अनुभव की बात है.
आप मेरे बिना …..
और तुम मेरे बिना …..
सब कुछ तो जानते ही हैं , फिर ?
मुझे भूख भी लगी थी. सुधा के साथ बहस में उलझना अर्थात गरम –गरम खाने से वंचित होना था . मेरी धोडी से देर हुयी थी कि उसने पूड़ी और सब्जी का एक कौर मेरे मुहं में डाल दी .
कैसा बना है ?
लाजबाव ! एक पप्पी दे सकता हूँ – बाएं गाल पर .
मैंने खवाब में भी नहीं सोचा था कि वह सचमुच में पप्पी ले लेगी . मेरा बोलना था कि झट उठकर एक लम्बी सी पप्पी ले ली.
नंदू , उसका छोटा भाई , खड़ा – खड़ा मुस्कुरा रहा था . बोला :
दीदी से मजाक में भी ऐसी – वैसी बात मत बोलियेगा . वह आप को देखते आपा खो बैठती है. कब क्या बोल देगी , क्या कर देगी , वह खुद नहीं जानती . बाबूजी और माँ से भी लड़ जाती है , जब वे आपके बारे कोई कोमेंट करते हैं .
खीर खा चुकने के बाद मैं जाने के मूड में हो गया . हाथ पोंछने के लिए रूमाल खोज रहा था , शायद दूसरे पैंट की जेब में रह गया था . सुधा झट समझ गयी अपना दुपट्टा मेरी ओर बढ़ा दी , “ पोंछ लीजिये इससे . संकोच मत कीजिये . आप से बढ़कर मेरे लिए कोई चीज नहीं .
मैंने कथनानुसार हाथ पोंछकर जाने को हुआ तो साड़ी लाकर दी. बोली : माँ को दे दीजियेगा .
और यह ?
यह माँ के लिए है वही सबकुछ .
मैंने लेकर सीधे घर चला आया , लेकिन मेरा हृदय सुधा के पास ही रह गया – ऐसा मुझे एहसास हुआ.
विगत चवालीस सालों से उस हृदय को तलाश रहा हूँ , लेकिन वह मिलने से रहा , क्योंकि एक बार जो यह किसी के पास चला जाता है , तो फिर लौट के वापिस नहीं आता .
सोचता हूँ इंसान सबकुछ जान के भी भूल पर भूल करते आता है युग – युगों से – किसी के प्रेम में – किसी के प्यार में – किसी की मोहब्बत में – किसी के इश्क में … |
गजल सम्राट जगजीत सिंह के गजल की दो पंक्तियाँ ही इस रहस्य को समझने के लिए प्रयाप्त है – ऐसा मेरा मत है.
“ हौशवालों को खबर क्या ,
बेखुदी क्या चीज है |
इश्क कीजिये , फिर समझिये ,
इश्क कीजिये , फिर समझिये ,
जिन्दगी क्या चीज है |
लेखक : दुर्गा प्रसाद , बीच बाज़ार , गोबिंदपुर , धनबाद , दिनांक : ६ मई २०१३ दिन : सोमबार |
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